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आज रात की चर्चा का विषय है- अतीन्द्रिय शक्तियां और चमत्कार,
और मैं इस बात को स्पष्ट तौर पर रखना चाहता हूँ कि
मैं किन अतीन्द्रिय शक्तियों की बात करूंगा.
इनमें से पहली है टेलीपेथी (दूरसंवेदन)
टेलीपेथी से मेरा तात्पर्य है,
दो दिमागों के बीच सूचना का आदान-प्रदान.
भौतिकी के लिए इसे समझा पाना बेहद मुश्किल है
या कहें वो इस विषय को छूना ही नहीं चाहते.
सर्वाधिक आम और शानदार कहानी
इस प्रकार के अतीन्द्रिय संचार की, टेलीपेथी द्वारा
संचार की, ये है कि एक माँ
जो मेन (नाम के) प्रान्त में रहती है
अचानक से आधी रात को जाग पड़ती है क्योंकि उसे अहसास होता है कि उसकी बेटी जो केलीफोर्निया में रहती है
वो किसी परेशानी में है.
आनन् फानन में वो अपनी बेटी को टेलीफ़ोन करती है और पूछती है कि "क्या हुआ? सब ठीक है ना?"
और उन्हें पता चलता है कि उनकी बेटी का अपने पति से अभी-अभी झगडा हो गया
या उनकी बेटी की कार दुर्घटनाग्रस्त हो गयी या ऐसा ही कुछ.
किसी तरह,
तीन हज़ार मील की दूरी से, इस प्रकार का
सूचना का आदान-प्रदान हो पाता है.
ऐसा अन्तरंग लोगों के बीच आमतौर पर होता है, ऐसे लोग जो गहन रूप से एक-दुसरे से जुड़े होते हैं,
माँ-बेटी, प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी,
भाई-बहन इत्यादि.
अगला प्रकार जिसके बारे में हम बात करेंगे, वो है दूर-दर्शन,
जिसे मैं
एक तरह से अतीन्द्रिय दृष्टि कहना चाहूँगा.
दूर-दर्शन-
मैं इन चीजों को परिभाषित करने का प्रयास कर रहा हूँ हालाँकि मुझे लगता है कि सब लोग इसके बारे में
जानते हैं,
ये तब होता है जब कोई एक स्थान पर बैठा हुआ
किसी अन्य स्थान पर ध्यान केन्द्रित करता है और उस स्थान के बारे में सही सूचना प्राप्त कर लेता है कि
वहां क्या चल रहा है. कुछ प्रकार के अतीन्द्रिय संपर्क,
कुछ प्रकार की अतीन्द्रिय शक्तियां हैं, जिनके बारे में मैं आज बात नहीं करूँगा या मेरी आज की बातचीत का
सम्बन्ध उनसे नहीं होगा.
जैसे 'भविष्य में झांक लेना'. और मुझे लगता है कि भविष्य दर्शन में कुछ सच्चाई अवश्य है.(मैं
एक अध्ययन का जिक्र इस बारे में बाद में करूँगा)
जिसमें भविष्य से प्राप्त सूचना का वर्तमान में प्रयोग
शामिल है.
और.. ये उलझा देने वाली बात है क्योंकि ये
एक नया ही पिटारा खोल देती है
ऐसा पिटारा जिसे समझना-समेटना बेहद मुश्किल है.
क्योंकि भविष्य से सूचना वर्तमान में लाना
भौतिक शास्त्रियों के आधारभूत कायदों को हिला कर रख देता है; ये उनके 'समय की प्रकृति' के बारे में अनुमान और नियमों को
ध्वस्त कर के रख देता है.
और
वे चाहते है कि हम उतना ही करें जितना हम संभल सकें
तो,
हम ताश के पत्तों से भविष्य देखना, हस्तरेखा शास्त्र
चाय की पत्तियों से भविष्य देखना,
स्फटिक पढना,
आदि के बारे में बात नहीं करने वाले. ये सब अनुभव के भिन्न भिन्न वर्गों का हिस्सा हैं. वो एक बात जो
टेलीपेथी (दूरसंवेदन)
और दूर-दर्शन को
अन्य प्रकार के अतीन्द्रिय कार्यों से अलग करती है वो है कि इसमें मात्र
मानव मस्तिष्क शामिल है.
कोई टेरट कार्ड नहीं, कोई स्फटिक की गेंद नहीं, कोई चाय नहीं.
इसे हम आज शामिल नहीं कर रहे.
और वो कारण जिससे हम इसे शामिल नहीं कर रहे वो है कि
यह चर्चा
एक बिलकुल नए
प्रकार के सबूतों से सम्बंधित है. सबूत- जो कनाडा की एक प्रयोग शाला से आये हैं
जहाँ एक नयी तकनीक का इस्तेमाल किया गया
- टेलीपेथी
और दूर-दर्शन को समझाने के लिए.
यहाँ
एक तस्वीर है
इसके पहले नमूने की.
