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एमाइलॉयड संबंधी जागरूकता: एक एनिमेटेड परिचय
एमाइलॉयड संबंधी जागरूकता:
एमाइलॉयडोसिस क्या है?
हमारे संपूर्ण जीवन में हमारे डीएनए छोटे कण जिन्हें प्रोटीन कहा जाता है
के उत्पादन के लिए कूटबद्ध होते हैं।
ये प्रोटीन जीवन की लगभग सभी जैविक प्रक्रियाओं के लिए
संरचना और कार्य प्रदान करते हैं।
प्रोटीन के एकबार कोशिका में निर्मित होने पर
वे प्राकृतिक रूप से विशेष आकार ले लेते हैं।
यह आकार ही शरीर में उन्हें विशिष्ट कार्य करने देता है।
जब प्रोटीन उचित ढंग से मुड़ते हैं तो वे उसी भांति काम करते हैं जैसे उन्हें करना चाहिए था
और हम अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेते हैं।
जब प्रोटीन गलत ढंग से मुड़ते हैं तो यह हमारे शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित कर सकते हैं
और समय बीतने पर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
हमारे शरीर सामान्य तौर पर
असामान्य प्रोटीन की पहचान करने और उन्हें निकालने में निपुण होते हैं।
कुछ मामलों में, हालांकि,
या तो हम असामान्य प्रोटीन का अधिक मात्रा में उत्पादन करते हैं
जिसे हमारा शरीर संभाल नहीं सकता
या हम प्रोटीन को बिलकुल भी तोड़ने या शरीर से बाहर निकालने में समर्थ नहीं होते हैं।
एमाइलॉयडोसिस तो प्रोटीन मुड़ने के विकारों
की बढ़ती सूची में केवल एक श्रेणी है।
हालांकि कई प्रकार की एमाइलॉयडोसिस होती है
सभी मामलों में गलत ढंग से मुड़े हुए प्रोटीन को एमाइलॉयड कहा जाता है,
अर्थात् शर्करा-के समान, जो एक विशेष आकार ले लेता है
जो उनके विघटन को बेहद कठिन बना देता है।
इस कारण से यह गलत ढंग से मुड़ा एमाइलॉयड प्रोटीन एकसाथ जुड़कर
कठोर, रैखिक तंतुओं का निर्माण करता है जो अंतत:
हमारे उत्तकों तथा अंगों में जमा हो जाते हैं।
इस पर निर्भर करते हुए कि एमाइलॉयड कहां जमा होता है,
जैसे गुर्दों, हृदय, नसों या जठरांत्र मार्ग में
उन अंगों के प्रभावित होने के कारण भिन्न-भिन्न लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
एमाइलॉयडोसिस का उपचार न करना जीवन को खतरे में डालने वाला होता है
इसलिए शीघ्र, एकदम सही निदान सकारात्मक परिणाम को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।
फिलहाल 25 से अधिक भिन्न प्रोटीन की पहचान की गई है
जिनके कारण एमाइलॉयडोसिस हो सकता है।
कई भिन्न प्रकार की एमाइलॉयडोसिस को
अग्रगामी प्रोटीन जो गलत मुड़ा हुआ है, के अनुसार वर्गीकृत किया जा सकता है।
एक सरल नामकरण प्रणाली का प्रयोग किया जाता है
जैसे कि उपसर्ग 'ए' एमाइलॉयड को संदर्भित करता है
उसके बाद हालत के लिए जिम्मदार प्रोटीन का संक्षेपाक्षर होता है।
एएल, या प्राइमरी एमाइलॉयडोसिस, में
रोग का सर्वाधिक आम नैदानिक रूप,
एमाइलॉयड गलत ढंग से मुड़ी हुई हलकी श्रंखला की एंटीबॉडी से उत्पन्न होता है।
अस्थि मज्जा में श्वेत रक्त कोशिकाएं जिन्हें प्लाजमा कोशिकाएं कहा जाता है
अधिक मात्रा में हलकी श्रंखला के प्रोटीन का निर्माण कर रही हैं।
गुर्दें, हृदय, लीवर, जठरांत्र मार्ग और नसें अक्सर सर्वाधिक प्रभावित होती हैं।
एए, या सेकेंडरी एमाइलॉयडोसिस, में
रोग घूमते सीरम में एमाइलॉयड ए प्रोटीन
के बढ़े हुए स्तरों के कारण होता है।
शरीर इस प्रोटीन का निर्माण पुराने संक्रमण या सूजन
के विरुद्ध स्वाभाविक प्रतिक्यिा के रूप में करता है।
