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" धर्म, नस्ल , लिंग , और जाती के अहंकार
और अंधराष्ट्रीयता के पुराने अनुरोध अब और प्रभावशाली नहीं रहे "
"मैं कौन हूँ, अच्छा हूँ कि बुरा, सफल हो रहा हूँ या नहीं,
यह सब जीवन सिखाता है"
"यह सिर्फ एक यात्रा है
और हम इसे किसी भी समय बदल सकते हैं. हमें बस चुनना है
कोई मेहनत नहीं , कोई नौकरी नहीं , पैसे की बचत नहीं. "
"मुझे एहसास हुआ कि मै जीवन के खेल को ग़लत खेल रहा था.
खेल तो यह पता लगाने का था कि मैं वास्तव में क्या था .
"हम बोल रहे थे
कि कितना महत्वपूर्ण है
इंसान के मन में,
एक आमूल क्रांति लाने की
चेतना अपने चरम बिंदु पर है
एक ऐसा बिंदु जहाँ और नहीं
स्वीकारा जा सकता पुराने आदर्शों को ,
पुराने तरीकों को ,
और प्राचीन परम्पराओं को
और आज आप देख रहे हैं दुनिया कैसी है ,
इतने कष्ट में,
संघर्ष में,
विनाशकारी क्रूरता में,
आक्रामकता में,
और न जाने क्या क्या में ....
और इन्सान
अब भी वैसा ही है,
वह अब भी क्रूर,
हिंसक,
आक्रामक,
लालची
और प्रतियोगी है .
और, उसने इन्हीं खूबियों पर एक समाज बनाया है ."
.
जाईटगाईस्ट एडेनडम
एक अत्यंत बीमार समाज में खुद को अनुकूलित करना ,
स्वास्थ का परिचय नहीं है " - जिद्दू कृष्णमूर्ति
आज समाज, बहुत सारे संस्थानों से बना है.
राजनीतिक संस्थानो से,
कानूनी संस्थानो से
धार्मिक संस्थानो से .
सामाजिक वर्ग की संस्थानो से लेकर ,
पारिवारिक मूल्यों,
और काम काज के विशेषज्ञता तक.
यह स्पष्ट है की इन पुराने संस्थानो ने
हमारी समझ और धारणाओं पर
कितना गहरा प्रभाव छोड़ा है.
अब तक इन सारी संस्थानो में, जो हमें जन्म के साथ मिली है,
जिनसे हमें सीख मिले हैं और हमारा परवरिश हुआ है,
ऐसी कोई भी संस्था नही है जिसे बिना प्रश्न के स्वीकारा गया हो
और ग़लत समझा गया हो
जितना कि रुपयों-पैसों की संस्था को .
लगभग धर्म के जैसा ही
पैसों की यह संस्था
एक अंध - विश्वास के साथ मौजूद है
पैसा कैसे बनता है, किन नीतियों के द्वारा संचालित होता है,
और कैसे यह वास्तव में समाज को प्रभावित करता है,
अधिकतर लोगों को यह जानने में रूचि नहीं है.
ऐसी दुनिया, जहाँ 1 % लोग पृथ्वी की 40 % संपत्ति के मलिक हों ,
ऐसी दुनिया जहाँ 34000 बच्चे,
गरीबी और रोगों से रोज़ मर जाते हों ,
और जहाँ पृथ्वी की आधी जनसंख्याँ
90 रुपये प्रतिदिन से कम में गुज़ारा करते हों
वहाँ एक बात साफ है.
कुछ तो बहुत गड़बड़ है.
और चाहे हम जानते हों या नही, इन संस्थानों की ,
और समाज की प्राण शक्ति,
पैसा है.
इसलिए यह समझने के लिए कि हमारा जीवन जैसा है वैसा क्यूँ है ,
रुपयों-पैसों की इस संस्था को समझना बहुत ज़रूरी है.
दुर्भाग्य से, अर्थशास्त्र को अक्सर भ्रम और क्लांति के साथ देखा जाता है.
कभी न ख़त्म होने वाले शब्दों के जाल
डरावने गणित के साथ मिल कर
जल्द ही लोगों को इसे समझने की कोशिश से रोक देती है.
हालाँकि सच यह है कि,
पैसों की व्यवस्था के साथ जुड़ी जटिलता महज एक मुखौटा है.
जो समाज को पंगु बनाने वाले ढाँचे को छुपाने के लिए बनाया गया है,
जैसा मानवता ने पहले कभी नहीं सहा होगा .
उनसे बड़ा गुलाम कोई नहीं जो
इस झूठ को सच मान लेते हैं की वे स्वतंत्र हैं
- वुल्फगॅंग वॉन गोथ 1749 - 1832
काफ़ी साल पहले,
अमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व ने
एक किताब पेश किया था , जिसका नाम 'मोडर्न मनी मेकानिक्स ' था,
इस किताब में बैंकों द्वारा पैसा बनाने की प्रथा को विस्तार से लिखा गया था ,
जैसा कि फेडरल रिज़र्व और इससे जुड़ी दुनिया भर
के व्यावसायिक बैंकों के जाल के द्वारा यह काम होता है .
किताब के शुरुवात में ही इसके उद्देश्य को लिखा गया है .
"इस किताब का उद्देशय यह समझाना है कि
फ्रैक्श्नल रिजर्व बैंकिंग सिस्टम के द्वारा
पैसों की निर्माण प्रकिया कैसे होती है "
इसके बाद फ्रैक्श्नल रिजर्व बैंकिंग सिस्टम के बारे में
विभिन्न बैंकिंग शब्दावली के माध्यम से बताया जाता है.
जिसका अनुवाद कुछ इस तरह है:
अमेरिकी सरकार यह निर्णय लेती है की उसे कुछ पैसों की जरुरत है.
तो वह फेडरल रिज़र्व को सूचित करती है की .
उसे (मान लीजिये ) 100 करोड़ डॉलर चाहिए
जवाब में फेडरल रिज़र्व कहता है
"ठीक है हम 100 करोड़ , सरकारी बॉन्ड के तौर पर आपसे खरीद लेंगे
फिर सरकार कुछ काग़ज़ के टुकड़ों को लेती है,
उन पर सरकारी मोहर डाल कर
उन्हे सरकारी बॉन्ड का नाम दे देती है.
फिर इन बॉन्ड पर 100 करोड़ डॉलर की मोहर लगा कर
उन्हे फेडरल रिज़र्व के पास भेज देती है
इसके बदले में फेडरल रिज़र्व भी
कुछ प्रभावशाली से दिखने वाले काग़ज़ के टुकड़े बनाता है,
लेकिन इस बार इनको " फेडरल रिज़र्व नोट" का नाम दे दिया जाता है.
और जिनकी कीमत भी 100 करोड़ डॉलर निर्धारित कर दी जाती है.
फेड इन टुकड़ों को बॉन्ड के बदले में बेच देता है.
जैसे ही ये लेन - देन पूरा होता है,
सरकार इन फेडरल रिज़र्व नोटों को
एक बैंक के खाते में जमा कर देती है.
और इनके जमा होते ही ,
ये काग़ज़ के नोट क़ानूनी तौर पर असली पैसे का रूप लेते हैं
और अमेरिकी पैसो की सप्लाई में 100 करोड़ डॉलर जुड़ जाती है .
और बस ऐसे ही 100 करोड़ डॉलर के नए पैसों का जन्म हो जाता है.
बेशक, यह उदाहरण एक सामान्यकरण है.
क्योंकि असल में यह लेन देन बिना किसी काग़ज़ का प्रयोग किए . .
इलेक्ट्रनिक माध्यम से होता है
वास्तव में सिर्फ़ 3 % अमेरिकी डॉलर काग़ज़ के माध्यम में मौजूद है
बाकि के 97 % असल में सिर्फ कंप्यूटरों में मौजूद है.
ध्यान दें , असल में सरकारी बॉन्ड ऋण बनाने के ही अस्त्र हैं.
और जब फेड इन बॉन्ड को खरीदता है
और बॉन्ड के बदले में पैसा बनाके ऋण के तौर पर देता है
तो सरकार फेड को इस ऋण का
भुगतान करने का वादा करती है.
दूसरे शब्दों में, पैसा ऋण से बनाया गया था .
यह दिमाग़ को सुन्न कर देने वाली सोंच ,
कि किस प्रकार पैसा ऋण से बनाई जा सकती है,
हमारे आगे आने वाले अभ्यास से साफ़ हो जाएगा.
तो अब अदला बदली हो चुकी है, .
और 100 करोड़ डालर अब एक व्यावसायिक बैंक खाते में पड़ा है
यहाँ से मामला काफ़ी दिलचस्प हो जाता है,
क्योंकि फ्रैक्श्नल रिज़र्व की नीति के अनुसार
ये जमा 100 करोड़ डॉलर
उसी समय फेडरल रिज़र्व के भंडार का हिस्सा बन जाता है,
जैसा कि सभी जमा राशि के साथ होता है.
और, आरक्षित जरूरतों के बारे में ,
मोडर्न मनी मेकेनिक्स में कहा गया है कि
"किसी भी बैंक को क़ानूनी रूप से, कुल जमा राशि से
कुछ मात्रा का भंडार अलग अपने पास रखना ज़रूरी है."
और फिर इस मात्रा के बारे में कहा गया है कि : "मौजूदा नियमों के तहत,
अधिकांश लेन-देन खातों के अंतरगत यह मात्रा 10 % है".
इसका मतलब है की इस 100 करोड़ डॉलर की जमा राशि का
10 % या 10 करोड़, आवश्यक भंडार के तौर पर रखा जाता है,
जबकि बाकी के 90 करोड़ को अत्याधिक राशी मान कर,
नये ऋणों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.
अब ये मानना स्वाभाविक है, कि ये 90 करोड़
मौजूदा 100 करोड़ डॉलर जमा राशि में से आ रहे हैं.
लेकिन हकीकत मैं ऐसा नहीं होता !
होता ये है कि, यह 90 करोड़ डॉलर को
मौजूदा 100 करोड़ डॉलर के साथ जोड़ कर
यूँ ही बिना कोई आधार के काल्पनिक रूप से बना दिया जाता है
इसी तरह से पैसों की सप्लाई को फुलाया जाता है
मोडर्न मनी मेकेनिक्स के अनुसार
"निस्संदेह वे" - बैंक -
"आने वाली जमा राशि को ऋण के तौर पर इस्तेमाल नहीं करते हैं.
क्योंकि अगर वे ऐसा करते हैं तो अतिरिक्त पैसा नही बन पाएंगे
तो वे करते यह हैं कि ऋण देते समय
ऋणकर्ता के खाते में जमा पूंजी के रूप में
पैसों के बदले
इकरार-नामे , यानी , लोन कॉन्ट्रेक्ट देते हैं
दूसरे शब्दों में, 90 करोड़ डॉलर बिना किसी आधार पर खांतो मैं लिख दिए जाते हैं!
और ऐसा सिर्फ़ इसलिए हो सकता है क्योंकि, इस तरह के ऋण की माँग है,
और क्यूंकि रोज मर्रा की लेन देन के लिए .
100 करोड़ डॉलर की नकद राशी जमा हैं
अब मान लेते हैं कि कोई इस बैंक में जाता है और
इस नए बने 90 करोड़ डॉलर का ऋण लेता है.
तो संभावना ये है की वह इस पैसे को लेकर अपने खुद के
बैंक के खाते में जमा करा देगा.
और यह प्रक्रिया फिर से शुरू हो जायेगा .
उस जमा पैसे का कुछ भाग बैंक के भंडार का हिस्सा बन जायेगा .
10 प्रतिशत अलग रख दिया जायेगा और बचा हुआ 90 प्रतिशत,
या 81 करोड़, नये ऋण के लिए उपलब्ध हो जायेगा
और ज़ाहिर है की 81 करोड़ फिर से जमा होके
और नये 72 करोड़ को जन्म दे देगा
और फिर 65 करोड़ को और 59 करोड़ को... इत्यादि
इस तरह, ये जमा धन से नया पैसा बनाने का ऋण-चक्र
तकनीकी तौर पर अंतहीन चल सकता है.
औसत गणित के अनुसार 100 करोड़ डॉलर की जमा राशी
से 900 करोड़ डॉलर की काल्पनिक राशी बनाई जा सकता है
दूसरे शब्दों में, बॅंकिंग सिस्टम में
हर जमा राशि अपने से नौ गुना राशि
को बिना किसी आधार से जन्म दे सकती है
पैसे का डर - बैंक ओफ अमेरिका से तुरंत एक कप
जायकेदार पैसों की मांग करें .
--पैसा --एक सुविधाजनक निजी ऋण के रूप में .
तो अब जब हम समझ चुके है कि किस तरह पैसा .
फ्रैक्श्नल रिजर्व बैंकिंग सिस्टम के द्वारा बनाया जाता है
तर्क के लिए एक प्रश्न दिमाग़ में आ सकता है:
कि इस नए बने पैसे को मूल्य कैसे प्राप्त होता है?
इसका जवाब है: उन पैसों से जो पहले ही से मौजूद है!
नया बना पैसा पुराने पैसों से उनके मूल्य को चुरा लेती है!
क्योंकि, बिना इसकी परवाह के कि माल और सेवाओं
की माँग बढ़ रही है या नहीं, पैसों का कुंड बढ़ाया जा रहा है!
और जैसे ही सप्लाई और डिमांड संतुलन मांगती है , चीजों की कीमतें बढ़ जाती है
जिससे पैसों की हर एक इकाई की अपने खरीदने की शक्ति कम हो जाती है
इसे आमतौर पर मुद्रास्फीति के रूप में जाना जाता है!
मुद्रास्फीति असल में जनता के उपर एक छिपा हुआ टैक्स (कर ) है!
आमतौर पर क्या सलाह दी जाती है?
यही कि; पैसों की सप्लाई को बढ़ाया जाये!
वे यह कभी नहीं कहते कि; पैसों की मूल्य को घटाया जाये!
वे नही कहते है: पैसों की कीमत को कम करो.
वे ऐसा नही कहते हैं: जो लोग सुरक्षित हैं उन्हे धोखा दो!
वे बस कहते हैं: ब्याज़ दरें कम करो!
असली धोखा तब होता है जब हम पैसे की कीमत को बिगाड़ते हैं .
जब हम पैसों को बिना आधार के , काल्पनिक रूप से बना देते हैं वो भी बिना किसी बचत के!
फिर भी इसे पूंजी का नाम दे दिया जाता है!
तो मेरा सवाल यह है कि:
और अधिक पैसों की सप्लाई से , यानी और मुद्रस्फ्रिती से
हम किस तरह मुद्रास्फीति की परेशानी को सुलझा सकते हैं?
बेशक , ऐसा बिल्कुल नही हो सकता!
फ्रैक्स्नल रिजेर्व सिस्टम से पैसों का फैलाव
अपने आप में मुद्रास्फीति है
क्योंकि पैसों के सप्लाई को बढ़ाने का यह तरीका, बिना
माल और सेवाओं की वृद्धि के अनुपात को ध्यान में रखकर करने पर ,
हमेश ही पैसे के मूल्य को नष्ट करेगा .
असल में अगर हम अमेरिकी डॉलर के विपरीत पैसों की सप्लाई ,
पर नज़र डालें तो यह तथ्य साफ दिखता है
कि दोनों का ताल्लुक बिलकुल उल्टा है
1913 का 1 डॉलर 2007 के 21.60 डॉलर के बराबर है.
इसका मतलब फेडरल रिज़र्व के .
आने के बाद से डॉलर का मूल्य 96 % घटा है
अब अगर लगातार मुद्रास्फीति की यह सच्चाई ,
बेतुकी सी लगती है तो ठेहेरिये
क्यूंकि जिस तरह से हमारी आर्थिक व्यवस्था वास्तव में चलती है
सिर्फ़ बेतुका कहना काफी नहीं होगा
क्योंकि हमारे आर्थिंक ढाँचे में पैसा ही ऋण है!
और ऋण ही पैसा है.
यह 1950 - 2006 में हुई अमेरिकी की पैसों की सप्लाई की चार्ट है.
और यह उसी समय के अमेरिकी राष्ट्रीय ऋण का चार्ट है.
दिलचस्प है की दोनो की प्रवृतियाँ लगभग एक सी लगती हैं
क्योंकि जितना अधिक पैसा है उतना अधिक ऋण भी है.
और जितना अधिक ऋण है उतना अधिक पैसा भी है.
तो दूसरे तरीके से कहा जाए तो वह हर डॉलर जो आपकी जेब में है,
वह किसी के द्वारा किसी से उधार लिया हुआ है.
क्योंकि याद रखिए: पैसे का अस्तित्व सिर्फ़ उधार से शुरू होता है.
तो अगर देश में हर कोई अपना उधार चुका दे,
साथ में सरकार भी
तो पैसों का संचालन ही रुक जायेगा .
"अगर हमारी आर्थिक प्रणाली में कोई ऋण नहीं होगा
तो पैसा भी नही होगा "
मारिनर एक्ल्स - फेडरल रिज़र्व राज्यपात सितंबर 30 , 1941 .
वास्तव में आख़िरी बार अमेरिकी इतिहास में
राष्ट्रीय ऋण का पूरा भुगतान 1835 मैं हुआ था जब राष्ट्रपति
ऐन्ड्रेऊ जैक्सन ने फेडरल रिज़र्व के पहले वाले केंद्रीय बैंक
को बंद करवा दिया था
वास्तव मैं जैक्सन का राजनीतिक मंच एक तरह से
केंद्रीय बैंक को बंद करने की प्रतिबद्धता पर ही टिकी हुई थी .
एक समय पर उन्होंने कहा था :
" सरकार पर नियंत्रण करने के लिए जो निर्भीक प्रयास इस केंद्रीय बैंक ने किया है
उससे अमेरिकी जनता के भाग्य का पूर्वाभास होता है कि
इस बैंक को या इसके जैसा कोई और संसथान को टिकाये रखने
के लिए जनता को भ्रमित किया जा रहा है "
दुर्भाग्य से उनका यह सन्देश लोग भूल गए
और अंतरराष्ट्रीय बैंकरों ने 1913 में एक और
सेंट्रल बैंक स्थापित कर दिया , जिसका नाम था - फेडरल रिजर्व
और जबतक ये संस्था मौजूद है, निरंतर ऋण हमेशा ही रहेगा .
अब तक हम इस बात पर चर्चा कर रहे थे
कि पैसा ऋण के माध्यम से कैसे बनाया जाता है
ये ऋण बैंक के भंडार पर आधारित हैं,
और भंडार जमा राशि से बनते हैं .
और इस फ्रैक्श्नल रिजर्व बैंकिंग सिस्टम के जरिये
कोई भी जमा राशि अपने आप से नौ गुना मूल्य को जन्म दे सकती है.
और बदले मैं पैसों के कीमत को घटा देती है .
और चीजों के दाम दाम बढ़ जाते हैं
और चूँकि सारा पैसा ऋण से बनता है,
और मार्केट के जरिये जैसे तैसे फैलाया जाता है ,
लोग अपने असली ऋण को नहीं समझ पाते ,
और एक असंतुलन पैदा होता है
जिसमें श्रम के लिए लोग आपसी प्रतिस्पर्धा पर मजबूर हो जाते हैं
ताकि वे ज़्यादा से ज़्यादा पैसा इस पैसों की सप्लाई में से
अपनी जीवन चलाने के लिए निकाल सकें.
चाहे यह कितना ही बेकार या पिछड़ा हुआ लगे,
अभी भी इन सारी बातों में एक जरुरी बात हमने नहीं बताया है .
और इस संरचना का यह तत्व
इस व्यवस्था की सही धोखाधड़ी का परिचय देता है.
और वह है ब्याज़ का प्रयोग.
जब सरकार फेड से पैसा उधार लेती है ,
या जब कोई बैंक से पैसा उधार लेता है
तो लगभग हमेशा ही एक ब्याज़ के साथ उस पैसे को वापस किया जाता है.
दूसरे शब्दों में, हर एक रुपया जो मौजूद है
उसे ब्याज़ के साथ उसे बैंक को वापस करना होगा.