इस यंत्र को ओक्टोपस कहा जाता है क्योंकि
इसमें आठ चुम्बकीय कुण्डलियाँ हैं, या आठ कुंडलियों के जोड़े हैं जिन्हें मस्तिष्क के चारों ओर व्यवस्थित किया गया है.
ऊपर से आप इन्हें कुछ बेहतर तरीके से देख सकते हैं
ये फिल्म कनस्तर हैं, और प्रत्येक फिल्म कनस्तर में दो
चुम्बकीय कुंडलियाँ है (जो असल में एक प्रकार की विद्युत चुम्बक है)
और
कुछेक सिग्नल का इस्तेमाल इस तकनीक में
किया गया है.
इनमें से एक है- चहचहाने (chirp) का सिग्नल, मैं इसे बाद में आपको
दिखाऊंगा.
एक और है जो कि
अमिगडेला नाम की एक दिमागी संरचना में होने वाली गहन मस्तिष्कीय क्रिया से प्राप्त किया गया है.
यह तकनीक अतीन्द्रिय अनुभव के अध्ययन का एक नया तरीका शुरू करने के लिए काम में ली गयी थी
कुंडलियों के जोड़े
चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण
करते हैं.
ये चुम्बकीय क्षेत्र बहुत कम समयांतराल में पनपते और मिटते है, जैसे
1-3 मिली सेकंड में
इस तरह ये चुम्बकीय क्षेत्र एक अलग आकृति बनाते हैं.
यह डॉ. माईकल परसिंगर, जो बायीं ओर हैं, और
स्टान कोरेन जो दायीं ओर हैं, के द्वारा विकसित किया गया था.
ये दोनों वरिष्ठ शोध-कर्मी हैं, लौरेन कीन विश्वविद्यालय के वयवहारपरक स्नायुविज्ञान
कार्यक्रम में.
यह सूडबरी, ओनटारिओ में स्थित है.
डॉ. परसिंगर, जो बायीं ओर हैं, मेरे गुरु भी रहे हैं और
हममें शिक्षक-विद्यार्थी का सम्बन्ध रहा है लगभग
तेरह वर्षों का.
प्राथमिक प्रयोग जो उन्होंने इस तकनीक का इस्तेमाल करते हुए किये वे
दूर-दर्शन में सिद्द प्रसिद्ध व्यक्ति इंगो स्वान के साथ किये.
शोध पत्र बताता है कि वे
अमेरीकी सरकार के एक विभाग के लिए कार्यरत थे.
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि वो विभाग संभवतया
सी.आई.ए. था
पर यहाँ मंच पर बैठकर, मैं यही कहना चाहूँगा कि मैं पूर्ण विश्वास के साथ ऐसा नहीं कह सकता.
आपको नहीं मालूम कि इस विडियो को कौन-कौन देख रहा होगा, सही है ना?
तो, दो प्रयोग किये गए इंगो स्वान के साथ-
असल में, बहुत सारा काम किया गया था, पर उसमे से दो प्रयोग हमें बहुत सी महत्वपूर्ण
सूचना देते हैं .
उसमें से एक में
वे एक कमरे में बैठे -
एक ध्वनि रुद्ध कोठरी, एक अँधेरा कमरा; वास्तव में वहां रौशनी थी
पर कमरे
का दरवाजा बंद था और वे पूर्ण ध्वनि रहित स्थान पे थे.
उनका काम था, प्रयोग के पात्र के रूप में,
दूर दर्शन करना
कुछ फोटो को.
उन्हें कतई पता नहीं था कि वे फोटो क्या थीं या किसकी थीं,
पर जब वे तैयार होते
तो उन फोटो के बारें में बता देते थे. फिर उन तस्वीरों में से एक को
लिफाफे में से निकाल कर
टेबल पर रख दिया जाता.
मूल शोध पत्र में
यहाँ तक उल्लेख है कि
टेबल की लम्बाई-चोड़ाई क्या थी और उन लिफाफों
की लम्बाई-चोड़ाई क्या थी,
बहुत सटीक सूचना थी यह.
उन्होंने मुझे स्पष्ट निर्देश दिए कि टेबल पर किस जगह तस्वीरों को रखना है. उन्होंने मुझे
सटीक अक्षांश बताये. वे यह साबित नहीं करना चाहते थे कि
इंगो दूर-दर्शन नहीं कर सकते थे. यह संशयात्मक प्रयोग
नहीं था.