गुर्दे और लीवर एमाइलॉयड जमा होने का मुख्य स्थान हैं।
एटीटीआर एमाइलॉयडोसिस में एमाइलॉयड लीवर में
निर्मित होनेवाले ट्रांसथायीरेटिन प्रोटीन से होता है।
रोग के वंशानुगत या पारिवारिक रूपों में
पहले ही 100 से अधिक आनुवांशिक परिवर्तनों की खोज हो चुकी है
जो एमाइलॉयड गठन में योगदान करते हैं
जिसके कारण मुख्य रूप से नसे नष्ट हो जाती हैं या हृदय की समस्याएं हो जाती हैं।
रोग के गैर-वंशानुगत रूप जिसे सेनाइल सिस्टेिमिक एमाइलॉयडोसिस के रूप में जाना जाता है
बुजुर्ग लोगों के हृदय में टीटीआर एमाइलॉयड जमने के कारण होता है।
चाहे यह आनुवांशिक कारकों से हो या बढ़ती उम्र के कारण
टीटीआर-मध्यस्थता वाले एमाइलॉयडोसिस को असल में एएल एमाइलॉयडोसिस की अपेक्षा कहीं अधिक आम माना जाता है
हालांकि इसका अक्सर पता भी नहीं चलता है।
एमाइलॉयड कईबार एकाकी स्थानों में भी जमा हो जाता है
जैसे कि मूत्राश्य या वायु मार्ग
जिसका सिस्टेमिक रोग के प्रति कोई साक्ष्य दिखाई नहीं देता है।
ये स्थानीकृत फोड़े के समान जमाव प्रोटीन की हलकी श्रंखला के बने होते हैं,
ठीक एएल एमाइलॉयडोसिस के समान।
इस मामले में ण्माइलॉयड उत्पन्न करनेवाली प्लाजमा कोशिकाएं
अस्थि मज्जा में नहीं अपितु प्रभावित उत्तकों में होती हैं।
बहुत से चिकित्सक अपने चिकित्सकीय व्यवहार में इसे एमाइलॉयडोसिस
के रूप में नहीं देखते हैं। फिर भी, उदाहरण के तौर पर,
क्योंकि टीटीआर एमाइलॉयड का अक्सर हृदय रुकने के
रोगियों में पता नहीं चलता है,
बेहद संभावना है कि रोग अब हुई पहचान की अपेक्षा
कहीं अधिक व्याप्त हो।
एमाइलॉयडोसिस के लक्षण आमतौर पर अस्पष्ट और गैर-विशिष्ट होते हैं
जैसे कि वजन कम होना, थकान, सांस फूलना, मूत्र में झाग बनना
टखनों और टांगों में सूजन होना,
हाथों और पावों में सुन्नता और झुनझुनाहट होना।
क्योंकि ये लक्षण उन अन्य आम बीमारियों के समान होते हैं,
और अक्सर गलती से इन्हें हृदय, फेफड़े या गुर्दे का रोग समझ लिया जाता है,
यह रोगी के लिए असामान्य बात नहीं है कि वह बायोप्सी होने से पहले
कई डॉक्टरों को दिखा चुका हो।
किंतु अगर गुर्दे, हृदय, नस, जठरांत्र या लीवर का रोग
बिना किसी स्पष्ट कारण के होता है, तो
यह एकदम सही समय है जब चिकित्सको को एमाइलॉयडोसिस की जांच करनी चाहिए।
विभेदक निदान के भाग के रूप में
पूर्व की सर्वाधिक आम चिकित्सकीय सेटिंग्स
जिनमें एमाइलॉयडोसिस होने पर विचार किया जाए, वे हैं:
एक-मूत्र में भारी मात्रा में प्रोटीन का नुकसान;
दो-कड़ा या मोटा हृदय
इलेक्ट्रोकार्उियोग्राम पर कम वोल्टेज
सामान्य या कम रक्तचाप के साथ हृदय की अनियमित गति,
या अवर्णित हृदय गति का रुक जाना
तीन- शराब का सेवन किए बगैर लीवर का बढ़ा हुआ आकार
या असामान्य लीवर जांच के साथ अक्सर अन्य ब्यौरा
और चार- अंगुलियों या पंजों में सुन्नता या दर्द
जैसे कि कार्पल टन्नल सिंड्रोम,
या कब्ज अथवा दस्त का एक के बाद एक बार-बार होना
और इसके साथ खड़ा होने पर चक्कर आना।
एमाइलॉयड जमाव का पता लगाने का सबसे उत्तम मानक है
उत्तम नमूने पर कोंगो लाल स्ट्रेन लगाना।
नमूना एकत्र करने का सबसे आसान तरीका पेट से वसा को निकालना है,
मिनी लाइपोसक्शन करना है।
एमाइलॉयड को कोंगो लाल रंजक में डालने पर इसका रंग गुलाबी हो जाता है,
और पोलेराइजिंग माइक्रोस्कोप से देखने पर
विशेष एप्पल-ग्रीन बायरफ्रिगेंस दिखाई देती है।