लेकिन, जब सारा पैसा केंद्रीय बैंक से उधार लिया जाता है
और बाकि बैंकों के द्वारा ऋण के माध्यम से फैलाया जाता है,
तो सिर्फ मूलधन (principal ) ही
पैसों के सप्लाई में बन पाता है
तो ब्याज को चुकाने के लिए
बाकि पैसा कहा से आयेगा ?
कहीं से भी नहीं.
ऐसा माध्यम मौजूद ही नही है.
इसका प्रभाव दिमाग घुमा देने वाला है ,
क्योंकि बैंकों को जो कुल राशी ब्याज समेत लौटाना है
वह मौजूदा पैसों के सप्लाई से हमेशा ही ज्यादा होगा
यही कारण है की मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है.
क्योंकि ब्याज़ की भुगतान के कारण
हमेशा ही नये पैसे का उत्पादन
व्यवस्था में पुराने कर्ज़ को चुकाने के लिए ज़रूरी है
इसका मतलब यह है कि दिवालियापन
इस व्यवस्था में बना हुआ हैं।
और हमेशा किसी ना किसी ग़रीब को इसका भार चुकाना पड़ेगा.
समाज की इस बुराई को झेलना पड़ेगा!
जैसा एक मिउजिकल चेअर के खेल में होता है
संगीत के बंद होने पर कोई ना कोई खड़ा रह जाता है.
और इसी बात को समझना है.
इस तरह से असली धन आम आदमी से बैंकों के पास चली जाती है .
क्युंकी यदि आप अपने उधार को चुकाने में असमर्थ हैं
तो बैंक आपकी संपत्ति को छीन सकता हैं
यह विशेष रूप से तब क्रोधित करता है
जब आप समझ जाते हैं कि ना सिर्फ़ इस प्रकार की
समस्याएं फ्रैक्श्नल रिजर्व सिस्टम के कारण निश्चित हैं, बल्कि ,
इसलिए भी कि जो पैसा आपको लोन के तौर पर दिया जाता है
उसका क़ानूनी तौर पर कोई अस्तित्व ही नही है.
1969 में मिनिसोटा अदालत के एक मामले में
जरोम डेली नामक एक व्यक्ति ने
घर खरीदने के लिए ऋण देने वाले बैंक के द्वारा
अपने घर के कब्ज़े को चुनौती दी थी.
उसका तर्क था की लोन के कॉन्ट्रेक्ट के तहत इस
इस लेन देन के लिए दोनो पक्षों को
यानी उसका और बैंक के संपत्ति को क़ानूनी प्रमाणित करना ज़रूरी था
क़ानूनी भाषा में जिसे consideration कहा जाता है
[ एक कॉन्ट्रेक्ट का आधार - एक कॉन्ट्रेक्ट बनता है
एक लेन देन के लिए एक दुसरे से किये गए समझौते पर ]
डेली ने समझाया की वह पैसा जो बैंक उससे मांग रहा है
वह , असल में, बैंक की संपत्ति है ही नहीं, क्यूंकि उसे यूँ ही बनाया गया था
जब लोन के समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था I
याद करिए कि " मोडर्न मनी मेकेनिक्स " ने ऋण के बारे में क्या कहा था?
"ऋण देते समय वे पैसों के बदले
इकरारनामे स्वीकार करवाते हैं "
"पैसों का भंडार, ऋण लेन देन के बावजूद भी वैसा ही रहता है"
लेकिन नई जमा राशि बैंकिंग प्रणाली की
कुल जमा राशि में बढ़ावा ला देती है।"
दूसरे शब्दों में पैसा उनकी मौजूदा संपत्ति के बाहर से नही आता है।
बस बैंक बिना कुछ अपना लगाए उसको यूँ ही अपने खाते में बना देता है ,
महज़ काग़ज़ पर एक काल्पनिक दायित्व के रूप में।
अदालत के मुकद्दमे की प्रगती के दौरान, .
बैंक के अध्यक्ष मिस्टर मॉर्गन ने अपना पक्ष रखा
और न्यायाधीश के व्यक्तिगत ज्ञापन में याद दिलाया कि,
प्लैंतिफ - बैंक के अध्यक्ष - ने स्वीकार किया कि,
फेडरल रिजर्व बैंक के साथ मिलकर ये पैसे बनाये गए
और अपने बहिखातों में लिखे गए I
पैसा और कर्ज़ पहली बार अस्तित्व में तब आए जब उन्हे बनाया गया।
मिस्टर मॉर्गन ने यह स्वीकार किया
कि कोई भी अमेरिकी या संवैधानिक कानून ऐसा करने की अनुमति नही देता।
ऋण की स्वीकृति के समर्थन में एक क़ानूनी समझौते को प्रस्तुत किया जाना चाहिए!
जूरी ने कोई ऐसा क़ानूनी समझौता नही पाया और डेली के पक्ष में सहमति दी।
उन्होने काव्यात्मक अंदाज़ में कहा
"सिर्फ़ भगवान् ही शून्य से कुछ उत्पन्न कर सकता है"।
और इस रहस्योदघाटन पर
अदालत ने बैंक के कब्ज़े के दावे को खारिज किया
और डेली को अपना घर वापस मिल गया
इस अदालती फ़ैसले के निष्कर्ष विशाल हैं।
मतलब जब भी आप बैंक से पैसा उधार लेते हैं,
चाहे वह क्रेडिट कार्ड से हो या फिर कोई बंधक ऋण हो
आपको दिया गया पैसा ना सिर्फ़ नकली होता है
पर नाजायज़ समझौता भी होता है।
और इसीलिए कर्ज़ चुकाने के समझौते को खारिज करता है
क्योंकि बैंक के द्वारा दिया गया पैसा कभी भी बैंक की संपत्ति थी ही नहीं
दुर्भाग्य से इस प्रकार की क़ानूनी प्रस्तुति को दबाया और भुला दिया जाता है
और निजी धन को लगातार हड़पने का और लगातार बढ़ते हुए ऋण का खेल चलता रहता है.
और यह हमें उस अंतिम प्रश्न पर ले आता है:
क्यों?
अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान
राष्ट्रपति लिंकन ने युरोपियन बैंकों द्वारा दिए गये
ऊँचे ब्याज़ के ऋण के बदले .
वही किया जिसकी वकालत अमेरिका के पूर्वजों ने की थी
उन्होंने एक स्वतंत्र ऋण मुक्त मुद्रा बनाया .
इसे "ग्रीन्बैक " का नाम दिया गया.
शीघ्र ही इस उपाय के बाद , अमेरिकी और ब्रिटिश निजी बैंकरों
ने अपने फायदे के लिए एक गुप्त पत्र आपस में प्रचलित किया जिसमे लिखा था :-
"...गुलामी, श्रम पर अधिकार है
और इसके साथ श्रमिकों की देखभाल की ज़िम्मेदारी आती है
जबकि यूरोपीय प्लान के अनुसार...
पैसों के द्वारा श्रम का नियंत्रण पगार को नियंत्रित करके किया जा सकता है।
और ये सब पैसे को नियंत्रित करके किया जा सकता है.
और ग्रीनबॅक ऐसा नही होने देगा... क्योंकि हम उसे नियंत्रित नहीं कर सकते .
फ्रैक्श्नल रिजर्व पोलिसी
जो फेडरल रिज़र्व द्वारा चलाई जा रही है
दुनिया के अधिकतर बैंकों में फ़ैल चूका है ,
यह वास्तव में आधुनिक गुलामी का एक तरीका है.
जरा सोचिये , पैसा कर्ज़ से बनाया जाता है.
और जब लोग कर्ज़ में डूब जाते हैं तो वे क्या करते हैं?
वे उसको चुकाने के लिए किसी का नौकर बन जाते हैं .
लेकिन अगर पैसा केवल ऋण से ही बनाया जा सकता है,
तो समाज कैसे कभी भी ऋण मुक्त हो सकता है?
कभी नही और इसी बात को समझना है .
और संपत्ति के खोंने का और उसे बनाए रखने का डर
और उसके साथ समाज में लगातार होती ,
मुद्रास्फीति और ऋण से संघर्ष
पैसों के सप्लाई में बनी असमानता और कमी जो ब्याज्युक्त ऋण से होती हो ,
जिसे कभी चुकाया नहीं जा सकता , ये सारी बातें
ही गुलामी को कायम रखती है,
जैसे मानिये एक गोल घूमते पहिए के अन्दर असंख्य लोग दौड़ रहे हैं ,
असल में इस साम्राज्य को और शक्तिशाली बना रहें हैं
जिसका मुख्य मकसद साम्राज्य की चोटी पर बैठे लोगों को फ़ायदा पहुँचाना है.
क्योंकि आख़िर में, आप किसके लिए काम कर रहें हैं?
बैंकों के लिए!
पैसा बैंक में बनाया जाता है और वापस बैंक में ही आ जाता है.
वे ही असल में मालिक हैं
साथ में वे सरकारें और कॉर्पोरेशन भी मालिक हैं जिनका वे समर्थन करते हैं ।
शारीरिक गुलामी के बदले लोगों.को घर और खाना दिया जाता है
आर्थिक गुलामी में लोगों को रहने और खाने का बोझ खुद उठाना पड़ता है.
समाज में किया जाने वाला यह अब तक का .
सबसे चतुर घोटाला है
और इसके जड़ में
यह जनता के खिलाफ एक अदृश्य युद्ध है.
ऋण वो हथियार है जिससे समाज को गुलाम बनाया जाता है ,
और ब्याज़ उसका मुख्य गोला बारूद है.
और जहाँ जनता इस सच्चाई के इर्द गिर्द होते हुए भी इससे बेख़बर है
बैंक सरकारों और कॉर्पोरेशन की सांठ-गाँठ की मदद से
अपनी आर्थिक रणनीतियों को और फ़ैलाने और बेहतर करने लगी है
विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष [आई एम एफ]
जैसी नई छावनियों को जन्म दे रहे हैं,
साथ में एक नये प्रकार के सिपाही का भी आविष्कार करते हैं :
इकोनोमिक हिटमैन का जन्म होता है.
किसी भी राष्ट्र को गुलाम बनाने के दो तरीके हैं.
एक तलवार से, और दूसरा ऋण से। जॉन एडम्स - 1735 - 1826 .
हम , इकोनोमिक हिटमैन वास्तव में यह विश्व साम्राज्य को बनाने के लिए ज़िम्मेदार हैं
और हम कई अलग अलग तरीकों से काम करते हैं.
जौन पर्किन्स - भूत पूर्व प्रधान अर्थशास्त्री - चास. टी. मेन इंक. - लेखक : कंफेशंस ऑफ़ एन इकनोमिक हिटमैन
पर सबसे आम तरीका उन देशों की पहचान करना है
जिनके पास ऐसे संसाधन हैं जो हमारे कॉरपोरेशंस को सबसे ज़्यादा लुभाते हो , जैसे तेल,
और फिर विश्व बैंक या ऐसे किसी अन्य संगठोनों के जरिये .
उन्हें एक बड़ा लोन उपलब्ध कराया जाता है
लेकिन यह पैसा कभी भी उस देश के पास नही जाता है.
इसके बजाय वह पैसा हमारे कॉरपोरेशंस के पास
चला जाता है , उस देश में कुछ प्रोजेक्ट्स को बनाने के लिए
काम आती है जैसे कि पावर प्लांट , औद्योगिक पार्क, बंदरगाह.
ऐसी चीज़ें जो सिर्फ़ उस देश के कुछ अमीर लोगों को फायदा पहुँचाती हैं.
हमारे कॉरपोरेशंस को लाभ पहुँचने के अलावा।
लेकिन वास्तव में आम जनता को कोई लाभ नही पहुँचाती.
लेकिन वो सारे लोग और पूरा देश एक बड़े ऋण का बोझ उठाते हैं ।
यह ऋण इतना बड़ा होता है की वे कभी भी इसका भुगतान नही कर पाते हैं...
और यही उस योजना का हिस्सा है कि वे इसे न चूका सकें!
और फिर हम इकोनोमिक हिटमैन उनसे जाके कहते हैं "सुनो
तुम हमारे ऋणी हो। तुम इस ऋण को चुका नही सकते हो. तो अपना तेल हमारी
तेल कंपनियों को सस्ते दामों पर बेचो",
"हमें तुम्हारे देश में सैन्य छावनी बनाने की अनुमति दो",
"या अपनी सेना हमारे समर्थन में इराक़ जैसी जगह में भेजो,
या अगले संयुक्त राष्ट्र चुनाव में हमारा समर्थन करो"
अपने देश की बिजली कंपनी का निजीकरण करो
पानी और नालियों की व्यवस्थाओं का निजीकरण
करके अमेरिकी कंपनियों को बेच दो."
यह फफूंद की तरह फैलता है और , आई एम एफ
और विश्व बैंक बहुत ही ख़ास तरीके से काम करते हैं
वे किसी देश को इतनी भारी ऋण में डाल देते हैं की वह चुकाया नही जा सकता,
और फिर उस ऋण को चुकाने के लिए और अधिक ब्याज़ पर नया ऋण लेने को कहते हैं
और इसके मुआवज़े में वे माँग करते हैं
की उनके कुछ शर्तें लागु हो या उन्हें 'सुशासन' करने दिया जाए
जिसका मतलब यह है की देश को अपने संसाधनों की बिक्री करनी होगी
जिनमें बहुत सी सामाजिक सेवाएँ जैसे , विद्यालय प्रणाली,
दंड प्रणाली, और बीमा व्यवस्था इत्यादि शामिल होते हैं ,
इन्हें विदेशी कंपनियों को बेच देनी होगी
तो यह दोगुनी, तिगुनि, चौगुनी मार है!
इरान : 1953
इकोनोमिक हिटमैन को पहली बार 50 के दशक में इस्तेमाल किया गया
जब लोकतांत्रिक ढंग से मोसादेघ को राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया
उन्हें मध्य पूर्व और पूरे विश्व में लोकतंत्र का उम्मीद माना जाता था.
वे टाइम मैगज़ीन के 'साल के महापुरुष' घोषित किये गए थे.
पर एक चीज़ जो उन्होनें लागू करनी शुरू कर दी कि विदेशी तेल कंपनियों को अब
इरान के बहार तेल ले जाने के लिए काफ़ी बड़ी मात्रा में
कीमत चुकानी होगी I और इससे ईरान के लोगों को
अपने देश के तेल से लाभ मिलने लगेगा . अजीब नीति थी!
हमें ये नीति बिल्कुल पसंद नही आया।.
पर हम वह करने से डर रहे थे जो हम अबतक करते आए थे,
यानी सेना को भेजना I इसके बदले हमने अमेरिका खुफिया ( सीआईए ) के एक गुप्तचर
टेडी रूजवेल्ट के रिश्तेदार कार्मिट रूजवेल्ट को भेजा.
और कार्मिट कुछ लाख डॉलर लेकर वहाँ गया
और बहुत ही प्रभावी और कुशल तरीके से बहुत कम समय में
मोसादेघ का तख्ता पलट करने में कामयाब हो गया.
और उनके बदले ईरान के शाह को हमने गद्दी पर बिठाई .
जो हमारे लिए काम करना चाहता था I और ये बहुत ही फायदेमंद साबित हुआ
इरान में विद्रोह
लोगों ने तेहरान का तख्ता पलट दिया
सेनाधिकारी चिल्ला रहे हैं कि मोस्सादेह ने आत्मसमर्पण कर दिया है.
ईरान में तानाशाही ख़त्म हो गयी ... शाह की तस्वीरो के साथ जुलुस निकाली गयी ,
गली मुहोल्लो में भावुकता उमड़ पड़ी है .. शाह का घर में स्वागत है."
इधर अमेरिका में, वाशिंगटन में, लोगों ने देखा और कहा:
"वाह ये कितना आसान और सस्ता तरीका था"
और इस प्रकार देशों में हेर फेर करने
और साम्राज्यों को फ़ैलाने के एक नये तरीके की स्थापना हुई!
रूजवेल्ट के साथ एक ही समस्या थी कि वह एक
सीआईए का पहचान पत्र रखता था... और पकड़े जाने पर
इसके काफी गंभीर परिणाम हो सकते थे .
तो बहुत जल्दी उस समय यह काम निजी सलाहकार से
कराने का फैंसला लिया गया ताकि विश्व बैंक और आई एम एफ
या अन्य दूसरे माध्यम से पैसा भेजा जाये , ताकि मेरे जैसे लोगों ,
लाया जाये जो निजी कंपनियों के लिए काम करते हों.
वो इसलिए की अगर हम .
पकड़े भी गये तो सरकार पर कोई आँच नही पड़ेगी
ग्वाटेमाला 1954
जब अरबेंज ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति बने, तब देश ,
युनाइटेड फ्रूट कंपनी और कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों
के अँगूठे तले दबा हुआ था
अर्बेंज़ ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया और कहा
"हम ज़मीन लोगों को वापस करना चाहते हैं"
और जैसे ही उन्होने सत्ता संभाली, उन्होने ठीक यही लागू करना शुरू कर दिया,
कि भूमि का अधिकार लोगों को वापस मिल जाए.
युनाइटेड फ्रूट को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया
और तब उसने एक पब्लिक रिलेशन कम्पनी को भाड़े पर रखकर, अमेरिका में एक बड़ा ,
अभियान शुरू कर दिया जिससे अमेरिका के लोग,
अमेरिका की प्रेस और सरकार ये मान ले कि,
अर्बेंज़ एक सोविएत कठपुतली है
और अगर उसे सत्ता में रहने दिया गया तो .
सोविएत संघ विश्व में बहुत मज़बूत हो जाएगा
और उस समय सबके मन में लाल आतंक यानि
कम्यूनिस्ट आतंक समाया हुआ था ,
तो इस लंबी बात को छोटा करके कहा जाये तो , उस जनसंपर्क अभियान से
सी आई ए ने और सेना ने अरबेंज़ को निकाल बाहर करने का बीड़ा उठाया .
और वास्तव में हमने ऐसा किया भी . हमने सैनिक भेजे , विमान भेजे , गुंडे भेजे,
हमने उसे बाहर निकालने के लिए सब कुछ भेजा. और हमने उसे सच में निकाल बाहर किया.
और जैसे ही उसे पद से हटाया गया ,
और जिस नये आदमी ने उनकी जगह ली , उसने बड़े अंतरराष्ट्रीय कम्पनियों
के लिए सब कुछ बहाल कर दिया,युनाइटेड फ्रूट को भी.
इक्वाडोर कई सालों से अमेरिकी समर्थक तानाशाहों के द्वारा शासित हो रहा था
जो अक्सर क्रूर थे .. तो फिर यह निर्णय लिया गया कि वहाँ वास्तव में .
एक लोकतांत्रिक चुनाव होगा I हेमी रोल्डॉस चुनाव में खड़े हुए, उनका मुख्य लक्ष्य
राष्ट्रपति होने के नाते यह सुनिश्चित करना था कि इक्वीडोर के संसाधनों को यकीनी .
तौर पर उसकी जनता के फायदे के लिए ही इस्तेमाल किया जाए... और वे भारी बहुमत से जीते!
और इतने अधिक मतों से पहले कभी कोई इक्वाडोर में नही जीता था.
और फिर उन्होने इन नीतियों को लागू करना शुरू कर दिया
कि तेल से होने वाला लाभ लोगों की सहयता के लिए इस्तेमाल हो.
हमें ये अमेरिका में पसंद नहीं आया.
रोल्डॉस को बदलने के लिए मुझे इकोनोमिक हिटमैन के तौर पर भेजा गया
उसे भ्रष्ट करने के लिए , उसे अपनी तरफ घुमाने के लिए ....उसे ये बताने के लिए कि
"देखो तुम बहुत अमीर बन सकते हो, अगर तुम हमारा खेल खेलो."
"लेकिन अगर तुम इन नीतियों को, जैसा तुमने वादा किया है, लागू करते रहोगे ,
तो तुम ख़तम हों जाओगे ... उसने हमारी बात नहीं मानी
उसकी हत्या कर दी गई.
जैसे ही विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ, सारी जगह को घेर लिया गया.
केवल पास की एक अमेरिकी छावनी के लोगों को और इक्वेडोर सेना के
कुछ भाग को ही वहाँ जाने की अनुमति थी.
