Tip:
Highlight text to annotate it
X
द वीनस प्रोजेक्ट प्रस्तुति
रॅाक्सेन मीडोज प्रोडक्शन
जाक फ्रेस्को द्वारा लिखी गयी
यह सम्पूर्ण पैसों पर आधारित जो विलास्वादी समाज है
एक झूठा समाज है
हमारे वर्तमान समाज को इतिहास के पन्नो में सबसे हीन नजरो से देखा जायेगा
हमारे पास बुद्धि है, समझ है, तकनीक है
एक बिलकुल नई सभ्यता के निर्माण के लिए
स्वर्ग चाहिए या सर्वनाश
जाक फ्रेस्को: जब मैं 1929 के विश्व मंदी के दौर में जी रहा था
जिसने मेरे सामाजिक विवेक को तराशा,
मुझे एहसास हुआ कि धरती तब भी वैसी ही थी
औद्योगिक कारखानें तब भी बरक़रार थे और संसाधन भी मौजूद थे
मगर लोगों के पास चीज़े खरीदने के लिए पैसे नही थे
मैंने महसूस किया कि इस व्यापारिक खेल के नियम
बेकार हैं और काफी नहीं हैं
कष्ट, लाचारी एवं युद्ध ने मुझे मेरे जीवनभर की खोज के लिए प्रेरित किया
सरकार एवं शैक्षिक जगत की प्रत्यक्ष अयोग्यता
और वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत समाधान की कमी ने भी मुझे प्रेरित किया
मुझे एहसास हुआ कि व्यक्तियों पर काम करने के बजाय
ज्यादा अच्छा होगा अगर समाज को ही पुनर्गठित किया जाए
इसके साथ ही शुरू हुई हमारी आज की समस्याओं के समाधान की
मेरी जीवनभर की खोज
(वर्णनकर्ता) यह प्रस्तुति सामाजिक बदलाव के लिए एक संभव उपाय है ,
जो एक शांतिपूर्ण एवं कायम रहने वाले विश्व समाज के लिए काम करेगा
जहाँ मनुष्य, प्रोद्योगिकी (टेक्नोलोजी) और पर्यावरण एक साथ रह सकें
यह एक ऐसा विकल्प दर्शाता है जिसमें ,
मानव अधिकार सिर्फ कागज़ी घोषणाएं बनकर न रह जाएँ ,
बल्कि जीने का चलन बन जाए
इसे द वीनस प्रोजेक्ट कहते हैं
इसके संस्थापक, जाक फ्रेस्को,
आह्वान करते हैं कि समाज को नया रूप दिया जाए जिसमे युद्ध ,
गरीबी, भुखमरी, क़र्ज़ और अनावश्यक कष्टों को ,
न सिर्फ रोका जा सकेगा बल्कि पूरी तरह से अस्वीकार किया जाएगा
यह अब और ज्यादा स्पष्ट हो रहा है कि इससे कम कुछ भी,
हमारी आज की समस्याओं को निरंतर जारी रखेगा
बिना कोई विकल्प पेश किए , सिर्फ शिकायत करने से कुछ नही होता
वीनस प्रोजेक्ट का अनुसन्धान केंद्र
जाक फ्रेस्को और रॅाक्सेन मीडोज़ द्वारा बने गई थी ,
और यह वीनस, फ्लोरिडा में स्थित है
यह हमारी आज की बहुत सारी समस्याओं के मूल कारणों को संबोधित करता है
लेकिन क्या है हमारी आज की समस्याओं की जड़ ?
असफल व्यवस्थाएं !!!
आज हमारे पास बहुत कम विकल्प रह गए हैं
चूँकि हम अपना सर्वनाश खुद ही बुला रहे हैं
बीते हुए कल के समाधान अब काम नही आएंगे
पर्यावरण को हो चुके नुक्सान को देखते हुए हम समझ सकते हैं कि ,
हम तेज़ी से ऐसे बिंदु की ओर बढ़ रहे हैं जहा से लौटा नहीं जा सकता
जहाँ प्रकृति खुद रास्ता तय करेगी
या तो हम हमारे पुराने सामाजिक रिवाजों ,
और पुरानी सोच की आदतों के साथ जारी रहें ,
जिससे हम अपने भविष्य को ही ख़तरे में डालेंगे ,
या हम अधिक उपयुक्त मानविक मूल्यों को अपनाएं
जो एक स्थायी समाज के अनुरूप हों,
जिसमे अधिक अवसर और स्वतन्त्रता मिले
अमेरिकी अपने समाज मे इस तरह अनुकूलित हुए हैं ,
कि हर साल एक नई कार,
नया टेलीविजन सेट या टेप रिकॉर्डर खरीदने की सोचते हैं
हम प्रोद्योगिकी के मामलों में सुधारवादी हैं, मगर हमारी राजनीतिक और सामाजिक संस्थाए,
अभी भी बदली नहीं हैं और इसलिए यहां हम निष्क्रिय हो गए हैं
क्योंकि हम किसी भी नए विचार को साम्यवाद या नियंत्रित अनुशासन के बराबर समझते हैं
क्योंकि बचपन से ही हमें किसी भी नई चीज़ से डरना सिखाया गया है ।
(वर्णनकर्ता) दुनिया की कोई भी आर्थिक व्यवस्था :
चाहे समाजवाद हो, साम्यवाद हो, फासिस्टवाद हो या पूंजीवाद हो-
उत्कृष्टता, जातिवाद, राष्ट्रवाद और सबसे जरुरी-
संसाधन अभाव- की समस्याओं को नहीं मिटा पाई है
यह सभी समस्याएं मुख्यतः आर्थिक असमानता पर आधारित हैं
जब मुनाफ़े के लिए पैसों से संसाधनों को नियंत्रित और वितरित किया जाता है,
और ऐसे मे जब लोगों और राष्ट्रों को अपने खुद पे छोड़ दिया जाए,
तब वे किसी भी कीमत पर लाभ की तलाश करेंगे
इसके लिए वे प्रतिस्पर्धा में बढ़त बनाए रखेंगे,
या सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से यह हासिल करेंगे
युद्ध, राष्ट्रों के बीच मतभेदों को सुलझाने में उनकी सबसे बड़ी असफलता को दर्शाता है
सही व्यवहारिक दृष्टकोण से देखा जाए तो
युद्ध, प्राणों और संसाधनों की अत्यंत बर्बादी है
अधिकांश युद्ध संसाधनों के नियंत्रण के लिए होते हैं
और अपनी विशेष लाभ की स्थिति को बनाए रखने के लिए लड़े जाते हैं
युद्ध 'मनुष्य की गरिमा' पर आधारित नहीं होते
युद्ध मनुष्य की प्रगति पर आधारित नहीं होते
युद्ध विजेता मुल्क के लोगों के लिए प्रगतिकारक बन सकता है,
लेकिन जहाँ तक बाकि दुनिया की बात है
युद्ध की अत्यंत भारी कीमत चुकानी पड़ती है
(वर्णनकर्ता) यह असभ्य और हिंसक प्रयास जो अंतरराष्ट्रीय मतभेदों को हल करने के लिए अपनाया जाता है,
उसे कम्प्यूटरीकृत परमाणु वितरण प्रणाली और
घातक जैविक और रासायनिक हथियारों के आगमन ने
और भी अधिक भयावय बना दिया है
100,000 से भी ज्यादा कम्पनियाँ पेंटागोन से व्यापार करती हैं,
लेकिन सबसे ज्यादा पैसा कुछ गिने चुने बड़े निगमों के पास ही जाता है
फिर भी यह सैन्य या रक्षण औद्योगिक परिसर के द्वारा
पैसे कमाके मुनाफा पाने वालों के लिए एक अप्रत्याशित मौका है
यदि युद्ध से होने वाले इस मुनाफ़े को हटा दिया जाए,
तो क्या आपको लगता है कि युद्ध होगा?