यह चिह्नक तकनीक 70-80% मामलों में
एमाइलॉयडोसिस का पता लगाने में सक्षम है।
अगर निकाली गई वसा में एमाइलॉयडोसिस का पता नहीं चलता
किंतु रोग होने की प्रबल संभावना है
तो शामिल अंग की बायोप्सी की जाती है,
उदाहरणत: हृदय, गुर्दे या लीवर की बायोप्सी की जानी चाहिए।
अगर एमाइलॉयड उपस्थित है तो कोंगो लाल स्ट्रेनिंग का प्रयोग करने पर
लगभग 100% मामलों में निश्चित निदान निकलेगा।
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में उत्तक का नमूना देखने पर
एमाइलॉयड तंतु की पारंपरिक संरचना दिखाई देगी,
इसप्रकार इसकी उपस्थिति की पुष्टि की जाती है।
यह साबित होने पर कि अंग में एमाइलॉयड उपस्थित है
प्रक्रिया की शुरूआत है।
अगला कदम रोग उत्पन्न करनेवाले एमाइलॉयड का प्रकार निर्धारण होना चाहिए
ताकि उपयुक्त निजी उपचार की योजना बनाई जा सके।
प्रोजेक्ट के क्षेत्र में हुई हालिया प्रगति
एमाइलॉयडोसिस के सटीक निदान में क्रांति लाने का वादा करती है।
कोंगो लाल के सकारात्मक नमूनों का लेजर माइक्रोडाइसेक्शन
करने बाद मास स्पेक्ट्रोमिट्री
एमाइलॉयडोसिस के प्रकार का पता लगाने की प्रमुख तकनीक है।
एलएमडी/एमएस उत्तक के किसी भी नमूने पर किए जा सकते हैं
जिसमें एमाइलॉयड उपस्थित होने पर वसा का टुकड़ा निकालना शामिल है।
अध्ययन दर्शाते हैं कि एलएमडी/एमएस
सभी ज्ञात एमाइलॉयड प्रोटीन की गभग 100% सटीकता से
पहचान कर सकते हैं और साथ ही साथ नए एमाइलॉयड की भी पहचान कर सकते हैं।
सामान्यत:, जीभ का आकार बढ़ने या आंखों के आसपास आघात
जो बेहद कम मामलों में
दिखाई देता है, के अलावा
एमाइलॉयडोसिस के कोई स्पष्ट चिकित्सकीय संकेत नहीं हैं।
तथापि, रोगी के लक्षणों के बावजूद,
एमाइलॉयड प्रोटीन के विशेष स्टेन तथा स्पेक्ट्रोस्कोपिक गुणों के कारण,
रोग के लिए जांच करना करना बात है।
शुरूआती और सटीक निदान उन रोगियों के लिए अनिवार्य है
जो अब उपलब्ध अनेक उपचारों का लाभ उठा सकते हैं।
एमाइलॉयडोसिस के प्रकार के अाधार पर
उपचार में किमोथिरेपी, हृदय की देखभाल, अंग प्रत्यारोपण
या लक्ष्यांकित दवा चिकित्सा शामिल हो सकती है।
प्रत्येक मामले में उद्देश्य एमाइलॉयड प्रोटीन की आपूर्ति को
कम करना या समाप्त करना होता है ताकि अंग के कार्य में सुधार हो सके।
एमाइलॉयड के निर्माण तथा जमाव को रोकने के लिए आमतौर पर
तीन दृष्टिकोण अपनाए जाते हैं
जो एमाइलॉयडोसिस के प्रकार के अनुसार परिवर्तित होते हैं।
सर्वाधिक आम उपचार रोग के जनक
अग्रगामी प्रोटीन के उत्पादन को बाधित करता है।
दूसारी पद्धति में दवा चिकित्सा का प्रयोग
अग्रगामी प्रोटीन की सामान्य संरचना को स्थिर करने के लिए किया जाता है,
इसप्रकार इसे गलत ढंग से मुड़ कर एमाइलॉयड बनने से रोका जाता है।
तीसरी रणनीति में सीधे रक्त में घूमते और उत्तकों के तंतुओं
में जमा हुए एमाइलॉयड पर निशाना साधा जाता है।
एमाइलॉयड को टेग एवं अस्थिर करके
व्यक्ति का शरीर संभावित रूप से
असामान्य प्रोटीन को अधिक प्रभावी ढंग से बाहर निकाल सकता है।
रोग की जटिलता और यह देखते हुए कि प्रत्येक मामला भिन्न है
यह सिफारिश की जाती है कि उपचार उस चिकित्सा केंद्र में किया जाए
जिसे एमाइलॉयडोसिस में अनुभव हो।
विकल्पत: रोगी ऐसे केंद्र में आरंभिक मूल्यांकन करा सकते हैं
और फिर उपचार के दौरान अपने स्थानीय समुदाय में
संचार जारी रख सकते हैं।
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