जब एक जांच शुरू की गई
तो दो प्रमुख गवाहों की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई
इससे पहले कि उनको गवाही का मौका मिलता.
उस दौरान बहुत अजीब अजीब तरह की चीजें हुई
जब हैमी रोल्डॉस की हत्या हुई.
मेरे जैसे अधिकाँश लोग जिन्होंने इस मामले को ध्यान से देखा है उन्हें
इसमें बिल्कुल शक नहीं कि यह एक हत्या थी.
और, ज़ाहिर है, एक इकोनोमिक हिटमैन के रूप में मेरी स्थिति में,
मुझे हमेशा आशंका थी कि हैमी को कुछ होने वाला है
तख्तापलट होगा या हत्या होगी, यह मुझे नही पता था,
पर उसे निकाल दिया जाना था, क्योंकि उसे हम भ्रष्ट नहीं कर पाए
उसे इस तरह भ्रष्ट नही किया जा सकता था जैसे हम चाहते थे.
पनामा 1981
ओमार तोर्रिजोस , पनामा के राष्ट्रपति
मेरे कुछ चहेते लोगों मे से एक थे. मैं उन्हे काफ़ी पसंद करता था
वे काफ़ी आकर्षक व्यक्तित्व वाले थे. वे एक ऐसे इंसान थे जो देश को सच में मदद करना चाहते थे.
और जब मैने उन्हें रिश्वत देने और भ्रष्ट करने की कोशिश की तो वे बोले, "देखो जॉन
- वे मुझे वानीतो बुलाते थे - बोले , " देखो वानितो ,
मुझे पैसा नही चाहिए, में सिर्फ़ यह चाहता हूँ की मेरे देश के साथ
ठीक से बर्ताव किया जाए. मैं चाहता हूँ की अमेरिका मेरे लोगों को
उस कर्ज़ का भुगतान दे जो उसने यहाँ बर्बादी फैला कर लिया है.
मुझे उस स्तिथि में होना है जहाँ मैं अन्य लातिन अमेरिकी देशों की सहयता कर सकूँ,
ताकि वे अपनी स्वतंत्रता पा सकें और इससे मुक्त हो सकें,
अमेरिका के इस भयानक मौजूदगी से.
तुम लोग हमारी इतनी बुरी तरह शोषण कर रहे हैं।
मैं पनामा नहर की बागडोर पनामा के लोगों के हाथ में वापस देना चाहता हूँ.
मैं यही चाहता हूँ.
इसलिए मुझे अकेला छोड़ दो, मुझे रिशवत देने की कोशिश मत करो"
हैमी रोल्डॉस की मई 1981 में हत्या कर दी गई.
और ऑमार को इसके बारे में पता था।
उसने अपने परिवार को बुलाया और कहा:
"अगला शायद मैं हूँ, पर कोई बात नहीं,
क्योंकि मैने वो कर दिया है जो मैं यहाँ करने आया था
मैने नहर पर दोबारा समझौता करा लिया है.
नहर अब हमारे हाथ में होगी. हमने जिमी कार्टर के साथ संधि पर .
समझौते का काम पूरा कर लिया है
उसी वर्ष जून महीने में, बस कुछ ही महीनो बाद,
उनका भी एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया,
जो कि निस्संदेह सी आई ए के द्वारा भेजे गुंडों का काम था.
एक ज़बरदस्त सबूत यह है कि
तोर्रिहोस के एक सुरक्षा पहरेदार ने उन्हें आख़िरी समय पर,
एक टेप रेकॉर्डर दिया, जब वे जहाज़ में चढ़ रहे थे.
एक छोटा टेप रेकॉर्डर जिसमे बम था।
वेनेज़ुएला 2002
मेरे लिए दिलचस्प बात यह है कि कैसे यह
व्यवस्था उसी प्रकार से सालों से, वर्षों से, वर्ष प्रति वर्ष जारी है
सिवाए इसके कि इकोनोमिक हिटमैन बेहतर
और बेहतर और बेहतर हो गए हैं
फिर हमने हाल ही में सामना किया वेनेज़ुएला के एक घटना को ।
1998 में ह्यूगो शावेज़ राष्ट्रपति निर्वाचित किये जाते है ,
उन राष्ट्रपतियों की लंबी पंक्ति के बाद
जो बहुत भ्रष्ट थे और जिन्होने देश की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर दिया था.
शावेज़ को चुना गया.
और शावेज़ ने अमेरिका का सामना किया,
और उनकी मुख्य माँग ये थी कि वेनेज़ुएला का तेल
वेनेज़ुएला के लोगों की मदद के लिए इस्तेमाल हो.
पर... हमें अमेरिका में यह पसंद नहीँ आया.
तो 2002 में,
एक तख्तापलट का मंचन किया गया, जो की निस्संदेह मेरी समझ से,
और बहुत से अन्य लोगों की समझ से, सी आई ए के द्वारा किया गया था.
जिस प्रकार से यह तख्तापलट उकसाया गया था,
वह ईरान में कार्मिट रूजवेल्ट के काम से मिलता जुलता था.
लोगों को पैसे दे कर सड़कों पर लाना,
दंगा करवाना, विरोध करवाना, यह प्रसारित करवाना की शावेज़ बहुत गलत हैं.
क्या आप जानते हैं, अगर आप कुछ हज़ार लोगों से
ऐसा करवाते हैं और टीवी पर उसे इस तरह दिखाते हैं
कि पूरा देश ऐसा कर रहा है, तो यह बात एकदम बढ़ने लगती है.
लेकिन शावेज़ के मामले में ऐसा नही हो पाया,
वे इतने समझदार थे और लोग इतनी दृढ़ता से उनके साथ थे कि, वे इससे पार पाने में सफल रहे.
यह लैटिन अमेरिका के इतिहास में एक अद्भुत क्षण था.
इराक 2003
इराक़ असल में इस प्रक्रिया के काम को दर्शाने का,
एक आदर्श उदाहरण है.
हम, इकोनोमिक हिटमैन पहली पंक्ति के सैनिक हैं.
हम जाकर सरकार को भ्रष्ट करने का प्रयास करते हैं,
और उन्हें इस प्रकार के विशाल ऋण लेने पर मजबूर करते हैं,
जिनके सहारे हम उनपर राज करने का प्रयास कर सके .
अगर हम इसमें विफल होते हैं, जैसे मैं पनामा में
ऑमार तोर्रिजोस और एक़ुअडोर में हैमी रोल्डॉस को भ्रष्ट करने में विफल हुआ था,
तब सैनिकों की दूसरी पंक्ति, सियारों ( गुंडों) को भेजा जाता है.
और वे या तो सरकार का तख्तापलट कर देते हैं या फिर हत्या कर देते हैं.
और ऐसा होने पर जो नई सरकार आती है ,
उन्हें सीमा रेखा को लाँघ कर जबरन यह करना ही पड़ता है
क्योंकि नये राष्ट्रपति को मालूम होता है कि ऐसा ना करने पर क्या अंजाम हो सकता है.
इराक़ में ये दोनो ही तरीके विफल रहे.
आर्थिक हत्यारे सद्दाम हुसैन को नहीं मना पाए
हमने बहुत कोशिश की, हमने प्रयत्न किया वे उसी प्रकार के
समझौते को स्वीकार कर लें जैसा साउद की सभा ने साउदि अरब में स्वीकार की थी
पर उन्होने उसे नही स्वीकारा.
और तब सियारों को उन्हे निकाल फेंकने के लिए भेजा गया.
पर वे ऐसा नही कर पाए. उनकी सुरक्षा बहुत उम्दा थी.
आख़िर एक समय उन्होनें भी सी आई ए के लिए काम किया था.
उन्हें इराक़ के पूर्व राष्ट्रपति की हत्या करने के लिए रखा गया था और वे विफल हुए थे,
लेकिन वे इस प्रणाली को जानते थे.
तो, 1991 में हमने सेना को भेज दिया, और हमने इराक़ी सेना को हरा दिया.
तो उस क्षण हमने मान लिया की सद्दाम हूसेन
हमारे पास आएगें.
हम निशित तौर पर उस समय उन्हें निकाल बाहर कर सकते थे ,
पर हम ऐसा नहीं करना चाहते थे. वे एक मज़बूत इंसान थे और हम उन्हें पसंद करते थे.
वे अपने लोगों को नियंत्रित करते थे. हमने सोचा की वे कुर्दों (ईरानी लोग)पर नियंत्रण रखते हुए
ईरानियों को अपनी सीमा में रखकर, हमारे लिए तेल निकालते रहेंगे .
और एक बार जब हमने उनकी सेना को हरा दिया तो अब वे हमारी बात मान जाएँगे.
तो इकोनोमिक हिटमैन 90 के दशक में फिर गये, पर विफल हुए.
अगर वे सफल हुए होते तो वे देश को अभी भी चला रहे होते.
हम उन्हें उनकी पसंद के लड़ाकू विमान बेच रहे होते,
और जो भी वे चाहते थे दे रहे होते, पर ऐसा नही हो सका, उन्हें विफलता मिली.
सियार उन्हें मरने में दोबारा विफल रहे,
तब हमने फिर से सेना भेजी
और इस बार हमने काम को पूरा अंजाम दिया,
हमने उन्हे निकाल बाहर किया. और इस प्रक्रिया में अपने लिए
बहुत से लाभदायक निर्माण सौदों की रचना की
जिस देश को हमने ही बर्बाद किया , उसे ही हम पुनर्निर्माण करने वाले हैं .
यह बहुत अछा सौदा है अगर आप
बड़ी पुनर्निर्माण कंपनियों के स्वामी हैं.
इसलिए, इराक तीन चरणों को दर्शाता है.
इकोनोमिक हिटमैन वहाँ फेल हुए .
सियार फेल हुए . और अंतिम रूप में सेना को भेजा गया.
और इस तरह हमने वास्तव में एक साम्राज्य बना लिया
लेकिन हमने यह बहुत ही कपटी तरीके से किया है. यह गुप्त है.
अतीत के सभी साम्राज्य सेना के आधार पर बने थे,
और सभी को पता था कि वे साम्राज्य बना रहे हैं.
अंग्रेजों को पता था वे ऐसा कर रहे थे,
फ्रेंच, जर्मन, रोमन, ग्रीक्स , सबको
और उन्हें इस पर गर्व था। उनके पास हमेशा कोई न कोई बहाना होता था जैसे
सभ्यता का प्रचार , धर्म का प्रचार , ऐसा कुछ,
लेकिन उन्हें पता था कि वे यह कर रहे थे.
हमें नहीं मालूम था .
अमेरिका में अधिकतर लोगों को पता नहीं कि ,
कि हम इस गुप्त साम्राज्य के लाभ उठा रहे हैं,
कि आज , विश्व में पहले से ज्यादा गुलामी है.
तो फिर आपको खुद से पूछना चाहिए,
ठीक है, अगर यह साम्राज्य है, तो इसका सम्राट कौन है?
ज़ाहिर है कि हमारे राष्ट्रपति सम्राट नहीं है.
सम्राट वो होता है जो निर्वाचित नहीं होता,
और जो सीमित अवधि के लिए सेवा नहीं करता .
और अनिवार्य रूप से किसी को भी जवाब नहीं देता
तो आप हमारे राष्ट्रपतिओं को इस प्रकार वर्गीकृत नहीं कर सकते.
लेकिन मेरे अनुसार सम्राट के बराबर कुछ है जिसे मैं .
निगमशासन या कौरपोरेटोक्रेसी कहता हूँ
कॉरपोरेटौकरेसी उन व्यक्तियों का एक समूह है
जो हमारे सबसे बड़े कॉरपोरेशंस को चलाते हैं.
और वे ही वास्तव में इस साम्राज्य के सम्राट हैं.
वे हमारे मिडिया को नियंत्रित करते हैं,
या तो खुद उसे खरीदकर या विज्ञापन के माध्यम से.
वे हमारे अधिकतर नेताओं को नियंत्रित करते हैं
क्योंकि वे उनके चुनावी अभियानों में पैसों से मदद करते हैं,
या तो कॉरपोरेशंस के माध्यम से, या व्यक्तिगत योगदान के माध्यम से
जो कॉरपोरेशंस से आता है.
वे चुने नहीं जाते हैं, वे सीमित अवधि के लिए सेवा नहीं करते हैं,
वे किसी को हाज़िरी नही देते हैं,
और इस निगमशासन की चोटी पर आप नहीं जान पाते हैं
कि यह व्यक्ति किसी निजी संस्थान कंपनी
के लिए काम कर रहा है या सरकार के लिए
क्यों कि वे हमेशा इन दोनों में घूमते रहते हैं.
कभी कोई व्यक्ति एक समय एक बड़ी निर्माण कंपनी
जैसे हैलिबर्टन का अध्यक्ष होता है , तो कभी दूसरे समय
वह अमेरिका का उप-राष्ट्रपति बनता है
या राष्ट्रपति जो कभी तेल के व्यापार में था.
और यह सच है , सत्ता में चाहे रिपब्लिकन हो या डेमोक्रैट .
और यह सब अदला बदली मनो एक घूमते दरवाज़े जैसी होती है
और एक तरह से हमारी सरकार काफ़ी बार अदृश्य रहती है,
जबकि उसकी नीतियाँ किसी ना किसी स्तर पर कंपनियों
द्वारा सम्हाला जाता हैं और फिर ,
सरकार की नीतियाँ असल में निगमशासन के द्वारा
रची जाती हैं और इन नीतियों को फिर सरकार के सामने प्रस्तुत कर दिया जाता है!
इसके बाद इन नीतियों को सरकारी रूप दे दिया जाता है ..तो यह एक गज़ब !
की सांठ- गाँठ है.
यह किसी प्रकार का षड़यंत्र नहीं है. इन लोगों को एक साथ बैठकर
साजिश करने की ज़रूरत नहीं पड़ती है. वे सब
एक प्राथमिक धारणा के तहत काम करते हैं,
और वह ये है कि उन्हें अधिकतम लाभ कमाना है
चाहे इससे समाज और पर्यावरण का नुक्सान ही क्यूँ ना हो .
ऋण, रिश्वतखोरी और राजनीतिक तख्तापलट की माध्यम से
कॉरपोरेटौकरेसी ( निगमशासन ) की इस हेर फेर की प्रकिया को वैश्वीकरण या
ग्लोबलाइज़ेशन कहते है
जिस प्रकार फेडरल रिज़र्व अमेरिकी जनता को ऋण, मुद्रास्फीति
और ब्याज़ के माध्यम से गुलाम बना के रखता है, विश्व बैंक
और आइ .एम .एफ ( अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष ) यही काम विश्व स्तर पर करते हैं.
बुनियादी घोटाला सरल है.
किसी देश को स्वयं उसकी मुर्खता के आधार पर या फिर उसके नेताओं
को भ्रष्ट करके उसे विदेशी कर्जे के बोझ के तले दबा दो
और फिर उसपर "शर्तें" या "सुधार - नीतियों " को थोप दो
जिनमें ये शामिल हैं
मुद्रा की मूल्यों में घटाव
जब किसी देश की मुद्रा का मूल्य गिरता है तो उससे सम्बंधित सभी चीजों का मूल्य गिर जाता है
इससे शोषण कर रहे देशों के लिए वहाँ के संसाधन बहुत सस्ते में
उपलब्ध हो जाते हैं
सामाजिक कार्यक्रमों के लिए धन की बड़ी कटोती
जिसमे आमतोर पर शिक्षा और स्वस्थ्य सेवा शामिल हैं
समाज की भलाई और अखंडता के साथ समझौता कर
उसे कमज़ोर कर देता है जिससे उसका और शोषण हो सके
सरकारी कम्पनियों का निजीकरण
इसका मतलब है कि विदशी कंपनियों के फायदे के लिए
सामाजिक सेवाओं को ख़रीदा और नियंत्रित किया जा सकता है
जैसे , 1999 में विश्व बैंक ने जोर दिया
कि बोलिविया की सरकार
अपने तीसरे सबसे बड़े शहर की, पानी की व्यवस्था
अमेरिकी कम्पनी बेकटेल को बेच दे
जैसे ही यह हुआ पहले से ही
गरीब स्थानीय निवासियों के लिए पानी के बिल आसमान छूने लगे
सिर्फ जब लोगों द्वारा पूर्ण विद्रोह हुआ
तभी बेकटेल कांट्रैक्ट को खारिज़ किया गया
उसके बाद व्यापार उदारीकरण होता है
या अर्थव्यवस्था को खुला छोड़ना ,
विदेशी व्यापार पर किसी भी प्रतिबंध को हटाने के लिए
ये आर्थिक रूप से कई बुरे कामों को अनुमति देता है,
जैसे बहुराष्ट्रिय कम्पनियों के उत्पादन
बड़े पैमाने पर उन देशों में ले आकार बेचना
स्वदेशी उत्पादन को मात देकर स्थानीय अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देता है
एक उदाहरण जमैका है,
जो विश्व बैंक से ऋण और शर्ते स्वीकार करने के बाद
अपनी सबसे बड़ी नकदी फसल
पश्चिमी आयत से हार चुकी है
आज अनगिनत किसान बड़े कम्पनियों के साथ प्रतिस्पर्धा ना कर पाने
के कारण बेकार हो गए हैं
एक और शोषण है पर किसी का ध्यान इनपर नहीं है,
जबरन थोपी गयी अनियमित, निर्दयी कारखाने,
इंसान के आर्थिक मजबूरियों का लाभ उठा रहे हैं।
इसके अलावा कंपनियों के अनियंत्रित उत्पादन
के कारण, पर्यावरण का विनाश लगातार होता है, जहाँ देश के संसाधनों
का शोषण अक्सर निष्ठुर कम्पनियों द्वारा ही होता है
वहीँ बड़ी मात्रा में वे प्रदूषण भी जानबूझकर फैलाते हैं।
दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा पर्यावरण मुकदमा,
टेक्साको के खिलाफ लाया गया है
30000 इक्वेडोर और एमाज़ोनियन लोगों की ओर से
टेक्साको जो कि अब शेव्रों के अधीन है,
यानि की लोग शेव्रों के खिलाफ है लेकिन घटनाएं जो टेक्साको के द्वारा संचालित की गयीं
एक्सोन वल्देज़ ने अलास्का के तट पर जो कचरा फेका था
ये उससे लगभग 18 गुना अधिक है
इक्वाडोर के मामले में यह एक दुर्घटना नहीं थी.
तेल कंपनियों ने यह जानबूझकर किया, उन्हें यह पता था कि वे ये
पैसा बचाने के लिए कर रहे है बजाये इसके की उचित व्यवस्था करे
इसके अलावा, विश्व बैंक के प्रदर्शन के
रेकोर्ड पर एक सतही नज़र से पता चलता है कि
यह संस्था, जो सार्वजनिक रूप से गरीब देशों के विकास के लिये
मदद और गरीबी कम करने का दावा करती है,
असल में कुछ भी नहीं किया है गरीबी और धन-अंतर को बढ़ाने के सिवाय
सिर्फ कॉर्पोरेट मुनाफा ही बढाया है।
1960 में दुनिया के पांच सबसे धनि देशों
बनाम पांच सबसे गरीब देशों
के बीच इनकम गैप 30 : 1 था.
1998 तक यह 74 : 1 था.
जबकि ग्लोबल जी .एन. पी में 1970 और 1985 के बीच 40 % की वृद्धि हुई,
पर गरीबी में वास्तव में 17 % की वृद्धि हुई
जबकि 1985 से 2000 तक,
उन लोगों की संख्या में 18 % की वृद्धि हुई जो दिन में एक डॉलर से भी कम पर गुजारा करते हैं
यहां तक कि अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त आर्थिक समिति ने
स्वीकार किया कि सभी विश्व बैंक की परियोजनाओं की .