(जाक फ्रेस्को) यदि आप को "देश की सेवा करने" के लिए सेना में शामिल किया गया है,
(आप देश के लिए आप अपनी जान दे रहे हैं )
तो उन्हें हर तरह के युद्ध उद्योगों से सम्बंधित पारिश्रामिकों को,
जैसे - हर तोप बनाने वाले, मशीन गन बनाने वाले,
युद्ध टैंक, युद्धपोत, जीप (बनाने वाले) को
इसी तरह शामिल करना चाहिए कि उन सभी को सेना का ही वेतनमान मिले, तब यह उचित होगा
लेकिन अगर आप सेना को युद्धपोत और मशीन गन बेच के
लाखों करोड़ों कमाते हैं, तो यह भ्रष्ट है
अगर मेरे पास क्षमता होती तो सेना के लाखों जवानों को मैं विद्यालय भेजता
समस्याओं के समाधान करने का प्रशिक्षण लेने के लिए
देशों के बीच के मतभेद उसी से हल हो सकते हैं, मारने या मरने से नहीं
सैनिक सिर्फ कातिल मशीने हैं; उन्हें क़त्ल करने की ट्रेनिंग दी जाती है
मैं उन्हें ऐसी ट्रेनिंग दूंगा जिससे वो मेक्सिको जाकर वहाँ झगड़े कम कर सकें
और अरब देशों में जाकर उनसे झगड़े कम कर सकें
ताकि दुनिया के सभी देश एकजुट हो जाएँ
(वर्णनकर्ता) केवल युद्ध ही एक मात्र रूप नही है हिंसा का
गरीबी, भुखमरी, बेघर होना,
बेरोज़गारी भी इसमें शामिल हैं
इसे इंसानी फितरत समझना एक तरह की गलत धारणा है
इस धारणा का इस्तेमाल किया जाता है ताकि ये स्थिति बरक़रार रहे
परिवेश का प्रभाव :
आनुवंशिकी का , लालच , व्यापार , जातिय पक्षपात से कोई सम्बन्ध नहीं है
समाज में जो कुछ हो रहा है वह सब आपकी शिक्षा का ही हिस्सा है
जिसमे यह भी आता है कि, आप किन किताबों को पढते हैं , किन लोगों का अनुसरण करते हैं
जीनों का आपकी आँखों की पुतलियों में
रंग प्रदान करने , आपके नाक के आकार को बनाने
या कुछ वंशागत विशेषताएं प्रदान करने के सिवाय कोई काम नहीं है
ये मानव मूल्यों को निर्देशित नहीं करतीं
अगर आप किसी और से ज्यादा बेहतर मस्तिष्क लेकर जन्मे भी है ,
जिससे मेरा मतलब है, आपकी मस्तिष्क कोशिकाएं बेहतर हैं ,
और अगर आप उस बेहतर मस्तिष्क के साथ ,
एक तानाशाही मुल्क में जी रहें हैं तो आप तेज़ी से तानाशाह बन जाएँगे
मस्तिष्क में सिवाय अनुभव के ऐसा कुछ पहले से
नही होता जिससे वह सही और गलत का
चुनाव कर सके
(वर्णनकर्ता) हम लालच , इर्ष्या , घृणा या कट्टरता के साथ नही जन्मे होते हैं
हमारा व्यवहार और मूल्य हमारी संस्कृति के प्रतिबिम्ब हैं
अगर आप एमाजोंन जंगल में शिकारियों के बीच पले बड़े हैं,
तो आप सिरों के शिकारी बनेंगे
अगर पुछा जाए "आपको अजीब नहीं लगता कि आपके गले में 5 सर लटक रहे हैं?"
तो उस समय आप कहेंगे "हाँ बिलकुल , क्यूंकि मेरे भाई के पास 20 हैं "
क्या ये पागल हैं ? नहीं , यह उस समाज के लिए साधारण बात है
जब तक कुछ देश धरती के ज्यादातर संसाधनों को नियंत्रित करते रहेंगे ,
और मूल उद्देश्य मानव कल्याण के बजाय मुनाफा कमाना रहेगा ,
सामाजिक एवं पर्यावरण की समस्याएं दुर्गम स्थिति में रहेंगी
मुनाफे को पहल देने का ही नतीजा है अनावश्यक कष्ट
और अनैतिक आचरण जो कि आजकल सब जगह व्याप्त है
बहुत से लोग सोचते है कि हमें इन समस्याओं को ख़तम करने के लिए सख्त कानून चाहिए
हमारे पास बहुत से कानून हैं, हजारों की गिनती में
लेकिन वो लगातार टूटते रहते हैं
कागज़ी ऐलान और समझौते अभावग्रस्तता, नाश और असुरक्षा के
तथ्यों को बदल नहीं सकते
आप भविष्य के रूप और मान्यताओं का अंदाज़ा लगा सकते हैं अगर आप
समुद्री प्रदूषण और कृषि योग्य ज़मीन के अभाव की घटनाओं की प्रवृत्ति को जानते हैं,
अगर आप इस अपमानजनक प्रणाली को बढ़ते देखें
मैं दंगों का, कत्लोगारत और हत्याओं का पूर्वानुमान लगा सकता हूँ
मनुष्य का व्यवहार उसके आसपास की परिस्थितिओं से उपजता है
मान लीजिए अगर पानी का अभाव पैदा हो जाए, तो उसका मूल्य बहुत बड़ जाएगा
चलिए हम अभाव को एक व्यवस्था समझकर बात करते हैं
मान लीजिये 3 दिन तक सोने की वर्षा होती है
तो लोग बाहर जाकर सोना बटोरकर अपने तहखानों,
और अलमारियों में भर लेंगे वे अलमारियों से अपने कपड़े तक निकाल कर फ़ेंक देंगे
लेकिन अगर सोने की वर्षा साल भर होती रहे, जिससे सब जगह सोना ही सोना हो जाए,
तब लोग घरों को साफ़ कर सोना बाहर फेंकेंगे, अपनी अंगूठियाँ निकाल फेंकेंगे,
और इस तरह इंसानी व्यवहार उस स्थिति में परिवर्तित होगा
चौकीदार केवल वहीँ होता है जहाँ कोई ऐसी चीज़ हो जिसकी लोगों को ज़रुरत हो
लेकिन पहुँच या अनुमति न हो, तो वहां चौकीदार तैनात किए जाते हैं
लेकिन अगर नींबू संतरा या सेब के पेड़
हर जगह उगें तो आप उन्हें बेच नहीं सकेंगे
अगर आप किसी टापू पर जाए जहाँ हर संसाधन बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो ,
आपके साथ 10 आदमी हों , और हर आदमी के लिए
1000 मछलियां हों और वहाँ पर दस गुना ब्रेडफ्रूट और केले हों
तो वहाँ पैसे की उत्पत्ति ही नहीं होगी
वहाँ निजी संपत्ति का अस्तित्व ही नहीं होगा
अगर टापू बहुत बड़ा हो, 10 लोग हो, 8000 एकड़ ज़मीन हो
तो कोई इस भूखंड के लिए दावा नहीं जताएगा
व्यवहार के ऐसे स्वरुप हैं जो उत्तरजीविता को बढ़ावा देतें हैं
कई सामाजिक परिस्थितियां हैं जो हमारे मूल्यों और विचारधाराओं को प्रभावित करती हैं
कोई भी किसी अपेक्षित व्यवहार का संविधान
पर्यावरण को ध्यान में रखे बिना नहीं लिख सकता
इसलिए, बेहतर होगा कि हम पर्यावरण का ध्यान रखें ,
और एक दुसरे का ख्याल रखें
और बेहतर होगा कि हम अपनी क्षमता के
उच्चतम संभव स्तर से लोगों को शिक्षा प्रदान करें ,
ताकि एक बेहतर समाज पा सकें
एक शांति समझौता भी एक और युद्ध को नहीं रोक सकता,
अगर बुनियादी कारणों को नहीं निपटाया जाए ।
शायद जरूरत सरकार में नैतिक लोगों की है
जो कि सभी के हित में काम करेंगे
लेकिन सबसे नैतिक लोगों को उच्च स्थानों के लिए चुनने के बावजूद ,
