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ये मैं, ये यूसुफ़
लंगोटिया यार सी मेरा
लाहौर में हमारे घर के सामने, एक बड़ा बाग था
उस बाग का गेट बाबा आदम के ज़माने का था
रोज़ शाम को, हमने वहाँ पतंगें उड़ानी
और उस के बाद जा के यूसुफ़ की दुकान से 'झजरिया' चुरा के खानी
'झजरिया?'
ओह मेहरा साहब, नमस्ते क्या हाल चाल?
नमस्ते नमस्ते... मेरी पोती है मुम्बई वाली.
और बेटे, क्या हाल चाल है?
"ओए यूसुफ़, तेरी पतंग कट गयी!"
"ओए यूसुफ़..."
हैल्लो, सलाम अलैकुम
फ़ज़ल स्वीट्स?
हां जी
दादाजान, दिल्ली से किसी की कॉल है
हैलो?
यूसुफ़ अंकल?
कौन?
जी, मैं सुमन बोल रही हूँ दिल्ली से, आपके बचपन के दोस्त बलदेवजी की पोती
याद है, बचपन में, आप दोनों झजरिया चुरा के खाते थे?
पार्टीशन के वक़्त,
हम रातों रात हिंदुस्तान आ गए
दादू...
यूसुफ़ दी वड्डी याद आंदी हैं
भैया थोड़ा जल्दी!
हांजी...?
कौन?
हैप्पी बर्थडे यारां
यूसुफ़...
यूसुफ़ ओए...
ओए यूसुफ़,
ओए!
ओए यूसुफ़, मेरे यार