सफलता दर मात्र 40 % है
1960 के अंत में, विश्व बैंक ने
बड़े ऋण के साथ इक्वाडोर में हस्तक्षेप किया
अगले 30 वर्षों के दौरान, वहाँ गरीबी 50 % से 70 % बढ़ गयी
इसके तहत बेरोजगारी में 15 % से 70 % की वृद्धि हुई ,
राष्ट्रीय ऋण में 24 करोड़ - 160 करोड़ तक की वृद्धि हुई
जबकि गरीबों के लिए आवंटित संसाधनों के शेयर
20 % से घट कर 6 % हो गाया
वास्तव में, वर्ष 2000 तक, इक्वाडोर के राष्ट्रीय बजट का 50 %
अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए रखा जाता था।
ये समझना महत्वपूर्ण है कि: विश्व बैंक वास्तव में, एक .
अमेरिकी बैंक है, और अमेरिकी हितों के समर्थन के लिए है
अमेरिका निर्णय लेने पर वीटो शक्ति रखती है, .
क्योंकि वह सबसे बड़ा पूंजी प्रदान करने वाला देश है
और वे इस पैसे को कहाँ से लाया ?
आपने सही सोचा : यह फ्रैक्स्न्ल रिजर्व बैंकिंग प्रणाली
के माध्यम से यूँ ही बना लिया गया ।
दुनिया के सबसे बड़े 100 अर्थव्यवस्थाओं के रूप में जो GDP के आधार पर हैं
उनमे से 51 कॉरपोरेशंस हैं और इन 51 कॉरपोरेशंस मैं से 47 अमरीकी हैं!
वालमार्ट, जनरल मोटर्स और एक्सोन, आर्थिक रूप से सऊदी अरब, पोलैंड, नॉर्वे,
दक्षिण अफ्रीका, फिनलैंड, इंडोनेशिया और कई दूसरों से
आर्थिक रूप में अधिक शक्तिशाली हैं।
और, जैसे जैसे सुरक्षात्मक व्यापार बाधाएं टूट रहीं हैं,
मुद्राएँ उछाली जा रहीं हैं, खुले बाज़ारों के हेर फेर के साथ
और राज्यों की अर्थव्यवस्थाएँ पलट रहीं हैं विश्व पूंजीवाद के
खुली प्रतिस्पर्धा के पक्ष में, वैसे वैसे साम्राज्य फ़ैल रहा है।
आप अपने छोटे से 21 इंच की टीवी के परदे पर
अमेरिका और लोकतंत्र के बारे में चीख़ते - चिल्लाते हैं
पर कोई अमेरिका नहीं है , कोई लोकतंत्र नहीं है
है तो सिर्फ IBM , ITT और AT AND T
और डुपोंट, डाव , यूनियन कारबाईड और एक्सोन है
यही आज दुनिया के राष्ट्र हैं.
आपको क्या लगता है रूसी अपने सरकारी समिति में क्या बात करते हैं
कार्ल मार्क्स ?
वे अपने फैसले भी नंबर और कंप्यूटर से निकालते हैं ,
न्यूनतम खर्चों पर अधिकतम फायदों के सारे
संभावनाएं , हर निवेश की और हर सौदे की
गणना वो लोग कंप्यूटर से करते हैं , जैसा हम लोग करते हैं
हम अब देश और विचारधाराओं की दुनिया में नहीं रहते हैं, मिस्टर बील.
दुनिया कॉरपोरेशंस का एक कॉलेज है,
जो निर्धारित होता है, दृढ़ व्यापार के नियमों से .
दुनिया एक बिजनेस है, मिस्टर बील.
पूरी तरह से देखा जाये तो , दुनिया का एकीकरण,
विशेषकर आर्थिक वैश्वीकरण के संदर्भ में
और पूंजीवाद के "खुले बाजार" के झूठे गुण,
अपने आप में एक "साम्राज्य" का प्रतिनिधित्व करता है ...
कुछ ही देश विश्व बैंक, I.M.F , या W .T . O के "सुधार नीतियों"
और शर्तों से बचने में सक्षम रहे है"
ये अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं जो
आर्थिक वैश्वीकरण का मतलब निर्धारित करतीं हैं ...
वैश्वीकरण की शक्ति इतनी है कि हमारे जीवनकाल में ही हम देखेंगे कि
सभी अर्थव्यवस्थाएं चाहे असमान रूप से ही सही इस दुनिया .
में एक साथ मिल कर खुला व्यापार करेंगे
दुनिया पर कुछ चंद निगमों द्वारा राज फैलता जा रहा है जो उन चीज़ों पर
भी काबू रखते हैं जिनकी हमें जिन्दा रहने के लिए जरुरत हैं,
और वे पैसे पर भी काबू रखते हैं जिसकी जरूरत हमें इन चीजों को खरीदने के लिए पड़ती हैं|
अन्त में परिणाम यह निकलेगा कि दुनिया पर
एक ही हुकूमत होगी , पैसे की न कि इंसानियत की ।
और, जैसे जैसे असमानता बढ़ रही है,
स्वाभाविक रूप से, अधिक से अधिक लोग हताश हो रहे हैं।
इसलिए जो कोई भी इस सिस्टम को चुनौती दे उनसे निपटने के लिए ,
प्रतिष्ठान ने कुछ नया सोचा है
इसीलिए इन्होने "आतंकवादी" शब्द को जन्म दिया ।
"आतंकवादी" एक ऐसा शब्द है जो किसी भी
इंसान या समूह को दे दिया जाता है
जो इस प्रतिष्ठित सिस्टम को चुनौती देता है
पर हमें "अल कायदा" नाम के काल्पनिक नाम से भ्रमित नहीं होना चाहिए ,
जो असल में 1980 के शतक में अमेरिका समर्थित मुजाहिदीन
के कंप्यूटर डेटाबेस का नाम था
सच तो यह है कि ऐसी कोई आतंकवादी समूह है ही नहीं
जिसका नाम 'अल कायदा' हो, और यह बात हर एक खुफिया अधिकारी को मालूम है.
लेकिन लोगों को ऐसी एक संस्था की मौजूदगी का विश्वास
दिलाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है....इस प्रचार अभियान के पीछे अमेरिका है
- "पिअर हेनरी बुनेल - पूर्व फ्रांसीसी सैन्य खुफिया"
2007 में
अमेरिकी रक्षा विभाग ने इस काल्पनिक आतंकवाद पर विश्व स्तर पर .
युद्ध के लिए 161 .8 अरब डॉलर प्राप्त किया
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी केंद्र के हिसाब से 2004 में,
2000 लोग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मारे गए थे, .
आतंकवादी गतिविधियों के कारण
उसमे से सिर्फ 70 अमेरिकी थे.
इस नंबर को अगर एक सामान्य औसत समझ के इस्तमाल करें तो एक ,
दिलचस्प बात सामने आती है कि दुगने लोग मूंगफली की एलर्जी से
अमेरिका में हर साल मरते हैं न कि आतंकवादी गतिविधियों से.
फिलहाल, अमेरिका में मौत का प्रमुख कारण हृदय रोग है,
लगभग 450 ,000 मौतें हर साल होती हैं।
और 2007 में, शोध के लिए सरकार नें इस मुद्दे पे
3 अरब डॉलर खर्च किया था
इसका मतलब यह है कि, अमेरिकी सरकार ने, 2007 में
आतंकवाद को रोकने के लिए 54 गुना राशि का खर्च
एक रोग के रोकथाम के शोध के मुकाबले किया ,
जबकि आतंकवाद कि तुलना में 6600 गुना अधिक लोग इस बिमारी से मरते हैं.
फिर भी आतंकवाद के नाम पे 'अल कायदा' का नाम जहाँ तहाँ
हर खबर में अमेरिकी मुनाफे के लिए छपता है
और ऐसे ही झूट फैलाया जाता है.
2008 में अमेरिकी अटर्नी जेनरल ने
अमेरिकी कांग्रेस के सामने इस झूठ के खिलाफ जंग लड़ने का प्रस्ताव भी रख दिया
यही नहीं , जुलाई 2008 की बात करें तो 10 लाख से भी अधिक लोग
वर्तमान में अमेरिकी आतंकवादी सूची पर हैं।
इन तथाकथित "आतंकवाद विरोधी रणनीतियों" का
सामाजिक सुरक्षा के साथ कोई वास्ता नहीं
पर सारा वास्ता इस सिस्टम को टिकाये रखने के साथ है
जो दोनों घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
बढ़ती अमेरिका विरोधी भावना के बीच बनाई जा रही है
जो कि वैध तरीके से कॉर्पोरेट साम्राज्य
के लालच भरे हड़प पर आधारित है
जो दुनिया का शोषण कर रहा है।
हमारी दुनिया के असली आतंकवादी, आधी रात के घने अँधेरे में नहीं मिलते
ना कि "अल्लाह अकबर" चिल्लाते हैं किसी हिंसक अभियान पर जाने से पहले।
हमारी दुनिया के असली आतंकवादि, लाखों रुपयों के सूट पहनते हैं
और आर्थिक , राजनैतिक और व्यापार के सबसे ऊँचे पदों में काम करते हैं.
तो, अब हम क्या करें?
कैसे रोकें इस लालच और भ्रष्टाचार की प्रणाली को, .
जिसके हाथ में इतनी ताकत और बल है
कैसे रोके हम इस भ्रष्ट समूह व्यवहार को, जो किसी पर दया नहीं करता
जैसे , लाखों लोग इराक और अफ्घनिस्तान में बलि हुए,
ताकि निगमशासन के लोग वॉल स्ट्रीट के लाभ के लिए
ऊर्जा संसाधनों और अफीम उत्पादन को नियंत्रित कर सकें
1980 से पहले, अफगानिस्तान दुनिया में अफीम का शुन्य प्रतिशत (०%) उत्पादन करता था।
1986 तक, यू.एस. / सी.इ.ऐ. समर्थित मुजाहिद्दीन, सोविएत/अफ्घन युद्ध
जीतने के बाद अफगानिस्तान दुनिया की 40 % हेरोइन (मादक पदार्थ)का उत्पादन करने लगा .
1988 में वे कुल मार्केट सप्लाई का 80 % उत्पादन करने लगे
लेकिन फिर, कुछ ऐसा हुआ जो किसी ने नहीं सोचा था .
तालिबान सत्ता में आया और 2000 तक वे अफीम के अधिकतर खेत नष्ट कर चुके थे।
उत्पादन 3000 + टन से घटकर सिर्फ 185 टन पे आ गया, मतलब उत्पादन में 94 % की कटौती हुई.
9 सितम्बर 2001 को, पूरे अफगानिस्तान पर आक्रमण करने की योजना राष्ट्रपति बुश की मेज पर थी
दो दिन बाद उन्हें अपना बहाना मिल गया
आज, अमेरिकी नियंत्रित अफगानिस्तान में
दुनिया का 90 % से अधिक हेरोइन का उत्पादन होता है और
हर साल उत्पादन का नया रेकोर्ड बना रहा है.
हम इस लालच और भ्रष्टाचार की प्रणाली को कैसे रोकें
जो गरीब जनता को अपने लाभ के लिए गुलामी की जंजीरों में बाँध देती है,
ताकि मैडिसन ऐवेनिउ का फायदा हो सके ?
या फिर झूठे मूठे आतंकवादी आक्रमण कराते हैं ,
हेरफेर करने के लिए
या फिर ऐसी सामाजिक स्थिति उत्पन्न करतें है जो समाज का ,
हर मोड़ पे शोषण कर रहे हैं
या जो जान बूझकर हमारी स्वतंत्रता को कम कर देता है ,
और मानव अधिकारों का उल्लंघन करता है
ताकि आपनी कमियों से, खुद को बचा सके .
उन गुप्त संस्थानों के साथ हम क्या कर सकते है ,
जैसे कि काउंसिल ऑन फोरेन रिलेशंस ,
ट्राईलैटेरल कमिशन और बिल्डरबर्ग ग्रुप और
अन्य गैर- लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित समूह
जो बंद दरवाज़ों के पीछे हमारे राजनीतिक, आर्थिक और
सामाजिक जीवन को नियंत्रित करने की योजनायें बनाते हैं?
इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमें पहले
बुनियादी सच को समझना होगा।
सच यह है कि
स्वार्थी, भ्रष्ट, सत्ता और लाभ आधारित समूह
इस समस्या के असली स्रोत नहीं हैं।
वे तो सिर्फ लक्षण हैं।
"लालच और प्रतिस्पर्धा अपरिवर्तनीय मानव स्वभाव का परिणाम नहीं हैं ...
....लालच और अभाव के डर को पैदा किया जा रहा है और उसे बढ़ावा दिया जा रहा है...
जिसका सीधा परिणाम यह है कि हमें जीने के लिए एक दुसरे से लड़ना पड़ता हैं.
- बर्नार्ड लिअर्टर - यूरोपीय संघ के मुद्रा प्रणाली के संस्थापक
मेरा नाम ज़ाक फ्रेस्को है.
मैं एक औद्योगिक डिजाइनर और सामाजिक इंजीनियर हूँ.
मैं समाज में बहुत ही रुचि रखता हूँ
और एक सामाजिक प्रणाली बनाना चाहता हूँ जो कि स्थायी हो और सभी लोगों के लिए हो ।
सबसे पहले, समझना होगा कि "भ्रष्टाचार" शब्द एक मौद्रिक आविष्कार है,
यह एक गलत व्यवहार है .
जो लोगों की अच्छाई के लिए हानिकारक है
पर आप मानव व्यवहार की बात कर रहे हैं
. और मानव व्यवहार आस पास की परिस्थितियों से ही निर्धारित होता है
मतलब, अगर आप बचपन से एक आदिवासी परिवार में पले बड़े हैं ,
और बाहरी दुनिया का कुछ नहीं देखा तो आप उन्ही के सोंच-विचार को अपनाते हैं
और यही सच है, राष्ट्रों के लिए, लोगों के लिए, परिवारों के लिए
वे अपने बच्चों को अपने धर्म और अपने देश के रीती रिवाजों में
ढाल देते हैं और उन्हें विश्वास दिलाते हैं कि वे उसी समाज के हिस्से हैं
इस तरह वे एक समाज बनाते हैं जिसे वे स्थापित कहते हैं।
वे एक दृष्टिकोण बनाते हैं और उसी को स्थिर करना चाहते हैं।
जबकि सभी समाज वास्तव में विकसित होते हैं ना कि स्थापित.
और इसलिए वे नए विचारों का विरोध करते हैं,
जो उनकी स्थापना में दखलअंदाज़ी करते हैं .
सरकारें उन चीज़ों को बढ़ावा देती हैं जो उन्हे सत्ता में रखती हैं.
नेताओं को बदलाव लाने के लिए नहीं चुना जाता .
वे चुने जाते हें ताकि वो देखे कि सब पहले जैसा बना रहे.
तो आप देख सकते है, भ्रष्टाचार की जड़ें समाज की ढाँचे में ही हैं.
मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सभी देश भ्रष्ट हैं,
क्योंकि वे वर्तमान संस्थानों को कायम रखना चाहते हैं.
मेरा मकसद सभी देशों को ऊँचा या नीचा दिखाना नही है,
पर साम्यवाद, समाजवाद, फ़ैसिस्टवाद , पूंजीवाद
और सभी उप-संस्कृतियाँ एक जैसी ही हैं.
वे सभी मूल रूप से भ्रष्ट हैं.
हमारी सभी सामाजिक संस्थानों का मूल लक्षण,
है - खुद को टिकाये रखने की अभिलाषा .
चाहे किसी कॉर्पोरेशन , धर्म या सरकार की बात हो,
सभी का मुख्य उद्देश् खुद को टिकाये रखना ही है
उदाहरण के तौर पर कोई तेल कंपनी यह कभी नही चाहेगी
कि उर्जा का इस्तेमाल उसके नियंत्रण से बाहर हो.
क्योंकि ऐसा होने पर उसका समाज पर नियंत्रण कम हो जाएगा.
जैसे कि शीत -युद्ध और सोविएत संघ के पतन में हुआ था,
असल में उस तरह से अमेरिका आर्थिक और संसारिक .
नेतृत्व कायम रखने में कामयाब हुआ
इसी तरह धर्म का काम लोगों की
प्राकृतिक इच्छाओं के लिए निंदा करना है
और यह दावा करना है कि सिर्फ़ उनके दिखाए हुए रास्ते ही मोक्ष और क्षमा प्रदान करेंगे .
और आत्म-संरक्षण के इन स्थापनाओ के दिल में .
पैसों की प्रणाली घर करती है
क्योंकि पैसा ही ताक़त और जीने का ज़रिया प्रदान करता है.
इसलिए जिस तरह एक ग़रीब ,
जीने के लिए चोरी करने पर विवश हो सकता है
उसी तरह यह स्वभाविक है. कि कोई संस्था अपने
मुनाफे को टिकाये रखने के लिए कुछ भी करेगा
और इसी कारण से लाभ से जुडी संस्थानों का ,
बदल पाना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि इससे ना सिर्फ़
बहुत से लोगों का अस्तित्व ख़तरे मैं पड़ जाता है,
बल्कि उनके भोग विलास और ताकत से जुडी .
जीवन शैली पर भी बुरा असर पड़ता है
इसलिए इस आत्म संरक्षण का मूल उद्देश्य मुनाफा और धन प्राप्ति
है चाहे इससे समाज और पर्यावरण को , .
दाँव पर ही क्यूँ न रखना पड़े
व्यापार
"इससे मुझे क्या लाभ होगा?", लोग ऐसा ही सोचते हैं.
और इसलिए अगर कोई किसी सामान को बेचकर लाभ कमाता है,
तो वो ज़रूर उनसे लड़ेगा., उनके सामान को टिकने नहीं देगा जो
उसके मुनाफ़े में बाधा पहुँचा सकता है,
इसलिए लोग ऐसे हालत में दयालु नहीं रहेंगे .
और एक दुसरे पर भरोसा नहीं करेंगे
इसलिए कोई आकर आपसे कहता है ,
"आप को जो चाहिए वो सिर्फ़ मेरे पास है" ऐसा एक सेल्समैन कहता है .
या एक डोक्टर कहता है , "शायद आपका गुर्दा निकालना पड़ेगा ",
तो क्या पता की मेरा गुर्दा सच मैं खराब हो गया है .
या ऐसा करके उसे अपनी नई गाड़ी खरीदनी है
पैसों की व्यवस्था में किसी पर भी भरोसा करना बहुत कठिन है.
अगर आप मेरी दुकान में आते हैं और मैं कहता हूँ,
"मेरी दुकान का सामान अच्छा है, पर अगली दुकान का माल बेहतर है",
तो मैं व्यापार में ज्यादा दिन नहीं टिकुंगा. ऐसे कभी धंधा नहीं चलेगा.
मेरे नैतिक होने से मेरा धंधा बंद हो सकता है.
तो अगर आप सोचते हैं कि उद्योग या व्यापर लोगों की परवाह करता है, तो ये आपका एक भ्रम है.
असल में एक व्यापारी के लिए पक्का नैतिक होना नामुमकिन है।
तो हमारा सिस्टम ही लोगों की भलाई के लिए नहीं बना.
अगर व्यापार मुनाफे से ज्यादा लोगों की परवाह करती तो,
वे कभी नौकरियों का औट्सोर्सिंग नहीं करते
बिजनेस लोगो की परवाह नहीं करती है. वो नौकरी
पे लोगों को इसलिए रखते हें क्यूंकि अभी वे काम मशीनों से स्वचालित नहीं हुए हैं.
तो शालीनता और नैतिकता का ज़िक्र ना करें,
क्यूंकि हम इन शब्दों के साथ व्यापार में मुनाफा नही कमा सकते
यह महत्वपुर्ण है कि हम इस पर ध्यान दे, भले ही यह सामाजिक व्यवस्था, -
चाहे ये फ़ैसिस्टवाद हो, समाजवादी हो, पूंजीवादी हो या साम्यवादी -
इसका मुख्य तंत्र अभी भी पैसा, लेबर और प्रतियोगिता है .
साम्यवादी चीन , अमेरिका की तुलना में कोई कम पूँजीवादी नहीं है.
फर्क सिर्फ यह है कि सरकार किस हद तक .
व्यापार में दखल देता है
वास्तविकता यह है कि "मौद्रिक-वाद" ही
वो प्रणाली है जो आज सारे राष्ट्रों को .
चलाती है
इस मौद्रिक-वाद की सबसे आक्रामक और सबसे
प्रभावशाली रूप है पूंजीवाद या मुक्त बाज़ार प्रणाली.