अगर हम पृथ्वी के संसाधनों को न बचा पाए ,
तो झूठ, धोखा, चोरी और भ्रष्टाचार सदैव मौजूद रहेंगे
जरूरत नैतिक लोगों की नहीं,
बल्कि धरती के संसाधनों का सभी के हित के लिए समझदारी के साथ
संचालन करने की है
सामाजिक अपर्याप्तता :
चलिए हमारी सामाजिक व्यवस्था को आगे टटोलते हैं
हमारी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए वस्तुओं का सतत बिकते रहना ज़रूरी है
जिसके लिए जानबुझकर वस्तुओं की रचना ही इस प्रकार से होती है, जिससे वे टूटे या ख़राब हो
अगर आपको ध्यान हो, ऐसा ज़्यादातर वार्रंटी का समय
ख़त्म होने पर ही होता है
इस भ्रष्ट प्रथा को "प्लैंड ऑब्सोलेसेंस" यानि योजनाबद्ध अप्रचलन कहते हैं
जिससे जानबूझकर कार्यक्षमता को घटाया जाता है
आविष्कारक श्रेष्ट विद्यालयों से अध्ययन करके आते हैं
और उन्हें ऐसी चीज़ों की रचना में लगा दिया जाता हैं, जो अंततः निर्धारित समय में
घिस जाती हैं या खराब हो जाती हैं
इसका परिणाम, संसाधनो और उर्जा की जबरदस्त बरबादी है
मुनाफे के लिए हम धरती को लूट रहे हैं
अगर आप ध्यान से सोंचे तो लोग वास्तव में नौकरी नहीं चाहते
वो अपने वेतन के जरिये चीज़ों तक पहु़चना चाहते हैं
पैसा किसी भी वास्तविक चीज को नहीं दर्शाता
और कोई सोना, चांदी या संसाधन नहीं है जो इसे मूल्य दे
आप ना ही पैसे को खा सकते हैं ना हीं इसका मकान बना सकते हैं
और ना ही धरती पर वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की
हमारी वास्तविक क्षमता का इससे कोई संबद्ध है
वित्तीय व्यवस्था (मुद्रा प्रणाली) हमें विरासत में सदियों पहले से मिली हुई है
और हम इसे बग़ैर किसी प्रश्न के प्रयोग किए जा रहे हैं
"मुझे एक देश की धन-दौलत का नियंत्रण दे दो
और मुझे परवाह नही कि उसके कानून बनाने वाले कौन हैं ।" - मेयर रोथ्स्चैल्ड
यह प्रणाली लगातार स्वचालन को बढ़ाती रहेगी
और अधिकतर लोगो की खरीदने की क्षमता को घटाती रहेगी
एक ऐसा समय आएगा (जिसे गौस्सियन कर्व कहते हैं )
जिसमे रोजगार यह होगा, उत्पादन यह होगा,
और खरीद क्षमता यह होगी तब व्यवस्था रुक जायेगी
बैंको के असफल हो जाने के बाद हर काम बंद हो जाएगा
हम उस दिशा में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं
हम 2011 में एसी जगह पहुँच गए है,
जहाँ यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मशीन ने मनुष्य को मात दे दी है
-हमने काफी कम लोगों के इस्तमाल से अविश्वसनीय उत्पादक क्षमता हासिल कर ली है
एक अर्थव्यवस्था के रूप में हम पहले से और अधिक उत्पादक हो चुके हैं
एक iPad app चार लोगों से ज्यादा काम कर लेता है
- इन्ही कारणों से रोजगार कम होता जा रहा है और जो रोजगार बचा है ,
स्पष्ट है कि उनमे तनख़्वाह कम मिलेगी क्योंकि
बहुत सारे लोग थोड़ी बहुत बची हुई नौकरियों के पीछे भाग रहे हैं
घटती हुई तनख्वाह मध्यम वर्ग पर भारी प्रभाव डाल रही है ,
और इसका असर फैल रहा है
हम सब समाज के विनाश की तरफ बढ़ रहें हैं
मुझे लगता है कि यह पूरी दुनिया भर में होने वाला है, सिर्फ यहीं नहीं
इसके लिए इसे सरकार की पराजय की आवश्यकता नहीं है
बस इसे ऐसा ही छोड़ दें तो यह अपने आप को ही उखाड फैंकेगा
अगर आपका मिडिया पर नियंत्रण है , तो आप लोगों कों शांत कर सकते हो
लेकिन अगर अधिकतर लोग नौकरी से निकाले जाएँगे , तब उनकी खरीदने की क्षमता खत्म हो जाएगी
इस प्रणाली का तब अंत हो जाएगा यह तब काम नहीं करेगी, सरकार तब घुसपैठ करेगी
और ऐसा ही हो रहा है यह देश पहले से ही दिवालिया हो चुका है
उन्हें ( सरकार को ) राष्ट्रीय सुरक्षा देने में कठिनाई होगी ,
लोगों को पेंशन नही दे पाएँगे
उन्होंने अपनी क्षमता से ज्यादा खर्च कर दिया है
अब वे सिर्फ और कर्जा बढ़ा सकते हैं, बैंकों से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में उधार लेकर
हम आपको दिखाना चाहते हैं कि हमारी स्थिति कितनी गंभीर है
मिडटाउन मैंनहँटन यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है
राष्ट्रीय क़र्ज़ अपने उच्चतम स्तर को पार कर गया है
यह 1989 में ऊपर चढा था ,
जब अमेरिका का कर्जा 3 लाख करोड़ डालर हुआ था
कुछ सालों से कर्जा इतनी तेजी से बढ़ता जा रहा है कि उन्हें डालर का चिन्ह निकालना पड़ा
ताकि वह आंकड़ो के लिए जगह बना सकें
जो अब 10 लाख करोड़ डालर से ऊपर चढ गया है, और हर सेकंड बढ़ता जा रहा है
दो और आंकड़ों की बढ़त के साथ अगले साल कर्जे की घड़ी एक नया रूप ले लेगी
पैसा छापने के लिए संयुक्त सरकार/केंद्रीय शासन को अनुमति नहीं है
और ना ही सरकार को बैंकिंग व्यापार में जाने की या पैसा उधार देने की अनुमति है
यह केवल बैंकरों के लिए ही एक विशेषाधिकार है
वायुसेना के लिए 2000 नए विमान प्रतिमाह बनाने के लिए सरकार को
जो करना पड़ता है वह यह है कि ,
उन्हें किसी निजी संस्था से उधार लेना पड़ता है
लोन पर हस्ताक्षर करना पड़ता है , और अगर युद्ध हार जाते हैं ,
तो कर्जे का पूरा बोझ जनता के कंधे पर पड़ता है
"इतिहास बताता है कि धन परिवर्तकों ने हर संभव प्रकार के दुर्व्यवहार,
साज़िश, छल और हिंसक साधनों का प्रयोग
सरकार पर अपना नियंत्रण बनाए रखने के लिए किया है ,
पैसे और उसके वितरण को नियंत्रित कर के" - जेम्स मैडिसन
(वर्णनकर्ता) आज हम अपने आप को और अपनी सामाजिक रचनाओं को,
एक संक्रमणकालीन स्थिति में पाते हैं, जो एक सामाजिक विकास का विषय है
यदि हम इस अशांत काल से जीवित निकलना चाहते हैं,
तो हमें परिवर्तन के अनुरूप चलना होगा
सब कुछ बदलता है, हमारी सामाजिक रचनाएँ भी
ऐल्बर्ट आईंस्टायिन ने कहा है-
"हम उसी सोच से समस्याओं का हल नहीं कर सकते,
जिससे हमने वह समस्याएँ बनाईं थीं."
