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अतिथि (१): कृष्ण भावनामृत का परम लक्ष्य क्या हैं ?
प्रभुपाद : हाँ , परम लक्ष्य हैं,
यह जानना की आत्मा और पदार्थ पृथक हैं।
जैसे भौतिक ग्रह हैं वैसे आध्यात्मिक ग्रह भी हैं।
Paras tasmāt tu bhāvaḥ anyaḥ avyaktaḥ avyaktāt sanātanaḥ (गीता ८ . २० )
आध्यात्मिक जगत चिरकालिक हैं, भौतिक जगत अस्थायी हैं।
हम सब आत्मा हैं। हम नित्य उपस्थित हैं।
अतः हमारा कर्तव्य हैं, अध्यात्मिक जगत को लौट जाना।
यह नहीं की हम यहाँ भौतिक जगत में रहकर पुनः पुनः देह त्याग और देह ग्रहण करते रहे।
यह हमारा कार्य नहीं हमारा रोग हैं।
हमारा स्वस्थ्य जीवन, स्थायी जीवन व्यतीत करने में हैं।
Yad gatvā na nivartante tad dhāma paramaṁ mama (गीता १५. ६ )
अतः मनुष्य शरीर इसी उत्तम कार्य में उपयोग करना चाहिए -
और पुनः किसी भौतिक शारीर की प्राप्ति न हो। यही जीवन का लक्ष्य हैं।
अतिथि (२): क्या यह उच्चतम पद इसी जीवन में प्राप्त किया जा सकता हैं ?
प्रभुपाद : हाँ यदि आप विश्वास करे तो ।
कृष्ण कहते हैं sarva-dharmān parityajya mām ekaṁ śaraṇaṁ vraja ahaṁ tvāṁ sarva-pāpebhyo mokṣayiṣyāmi mā śucaḥ (गीता १८. ६६ )
हम अपने पाप कार्यों के कारण, देह प्राप्त और त्याग करते हैं।
किन्तु यदि हम कृष्ण को समर्पित हो जाते हैं और कृष्ण भावनामृत को ग्रहण कर लेते हैं तो उसी क्षण हम अध्यात्मिक स्तर तक उठ जाते हैं।
māṁ ca yo 'vyabhicāreṇa bhakti-yogena sevate sa guṇān samatītyaitān brahma-bhūyāya kalpate(गीता १४.२६ )
जैसे ही आप कृष्ण के शुद्ध भक्त बन जाते हैं त्योही आप इस भौतिक स्तर से ऊपर उठ जाते हैं।
Brahma-bhūyāya kalpate, आप अध्यात्मिक स्तर पे स्थित हो जाते हैं।
और यदि आप