वह मौलिक दृष्टिकोण जिसे एडम स्मिथ जैसे अर्थशास्त्रियों ने ,
पूंजीवाद या मुक्त बाजार के बारे में रखा था
वह यह है कि खुदगर्जी और प्रतिस्पर्धा समाज को समृद्धि की ओर ले जाता है,
क्योंकि प्रतियोगिता प्रलोभन को उत्पन्न करता है, .
जो लोगों को मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है
लेकिन, जिस बारे में बात नहीं की जाती, वो यह है कि कैसे एक प्रतियोगिता आधारित अर्थव्यवस्था
सदा ही रणनीतिक भ्रष्टाचार, सत्ता और धन एकीकरण ,
सामाजिक स्तरीकरण, तकनीकी पक्षाघात, श्रम शोषण
और अंततः गुप्त रूप में अमीर वर्ग के द्वारा सरकारी तानाशाही ,
कि ओर ले जाती है
अक्सर "भ्रष्टाचार" शब्द को नैतिक विकृति के रूप में समझा जाता है.
यदि कोई कंपनी पैसे बचाने के लिए सागर में अपने कारखाने का जहरीला अवशेष फैंकती है,
ज्यादातर लोग इसे "भ्रष्ट व्यवहार" के रूप में देखते हैं.
और अधिक सूक्ष्म स्तर पर, जब वालमार्ट (बड़ा व्यापार) एक छोटे शहर में जाकर
छोटे व्यवसायों को बंद होने पर मजबूर करता है चूँकि वे
उसका मुकाबला नहीं कर सकते, तो यहाँ पर दृष्टि डालनी होगी
कि ऐसा क्या है जो वालमार्ट गलत कर रहा है?
वे क्यों उन छोटे व्यापारों की परवाह करें जिन्हें वे नष्ट करते हैं?
और भी सूक्ष्मता से देखें , तो जब एक व्यक्ति को नौकरी से निकाल दिया जाता है
, क्योंकि एक नयी मशीन का निर्माण हो गया है,
जो कम लागत में काम कर सकती है,
तब लोग उसे यूँ ही स्वीकार करते हैं जैसे "ये तो होता ही है",
और ऐसे घटनाओं की अंदरूनी भ्रष्ट निर्दयता को अनदेखा कर देते हैं.
क्योंकि तथ्य यह है, कि चाहे हो जहरीला अवशेष फैंकना
, एकाधिकारिक उद्योग होना या कर्मचारियों की संख्या घटाना,
मकसद एक ही है: मुनाफ़ा कमाना
वे सब अलग अलग हदों पर खुद को टिकाये रखने कि कोशिश कर रहे है ,
जिससे लोगों की भलाई ,हमेशा, मुनाफे की भलाई के बाद ही देखी जाती है .
इसलिए, भ्रष्टाचार मौद्रिक-वाद का कोई प्रतिफल नहीं है,
बल्कि उसकी जड़ ही है.
और जबकि कुछ लोग किसी न किसी स्तर पर , ,
इस मानसिकता को स्वीकार करते हैं, ज्यादातर लोग अनुभवहीन ,
रहते हैं ऐसे स्वार्थी तंत्र के व्यापक असर को
समझने में, कि खुदगर्जी वाली
मानसिकता ही समाज का मार्गदर्शक है
अंदरूनी दस्तावेज दिखाते हैं
कि इस कंपनी को पूर्ण रूप से जानकारी होने पर भी ,
कि उनकी एक दवा एड्स वायरस से संक्रमित है,
उन्होंने वह उत्पाद अमेरिकी बाज़ार से वापस ले लिया,
और फिर उसे फ्रांस, यूरोप, एशिया और लैटिन अमेरिका में फेंक दिया.
अमेरिकी सरकार ने ऐसा होने दिया.
FDA ने इसकी अनुमति दी .
और अब सरकार ने पूरी तरह से दूसरी ओर मूह मोड़ लिया है
हजारों मासूम, हेमोफिलिया से पीड़ित, एड्स वायरस से मारे गए हैं.
इस कंपनी को पूरी तरह से पता था कि यह एड्स से संक्रमित है,
उन्होंने इसे वहां फेंका क्योंकि वे एक आपदा को लाभ में बदलना चाहते थे.
तो आप देख सकते हैं, समाज के ढांचे में भ्रष्टाचार समाया हुआ है.
हम सभी एक दूसरे को धोखा दे रहे हैं,
और आप इस प्रकार की चीज़ में शालीनता की उम्मीद नहीं कर सकते.
राजनीती
...लोगों को लगता है कि वे नहीं जानते, किसका चुनाव करें.
वे लोकतंत्र के संदर्भ में सोचते हैं,
जो एक लाभ युक्त अर्थव्यवस्था में संभव नहीं है.
यदि चुनाव में आप के पास अपने पद को विज्ञापित करने के लिए अधिक पैसा है ,
और इस तरह से आप अपना पद हासिल करते हैं , - तो वो लोकतंत्र नहीं है.
यह उनके हित में है जो विशेष लाभ की स्तिथि में होते हैं.
इसलिए यह हमेशा धनि वर्ग की तानाशाही होती है, .
"हम या तो इस देश में लोकतंत्र की उम्मीद कर सकते हैं या
उम्मीद कर सकते हैं कि अधिकाँश धन कुछ ही हाथों में केन्द्रित हो जाएगी ,
लेकिन दोनों एक साथ नहीं हो सकता ." - लुईस ब्राण्डैस - सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस
यह एक दिलचस्प ध्यान देने वाली बात है
कि कैसे कोई व्यक्ति जिन्हें हम पहले कभी नहीं जानते थे .
जादुई रूप से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तुत हो जाते हैं
और इससे पहले कि आपको पता लगे, किसी तरह आपके
चुनने के लिए रह जाता है, बहुत अमीर लोगों के एक छोटे समूह को
जिनका संदेहजनक रूप से सामाजिक दृष्टिकोण मिलता जुलता है.
जाहिर है कि यह एक मज़ाक है.
चुनावपत्र में उपस्थित नाम वहां इसलिए हैं
क्योंकि स्थापित आर्थिक शक्तियाँ जो वास्तव में इस खेल को नियंत्रित करते हैं
ये फैसला पहले ही कर चुके होते है की उन्ही को स्वीकारा जायेगा
तब भी वो लोग, जो इस लोकतंत्र के भ्रम को समझते हैं, अक्सर सोचते हैं
"यदि हम केवल अपने ईमानदार, नैतिक नेताओं को सत्ता में ला सके ",
तो सब ठीक हो जाएगा.
खैर, जब कि यह विचार हमारी स्थापित दृष्टिकोण के कारण
बेशक सुनने में उचित लगता है
दुर्भाग्य से यह एक और भ्रम है.
क्योंकि जब यह बात आती है कि असल में महत्वपूर्ण क्या है,
राजनीति की यह संस्था और राजनेता खुद,
उससे कोई भी सच्चा सम्बन्ध नहीं रखते
जिससे हमारी दुनिया और समाज चलते हैं.
राजनेतायें समस्याओं का समाधान कर नहीं कर सकते .
उनके पास कोई तकनीकी क्षमता ही नहीं है.
उन्हें यह भी नहीं पता कि समस्या का समाधान कैसे किया जाये.
अगर वे इमानदार भी हों, तो भी उन्हें समस्या का समाधान करना नहीं आता.
वह इंजिनियर होता है जो खारे पानी को मीठे पानी में बदलने का प्लांट बनाते हैं ,
वह इंजिनियर होते हैं जो आपको बिजली प्रदान करते है,
जो आपके लिए मोटर गाड़ी बनाते है,
जो आपके घर को गर्मी में ठंडा और जाड़े में गर्म रखता है.
वह टेक्नोलोजी होती है जो समस्या को हल करती है, राजनीति नहीं.
राजनेतायें समस्याओं को हल नहीं कर सकते क्योंकि उन्हें इसका ट्रेनिंग नहीं मिलता .
बहुत कम लोग आज सोच विचार करते हैं
कि वह वास्तव में क्या है, जो उनके जीवन को बेहतर बनाता है.
क्या वह पैसा है? कतई नहीं.
पैसों को कोई खा नहीं सकता और ना ही अपनी गाड़ी में भर सकता है उसे चलाने के लिए.
क्या वह राजनीति है?
राजनेता तो सिर्फ क़ानून बना सकते हैं,
बजट स्थापित करते हैं और युद्ध की घोषणा करते हैं.
क्या वह धर्म है?
बिल्कुल नहीं, धर्म देता है तो सिर्फ
अमूर्त भावनात्मक सांत्वना, उनके लिए जिन्हें उसकी आवश्यकता है.
वह सच्चा उपहार जो हम मनुष्यों के पास है,
जो पूरी तरह से ज़िम्मेदार है हमारे जीवन को ,
सुधारने के लिए
वह है टेक्नोलोजी ( प्रोद्योगिकी ).
क्या है ये टेक्नोलोजी ?
टेक्नोलोजी एक पेंसिल है,
जो किसी को अपने विचारों को कागज़ पर उतारने की सुविधा देती है, संचार के लिए.
टेक्नोलोजी एक वाहन है, जो किसी को अपने पैंरों से ज्यादा तेज़ी से
सफ़र करने की सुविधा देता है
टेक्नोलोजी एक चश्मा है
जो जरूरतमंदों की दृष्टि को सक्षम बनाता है.
टेक्नोलोजी मनुष्य की विशेषताओं का महज़ एक विस्तार है,
जो मानव की कठिनाइयों को कम कर देता है, .
एक विशेष काम या समस्या से मनुष्य को मुक्त करके i
कल्पना कीजिए कि आज आपका जीवन बिना
टेलीफोन के कैसा होगा , या बिना ओवेन के
या बिना कंप्यूटर, बिना हवाई जहाज के !
आपके घर की सारी चीज़े, जिनका सही मूल्य हम नहीं समझ पाते,
जैसे दरवाज़े की घंटी से लेकर, एक टेबल तक, एक बर्तन धोने की
मशीन आदि तक, सब टेक्नोलोजी हैं
सब कुछ इंजीनियरों की रचनात्मक वैज्ञानिक प्रतिभा से उत्पन्न होते हैं .
न पैसा, न राजनीती और न ही धर्म से.
यह सब झूठे संस्थान हैं.
...और अपने नेता से गुहार लगाना बड़ा ही अजीब है .
वे आपको बताते हैं, "अपने नेता को बताएं आप क्या चाहते हैं ".
आपकी राजधानी में बैठे लोग तकनीक के मामले में सबसे आगे होने चाहिए.
मानव अध्ययन के मामले में सबसे आगे,
अपराध अध्ययन के मामले में सबसे आगे.
सभी कारणों में जिससे मानव व्यवहार आकार लेता है.
आपको अपने नेता से गुहार लगाने की ज़रूरत नहीं.
वे किस तरह के लोग हैं ये जिन्हें इस काम के लिए नियुक्त किया जाता है?
भविष्य बहुत मुश्किलों से भरा होगा ...
और वह सवाल जो राजनेता उठाते हैं वो है :
एक परियोजना में कितना खर्चा होगा?
सवाल यह नहीं होना चाहिए कि "कितना खर्चा होगा".
बल्कि यह होना चाहिए कि क्या हमारे पास संसाधन हैं?
और हमारे पास आज इतनी संसाधन हैं कि हम सबको घर दे सकें,
दुनिया भर में अस्पतालों का निर्माण कर सकें,
दुनिया भर में स्कूलों का निर्माण कर सकें,
शिक्षा और चिकित्सा अनुसंधान करने के लिए प्रयोगशालाओं में बेहतरीन उपकरण दे सके .
तो आप देख सकते हैं, हमारे पास वे सब हैं, लेकिन हम एक पैसों के सिस्टम में हैं,
और एक पैसों की समाज में लाभ के बारे में सोचा जाता है .
और वह बुनियादी तंत्र क्या है जो इस लाभ प्रणाली को चलाता है
स्वार्थ के अलावा?
वह सही मायने में क्या है जो प्रतिस्पर्धा को मुख्य रूप से बनाये रखता है?
क्या वह उच्च क्षमता और स्थिरता है?
नहीं, यह उनके उद्देश्य का हिस्सा नहीं है.
लाभ पर आधारित समाज में ऐसा कुछ भी नहीं है
जो स्थिरता और कुशलता का ख्याल रखे .
अगर होता, तो करोड़ों डॉलर सालाना पर आधारित
ऑटोमोबाइल मरम्मत उद्योग नहीं होता
और न ही अधिकतम इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की औसत आयु तीन महीने होती
जिसके बाद वे बेकार हो जाते हैं
तो क्या वो प्रचुरता है?
बिल्कुल नहीं.
डिमांड और सप्लाई के कानून के आधार पर देखा जाये ,
तो प्रचुरता एक नकारात्मक बात है.
अगर एक हीरे की कंपनी को
खनन के दौरान उसकी सामान्य मात्रा से दस गुना ज्यादा हीरे मिल जाएँ,
उसका मतलब है हीरे की सप्लाई में वृद्धि हुई है ,
जिससे प्रति हीरे की लाभ में घाटा हो जाता है.
मतलब यह है: कि क्षमता , स्थिरता, और प्रचुरता
लाभ के लिए दुश्मन हैं.
इसे एक शब्द में डाला जाये तो,
वह " अभाव " की प्रक्रिया है जो लाभ को बढ़ाती है.
" अभाव " का मतलब क्या है?
उत्पादों को मूल्यवान रखने पर आधारित.
कीमतों को बढ़ाने के लिए तेल के उत्पादन को धीमा कर देना .
हीरे की " अभाव " को बनाए रखने पर उनके दाम बढ़ जाते है.
वे किम्बर्ली हीरे की खान में हीरों को जला डालते हैं. .
इससे हीरे कीमती हो जाते हैं
तो फिर, इसका समाज के लिए क्या मतलब है जब " अभाव ",
या तो स्वाभाविक रूप से या हेरफेर के माध्यम से निर्मित,
व्यापार के लिए एक लाभदायक स्थिति है?
इसका मतलब है कि स्थिरता और प्रचुरता , .
एक लाभ आधारित सिस्टम में कभी नही पाए जायेंगे
क्योंकि वह तो इस ढाँचे की बनावट के विरुद्ध है.
इसलिए, इस सिस्टम में यह असंभव है कि युद्ध या गरीबी के बिना एक दुनिया हो.
यह असंभव है कि विज्ञानं की लगातार प्रगति हो
अपने सबसे कुशल और उत्पादक रूप में.
और सबसे बड़ी बात,
यह असंभव है कि हम मनुष्य से उम्मीद करें
उस व्यवहार की, जो सच में नैतिक और उचित हो.
मनुष्य का स्वभाव
या मनुष्य का व्यवहार?
लोग प्रवृति शब्द का प्रयोग करते हैं
क्योंकि वे व्यव्हार का कारण समझा नहीं सकते.
वे बिना जानकारी के
बैठ कर मूल्यांकन करते हैं और
ऐसी बातें बोलते हैं जैसे कि,
"इंसान ऐसा ही बना है" और "वह स्वाभाविक तौर से लालची है"
जैसे कि वे सालों से इस पर शोध किये हैं.
जब कि ये दुर्भावनाएँ इतनी ही प्राकृतिक है जितना कि कपड़े पहनना.
इस आंदोलन का उद्देश्य है कि हम
समस्याओं के कारणों को ही मिटा दें.
उन प्रक्रियाओं का अंत कर दे जो,
लालच, और कट्टरता, पक्षपात,
एक दुसरे का फायदा उठाना, अमीरवादी और नेतागिरी को जन्म देती है.
कैदखानों और भिक्षादान की जरुरत को ही मिटा दें.
हमें हमेशा इन सब की जरुरत पड़ी है
क्योंकि हम हमेशा एक "अभाव " में रहे हैं,
और पैसे का ये सिस्टम ही ये अभाव को पैदा करती हैं.
अगर आप "समाज विरोधी व्यवहार" को जन्म देने वाले ,
कारणों को ही समूल नाश कर दें , तो वो व्यव्हार पनपेंगे ही नहीं
कोई कहता है "ये व्यव्हार जन्मजात होती है है" नहीं ऐसा नहीं है .
मानव प्रकृति कुछ नहीं होता, सिर्फ मानव व्यवहार होता है,
और इतिहास के साथ साथ वह हमेशा से बदलता रहा है.
आप कट्टरता, लालच, घृणा और भ्रष्टाचार के साथ पैदा नहीं हुए थे.
ये सब आपने समाज से सीखा है.
युद्ध, गरीबी, भ्रष्टाचार, भूख, दुख, मानवीय पीड़ा
एक पैसे के सिस्टम में पूर्ण रूप से ख़त्म नहीं हो सकते,
मतलब,अगर इनमें कोई बदलाव आता है तो नाम-मात्र ही आएगा
इसलिए हमारे जीवन के मूल्यों और हमारी संस्कृति को पूरी तरह बदलना होगा.
और नए मूल्यों का सीधा सम्बन्ध धरती की क्षमता से होगा,
किसी मानव या किसी नेता की राय या विचारों से नहीं
की दुनिया कैसी होनी चाहिए.
या कि किसी धर्म की धारणा से नहीं कि इंसानी मामलों का संचालन कैसे होना चाहिए.
और ये ही है "वीनस प्रोजेक्ट".
जिस समाज की हम अभी बात करने जा रहे हैं,
वो सभी पुराने अंधविश्वासों से मुक्त है,
जैसे कैदखानों , पुलिस क्रूरता और कानून से
सभी कानून गायब हो जायेंगे
और वे सभी व्यवसाय जिनका अर्थ नहीं रहेगा वे भी गायब हो जायेंगे,
जैसे विज्ञापन , शेयर बाज़ार के -दलाल, बैंक में काम करने वाले.
गायब! हमेशा के लिए!
क्योंकि उनकी कोई जरुरत नहीं रहेगी.
जब हम यह समझ जायेंगे कि "टेक्नोलोजी "
जिसे इंसानों की चतुराई ने बनाया है ,
वह चीज़ है जो मानवता को मुक्त कर देती है और हमारे जीवन की गुणवत्ता बढ़ जाती है,
तब हम समझते हैं कि सबसे जरुरी काम है कि हम,
पृथ्वी के संसाधनों का बुद्धिमता से उपयोग करें.
क्योंकि इन प्राकृतिक संसाधनों से ही, हमें वह सामग्री हासिल होती है
जो हमारी समृद्धि के लिए जरुरी है I ये समझने के बाद आप देखिये,
कि पैसा इन प्राकृतिक संसाधनों के बीच एक दीवार है,
लगभग सभी के पीछे एक वित्तीय कारण है.
और हमें इन संसाधनों को प्राप्त करने के लिए पैसे की आवश्यकता क्यों है ?
क्यूंकि या तो सच में अभाव होती है या फिर ऐसा समझा जाता है
हम लोग ज्यादातर हवा और नल के पानी के लिए पैसा नहीं देते,
क्योंकि वे इतनी ज्यादा मात्रा में हैं कि उनको
बेचने में कोई मुनाफा नहीं है.
तो अगर थोड़ा सोचें, कि यदि संसाधन और प्रौद्योगिकी
जो हमारे समाजों में सब कुछ बनाने के लिए जिम्मेदार हैं
जैसे घर, शहरों और परिवहन के रूप में, पर्याप्त प्रचुरता में होगी ,
तो कुछ बेचने की जरुरत ही नहीं होगी .
वैसे ही अगर स्वचालन तकनीक और मशीनें इतनी उन्नत हो जाये ,
कि इन्सान को श्रम से मुक्ति दिला सके ,
तो कोई नौकरी करने की जरुरत ही नहीं होगी .
और इन सामाजिक पहलुओं को ध्यान में रखने के बाद,
पैसे की कोई ज़रूरत नहीं रहेगी.
तो सर्वश्रेष्ठ सवाल ये है:
कि क्या हमारी धरती पर पर्याप्त संसाधन हैं
और क्या हमारी टेक्नोलोजी इतनी विकसित है
कि हम एक समाज बना सकें जिस में प्रचुरता हो,
जिससे सब कुछ हमें मुफ्त में मिले
बेमतलब के नौकरी के बिना?