पृथ्वी अब भी संसाधनों से परिपूर्ण है.
मौद्रिक नियंत्रण से संसाधनों का वितरण नियंत्रित करने की हमारी प्रथा
अब प्रासंगिक नहीं रही, और वास्तव में हमारे जीवित रहने के ही प्रतिकूल है
आज हमारे पास अति-उन्नत प्रोद्योगिकी है
लेकिन हमारे राजनितिक और सामाजिक सिस्टम
हमारी प्रोद्योगिकीय क्षमताओं के साथ नहीं चल पा रहे हैं,
अन्यथा सभी के लिए आसानी से प्रचुरता की एक दुनिया बन सकती है ,
जो गुलामी और क़र्ज़ से मुक्त हो
यह कैसे संभव हो सकता है?
हमारे पास पृथ्वी के सभी लोगों को रोटी और मकान देने के लिए भी पर्याप्त धन नहीं है,
ऐसे अभिलाषी लक्ष्यों को पूर्ण करना तो दूर रहा
लेकिन पृथ्वी के पास पर्याप्त संसाधन हैं सभी मनुष्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए,
यदि केवल समझदारी से इनकी व्यवस्था की जाए
एक सामाजिक विकल्प :
(वर्णनकर्ता ): ज़ाक फ्रेस्को कल्पना करते हैं एक समाधान की, जिसे वो कहते हैं
"रिसोर्स बेस्ड इकॉनोमी" (संसाधन-आधारित अर्थव्यवस्था)
यह एक सामाजिक-आर्थिक प्रणाली होगी जिसमे सभी वस्तुएं और सेवाएं
सभी को उपलब्ध होंगी , बिना पैसे के उपयोग के,
वस्तु-विनिमय, श्रेय, ऋण या किसी प्रकार की गुलामी के
यह पहले बनी किसी भी सामाजिक व्यवस्था के जैसी नहीं होगी
फ्रेस्को इस दिशा पर , 75 वर्षों के अध्ययन,
और प्रायोगिक अनुसन्धान के ज़रिये पहुंचे हैं
एक "रिसोर्स बेस्ड इकॉनोमी" (संसाधन-आधारित अर्थव्यवस्था) उपलब्ध संसाधनों के आधार पर चलती है
और उन संसाधनों को पृथ्वी के हर मनुष्य को उपलब्ध कराती है ,
निः शुल्क, बिना किसी क़ीमत के
आज हमारे पास जरुरत से ज्यादा संसाधन हैं ,
एक अतिउन्नत समाज बनाने के लिए
मैं वैसे सीमित वितरण की बात नहीं कर रहा हूँ, जिससे लोगों का बस गुज़ारा चल जाए
मैं बात कर रहा हूँ एक अत्यधिक उन्नत सभ्यता की
हमारे पास संसाधन हैं, प्रोद्योगिकी है, हमें सिर्फ इसे प्रयोग में लाना है
( रॅाक्सेन मीडोज ): 'द वीनस प्रोजेक्ट' का एक मुख्य पहलु है ,
अभाव को खत्म करना ; इस जगह प्रोद्योगिकी की जरुरत पड़ती है
क्योंकि यदि हम एक "रिसोर्स बेस्ड इकॉनोमी" (संसाधन-आधारित अर्थव्यवस्था) स्थापित करते हैं
और कुछ वस्तुओं की कमी रहती है, तो यह काम नहीं करेगी
यदि आप एक "रिसोर्स बेस्ड इकॉनोमी" स्थापित करते हैं,
एक ऐसे समाज में जहाँ संसाधन नहीं हैं, तो यह काम नहीं करेगी
आज अपनी प्रोद्योगिकी के ज़रिये, हम वस्तुएं उपलब्ध करा सकते हैं
हम अभाव को खत्म कर सकते हैं, हम प्रचुरता ला सकते हैं
अगर हम ऐसी प्रचुरता ला सके, तो यह लालच,
स्वार्थ, कई प्रकार के अपराधों, और अनैतिक व्यवहारों को ख़त्म कर देगी
(वर्णनकर्ता) एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया जा सकता है
ताकि हम रचनात्मक ढंग से पूर्णतया जी सकें,
यदि विज्ञान और प्रौद्योगिकी को मानवता और पर्यावरण की भलाई
की ओर निर्देशित करें और
क़र्ज़ आधारित अर्थव्यवस्था से उत्पन्न हुई कृत्रिम कमी पर काबू पाने की कोशिश करें
सभी लोग अपने राजनीतिक दर्शनशास्त्र, सामाजिक रीतियों
और धर्म के फ़र्क के बावजूद अंततः समान संसाधानों पर आश्रित हैं :
स्वच्छ वायु और पानी
खेती लायक ज़मीन
चिकिस्तक सेवा और उचित शिक्षा
मेरा विचार है कि अगर आप पृथ्वी और पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा लेते हैं
तो हम भविष्य के लिए तैयार हैं
मानव जाति एक परिवार है और यह विश्व सबका घर है
न तो देश और ना ही लोग लंबे समय तक अलग होकर अस्तित्व में रह सकते हैं
कोई भी कहीं भी आ जा पाए इसलिए अलग अलग राष्ट्र नहीं होने चाहियें
राज्यों के आपस में जुड़ने से पहले अलग-अलग राज्य सिर्फ खुद की परवाह करते थे
हर राज्य की अपनी अपनी फ़ौज थी, उनके पास सिपाही थे, वे लड़ रहे थे:
"यह हमारा इलाका है! " "अरे नहीं, तुम घुसपैठ कर रहे हो! "
और फिर जब सभी राज्य एक देश मे जोड़े गए, तब सरकार ने
राज्यों की सीमाएं निर्धारीत कीं और राज्यों ने उसके लिए रजामंदी दी
यही क्षेत्रीय विवादों का अंत था
अगर आप युद्ध का अंत चाहते हे तो पृथ्वी के संसाधनों को "सार्वजनिक विरासत" घोषित करना होगा
हमें पृथ्वी के संसाधनों को संसार के समस्त लोगों की समान विरासत घोषित कर देना चाहिए
इस व्यवस्था का ऐसे लोगों के साथ कोई लेनदेन नहीं है जो अपने और विशाल निगमों
के नियंत्रण में एक उत्कृष्ट विश्व व्यवस्था की स्थापना करना चाहते हैं,
जिससे समस्त विश्व उनके आधीन हो
इसके विपरीत, एक वैश्विक संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था
सभी लोगों को अपनी उच्चतम क्षमता तक पहुँचाने में सक्षम बनाती है
जहाँ वे फलें-फूलें और अपने आप को एक ऐसे समाज में विकसित करें जो उनके लिए काम करे
एक ऐसा समाज जो पर्यावरण की भी रक्षा करता हो और उसे बरकरार रखता हो
