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आज़ादी परछाइयों में छिपी हुई है
पर मेरी चाहत उजालों में है...
शहर बदल चूका है
मैं भी बदल चूका हूँ...
हम कुछ भी नहीं
सिवाए अमीरों और ताकतवरों के बदलाव के आलावा
यह शहर गरीबों और बूढों की जकड़ की वजह से नहीं मरेगा
यहाँ उन कमजोरों के लिए कोई जगह नहीं जो अपने बीते हुए कल में डूबे हुए है
समय आ चूका है
एक नए भविष्य के लिए
जो तरक्की ओर उन्नती को सबसे आगे रखे
उन्नती... गरीबों से काम छीन कर अमीरों की जेबें भरना
और वो मुझे चोर कहते है
यह शहर पहले से ही मुश्किलों से घिरा हुआ है
बीमारी सड़कों में भरी हुई है
मायूसी हर जगह फैली है
इसे हमें बाँटने वाली दीवार भी नहीं रोक सकती...
...और ना ही मैं
हमें ना कहना ही होगा...
हमारे घर नहीं छीने जा सकते
और ना ही हमारे परिवार भूके रहेंगे
हमें गटरों में मरने के लिए छोड़ा नहीं जा सकता
यह शहर लोगों का है...
...और हमें इसे वापस उठाना होगा
एक जुट रहो
एक जुट रहो!
नई सुबह होने वाली है!
अपने सपनों में मैं उसे मरते देखता हूँ
मैंने कभी किसी चीज़ की कीमत नहीं चुकाई है...
...अबतक