हाँ हो सकता है.
हमारे पास वो संसाधन और तकनीक है, जो इतना ही नहीं,
बल्कि हमारे जीवन को इससे कहीं ज्यादा सुखमय बना सकता है
भविष्य में लोग जब मुढ़के देखेंगे तो हमारी सभ्यता की तरफ देख के हसेंगे
और बोलेंगे कि हमारा समाज कितना आदिम और अविकसित था.
" वीनस प्रोजेक्ट" का प्रस्ताव एक ऐसी बिलकुल अलग प्रणाली बनाने का है
जो सबसे आधुनिक ज्ञान से पूर्ण होगी.
हमने कभी वैज्ञानिक को ऐसे काम नहीं दिए जैसे की
कैसे एक समाज को बनाएं जिसमे ,
उबाऊ और नीरस काम न करने पड़ें
या कैसे सड़क पे कोई दुर्घटना न हो ,
या कैसे सभी लोगों का जीवन और उच्च गुणों से भर जाये ,
या कैसे हमारे खाने में जो आजकल जहर मिलता है उसे हटाया जाए,
या कैसे हम उर्जा के उस स्त्रोत को ढूंढे और उपयोग करें जो साफ और कुशल हो.
ये सब हम
एक संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था में कर सकतें हैं.
सबसे बड़ा फ़र्क जो एक
संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था और पैसा आधारित अर्थव्यवस्था में है
वो ये की संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था सचमुच में लोगों के भलाई के बारे में चिंतन करेगी, .
जबकि पैसा प्रणाली इतनी भ्रष्ट है कि इंसान का चिंतन .
अगर आता भी है तो दुसरे नंबर पर आता है ,
जो भी उत्पाद बनता है वो सिर्फ इस मकसद से की उससे कितना मुनाफा कमाया जा सकेगा
अगर समाज में कोई समस्या हैं और
उसे सुलझाने के तरीके से अगर पैसे नहीं बनाये जा सकते तो उस समस्या से मुह मोड लिया जाता है
"संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था" जैसा
अभी तक कुछ भी आजमाया नहीं गया है
और आज की टेक्नोलोजी से हम वो प्रचुरता ला सकतें हैं जो
समाज में रहने वाले हर इंसान का जीवन सुखमय बना देगी,
परिपूर्णता पूरी दुनिया में आयेगी अगर हम अपनी तकनीकों का समझदारी से इस्तमाल करें
साथ में हम अपने वातावरण को भी सुधार सकतें हैं .
ये बहुत ही अलग तरह की योजना है, और इसको अच्छे से समझाना मुश्किल है
क्युइंकी जनता को कभी अच्छे से बताया ही नहीं गया
की हमारे तकनीक कितनी उन्नत है ,
उर्जा .
आज के समय में हमें तेल से उर्जा बनाने की जरुरत ही नहीं है,
बल्कि हमें ऐसा कुछ भी इस्तमाल करने की जरुरत नहीं है जिससे हमारे वातावरण को नुक्सान पहुंचे.
ऐसे बहुत सारे उर्जा के स्रोत है जो हमारी जरुरत पूरी कर सकें.
जो हमें दिखाया जाता है की वैकल्पिक उर्जा संसथान जैसे की
बाईओमास, हाईड्रोजेन और परमाणु उर्जा .
सब बहुत अपर्याप्त और खतरनाक हैं
और सिर्फ इसलिए बताये जातें हैं ताकि "लाभ संरचना ' का अस्तित्व बना रहे.
अगर हम इन सब ढकोसले के परे देखें ,
जैसा की उर्जा कंपनियां बताती है ,
तो हमें अनंत उर्जा के संसाधन दिखेंगे,
उर्जा जो साफ़ , भरपूर और अक्षय ( जिसे दोबारा बनायीं जा सके ) है .
" सोलर " और "पवन" उर्जा के बारें में लोगों को पता तो है .
लेकिन वो कितनी सक्षम है वो जनता को बताया नहीं जाता है
जानिए की " सोलर" उर्जा जो की सूर्य से मिलती है ,
इतनी भरपूर है की दिन की भरी दोपहर में एक घंटे की उर्जा
उससे ज्यादा है जो सारा संसार एक साल में खर्च करता है ,
अगर हम इसका सौवां भाग भी इस्तेमाल कर लें ,
तो दुनिया में किसीको कभी "गैस", "तेल" जलाने की जरुरत नहीं पड़ेगी .
असल में सवाल उपलब्धता का नहीं है,
सवाल है की कैसे उस तकनीक का विकास किया जाये .
और आज ऐसी बहुत सी आधुनिक तकनीक मौजूद है ,
जो बिलकुल ऐसा ही कर सकें.
अगर ऐसा करने के लिए उन्हें " स्थापित उर्जा संस्थानों" के साथ
"शयेर बाजार " में प्रतिस्पर्धा न करनी पड़े तो i
अब पवन उर्जा की अगर बात कर लीजिये ,
सालों से पवन उर्जा को कमजोर बताया गया है
कि ये एक स्थान पर निर्भर करती है और ये फायदेमंद नहीं है.
पर ये बिलकुल सच नहीं है ,
अमेरिकी उर्जा विभाग ने 2007 में ये कबूल किया कि
अगर अमेरिका के 50 राज्यों में से सिर्फ 3 में पवन उर्जा का पूर्ण उपयोग किया जाये
तो वो पुरे देश को उर्जा दे सकती है
और इसके बाद कुछ कम प्रसिद्ध माध्यम हैं जैसे कि
समुद्र की " ज्वारिय " और "तरंग शक्ति "
"ज्वारिय "उर्जा समुद्र के ज्वार के बदलाव से पैदा होती है
कुछ "टरबाईन" के उपयोग से उर्जा इस्तमाल की जा सकती है.
UK में 42 साइटों को वर्तमान में उपलब्ध बताया गया है , जिससे अनुमान है कि
34% देश की उर्जा की जरूरतें उससे.
पूरी की जा सकती हैं
"तरंग शक्ति" जो धरती के घूमने की वजह से
समुद्री सतह पर पैदा होती है
जिससे अनुमान लगाया गया है कि 80000 टेरावाट घंटे की
बिजली एक साल में पैदा की जा सकती है ,
इसका मतलब कि संसार की 50 % उर्जा की जरुरत
सिर्फ इसी एक माध्यम से पैदा की जा सकती है .
अब यहाँ पे ये बताना जरुरी है कि
इन माध्यमों का इस्तिमाल करने के लिए
कोई प्रारंभिक स्रोत नहीं चाहिए
जैसे की कोयला,गैस ,तेल इत्यादि में चाहिए.
सिर्फ जो अभी 4 स्रोत आपको बताये गए उन्ही से
पूरी दुनिया की उर्जा की जरूरतें
पूरी की जा सकती हैं.
ये सब कहने के बाद अभी भी एक ऐसी साफ़ उर्जा
का स्रोत है जो इन सबसे बेहतर है
जियोथरमल शक्ति
धरती के गर्भ से निकलने वाली गर्मी का उपयोग
सिर्फ पानी इस्तेमाल करके एक साधारण प्रक्रिया से
प्रचुर मात्रा में उर्जा उत्पन्न किया जा सकता है
2006 में एक एक जाने माने वैज्ञानिक संसथान ने एक रिपोर्ट पेश किया
कि वर्तमान में "13000 zetajoule" उर्जा इस धरती पर है
,जिसमे से 2000 Zetajoule तो आराम से बनायीं जा सकती है
उन्नत तकनीक के जरिये
आज के समय में पुरे संसार का उर्जा का सेवन करीब
"0.5 Zetajoule " है.
इसका मतलब है कि 4000 साल की संसार के उर्जा की जरूरतें
सिर्फ इसी एक माध्यम से पूरी की जा सकती हैं.
यही नहीं, ये स्रोत अपने आप बनता भी रहता है ,
तो इसका मतलब ये उर्जा असीम है
और हमेशा के लिए इस्तमाल की जा सकती है.
ये सब साफ़ स्रोतों की जो बात हमने की
ये सिर्फ कुछ ही हैं
और जैसे जैसे समय बीतेगा हमें और भी साफ़ स्रोतें मिलते रहेंगे.
सबसे महत्वपूर्ण बात समझने की ये है कि उर्जा भरपूर है ,
और हमें वातावरण को दूषित करने की कतई जरुरत नहीं है
और न ही हमें इस उर्जा की वसूली करने की जरुरत है.
अब वाहनों की बात करें तो
आज के समाज में जो गाड़ियाँ और हवाई जहाज
हम ज्यादातर इस्तिमाल करते हैं
उन्हें तेल जलाने की जरुरत पड़ती है जिससे प्रदुषण होता है .
गाड़ियों को बिजली से चलाने की तकनीक
जिससे वो एक बार में 100 मील
(162 किलोमीटर) प्रति घंटे की रफ़्तार से
200 मील प्रतिघंटे तक की रफ़्तार से जा सकती हैं
दुनिया में मौजूद है और आज से नहीं कई सालों से,
लेकिन "बैटरी पेटेंट" जो की बड़ी बड़ी तेल कंपनियां अपने काबू में
करके रखी हुईं है जिससे उनकी बाज़ार में हिस्सेदारी बनी रहे
और साथ में तेल कंपनियों की राजनीती की वजह से
ये तकनीक आम आदमी की पहुच से दूर है.
ऐसा करने का कारण भ्रष्ट मुनाफा .
कमाने के आलावा और कुछ नहीं है
जब कि सभी वाहन साफ़ शुद्ध बिना प्रदुषण
की बिजली से चलाये जा सकते बिना एक बूँद तेल खर्च किये.
जहाँ तक हवाई जहाज का सवाल है , अब वक़्त आ गया है
कि हमें समझ जाना चहिये कि सफ़र तय करने का यह माध्यम
बहुत बोझिल, प्रदुषण वाला, धीमा और बेअसर है.
इस तरह की रेलगाड़ी को "मैग लेव" कहते हैं,
वो चलने के लिए चुम्बकों का इस्तमाल करती है,
और चुम्बकीय क्षेत्र की उपर तैरती रहती है
और हवाई जहाज के मुकाबले सिर्फ दो प्रतिशत उर्जा इस्तमाल करती है ,
इस ट्रेन में पहिये नहीं होते है इसलिए कुछ भी घिसने का सवाल नहीं है
जापान में इस तरह की एक ट्रेन है जो
361 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से चल सकती है.
हालाँकि ये ट्रेन बहुत पुरानी तकनीक पर बनाई गयी थी।
एक संगठन है "ET3"
जिसका सम्बन्ध "वीनस प्रोजेक्ट " से भी है
उसने एक अच्छी मैग-लेव ट्रेन बनाई है जो
4000 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से चल सकती है
एक स्थिर, घर्षण मुक्त नली में जो
जमीन पर और पानी के नीचे भी चल सकती है.
कल्पना कीजिये कि आप लॉस एंजेलीस से न्यूयॉर्क लंच के लिए जा सकते हैं ,
या फिर वाशिंगटन डी.सी. से बेजिंग , चीन, 2 घंटे में पहुंच सकते हैं।
यही भविष्य है महाद्वीपों के अंदर और उनके बीच में सफ़र करने का.
तेज, साफ़ और आज जितनी उर्जा का इस्तेमाल करते हैं .
उससे बहुत कम उर्जा का प्रयोग करके ऐसा हो सकता है
असल में ये नयी 'मेग लेव' टेक्नोलोजी ,
बैटरी स्टोरेज टेक्नोलोजी और "जियोथर्मल बिजली" के रहते
किसी जीवाश्म ईंधन, जैसे "पेट्रोल, कोयला, आदि." इस्तमाल करने की जरुरत नहीं है।
और हम ये सब कुछ अभी कर सकते हैं .
अगर हम मुनाफे की संरचना से खुद को अपाहिज न बना रखें
"काम".
अब अमेरिका फ़ैसिस्टवाद की तरफ झुका हुआ है,
वह अपने कट्टर धार्मिक विचारधाराओं के कारण
अपने फ़ैसिस्टवाद नजरिये को बनाए रखना चाहता है
अमेरिकी उद्योग एक फ़ैसिस्टवाद उद्योग संस्था है.
जब आप ऑफिस घुसते वक़्त रजिस्टर में अपने काम पर आने का टाइम लिखते हैं, .
तब आप एक तानाशाही में चले जाते हैं
हमें कर्म करने की महत्वता समझाई जाती है ,
और मैं इसे पैसे की गुलामी के रूप में देखती हूँ।
लोगों को बड़े होते हुए ये समझाया जाता है कि आप पसीना बहा कर
अपना जीवन व्यापन करेंगे i .इस तरह से रोका जाता है
लोगों को कष्ट से मुक्त करने से ,
एक जैसा उबाऊ .काम को रोकने से जो लोगो की बुद्धि को नष्ट कर देती है
आप उनकी आज़ादी छीन रहे हैं .
हमारे नए समाज में जो "संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था" है
मशीनें आदमी को आजाद करेंगी।
देखिये , हम इसकी कल्पना नहीं कर सकते हैं
क्योंकि ऐसी दुनिया हमने देखी नहीं है।
ऑटोमेंशन ( स्वचालन )
अगर हम अपने इतिहास को देखें
तो हमें साफ़ दिखता है कि स्वचालित मशीनें
आदमी की जरुरत को धीरे धीरे ख़तम कर दे रही है।
लिफ्ट चालक जैसे छोटी छोटी जरूरतों से लेकर
सम्पूर्ण स्वचालित गाड़ी उत्पादन फैक्ट्री तक , जैसे जैसे
'स्वचालित' मशीनें आ रही हैं आदमी की जरुरत
कम से कम होती जा रही हैं।
इससे एक गंभीर टकराव पैदा होता है ,
जो पैसे पे आधारित प्रणाली की असत्यता को प्रमाणित करता है
क्योंकि आदमी के रोजगार का सीधा सीधा टकराव ,
तकनीकी विकास से होता है
जिसका मतलब अगर आप कंपनियों की पैसे कमाने की प्राथमिकता को मान के चलें तो
समय के साथ साथ वे मनुष्यों की जगह
हमेशा मशीनें लेती रहेंगी।
जब कम्पनियाँ नयी मशीनों को खरीदते हैं ,
आदमी के काम का समय कम करने की बजाये आदमी ही कम कर देती है
आपकी नौकरी चली जाती है, तो जाहिर है कि मशीनों से डरना आपके लिए लाज़मी है .
एक उच्च नकनीकी "संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था" में
ये कहना गलत नहीं होगा की 90 % नौकरियाँ नहीं रहेंगे,
वे सब काम मशीने करेंगी ,
इंसान आज़ाद होंगे और गुलामी के बिना जी सकेंगे
क्योंकि टेक्नोलोजी का उद्देश्य ये ही है.
और जैसे जैसे समय बीतेगा, नवीनतम टेक्नोलोजी
और "नैनो टेक्नोलोजी " जैसी चीजों के साथ
वो दिन भी ज्यादा दूर नहीं कि कठिन
चिकित्सा प्रक्रिया भी मशीनें कर देंगी
और आज जितना इंसान कर सकते हैं
उससे ज्यादा कारगर सिद्ध होंगी
रास्ता साफ़ है लेकिन पैसे की इस संरचना ने
ये विकास का रास्ता रोक रखा है, क्यूंकि
मनुष्यों के लिए नौकरियों की जरूरत है ताकि वे जीवित रह सकें।
अतः निष्कर्ष यह है कि इस संरचना को बदलना ही पड़ेगा
वर्ना हम कभी आजाद नहीं हो सकेंगे
और तकनीकीकरण हमेशा अपँग ही रहेगा.
हमारे पास आज वो मशीनें हैं जो नाली साफ़ करने का काम
कर सकती हैं जिससे आदमी इन कामों से मुक्त हो सकता है।
तो समझिये कि मशीन इंसान के ही ज्यादा कारगर हाथों जैसे हैं .
इसके आलावा बहुत से ऐसे काम जिनका ,
"संसाधन आधारित समाज" में कोई आधार ही नहीं रहेगा
जैसे पैसे का प्रबंधन, विज्ञापन
और कानूनी कार्यवाही से जुड़े काम
पैसों के बिना ज्यादातर अपराध
जो आज होते हैं वो नहीं होंगे
क्यूंकि लगभग हर तरह के अपराध या तो पैसों की व्यवस्था से
सीधा जुड़ा होता है या फिर पैसे की कमी से उत्पन्न मानसिक
बीमारी के कारण होता है
इसीलिए किसी कानून की भी जरुरत नहीं पड़ेगी.
एक संकेत " ध्यान से चलायें , सड़क गीला होने पर फिसलाऊ होता है "
डालने के बजाय, रास्ते पर घर्षण पैदा करने वाले पदार्थ
डालनी चाहिए ,इससे गीला होने पर सड़क फिसलाऊ नहीं रहेगा
और जब एक व्यक्ति नशे में मोटर में बैठता है
और मोटर तेजी से हिलता है, तो उसे रोकने के लिये,
हम एक पेंडुलम इस्तमाल कर सकते हैं,
जो आगे पीछे डोलता है, और गाड़ी को किनारे ले जा कर रोक देता है।
कानून नहीं है ये , समाधान है।
गाडी में सोनार और रेडार लगाइये ताकि गाडियां एक दुसरे को नहीं मार सकेंगे।
मानव निर्मित कानून एक प्रयास है जिससे हम
समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करते हैं,
जब हमें उसे सुलझाने का कोई और तरीका नहीं मालूम रहता -
इसलिए कानून बनाते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका, इस ग्रह पर सबसे निजीकरण,
पूंजीवादी देश है, और इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए ,
कि दुनिया में सबसे बड़ी जेल की आबादी है इस देश में है
और हर साल बढ़ रहा है।
गणना की गयी है कि, अधिकतर लोग इनमें अशिक्षित हैं,
और वे गरीब एवं वंचित समाज से आते हैं।
और इस गलत प्रचार के विपरीत, असल में समाज की परिस्थितियाँ हैं
जो इंसान को उन्हें अपराधी और हिंसक व्यवहार के लिए प्रलोभित करते हैं।
हालांकि समाज, इस बात के संबंध में
दूसरी ओर मुँह मोड़ लेता है
कानूनी और जेल प्रणाली, कुछ उदाहरण हैं कि ,
कैसे हमारा समाज मानव व्यवहार के
असली कारणों को टालता है
हर साल अरबों खर्च कर रहे हैं जेलों और पुलिस पर,
जबकि केवल एक अंश खर्च करते हैं गरीबी रोकने के लिए,
जो कि प्राथमिक तौर से
अपराध के लिए जिम्मेदार है।
और, जब तक हम एक आर्थिक प्रणाली में जी रहे हैं,
जो कमी यानि अभाव पैदा करता है
अपराध कभी दूर नहीं होगा।
प्रोत्साहन
अगर लोगों के पास जीवन की जरूरतों के लिए चीज़ें होंगी,
और अगर बिना गुलामी, ऋण, व्यापार के जी सके ,
तब वे बहुत अलग तरीके से आचरण करेंगे।
आप ये सब चीज़ें एक कीमत के बिना ही उपलब्ध कराना चाहते है .
पर लोग कहेंगे , कीमत होना जरुरी है वरना , लोगों को काम के लिए प्रेरित कैसे करेंगे?
अगर एक आदमी को बिना किसी प्रयास के सब कुछ मिल जाता है, तो वह सिर्फ आराम करेगा।
यह एक झूठ है, जिसे फैलाया गया है ।
हमारी संस्कृति में लोगों को यह विश्वास दिलाया जाता है,
कि पैसा प्रोत्साहन पैदा करता है।
अगर लोगों को ज़रुरत की हर चीज़े मिल जाती हैं, तो वे मेहनत क्यों करेंगे?
वे प्रोत्साहन खो देंगे।
और यह आपको सिखाया जाता है ताकि आप पैसे की प्रणाली को समर्थन करें।
जब आप पैसे को परिदृश्य से बाहर लेते हैं,
वहाँ विभिन्न प्रोत्साहन होंगे।
जब लोगों को जीवन की आवश्यकताओं की चीज़ें मिल जाती हैं,
उनके प्रोत्साहन बदल जाते हैं।
तब हम सोचते है कि यह चाँद और सितारे क्या हैं?