जो ये समझता है कि हम प्रकृति का ही एक भाग हैं, ना कि प्रकृति से अलग हैं
प्रोत्साहन :
(वर्णनकर्ता) कुछ प्रश्न उठ सकते हैं कि प्रोत्साहन का क्या होगा, अगर हमारी जरूरतें ऐसे ही पूरी हो जाएँ,
और हमें उन्हें पाने के लिए कोई काम भी ना करना पड़े
यह प्रश्न यह मान लेता है कि आदमी की चाहत सिर्फ बुनियादी जरूरतें ही हैं
अगर यह सच होता तो दुनिया में कभी आविष्कारक होते ही नहीं, और न हीं
लेखक या शिक्षक होते
लोग ऐसी चीजों पर काम करते हें जो उन्हें पसंद आती हैं और चुनौती देती हैं
चलिए हर इंसान को मौका दें
कि वह इस सबसे बड़ी चुनौती का हिस्सा बन सके :
कि वह सबके लिए दुनिया को बेहतर बना सके
व्यक्तिव पर जोर दिया जाएगा बजाय एकरूपता पर
इस सामाजिक व्यवस्था से एक नई प्रोत्साहन प्रणाली की स्थापना होगी
जो पर्यावरण की सुरक्षा और सामाजिक सोच को महत्व दे
बजाए के धन, संपत्ति और सत्ता के
छिछले आत्म केन्द्रित लक्ष्यों के
यह एकरूपता के लिए आव्हाहन नहीं है यह पूर्ण रूप से विविधता को अवसर देता है
जितनी लोगों में विविधता होगी, उतनी ही अधिक व्यक्तिवता होगी
तभी हम व्यक्तित्व, रचनात्मकता और अभिनवता पर जोर देते हैं
यही इस प्रारुप का सार है
यह वैज्ञानिकों का एक समूह नहीं जो लोगों से कहेगा कि क्या करें
कैसे रहे, कहाँ जाये, किसका पालन करें
सार्थक कार्यों से ही प्रेरणा और प्रोत्साहन मिलता है ।
रचनात्मक, चुनौतीपूर्ण और सकारात्मक प्रयासों से ही
लोगों का सच्चा विकास होता है ।
लेकिन पैसों के लिए की जाने वाली उबाऊ और दोहरावदार नौकरियां
प्रेरणा और प्रोत्साहन को खत्म कर देती हैं ।
अगर आप लोगों को चीज़ें मुहय्या करवाएं
खाने को दें, कपड़े और घर का प्रबंध करें
तो वो सुबह काम को नहीं जाएँगे क्योंकि उन्हें जरुरत नहीं पड़ेगी
उन्हें घर, कपड़े और मनोरंजन की सारी सुविधाएँ मिल गई हैं
काम पर क्यों जाएँ? काम उदासीन, कष्टदायक और उबाऊ होता है
भविष्य में, अगर लोगों की अपनी सारी जरूरतों तक पहुँच हो
लेकिन उन्हें कोई चुनौती ना रहे, तो जिंदगी शिथिल हो जाएगी
लोग नई चीज़ों से लगातार उत्साहित होते हैं
हम अपने विद्यालयों में उन्हें बहुत सारी चुनौतियाँ देंगें
जो अभी सुलझी नहीं हैं । अभी भी बहुत सारी अनसुलझी समस्याएँ हैं ।
सारी सुविधाएँ मिल जाने के बाद कोई सोचना बंद नहीं कर देता है
इसका मतलब तो यह होना चाहिए कि सब अमीर कुछ नहीं करते उन्होंने काम करना बंद कर दिया है
क्योंकि उनके पास सभी सुविधाँए हैं ये सच नहीं है
बहुत सारे अमीर रोजाना 18 घंटे काम करते हैं
और उनके पास ज्यादा समय नहीं है । ये आपकी पृष्ठभूमि और शिक्षा
की वजह से है । आप जितना ज्यादा समुद्र-विज्ञान अन्तरिक्ष-विज्ञान इत्यादि जानते हैं
आप उतना ही ज्यादा जिज्ञासु और जीवंत अनुभव करते हैं ।
अगर आपको खाना, कपड़ा और आश्रय के लिए मकान दिया जाए, तब आप अपनी इच्छा से चुनौतियां लेंगें
आपको जीवन निर्वाह की चिंता नही सताएगी
और आपके प्रोत्साहन को काफी हदतक बढ़ावा मिलेगा
मैं इसे एक नई प्रकार की प्रोत्साहन प्रणाली कहता हूँ
ये पैसों पर आधारित नहीं है बल्कि समस्या-समाधान पर आधारित है
और आप दुनिया को और बेहतर होते देखकर प्रोत्साहित होते हैं
धरती के संसाधनों का कुशलता से किया गया प्रबंधन
कैसे हम प्रोद्योगिकी को बुद्धिमानी से इस्तेमाल करें
ताकि सबके के लिए जरुरत से ज्यादा उपलब्ध हो ?
ऐसी स्थिति को पाने के लिए ये ज़रुरी होगा कि जो योजना बनाई जाए
वह धरती के संसाधनों की वहन करने की क्षमता पर निर्भर हो
हमें पूरे बुनियादी ढांचे को पुनर्गठित कर
एक सामंजस्यपूर्ण, संकलित प्रणाली से संचालित करना होगा
इसका मतलब है कि हमें पूरे विश्व समुदाय को एक इकाई समझना होगा
जिसमे सभी का समावेश हो और तदनुसार योजनायें बनाई जाएँ
सिर्फ इसी तरह से हम प्रोद्योगिकी का सही इस्तेमाल करके संसाधनों की कमी को मिटा सकते हैं
और विश्व भर में प्रचुरता ला सकते हैं और पर्यावरण को संरक्षित कर सकते हैं
इसिलए एक विश्व सर्वेक्षण करने की जरुरत है ताकि हम आंकलन कर सके कि हमारे पास क्या है
ये आंकलन हमें बताएगा कि हमारे पास कितने भौतिक संसाधन,
कितने कार्मिक उत्पादन केंद्र हैं और लोगों की क्या-क्या जरूरतें हैं
इससे हम यह पता लगा पाएंगे कि कितनी वस्तुएं और सेवाएं हमें चाहियें
उदाहरण के लिए, फसल उगाने के लिए उपजाऊ जमीन कहाँ-कहाँ है?
यां विभिन्न क्षेत्रों में कितने लोग हैं
और उनके स्वास्थ्य की स्थिति कैसी है ?
यह सब जानकारियाँ निर्धारित करेंगी कि कहाँ और कितने चिकित्सालय बनाए जाएँ
अगर आप आज इसे करने कि कोशिश करेंगे ,
(यानि पूरे विश्व के संसाधनों का सर्वेक्षण) तो उन्हें संदेह होगा
वह पूछेंगे "आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं ? क्या ये पता लगाने के लिए ,
की हमारे पास तुमसे युद्ध करने के लिए पर्याप्त संसाधन है या नहीं?"