नए प्रोत्साहन उत्पन्न होते हैं।
यदि आप एक चित्र बनाते हैं, जो आपको पसंद है,
आपको इसे किसी को देने में खुशी मिलेगी, बेचने में नहीं।
शिक्षा
मेरे ख्याल से वर्तमान में, लोगों को अनिवार्य रूप मे नौकरी दिलवाने के लिये
शिक्षा दी जाती है।
और यह एक विशेष विषय ही सीख पाते है बाकि सब कुछ नहीं सीखते ।
लोगों को विभिन्न विषयों के बारे में नहीं पता रहता है
लोगों को अगर काफी विषयों के बारे में जानकारी
रहता तो सरकार उन्हें युद्ध में नहीं भेज पाती ।
मुझे लगता है कि शिक्षा ज्यादातर दुहराव है
और समस्याओं को हल करने के लिए शिक्षा नहीं दिया जाता ।
उन्हें तर्कशक्ति और भावनात्मक रूप से, अपने क्षेत्र में गंभीरता के साथ सोचने
के लिये तैयार नहीं किया जाता है.
एक संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था में, शिक्षा बहुत अलग होगा.
इस नए समाज की प्रमुख चिंता का विषय है मानसिक विकास
और प्रत्येक व्यक्ति को प्रेरित करना उसके उच्चतम क्षमता प्राप्ति के लिए।
हमारे दर्शन के अनुसार, हमारे लोग जितने होशियार होंगे, दुनिया उतनी ही खुशहाल होगी ,
क्योंकि हर एक व्यक्ति योगदान करेगा ।
हमारे बच्चे जितने होशियार होंगे, हमारा जीवन उतना ही बेहतर होगा।
क्योंकि वे उतना ही रचनात्मक रूप से परियावरण के प्रति योगदान करेंगे
और हमारे जीवन के प्रति। क्योंकि एक संसाधन
आधारित व्यवसथा मे हम जो भी चिंतन करते हैं,
बह समाज के लिए लागू किया जाएगा, कोई रुकावट नहीं होगी
सभ्यता
देशभक्ति, हथियार, सेनाएं, युद्ध,
ये सभी जताते है कि हम आज भी सभ्य नहीं है
बच्चे अपने माँ बाप से पूछेंगे
"क्या आप मशीनों की ज़रुरत देख नहीं पाए?"
"पापा, क्या आपको दिखा नहीं की कमी पैदा करने से
युद्ध होना निश्चित था?" क्या आपको ये दिखा नहीं?
हाँ हलाकि बच्चे में ये समझ होगी कि आप नासमझ थे और
केवल स्थापित संस्थाओ की सेवा करने के लिए पैदा किया गए थे
इतिहास के पन्ने, हमारी ये नफरत से भरी,
बीमार सभ्यता के बारे में क्या बताएगी ?
उनमे तो केवल लिखा होगा की कैसे युद्ध और हिंसा से
बड़े देश, छोटे देशो का शोषण करते थे
इतिहास बताएगा की कैसे समाज से भ्रष्ट व्यवहार ,
के ख़त्म होने के पश्चात् ही सभ्य दुनिया की शुरुआत हुई
तब जा कर सभी देशो ने मिलकर काम करना शुरू किया
एक जुट हो कर पूरी मानव जाती के हित की ओर,
बिना किसी के गुलाम हुए
आगे बढ़ना शुरू किया
किसी तरह की सामाजिक, आर्थिक, या शिक्षा के मामले में
या किसी भी तरह की ऊच नीच, दुनिया के चेहरे से मिटा दिया गया
"राष्ट्र कुछ नहीं करता क्योकि राष्ट्र जैसा कुछ है नहीं "
क्यूंकि राष्ट्र जैसा कुछ है ही नहीं
मैं जिस सिस्टम की बात कर रहा हूँ , एक संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था
बेदाग़ या परफेक्ट नहीं होगा पर आज के सिस्टम से काफी बेहतर होगा
हम कभी परफेक्ट नहीं हो सकते
"ये धरती ही मेरा देश है ... और अच्छा कर्म करना ही मेरा धर्म है "
"और मेरा धर्म सबके हित में है"
- थोमस पेन - 1737-1809
हमारे सामाजिक मूल्य जो कि
लगातार बढ़ती युद्ध, भ्रष्टाचार,
शोषणकारी नियमों , सामाजिक भेदभावों , विनाशकारी अंधविश्वासों ,
पर्यावरण कि विनाश्कारिता , और एक निष्ठुर
शासक वर्ग से बना है , मूल रूप से ये सभी
हमारे सामूहिक अज्ञानता का फल है
प्रकृति के दो महत्वपूर्ण पहलुओं को ना समझ पाने की सामूहिक अज्ञानता,
प्राकृतिक नियम के वो दो पहलु है - बदलाव और सहजीवी होना
प्रकृति की बदलाव के पहलु का मतलब है कि सारे सिस्टम
चाहे वो हो शिक्षा , समाज, विज्ञान , दर्शन
या किसी भी तरह की कोई रचना
जब बिखरने लगती है तो उनमे लगातार बदलाव आता है
तो उनमे सहज ही परिवर्तन शुरू हो जाता है
आज हम जिसे आम समझते है
जैसे मोबाईल टेलीफ़ोन , इंटरनेट और मोटर गाड़ियाँ
प्राचीन युग में इनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी
ऐसे ही भविष्य में भी ऐसी तकनीक ,
सोच और सामाजिक संरचनाये उभरेंगे
जिन्हें आज हम सोच भी ना पाएं
अल्केमी से लेकर हम केमिस्ट्री तक पहुचे है
चपटी पृथ्वी की द्रष्टिकोण से लेकर गोल पृथ्वी की द्रष्टिकोण ,
झाड फूक से लेकर आधुनिक चिकित्सा विद्या तक
हम विकास कर चुकें हैं
इस विकास का कोई अंत नहीं है
और इसी बात की जागरूकता
हमें विकास और समृद्धि के सतत पथ पर ले जाती है.
ज्ञान में कभी स्थिरता नहीं होती
बल्कि यह सभी प्रणालियों के विकास की अंतर्दृष्टि है
यह हमें समझना चाहिए.
मतलब हमें नई जानकारी के लिए हर वक्त खुले दिमाग से सोचना होगा ,
भले ही वह हमारी मौजूदा मान्यताओं और हमरी पहचानों
को खतरे में डालती हो.
अफसोस की बात है, समाज आज इसे पहचानने में विफल रहा है
और स्थापित संस्थाएं पुरानी सामाजिक संरचनाओं के संरक्षण के द्वारा
विकास को पंगु बनाना जारी रखे हुए है.
इसके साथ ही, जनता बदलाव के डर से ग्रस्त है.
क्योंकि उनकी शिक्षा स्थिर ज्ञान को मान कर चलती है
और किसी की मान्यताओं को चुनौती देने को
आमतौर पर अपमान और आशंका से देखा जाता है .
क्योंकि गलत साबित होने को , खुद की विफलता माना जाता है , ये धारणा गलत है .
जबकि वास्तव मैं गलत साबित होने का उत्सव मनाया जाना चाहिए.
क्योंकि यह जागरूकता को आगे बढ़ाते हुए , किसी के समझ को
और ऊँचा उठाता है.
तथ्य यह है की बुद्धिमान इन्सान जैसी कोई चीज़ है ही नहीं,
क्योंकि यह सिर्फ समय की ही बात है
इससे पहले कि उनके विचारों का नवीनीकरण या बदलाव या नाश हो जायेगा.
और मान्यताओं को अंधों की तरह पकड़े रहने की यह इच्छा ,
परिवर्तन की सम्भावना रखने वाली जानकारी से बचाए रखना,
बौद्धिक विलासिता के एक रूप से कुछ कम नहीं है.
पैसे की प्रणाली इस भौतिकवाद को बढ़ावा देती है
न केवल संरचनाओं के आत्म-संरक्षण के द्वारा,
बल्कि उन अनगिनत लोगों के द्वारा भी जिन्हें
अन्धविश्वास की तरह इन संरचनाओं को
कायम रखने के लिए शिक्षित किया गया है,
और इसलिए वे वर्तमान स्थिति के स्व-नियुक्त संरक्षक बन गए हैं.
भेड़ें जिन्हें अब नियंत्रित करने के लिए मालिक की ज़रूरत नहीं रह गई है.
क्योंकि परम्पराओं का अस्वीकार
करने वालों का बहिष्कार करके वे एक दुसरे को नियंत्रित करती हैं
बदलाव का विरोध और मौजूदा संस्थानों की रक्षा करने वाली यह प्रवृति
खुद की पहचान, सुविधा, सत्ता और लाभ के खातिर
सत्ता और लाभ के खातिर
असंतुलन पैदा करेगी
और आगे केवल असंतुलन बढ़ेगा
समाज बिखरेगा और अंत में
विनाश होगा
बदलाव का समय आ गया है.
इंसान जब शिकारी और संग्रहकर्ता थे , तबसे
कृषि क्रांति तक ,
फिर औद्योगिक क्रांति तक,
बदलाव का आकार स्पष्ट है.
एक नई सामाजिक व्यवस्था के निर्माण का समय आ गया है
जो हमारी आज की समझ को प्रतिबिंबित करता हो.
पैसों की प्रणाली उस समय का एक उत्पाद है
जिस समय अभाव एक वास्तविकता थी.
अब, प्रौद्योगिकी के इस युग में, यह समाज के लिए प्रासंगिक नहीं रही
साथ ही वो अव्यवहार , जो आभाव मैं प्रकट होता है.
इसी तरह, दुनिया पर हावी विचारधाराएं जैसे की आस्तिक धर्म
वही बेतुके सामाजिक अप्रासंगिकता के साथ चल रहे हैं .
इस्लाम, ईसाई, यहूदी धर्म, हिंदू धर्म और दुसरे सभी धर्म
व्यक्तिगत और सामाजिक विकास मे बाधा के रूप में मौजूद हैं.
क्योंकि प्रत्येक समूह एक बंद दुनिया वाले नज़रिए को बढावा देता है.
और इस तरह की सिमित नज़रिए वाली समझ, जिसे वे स्वीकार करते है,
एक उभरते हुए ब्रह्माण्ड मे संभव नहीं है
फिर भी धर्म
इस जागरूकता को उभरने से रोकने मे समर्थ रहा है
और ऐसा धर्मों के शिष्यों पर आस्था के भ्रम का प्रभाव डाल कर किया गया है.
जहाँ तर्क और नई जानकारी को धिक्कार दिया जाता है
परंपरागत प्राचीन मान्यताओं की पक्ष मे
भगवान की धारणा ,
प्रकृति के विवरण का एक तरीका रहा है .
शुरुआती दिनों में लोगों को सही से पता नहीं था
कि चीज़े कैसे बनती हैं,
कि प्रकृति कैसे काम करती है.
इसलिए उन्होंने अपनी छोटी मोटी कहानियों का आविष्कार किया,
और अपनी छवि में भगवान् को बना दिया .
एक आदमी जिसे गुस्सा आता है
जब लोग अच्छा आचरण नहीं करते हैं, वो भूकंप और बाड़ पैदा करता है
और वे कहते हैं कि यह भगवान् ने किया है.
धर्म के दमित इतिहास पर एक हलकी नजर डालने
से पता चलता है कि धर्म कि मूलभूत काल्पनिक कथाएं भी
समय के प्रभाव के साथ उभरती हुई विक्सित परिणितियाँ हैं.
उदाहरण के लिए, ईसाई धर्म का एक प्रमुख सिद्धांत
ईसा मसीह का मरना और उनका पुनर्जीवित होना .
यह धारणा इतनी महत्वपूर्ण है कि बाइबल में लिखा है की
"अगर ईसा मसीह नहीं जी उठे
तो हमारे उपदेश व्यर्थ हैं और हमारी श्रद्धा भी व्यर्थ है"
लेकिन इस बात को सत्य मान लेना बहुत मुश्किल है,
क्योंकि न सिर्फ इस अलौकिक घटना का
धर्मनिरपेक्ष इतिहास में कोई मुख्य स्रोत है,
बल्कि यह जानकारी कि ईसाई धर्म से पहले भी भारी संख्या में मुक्तिदाताएं थें जो
कि ईसा मसीह की तरह ही मरे और जी उठे,
तुरंत इस कहानी को पौराणिक कथाओं के क्षेत्र मैं रख देती है.
शुरुवाती चर्च के लोग जैसे टरटुलियन
इन तर्कों को तोड़ने के लिए काफी हद तक गए,
यहाँ तक कि यह भी दावा किया कि शैतान ने इन समानताओं को जन्म दिया था .
दूसरी शताब्दी में उन्होंने कहा:
"शैतान जिसका काम सत्य को बिगाड़ना है,
ईश्वरीय संस्कारों जैसी ही परस्थितियों की नक़ल करता है.
वह अपने शिष्यों को बप्तिस्मा देता है और उनके पापों को धोने का वादा करता है ...
वह रोटी की आहुति देकर उत्सव मनाता है .
और मृतोत्थान का एहसास दिलाता है
इसलिए हमें शैतान की इस धूर्तता को समझना चाहिए ,
जिसने परमात्मा की कुछ चीजों की नक़ल की है."
असल में
जब हम इस ख्याल को छोड़ दें, कि, इसाई कहानियां,
यहूदी धर्म, इस्लाम और अन्य सभी
असल में इतिहास रहीं है,
और उन्हें उनकी वास्तविकता में स्वीकार कर लें,
जो कि सिर्फ कई धर्मों से ली हुई रूपकात्मक अभिव्यक्ति है,
हम पाते हैं की एक बात सभी धर्मों में कही गई है.
और सारे धर्मों के यही एकजुट करने की पहलु को
मान्यता देने की और सराहने की जरूरत है.
धार्मिक विश्वास ने किसी भी अन्य विचारधारा के मुकाबले
ज्यादा मदभेद और विखंडन पैदा किया है
अकेले ईसाई धर्म में 34,000 से अधिक विभिन्न उपसमूहों है.
बाइबल अलग अलग व्याख्या के आधीन है .
जब आप इसे पढ़ते हैं , तो कहते हैं
"मुझे लगता है कि इसा मसि यह कहना चाहते थे , मुझे लगता है कि जोब के कहने का मतलब वह था."
"अरे नहीं! उनका शायद यह मतलब था . "
तो अब आपके पास Lutheran है , Seventh-day Adventist है, Catholic है,
और एक विभाजित चर्च, कभी चर्च नहीं हो सकता
और एक विभाजित चर्च , कभी चर्च नहीं हो सकता
और विभाजन की यही बात,
जो सभी धर्मों का ट्रेडमार्क है,
हमें हमारी जागरूकता की दूसरी विफलता की तरफ लाती है.
अलगाव की गलत धारणा
जीवन के सहजीवी रिश्ते की अस्वीकृति के माध्यम से.
सभी प्राकृतिक प्रणालियों के विकास होने की समझ को छोड़ के भी
वास्तविकता के सभी विचारधाराएं जिन्हें निरंतर विकसित किये जायेंगे,
बदले जायेंगे, और नाश भी किये जायेंगे ,
हमें यह भी समझना चाहिए की सारी प्रणालियाँ , वास्तविकता में
केवल बातचीत के खातिर, आविष्कार किये गए शब्दों के टुकड़े हैं .
क्योंकि प्रकृति में स्वतंत्रता जैसी कोई चीज नहीं है.
सम्पूर्ण प्रकृति एक संयुक्त प्रणाली है जहाँ सब कुछ एक दुसरे पर निर्भर है
सारी प्राकृतिक घटनाएं अपने में एक कारण और प्रतिक्रिया होती है पर एक केंद्रित सम्पूर्णता में ही अवस्थित होते हैं
हमको पर्यावरण से जोड़ने वाले तार, हमें नहीं दीखते,
इसलिए, इधर उधर भटकते हुए हमें ऐसा लगता है कि हम स्वतंत्र हैं...
ऑक्सीजन हटा देने पर हम सब तुरंत मर जायेंगे.
पेड़ पौधे हटा देने पर हम मर जायेंगे.
और सूर्य के बिना, सभी पौधों मर जायेंगे.
इसलिए हम सब जुड़े हुए हैं.
हमें इस संयुक्तता को खाते में लेके चलना होगा
यह सिर्फ इस ग्रह पर एक मानव अनुभव नहीं है,
यह एक कुल अनुभव है.
और हम जानते हैं कि हम पौधों और जानवरों के बिना जीवित नहीं रह सकते.
हमें पता है कि हम इन चार तत्वों के बिना जीवित नहीं रह सकते ..
तो फिर, हम कब इन्हें वास्तव में खाते में लेना शुरू करेंगे?
इसी को सफल होना कहते हैं
सफलता निर्भर करती है इस पर, कि हम कितने अच्छे से अपने आस पास की चीजों से सम्बंधित है
में बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ की मेरा पोता
बिलकुल उम्मीद नहीं कर सकता हैं कि उसे विरासत में एक स्थाई
शांतिपूर्ण, स्थिर, सामाजिक रूप से उचित दुनिया मिलेगी
जब तक हर बच्चा जो
इथियोपिया, बोलीविया, इंडोनेशिया, फिलिस्तीन, इसराइल, में पल रहा है
जब तक वह भी यह ना चाहे, ऐसा नहीं होगा I
हमें पुरे समुदाय का ख्याल रखना होगा
वर्ना हमें गंभीर समस्याओं का सामना करना पढ़ेगा
और अब हमें पूरी दुनिया को ही एक समुदाय की तरह देखना जरूरी है
और उसी तरह एक दुसरे का ख्याल रखना चाहिए.
और यह समुदाय सिर्फ मनुष्यों का नहीं है
यह समुदाय है पौधों का, जानवरों का, और तत्वों का.
और हमारे लिए यह समझना अत्यंत आवश्यक है.
यही है जो हमें खुशी भी देगा, और आनंद भी
यही है जो अभी हमारे जीवन से लापता है.
हम इसे आध्यात्मिकता कह सकते हैं, लेकिन सच यही है कि
की आनंद एक दूसरे से जुड़े रहने से आता है
यही हमारा दैविक स्वभाव है. यह हमारा वह हिस्सा है
जिसे वास्तव में हम महसूस कर सकते हैं
और ये एक बेहद ख़ूबसूरत एहसास है और आप इसे समझ सकते है जब आप इससे रूबरू होते हैं
यह आपको पैसो से नहीं मिलता, यह आपको एक - दूसरो से जुड़े रहने से मिलता है.
अब अगर यह इस देश के लिया खतरा नहीं है.
हम कैसे परमाणु हथियारों का निर्माण जारी रख पायेंगे,
आप समझ रहे है मेरा मतलब?
हथियार उद्योगों का क्या होगा
अगर हमें यकीन हो जाये , हम सब एक है ?
इस अर्थव्यवस्था की तो वाट लग जाएगी .
अर्थव्यवस्था जो वैसे भी नकली है.
जो सच में बहुत बेकार होगा.
आप समझ सकते हैं ,क्यों सरकार परेशान हो रही है ...
शर्तहीन प्रेम का सामना करने के विचार से. "
"मुझे विश्वास है कि निहत्थे सत्य और शर्तहीन प्रेम
का ही वास्तविकता में अंतिम शब्द होगा"
- डॉ. मार्टिन लूथर किंग - जूनियर 1929 - 1968
एक बार जब हम समझ जाते हैं कि हमारी खुद की अस्तित्व
दुनिया की बाकी हर चीजों की अखंडता पर
पूरी तरह से निर्भर हैं,
हम वास्तव में तब शर्तहीन प्रेम का मतलब समझ जाते हैं.
प्यार का मतलब है एक दूसरे का पूरक होना और जहाँ हम आपके
और आप हमारे रूप में देखते हैं, बिना किसी शर्त के,
क्योंकि वास्तव में हम सब एक हैं.
अगर यह सच है कि हम सब एक सितारे के केंद्र से उत्पन्न हुए हैं,
तो हमारे प्रत्येक के शरीर के हर परमाणु एक ही सितारे के केंद्र से हैं,
इसीलिये हम सब एक हैं.