वे शक करेंगे, ऐसी जानकारी देने में हिचकिचाएँगे
इसलिए मैं यह कहूँगा कि ये सब आज के समाज में संभव नही होगा
लेकिन योजनाओं और उनके कारणों को पेश करने के बाद ,
और सब देशों को जो उससे फायदा होगा, यह दिखाने पर ,
( फायदे विशेष तरह के होने चाहियें
जो कि वह अपने हिसाब से समझ सकें )
अगर वह राज़ी हो गए तब सर्वेक्षण करवाया जा सकता है
यहाँ ना तो मेरा, ना ही किसी और का मत उपयोग में लिया जायेगा
जनसंख्या कितनी बड़ी है ,क्या-क्या संसाधन मौजूद हैं
पृथ्वी कि वहन करने की क्षमता कितनी है, ये सारे सवाल
तय करते हैं कि क्या होना है और कितनी तेजी से काम आगे बढेगा
आज ये कार्य पूर्ण रूप से भिन्न आधारों पर होता है
लेकिन भविष्य में यह,
एक प्रकार के सक्रिय संतुलन पर आधारित होगा
इसका मतलब है हर चीज़ को उच्चतम सामर्थ्य पर चलाना
बग़ैर पर्यावरण की उपेक्षा किये
(वर्णनकर्ता): सभी के लिए प्रचुरता एवं उच्चस्तरीय रहन-सहन लाने के लिए
हमें जितना हो सके कम से कम समय में हर प्रणाली को स्वचालित करना होगा
परन्तु परिवर्तन के दौरान हमें कंप्यूटर योग्यता
हासिल किये लोगो को और प्रोद्योगिकी से जुड़े लोगों को ,
एक साथ लाना होगा
जो संसाधन वितरण प्रणाली की रूपरेखा बनाकर निर्माण कर सकते हैं ,
और जो संसाधनो को संसाधित करने के लिए आवश्यक औद्योगिक कारखाने बना सकते हैं
(वर्णनकर्ता ): हमारी समस्याएं और उनके हल तकनीकी है न कि राजनीतिक ।
ज्यादातर समस्याएँ सुलझाई जा सकती हैं अगर हम तकनीक और विज्ञानं के तरीकों को,
सबके भले के लिए उपयोग करें, न कि सिर्फ कुछ चुनिंदा लोगो के लिए
आपको खुद से पूछना होगा कि आप कैसी दुनिया में जीना चाहते हैं
मुझे ऐसी दुनिया चाहिए जहाँ मुझे यह चिंता ना सताए कि
मेरे बच्चो को एक और युद्ध में जाना पड़ेगा
जहाँ गरीबी, समस्याएँ या बीमारी होगी
क्या आपको पता है ऐसे संसार का निर्माण कैसे करे ? "नहीं मुझे नहीं पता"
आप किस तरह से ऐसे संसार का निर्माण करेंगे ? - विज्ञान के विभिन्न प्रभागों को
एक साथ लाकर बताएँगे कि "हमें इन समस्याओं का समाधान करना होगा"
एक वैज्ञानिक सरकार का मतलब यह नहीं कि वैज्ञानिक लोगो को नियन्त्रित करेंगे
इसका मतलब यह है कि उनके पास बेहतर तरीके हैं परिवहन प्रणाली के निर्माण के लिए ,
और हवा की शुद्धि के लिए । उनके पास सबसे अच्छे साधन हैं ,
आज के दूषित सागरों की शुद्धि के लिए ।
( वर्णनकर्ता ): कंप्यूटर सबकी जरूरतों को पूरा कर सकेगा
जब अंततः इस आधुनिक और सक्रिय संस्कृति के
सभी पक्षों का कम्प्युटरीकरण होगा
कोई इसे एक इलेक्ट्रॉनिक तंत्रिका तंत्र जैसा सोच सकता है
जो सामाजिक व्यवस्था के सभी भागों में फ़ैल जाएगा
उनका कार्य उत्पादन और वितरण की प्रक्रिया को
संतुलित करने का होगा
यह भरोसा दिलाते हुए की कोई अभाव और अतिक्रमण नहीं होगा
इस उच्च तकनीकी समाज में
सारे निर्णय पर्यावरण, मानव और औद्योगिक
प्रतिक्रियाओं पर आधारित होंगे
आप इन्हें पूरे वातावरण में मौजूद
विद्युतीय सेंसर समझिए
जो शहरों, कारखानों, गोदामों ,
वितरण केन्द्रों, दुनिया भर के परिवहन नेटवर्क ,
से डाटा का संग्रहण करते हैं ताकि उपयुक्त निर्णय लिए जा सकें
ये निर्णय समाज की जरूरतों पर आधारित होंगे
बजाय के कॉर्पोरेट या प्राइवेट हितों के
( वर्णनकर्ता ): हमें इस स्वचालित प्रोद्योगिकी या मशीनों से डरने के बजाय
मनुष्यों द्वारा अपने स्वार्थी हितों के लिए प्रोद्योगिकी के दुष्प्रयोग से सावधान रहना चाहिए
ध्यान में रखिये, मशीनें किस काम के लिए इस्तेमाल होंगी (विनाश या प्रगति), यह फैसला मनुष्यों का है
यदि प्रोद्योगिकी (टेक्नोलोजी ) सभी मनुष्यों को
मानव उपलब्धि में उच्च आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए मुक्त नहीं करती है ,
तो उसकी सारी प्रोद्योगिकीय क्षमता बेमतलब है
किसी परिवेश के वास्तविक पुनर्निर्माण में जुड़ने से पहले,
हमेशा आपको उसके गुण और दोषों का पूर्ण अध्ययन करना होगा
- भविष्य का रूपांकन -
वाचक: यह सब सिर्फ बातें हैं, जब तक कि हमारे पास संसाधनों के व्यवस्थित उपयोग
के द्वारा प्रचुरता पाने के लिए एक तकनीकी योजना ना हो
आगे प्रस्तुत हैं, द वीनस प्रोजेक्ट द्वारा सम्पूर्ण सामजिक विस्तार के लिए प्रदान
किए गए कई तरकीबें
आज आधे से ज्यादा आबादी शहरों में रहती है जो प्रदूषित, असुरक्षित
और ऊर्जा बर्बाद करने वाली हैं
हमें क्या करना है कि शहर की रूपरेखा एक जीवित सिस्टम के रूप में तयार करनी है,
एक जीव के रूप में एक विश्वविद्यालय के रूप में,
ताकि भविष्य के सारे शहर विश्वविद्यालयओं की तरह लगातार विकसित होते रहें,
जो अनुसंधान और विचारों का लगातार आदान प्रदान करते रहें
इन शहरों में ऐसी परिवहन प्रणाली स्थापित होगी
जिससे दुर्घटनाओ को ख़तम किया जा सके
और जिसमे तकनीक का कोई क्षेत्र अप्रत्याशित ना रहे
चिकित्सा -शास्त्र, वनस्पतिशास्त्र, खेती-बाड़ी, यह सभी एक ही आयोजन वयवस्था के अंदर आएंगे
(वर्णनकर्ता ): वास्तव में नींव से नए शहरों का निर्माण एक बेहतर विकल्प है ,
बजाय पुराने शहरों को सुधारने और अनुरक्षण करने के ।
फ्रेस्को नए शहरों के रूपांकन के लिए शहरों को एक तंत्र उपगमन की नज़र से देखते हैं
वे रहने की आकर्षक और सुखद जगहें होंगी
यह धारणा मूर्खतापूर्ण है कि संपूर्ण सुजान योजना
का तात्पर्य बड़े पैमाने पर एकरूपता है
शहर उसी हद तक एकसमान होंगे, जहाँ तक
पदार्थो की आवश्यकता न्यूनतम रहे , समय और ऊर्जा की बचत हो
और जिनमे प्रगतिशील परिवर्तन को पर्याप्त जगह मिले
स्थानीय पर्यावरण को सुरक्षित रखते हुए
यदि हम अपने शहरों को मनुष्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाईन करेंगे तो ,
कई समस्याएं जो आज प्रचलित हैं, वे नहीं रहेंगे
केंद्रीय गुंबज के अंदर होंगे - शिशु पालन, विद्यालय,
दन्त-चिकित्सा, चिकित्सा -सेवाएं
शहरों के निर्माण एवं डिजाइन प्रक्रिया में ,
हम सिर्फ 1/8 भाग पर ही काम करेंगे और फिर उसकी प्रतिकृति करेंगे
बजाय कि वास्तुकार हर एक घर को हर एक ढांचे को डिजाइन करें ,
जो कि काफी मात्रा में उर्जा एवं योग्यता कि बर्बादी होगी
( वर्णनकर्ता ): जब दुनिया के सभी लोगों के लिए आवास की समस्या को सुलझाने पर काम शुरू होगा
तब निर्माण की तकनीक आज उपयोग में आनेवाली तकनीक से काफ़ी अलग होगी
स्वत: खड़ी होने वाली संरचनाओं की क्रांति आ सकती है
जिससे निर्माण प्रक्रियाओं में तेजी आएगी
ये हल्के , टिकाऊ मकान के कमरे लगातार बनाए जा सकेंगे
और फिर बड़े बड़े मशीनों द्वारा अलग करके बैठाए जाएँगे
इन इमारतों की बाहरी परत सूर्य से उर्जा बना सकेंगे
और ये ताप को केंद्रित कर सकेंगे
आप इस संसार में किसी भी वस्तु के स्वामी नहीं हैं
असल में , लोगों को पैसे नही चाहिए
वो जो चीज़ चाहते हैं उनतक वो पहुचना चाहते हैं
ऐसे समाज में जहाँ भरमार हो , लोगो को चीज़ें मिले ,
वहाँ लोग चीज़ों को जमा करना बंद कर देंगे
हम चीज़ों को पुनरावृत्ति कर, नवीनतम बनाकर, उसे बेहतर बनाएंगे
एक पुराने गाड़ी के पुर्जों को देखे ;
उनका वज़न बिलकुल नई गाड़ी के समान होता है , इसलिए कोई पुरानी गाड़ी नहीं होती है
पुरानी गाड़ी का मतलब है खतरा !!