यहां तक कि एक कोक मशीन या एक सिगरेट का
अंतिम भाग भी एक ही सितारे के केंद्र से आया हुआ परमाणु से ही बना है.
उनका हजारों बार पुनर्नवीनीकरण किया गया है,
जैसे कि आपको और मुझे किया गया है I इसीलिए हर जगह सिर्फ हम ही हैं.
तो फिर इसमें डरने की क्या बात है?
हमें सांत्वना की क्या जरूरत है?
कुछ भी नहीं. डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि हम सब एक हैं.
समस्या यह है कि जैसे ही हम पैदा होते हैं हमें अलग कर दिया जाता है
एक नाम देकर, एक अलग पहचान देकर
और हमें हमारी एकता से जुदा कर दिया जाता है, और इसी तरह धर्म हमारा शोषण करता है.
कि लोगो को इस समग्रता का हिस्सा बनने कि तड़प है.
इसलिए वे उसका शोषण करते है. वे उसे भगवन कहते है और वे कहते है कि यह उसके नियम है.
और मुझे लगता है कि यह क्रूरता है.
मुझे लगता है कि आप धर्म कि अनुपस्थिति में भी यह कर सकते हैं .
कोई दुसरे गृह का निवासी अगर मानव समाज के मतभेदो की जांच करे
तो उसे हमारे मतभेद हमारी समानताओं की तुलना मैं तुच्छ लगेंगे...
हमारे जीवन, हमारा अतीत और हमारा भविष्य सूरज, चाँद और सितारों से बंधे हैं ...
हमने आज परमाणुओं को देख लिया है जिनसे सारी प्रकृति बनी है और जिन बलों ने इस काम को रूप दिया है..
और हमने, हम जो की ब्रह्माण्ड की स्थानीय आखें और भावनाओ को अवतरित करते है,
कम से कम हम अपने मौलिक आधार के बारे मैं सोचना शुरू कर दिया है... सितारों से बने हुए ,
अरबो परमाणुओं के संगठन को हम समझना शुरू किये हैं ,
प्रकृति के विकास के ऊपर विचार कर रहे है
, उस लम्बी राह को अनुरेखित कर रहे है जिससे चेतना पृथ्वी पर पहुची है...
हमारी वफादारी पृथ्वी कि प्रजातियों के लिए है. हम पृथ्वी के लिए बोलते हैं.
हमारी जीवित रहने और पनपने कि वजह सिर्फ हम नहीं है
बल्कि यह प्राचीन और विशाल ब्रह्माण्ड और यह अनंत भी है जहा से हम फलित हुए है.
हम एक प्रजाति हैं. हम सितारों कि धुल है जो सितारों के प्रकाश पर जीवित है
- कार्ल - सेगन 1934 - 1996
वक़्त आ गया है कि एकता का दावा किया जाए
हमारे पुराने ढंग कि सामाजिक व्यवस्थाओ के ढांचे अब टूट गए है,
और साथ में काम करके रचना करनी है एक स्थायी,
वैश्विक समाज की, जहां सब का ख्याल रखा जा सके और जहां सभी सही मायने में मुक्त हों .
आपकी निजी मान्यताएं, जो कुछ भी वे हो,
अर्थहीन हैं जब सवाल जीवन की आवश्यकताओं का आता है.
हर मानव नग्न पैदा होता है,
और उसे गर्मी, भोजन, पानी और आश्रय की आवश्यकता होती है.
बाकी सब कुछ सहायक है.
इसलिए, अभी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि
पृथ्वी के संसाधनों का बुद्धिमानी से प्रबंधन किया जाए .
यह एक मौद्रिक प्रणाली में कभी पूरा नहीं किया जा सकता है,
क्योंकि लाभ के लिए सोचना यानि खुदके के हित के लिए सोचना है
और इसलिए असंतुलन होना अनिवार्य है.
इसके साथ ही, राजनेता भी बेकार हैं.
क्योंकि जीवन में हमारी वास्तविक समस्याएँ राजनीतिक नहीं, तकनीकी हैं.
इसके अतिरिक्त मानवता के अलग अलग विचारधाराएँ जो हमें एक दुसरे से दूर करते हैं ,
जैसे धर्म , उसके मूल्यों , उद्देश्यों और सामाजिक प्रासंगिकता का
समाज में मज़बूत प्रतिविम्बता की आवश्यकता है।
उम्मीद है कि, समय के साथ साथ,
धर्म - विलासिता और अन्धविश्वासी रवैया
से हटकर दर्शन के क्षेत्र में उपयोगी कदम रखेगा.
सच तो यह है कि, समाज आज पिछड़ा हुआ है
क्योंकि नेताएं लगातर, सृजन, एकता और प्रगति के बजाय,
आरक्षण और अलगाव की सुरक्षा के बारे में बात करते हैं।
सिर्फ अमेरिका सालाना रक्षा के लिए .
5000 करोड़ डॉलर खर्च करती है
यह राशि, उच्च विद्यालय के हर एक वरिष्ट को चार साल के लिए
महाविद्यालय में भेज ने के लिए पर्याप्त है
1940 में मैनहट्टन परियोजना में,
सामूहिक विनाश के लिए पहली बार यथार्थ हथियार उत्पादन किया गया .
इस कार्यक्रम में 130000 लोगों को नियुक्त किया गया, जिससे चरम वित्तीय हानी सहनी पड़ी
ज़रा सोचिये हमारी दुनिया कैसी होती, अगर ये वैज्ञानिकों का समूह,
लोगों को मारने की परिकल्पना के बजाये,
दुनिया को आत्मनिर्भर और प्रचुर बनाने के लिए काम करते तो?
अगर उनका मकसद यह होता तो, हमारी ज़िन्दगी आज बहुत ही अलग होती.
सामूहिक विनाश के हथियार बनाने के बजाय,
अब वक्त है कि हम ज्यादा ही शक्तिशाली कुछ काम करें, जैसे कि,
जन - निर्माण के हथियार बनाना
हमारे सृजन करने की क्षमता ही हमारी सच्ची शक्ति है।
और जीवन की सहजीवी संबंधों की समझ के साथ हम सशस्त्र हैं,
जबकि बदलाव की प्रकृति द्वारा हमें निर्देशित किया जा रहा है
कि ऐसा कुछ भी नहीं है जो कि हम हासिल नहीं कर सकते हैं.
बेशक, हमे शक्तिशाली बाधाओं का सामना,
स्थापित सत्ता संरचना के रूप में करना पड़ता है, जोकि परिवर्तन से इंकार करता है.
इन संरचनाओं के केंद्र में है - मौद्रिक प्रणाली .
जैसे कि पहले बताया गया है, फ्रैक्श्नल रिजर्व सिस्टम ,
ऋण के माध्यम से गुलामी का एक रूप है,
जिससे समाज का सचमुच मुक्त होना असंभव है.
बदले में, मुक्त व्यापार के रूप में मुक्त बाज़ार पूंजीवाद,
ऋण का उपयोग करके , दुनिया को कैद और देशो को
व्यापार और राजनीतिक शक्तियों के आधीन बनाने के लिए हेरफेर करता है.
इन स्पष्ट अनैतिक मूल्यों के अलावा,
यह प्रणाली प्रतियोगिता पर आधारित है,
जो कि तुरंत सार्वजनिक भलाई के लिए
बड़े पैमाने पर सहयोग की संभावना को नष्ट कर देता है.
इसी कारण एक सच्ची वैश्विक स्थिरता के किसी भी प्रयास को शक्तिहीन कर देता है.
यह वित्तीय और कॉर्पोरेट ढांचे अब बेकार हो चले हैं,
और उनकी जरुरत को ख़त्म करना होगा
बेशक, यह कहना बेवकूफी होगा , कि, ,
व्यापार और वित्तीय अभिजात वर्ग के लोग इस विचार में सहमती देंगे
क्यूँकि इस विचार की सदस्यता से वह शक्ति और नियंत्रण खो देंगे.
इसलिए, शांति से एक बेहद रणनीतिक कार्रवाई की जानी चाहिए.
कार्रवाई के सबसे ताकतवर पाठ्यक्रम सरल है.
हमें अपने व्यव्हार को परिवर्तन करना पड़ेगा, .
ताकि सत्ता संरचना को, लोगों की इच्छा के सामने झुकना पड़े
हमे इस प्रणाली का समर्थन बंद कर देना चाहिए.
सिर्फ एक ही रास्ता है जिससे इस सिस्टम को बदला जा सकता है,
इसमें भाग न ले कर, और लगातार इसकी
अंतहीन खामियों और भ्रष्टाचार को सामने लाकर
मौद्रिक प्रणाली ऐसे आराम से नहीं बदली जाएगी,
क्योंकि हमारी सलाह और हमारे डिजाइन इसके विपरीत हैं.
इस प्रणाली को पूरी तरह से विफल होना पड़ेगा,
और लोगों को अपने चुने नेताओं में विश्वास खोना पड़ेगा.
यह एक महत्वपूर्ण मोड़ हो जाएगा
अगर वीनस प्रोजेक्ट एक संभावित विकल्प के रूप में पेश की गयी तो I
यदि नहीं, तो परिणाम डरावना हो सकता है.
गणनाओं से संकेत मिल रहें हैं कि अमेरिका दिवालिया होता जा रहा है.
संभावना है कि अमेरिका एक सैनिक तानाशाही की ओर मुड़ जायेगा
दंगे रोकने और पूरी सामाजिक व्यवस्थता को.
टूटने से बचाने के लिए
एक बार अमेरिका के बिखरते ही
अन्य सभी संस्कृतियाँ इसी तरह की घटनाओं से गुजरेंगे .
इस समय , दुनिया की वित्तीय प्रणाली
अपनी ही कमियों के कारण विनाश के कगार पर है .
2003 में मुद्राओं के नियंत्रक ने कहा
कि अमेरिका के राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
दस साल के अंदर बर्दाश्त के बाहर हो जाएगा.
इसका सैधांतिक मतलब ये है की अमेरिकी अर्थव्यवस्था दिवालिया हो जाएगी
और इसका पूरी दुनिया पर बड़ा गहरा असर पड़ेगा.
और पुराने आधार पर निर्धारित मौद्रिक प्रणाली
अपनी सैधांतिक सीमा पर पहुचने वाली है ,
बैंकों का दिवालिया होना जो आप देख रहें हैं वो सिर्फ शुरुवात है.
यही कारण है कि मुद्रास्फीति की दर आसमान छू रही है, हमारे ऋण रेकॉर्ड स्तर पर है
और सरकार और फेडरल रिजर्व नए पैसे को लगातार बहाते जा रहें हैं
ताकि भ्रष्ट स्थापना बनी रह सके,
क्युंकी बैंकों को बचाने का एक ही तरीका है ,
की नया पैसा बनता रहे,
और नया पैसा बनाने का तरीका है कि महंगाई और लोगों पर ऋण बढ़ता रहे.
ये सिर्फ समय की बात है जब सब कुछ बदल जायेगा
जल्द ही ऐसा होने वाला है जब लोग लोन लेना बंद कर देंगे
और ज्यादा लोग अपने वर्तमान लोन
को भी नहीं चूका पाएँगे
फिर पैसे का फैलाव बंद हो जाएगा
और बहुत बड़े पैमाने पर
पैसे की इस लंका का सिमटना शुरू हो जाएगा.
यह शुरू हो चूका है.
इसलिए, हमें इस वित्तीय विफलता को उजागर करने की जरूरत है,
और इसी विफलता का लाभ भी उठाना है .
आप सब के लिए यह कुछ सुझाव हैं,
बैंकिंग धोखाधड़ी को बेनकाब करिए.
सिटी बैंक, जेपी मॉर्गन चेज़ और बैंक ऑफ अमेरिका
भ्रष्ट फेडरल रिजर्व प्रणाली के भीतर ,
सबसे शक्तिशाली नियंत्रक हैं I
समय आ गया है कि इन संस्थाओं का बहिष्कार किया जाए.
यदि आप उनमें से किसी भी बैंक का खाता या क्रेडिट कार्ड रखते है,
तुरंत एक अन्य बैंक में अपने पैसे जमा कर दे
अगर इन बैंको से कोई बंधक(ऋण) है तो उसे कोई और बैंक के जरिये छुड़ाए
अगर आपके पास इनके शेयर हैं तो इन्हें बेच दें,
आप इनके लिए काम करते हैं तो नौकरी छोड़ दें.
ये इशारे अवमानना व्यक्त करेंगे उन
निजी बैंकिंग समिति के पीछे असली ताकत के लिए जिसे
फेडरल रिजर्व के रूप में जाना जाता है,
और पूरी बैंकिंग प्रणाली के धोखे के बारे में जागरूकता पैदा करिए
दूसरी चीज़ जो आप कर सकतें हैं, टीवी समाचार बंद करें.
खुद की जानकारी के लिए इंटरनेट पर स्वतंत्र समाचार
एजेंसियों का उपयोग करें
CNN,NBC,ABC,FOX और इनके जैसे बड़े न्यूज़ चैनल
वर्तमान स्थापना को बरक़रार रखने के लिए सारे समाचार को काँट छांट कर दिखाए जाते हैं.
वही चार कॉर्पोरशन सभी प्रमुख मीडिया को नियंत्रित करतें हैं
तो , बिलकुल सही जानकारी असंभव है I
इंटरनेट का येही एक बड़ा फायदा है
और यह शक्तिशाली मौद्रिक स्थापना अपनी नियंत्रण खोने लगी है
क्युंकी इन्टरनेट के द्वारा सूचना का मुक्त प्रवाह हो रहा है.
इसीलिए हम सबको इस इन्टरनेट को बचाना चहिये.
क्युंकी यही वास्तव में हमें बचा सकता है
तीन : कभी अपने आप को या अपने परिवार को या किसी को
कभी भी सेना में शामिल होने के लिए अनुमति न दें
यह एक बेकार संस्था है
एक प्रचलित स्थापना को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से प्रयोग की जाने वाली संस्था
जिसका अब कोई मतलब नहीं बनता है
अमेरिकी सैनिक अमेरिका के निगमों के लिए इराक में काम कर रहे थे , लोगो के लिए नहीं
मिडिया के द्वारा किये गए प्रचार से हमें विश्वास दिलाया जाता है की युद्ध स्वाभाविक है
और यह कि सैन्य संस्था सम्मानजनक संस्था है.
वैसे, अगर युद्ध स्वाभाविक है,
तो हर रोज 18 अमेरिकी सैनिक
युद्ध के बाद तनाव के कारन क्यूँ आत्महत्या करते हैं ?
अगर हमारे सैन्य पुरुष और महिलाएं इतने सम्मानित हैं
क्यों ऐसा है कि अमेरिका में बेघर हुए 25 % जनसंख्या यही सैनिक होते हैं ?
चौथी चीज़ जो आप कर सकतें हैं- ऊर्जा कंपनियों का समर्थन बंद करिए
ऊर्जा कंपनियों का समर्थन बंद करो,
यदि आप एक अलग घर में रहते हैं, बिजली, पानी के लिए सर्कार या मार्केट पर निर्भर होना बंद करिए
अपने घर को आत्म स्थायी बनाने का हर जरिया तलाश करें
स्वच्छ ऊर्जा के साथ.
सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा
अब लोगो के लिए सस्ते विकल्प होते जा रहे हैं,
और पारंपरिक ऊर्जा की लगातार बढती लागत को विचार में रखकर
यह समय के साथ एक सस्ता निवेश होगा.
यदि आपके पास गाड़ी है तो कोशिश कीजिये कि सबसे छोटी गाड़ी का प्रयोग करें
और कोशिश कीजिये कि उस गाड़ी को तेल की जगह
बिजली या किसी और स्वछ उर्जा से चला सकें,
इसके लिए पुराने उर्जा की जगह कई विकल्प मौजूद हैं.
पाँच - राजनितिक प्रणाली को अस्वीकार करें
लोकतंत्र का भ्रम हमारी समझदारी के लिए एक अपमान है.
एक मौद्रिक प्रणाली में,एक सच्चे लोकतंत्र जैसी कोई चीज नहीं हो सकती ,
और कभी थी भी नहीं
हमारी राजनितिक पार्टियाँ भी
कुछ बड़ी कॉर्पोरेट संस्थाओ के इशारे पर ही नाचती है
राजनेताओं को उनके ओहदे पैर बिठाने वाले भी येही मौद्रिक प्रणाली के अभिभावक ही हैं
राजनेताओं की कृत्रिम लोकप्रियता 'मिडिया ' द्वारा फैलाया जाता है .
जिस सिस्टम में पैसे के कारण , भ्रष्टाचार अनिवार्य है, वहाँ
नेताओं की परिवर्तन से भी
कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला
तो राजनीतिक खेल का कोई वास्तविक अर्थ है ऐसा नाटक करने की बजाय
इस विकृत प्रणाली को कैसे बदला जाए इस्पे अपना ध्यान लगाइए.
और छटी चीज़ : आंदोलन में शामिल हों.
इन्टरनेट पे " thezeitgeistmovement .com " पे जाइये
और एक दुसरे की मदद करिए , सामाजिक बदलाव के सबसे बड़े आन्दोलन को लाने के लिए ,
ऐसा आन्दोलन जो दुनिया ने कभी नहीं देखा होगा I
हमें सभी को इस बारे में शिक्षित करना और जुटाना होगा
हमारे वर्तमान विश्व व्यवस्था के निहित भ्रष्टाचार के बारे में बताना होगा ,
साथ ही सच्ची एवं टिकाऊ समाधान के साथ,
ग्रह पर सभी प्राकृतिक संसाधनों को
सभी लोगों की सार्वजनिक विरासत के रूप में घोषणा करनी होगी . ,
साथ ही प्रौद्योगिकी की सच्ची जानकारी हर किसी को बतानी होगी
और बतानी होगी कि कैसे हम सब मुक्त हो पाएंगे अगर दुनिया लड़ने के बजाय .
एक साथ काम करे
चुनना आपको है
आप या तो वित्तीय प्रणाली के एक गुलाम बनकर जी सकते हैं
और दुनिया भर में लगातार युद्धों, आर्थिक मंदियों और अन्यायों को होता देख सकतें हैं,
और मनोरंजन और विलासिता के कचरे के साथ
अपने आप को बहला सकते हैं
या आप सच में अपनी ऊर्जा को सार्थक, स्थायी, समग्र परिवर्तन पर केंद्रित कर सकते हैं
जिसमे वास्तव में इंसानियत को सम्हालने की क्षमता हो
जिसमे सभी मानव मुक्त हों और कोई पीछे नहीं छुटे
लेकिन अंत में, सबसे अधिक प्रासंगिक परिवर्तन
पहले आप के अंदर होना चाहिए .
असली क्रांति चेतना की क्रांति है,
पर पहले हम सबको जरुरत है की हम
उस अलगाववादी ,विलासिता की शोर को अपने अंदर से निकाल दें
जिसे हमें हमेशा से सच बताया गया है
और साथ ही अपने अंदर की इंसानियत को पहचाने, उसे उभारें
उस आवाज़ को सुने जो हमारे अंदर के इंसान से हमेशा आती है.
यह आप पर निर्भर है.
"हम इन सभी चर्चाओं से ये समझने की कोशिश कर रहे हैं
कि हम देख सकें कि क्या हम अपना ह्रदय परिवर्तन कर सकते हैं
चीज़ों को उनके वर्तमान स्वरूप में स्वीकार ना करें
उनको समझे ,ध्यान दें,
अपने दिल दिमाग से उसको टटोलें और
पता लगाइए , जीनें के एक नए तरीके को .
लेकिन ये सिर्फ आप पर निर्भर करता है किसी और पर नहीं
क्यूंकि इस प्रयास में आपका कोई शिक्षक नहीं
या कोई छात्र नहीं है
इसमें कोई नेता नहीं
या गुरु नहीं है ,
कोई मालिक या कोई उधारक नहीं है.
आप खुद ही शिक्षक , छात्र ,मालिक , मुक्तिदाता हैं ,आप खुद अपने नेता हैं.
आप सभ कुछ हैं.
और,
इसे समझना ही
परिवर्तन है.