अगर आप एक कीमती गाड़ी चलाते हैं और कोई और एक पुरानी गाड़ी चलाता है
अगर उसके गाड़ी के ब्रेक्स फेल होते है , तो आपकी मृत्यु हो सकती है
हमें रास्तों पर कोई पुरानी गाड़ियाँ नहीं चाहिए
हमें ऐसी कोई चीज़ नही चाहिए जो तुरंत बेकार हो जाए
हमें ऐसा कुछ नही चाहिए जिसे बार - बार मरम्मत करने की ज़रूरत पड़े
(वर्णनकर्ता) संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था में,
लोगों को उनके मनपसंद उत्पाद बिना किसी खर्च, साधनों के रख रखाव,
या बीमा सम्बन्धी तनाव के, उपलब्ध हो पाएंगे
इस तरह से , सभी के लिए काफी कुछ विकल्प रहेंगे ,
और चीज़ें जब चाहे तब मिल सकेंगी
जो भी लोग चाहें उन्हें इन बाहरी गोलाकार एक्सेस सेंटर में उपलब्ध होंगी :
मूर्तिकला सम्बन्धी सामग्री , संगीत के यंत्र आदि
बिलकुल किसी सार्वजनिक पुस्तकालय की तरह
लोग वहाँ जाकर एक कैमेरा ले सकते हैं , या एक साइकल या फिर एक घड़ी
जो कुछ भी उन्हें चाहिए वो बिना पैसों के मिल सकेगा
इसका मतलब है कि हमें उत्पाद क्षमता इतनी बढ़ानी होगी कि ,
कमी नामक संकल्पना सदा के लिए लुप्त हो जाए
ऐसा होने पर लगभग हर अपराध खत्म हो जाएगा
वर्तमान समाज में समानता या इन्साफ लाना मुमकिन नही है
हमें एक ऐसी व्यवस्था चाहिए जो मानव अधिकार को सुनिश्चित करे
जब सभी को मुफ्त चीज़ें और सेवाएं मिलेंगी ,
तब आपको अधिकारों के लिए लड़ने की जरुरत नही पड़ेगी
मानव अधिकार इस तरह के समाज में स्वचालित होगा
आपको " चोरी मत करो " जैसे कानून लागु करने की जरुरत नही ,
उस तरह का अव्यवहार खतम हो चूका होगा
केंद्रीय गुम्बज के चारो ओर आप अनुसन्धान केन्द्रों को पाएंगे
ये केन्द्रें मानव विकास पर काम करेंगे ,
जिससे पुरे मानव समाज को चिरस्थायी रखा जा सके
जैसे जैसे हम अनुसन्धान केन्द्रों से आगे बढ़ेंगे ,
हम मनोरंजन क्षेत्र में पहुचेंगे
जहां टेनिस कोर्ट, या कहें तो लगभग हर उस खेल की सुविधा होगी जो लोग चाहेंगे
जैसे जैसे इन सब से हम अलग होते हैं हम लोगों के निवास क्षेत्रों में पहुचते हैं
इस पुरे इलाके में पानी की धाराएं हैं , झरने हैं , झील हैं
(वर्णनकरता) हम कई प्रकार के अनोखे घर प्रदान कर सकते हैं ,
जो अपेक्षाकृत आग से बचने योग्य होंगे और जिनकी मरम्मत की जरुरत नही होगी ,
और जिनपर बदलते हुए मौसम का कोई प्रभाव नही पड़ेगा
जैसे हम अगले क्षेत्र की ओर बड़ते हैं, हम फ्लैटों में आते हैं
कुछ लोग फ्लैटों में इस कारण रहना चाहेंगे ,
क्यूंकि वहाँ नाट्य संस्थाएं, व्यायामशालाएं ,
चिकित्सा इत्यादि केंद्रीय टावर में ही उपलब्ध होंगी
मुझे लगता है कि भविष्य में लोग व्यक्तिगत घरों में न रहकर ,
बड़े परिसरों में रहना पसंद करेंगे
बाहरी ओर चलें, तो हम इनडोर खेती
अथवा हाइड्रोपोनिक खेतों में पहुँचते हैं
साथ ही, आउटडोर खेती भी होती है
(वर्णनकर्ता ): यह शहर प्रकृति के अनुरूप सबसे साफ़ और बेहतरीन प्रोद्योगिकी का प्रयोग करेगा
जैसे वायु, सौर, भू-तापीय उर्जा ,
गर्मी संकेन्द्र्क, पिज़ोइलेक्ट्रिक, सामुद्रिक लहर , तापमान भिन्नता ,
समुद्री थर्मल वेंट्स और बहुत कुछ.
भविष्य में उर्जा उत्पादन के लिए एक बड़ा कदम ,
हो सकता है बेरिंग स्ट्रेट के आर पार एक भूमि पुल अथवा सुरंग का निर्माण
पानी के नीचे यह निर्माण, समुद्री लहरों के कुछ भाग को ,
टरबाइन के माध्यम से साफ़ उर्जा में परिवर्तित करेगा
इन उर्जा के स्त्रोतों से हम धरती को साफ़ उर्जा की ताक़त दे सकते हैं
और सभी लोगों को आने वाले हज़ारों सालों के लिए ,
एक ऊँचे जीवन स्तर का आनंद दिला सकते हैं
अब प्रदूषण फ़ैलाने वाले हाइड्रोकार्बन को इस्तेमाल करने की जरुरत नहीं रह गयी है
प्रदूषण अतीत बनकर रह जायेगा
पूरी परिवहन व्यवस्था एकीकृत होकर ,
एक अंतर्राष्ट्रीय परिवहन प्रणाली में तब्दील हो जाएगी
शहरों के अन्दर परिवहन ट्रांस्वेयोर के माध्यम से होगा
शहर से शहर का सफ़र मोनोरेल से होगा
लम्बी दूरियों के यातायात के लिए मैग्लेव ट्रेन का उपयोग होगा
कार्य कुशलता बढाने के लिए, यह उच्च गति की मैग्लेव ट्रेन ,
हटाने योग्य भागों से सुसज्जित होगी
जो ट्रेन के गति में होने के दौरान भी अलग किए जा सकते हैं
वायु यानों में अनेक श्रेणी के विन्यास होंगे
ये VTOL (वि.टी.ओ.एल) विमान है । (ये ज़मीन से फ़ौरन सीधे उड़ान भर सकती है)
इसे यात्री एवं माल पहुचाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा
यहाँ पैसा बचाने की जगह ,
सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है
इस मालवाहक में अलग हो जाने वाले भाग होंगे
जिससे हम तेज़ी से सामान को उतार या चढा सकेंगे
कितने भाग होंगे ये इस बात पर
निर्भर करेगा कि कितना माल पहुँचाना है
जब सारे भाग जुड जाएँगे तब उनको एकल इकाई की तरह चालित किया जा सकेगा
समुद्री जहाज़ तैरते हुए निर्माण कारखाने बन सकते हैं
जो अपनी मंजिल की ओर चलते हुए चीज़ें भी बना सकते हैं
ऐसे जहाज़ शिक्षा केंद्र भी बन सकते हैं
जिसमे बैठकर बच्चे और बड़े, दुनिया भर की सैर करते हुए अभिनवी शिक्षा ले सकेंगे ,
प्रतिनिधिक अध्ययन से नहीं बल्कि अनुभव के माध्यम से
और वास्तविक दुनिया के वातावरण से घुल मिलकर
राष्ट्रीय परिवहन व्यवस्था में जलमार्गों का एक जाल होगा
जिसमे नहर और सिंचाई व्यवस्थाएं भी होंगी
जिससे सूखे या बाड़ के खतरे को नियुनतम किया जा सकेगा
साथ में मछलियों को प्रवास करने में मदद मिलेगी, प्राकृतिक आग से बचाव मिलेगा
आपातकालीन पानी के स्रोत, मछलियों की खेती और मनोरंजन के क्षेत्र भी मिल पाएँगे
(रॅाक्सेन मीडोज ) जब हम मार्केट, वित्त या पेटेंट के प्रतिबंध के बिना
सीधे सामाजिक व्यवस्था में ,
विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रस्तुत करेंगे तो, बहुत ही कम समय के अंदर ,
हम सभी के लिए बेहतर जीवनस्तर
प्राप्त करने में सफाल हों सकते हैं
नई प्रौद्योगिकी, आविष्कार, और विचारों के ,
माध्यम से तेज़ी से बदलता हुआ यह समाज निरंतर विकास करेगा
यह एक उभरता समाज होगा
बजाय एक स्थापित समाज के, जैसे हम आज हैं
(वर्णनकर्ता) कल्पना कीजिये कि आप एक सागार के शहर में निवास कर रहे हैं ,
और साथ साथ सागर के पर्यावरण को सुधार रहें हैं ,
और जमीन पर बढती आबादी के दबाव को कम कर रहें है
इन समुद्री शहरों को विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केन्द्रों के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं,
जहाँ छात्र समुद्री विज्ञान के अध्ययन करेंगे
इन्हें सामुद्रिक कृषि , मत्स्यपालन और सामुद्रिक खनन के लिए भी प्रयोग किया जा सकेगा
साथ में सामुद्रिक पर्यावरण के संतुलन को भी बरक़रार रखा जाएगा
समुद्र में आत्मनिर्भर शहरों में उनके स्थान और उपयुक्तता ,
के आधार पर डिजाइन में भिन्नता हो सकती है
इस तरह के अमुदरी अवलोकन केंद्र द्वारा लोग
समुद्री जीवों को उनके प्राकृतिक वास में देख सकते हैं
यह जलकृषि परियोजना और समुद्री खेती प्रणाली
मत्स्यपालना और अन्य तरह के समुद्री जीवों के पालना भी करती हैं, जो
दुनिया के लोगों के पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में मदतगार हो सकते हैं
इन संरचनाओं की मदद से पानी विमुक्त प्रवाहित होगा
प्रौद्योगिकी के इस तरह इस्तेमाल से एक वैश्विक समाज
सामाजिक उन्नति और विश्व का पुनर्निर्माण
जल्द से जल्द संभव कर पायेगा
आदर्शलोक, यदि स्थापित हुआ, तो वह मर जायेगा, स्थिर हो जाएगा
जबकि मैं, एक उभरती संस्कृति
की बात कर रहा हूँ
मेरे मन में एक उत्तम समाज की कोई धारणा नहीं है, वह क्या होता है, मुझे नहीं पता
मुझे इतना पता है, कि हम आज जैसे हैं , उससे कहीं बेहतर कर सकतें हैं
मैं एक काल्पनिक आदर्शवादी या एक मानववादी नही हूँ ,
जो सभी को मैत्री और सामंजस्य के साथ जीते देखना चाहता हो
लेकिन मुझे यकीन है यदि हम इस तरह न जिएं , हम एक दुसरे का संहार करेंगे
और पृथ्वी को तबाह कर देंगे
(वर्णनकर्ता) यह नयी जीवनशैली फुर्सत और मनोरंजन के साथ साथ
ज्ञान और सृजनात्मकता भी प्रदान करेगी
सफलता का मापदंड, व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ती होगी
न कि धन की कमाई या आत्मा केन्द्रित लक्ष्यों की पूर्ती
एक संसाधन आधारित अर्थव्यवस्था न केवल हमारे पर्यावरण को बदलकर
उसे साफ, कुशल, और सुखद बनाएगा ,
बल्कि वह एक नयी मूल्य प्रणाली लाएगी
जो इस नवीन दृष्टिकोण की दिशा और उद्देश्य के लिए उपयुक्त होगा
शिक्षा और संसाधनों की सार्वजनिक उपलब्धि होने से ही ,
मानव क्षमता के लिए कोई सीमा नहीं रहेगी
हर कोई अपने रचनात्मक प्रयासों
के लिए आज़ाद होगा, कोई कुछ भी काम (चुनौती )को चुन सकेगा
बिना उन आर्थिक सीमाओं के जिनका आज हमें सामना करना पड़ता है
हम अब एक ऐसे काल में हैं जब निर्णय लेने ज़रूरी हैं
यदि हम आगे बढ़ना चाहते हैं अपनी अभाव,
क्षय और पर्यावरण विनाश की वर्तमान संस्कृति से,
एक पारिस्थितिक सोच और प्रचुरता के सतत समाज की ओर ,
भविष्य की दूरदर्शिता से रहित एक दुनिया
अतीत की गलतियों को ,
बार बार दोहराता ही रहेगा
हम झूट बोलते हैं,
कि मानव क्रमिक-विकास का सर्वोच्च प्राणी है, जो आप पाठशालाओं में पढ़ते हैं
मानव नष्ट करता है महासागरों, मछलियों, वातावरण, और एक दुसरे को
मानव उड़ कर जाता है एक शहर के ऊपर, एक बटन दबाता है,
और परमाणु हथियारों से शहर में बसे लोगों को जला के राख कर देता है,
क्या यह प्रकृति की सर्वोच्च रचना है? मेरे ख्याल से अभी तक तो नहीं...
हमें बहुत आगे जाना है
हम पृथ्वी पर या तो स्वर्ग बना सकते हैं, या सर्वनाश ला सकते हैं
ख़ुद का नाश कर के केवल भविष्य ही बताएगा
यह आप पर है कि आप भविष्य को बनाने के लिए क्या करते हैं
(वर्णनकर्ता ): हम एक ऐसी दुनिया बना सकते हैं जहाँ युद्ध और तंगी दूर की यादें बन जाए
जब सम्पूर्ण विज्ञान और प्रौद्योगिकी का प्रयोग होगा ,
एक विश्वीय संसाधन -आधारित अर्थव्यवस्था के अन्दर,
पर्यावरण की रक्षा और सब के कल्याण के लिए,
सिर्फ़ तभी हम समझ पाएंगे ,
कि वाक़ई में सभ्य होने का अर्थ क्या है
आप भी एक हिस्सा बनिए जनता के इस बढ़ते समुदाय का ,
जो जुटे हैं 'द वीनस प्रोजेक्ट' के लक्ष्यों को सच्चाई का रूप देने में
आप भी शामिल हों, एक सकारात्मक भविष्य के इस दृश्य को ,
अत्यधिक दर्षकों तक पहुँचाने के हमारे प्रयासों में, एक बड़ी फीचर फिल्म बनाने के ज़रिये
यह सभी चीज़े बनाई जा सकती हैं, हमारी आज की विद्या से
केवल 10 वर्षों में पृथ्वी की सतह बदल सकती है,
दुनिया का पुनर्निर्माण हो सकता है, द्वितीय अदनवाटिका जैसे
चुनना आपको है परमाणु शस्त्रों की दौड़ की मुर्खता...
हथियारों का परिवर्धन, अपनी समस्यायों का हल राजनीति से करने की कोशिश,
इस पार्टी या उस पार्टी का चुनाव कर के...
संपूर्ण राजनीति भ्रष्टाचार में डूबी हुई है
मैं फिर से बोलता हूँ: साम्यवाद, समाजवाद,
फासिस्टवाद, प्रजातंत्रवादी, उदारतावादी...
यहाँ कोई नीग्रो समस्याएं, पोलिश समस्याएं या यहूदी समस्याएं
या यूनानी समस्याएं या महिलाओं की समस्याएं नहीं हैं I यहाँ मानवीय समस्याएं हैं