वे इंगो के दूर दर्शन में सिद्ध होने को सही साबित करने का प्रयास कर रहे थे
प्रयोग को इस तरह किया गया था कि उन्हें गलत साबित किया जा सके पर, साथ ही उन्हें पूरा मौका
मिले कि वो अपनी क्षमता को साबित कर सकें और उन्हें वातावरण को अपने हिसाब से, प्रयोग के नियमों के अंतर्गत,
ज़माने
की इज़ाज़त थी. 143 00:07:26,249 --> 00:07:27,340 और,
दुसरे प्रयोग में,
उन्हें कुछ ख़ास शोधार्थियों को दूर से देखने को कहा गया. उन्होंने उन शोध-कर्मियों को देख रखा था, इंगो को पता था कि
उन्हें किन लोगों की टोह रखनी है
वे शोध-कर्मी विश्व-विद्यालय के परिसर में कई जगह गए और पास के कस्बे
सूडबरी ओनटारियो में घूमे.
इंगो उन्हें दूर दर्शन की अपनी क्षमता से देखते
जब वे इन कामों में से कोई काम रहे होते,
वे चित्र बनाते;
इंगो स्वान एक अच्छे कलाकार भी हैं
और एक कलाकार के रूप में उनकी प्रतिष्ठा है, खासी अलग
उनके
दूर दर्शी होने की प्रतिष्ठा के.
और
फिर
ऐसे 44 विद्यार्थी जो प्रयोग में किसी भी प्रकार का कोई किरदार नहीं निभा रहे थे,
उन्हें इंगो द्वारा बनायीं गयी
तस्वीरों को, उन तस्वीरों से मिलान करने को कहा गया
जिन्हें उन्होंने अपनी दूर दृष्टि से देखा था.
जितना भी अधिक अच्छी तरह से
वे मिलान कर पायें-
अंदाजे से प्रतिशत तौर पर,
अंदाजे की त्रुटी ख़त्म हो जाती है जब बड़ी संख्या में लोग
अंदाजा लगाते हैं.
एक एक तस्वीर का मिलान कि ये तस्वीर,
स्केच से मिलती है या नहीं
गलत हो सकता है,
पर पहचान का प्रतिशत,
सहमति का प्रतिशत
जो उन्होंने प्रत्येक तस्वीर को दिया, वो एक ठोस संख्या थी जिसका विश्लेषण किया जा सकता था.
तो, इस प्रकार हम
दूर दर्शन जैसी बेहद असटीक और मुश्किल प्रक्रिया से
वास्तविक संख्यात्मक नापजोख पर पहुँचते हैं,
और ये इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.
ये मात्र एक नव विकसित तकनीक नहीं थी,
ये मात्र एक शोध-कर्मी का एक महत्वपूर्ण आगे की ओर कदम नहीं था -
ऐसा शोध कर्मी जिसके पास प्रकाशित अकादमिक पत्रों का इतिहास और प्रतिष्ठा थी,
ये एक महत्वपूर्ण खोज और पड़ाव था सांख्यिकी की प्रणाली में
कि असटीक घटना का सटीक कलन/गणना किया गया और ये सच में महत्वपूर्ण है.
डॉ. परसिंगर भिन्न लोगों के लिए भिन्न मायने रखते हैं, मेरे लिए भी वे कई मायनों में महत्वपूर्ण और आदर्श हैं,
पर एक वैज्ञानिक के तौर पर जहाँ वो असल में शानदार हैं, वो है उनकी सांख्यिकी पर
पकड़.
तो, इन प्रयोगों का परिणाम था कि
इंगो द्वारा दूर दर्शन के आधार पर बनायी गयी तस्वीरों की सटीकता
काफी
ज्यादा थी
जब वे एक ख़ास सिग्नल (दो में से एक) के प्रभाव में थे, मैं आपको कुछ ही देर में वो दिखाता हूँ.
इंगो ने
वस्तुतः
न केवल दूर दर्शन की अपनी शक्ति को साबित किया
बल्कि इस प्रयोग के तहत दूर दर्शन के उद्दीपन और वर्धन द्वारा
खासी स्पष्टता ला दी कि
अतीन्द्रिय क्रियाओं के संपादन के दौरान मस्तिष्क में क्या कुछ चलता है.
उन्होंने प्रयोग में ऐसी व्यवस्था भी कि थी कि वे इंगो के दूर दर्शन को रोक पायें,
और उन्होंने पाया कि वे उसमें सफल भी हुए.
हालाँकि मेरे पास इस चीज की कोई तस्वीर नहीं है पर, उन्होंने जो किया था वो था कि उन्होंने एक फ्रेम (ढांचा) बनाया
और फ्रेम के किनारों पर ज्यादातर कुण्डलियाँ लगा दीं.
और फिर उन्होंने एक ही सिग्नल एक साथ इन सारी कुंडलियों में प्रवाहित कर दिया
और
जब उन्होंने सिग्नल प्रसारित किया था
तब इंगो दूर-दर्शन द्वारा चीजों को
नहीं देख पा रहे थे.
तो अब ऐसी तकनीक अस्तित्व में है जिससे
दूर दर्शन को
रोका जा सकता है.
और.. जो सिग्नल उन्होंने प्रयोग किया था
जो कुंडलियों में प्रवाहित किया गया था, बड़ा दिलचस्प है कि -
ठीक वैसा सिग्नल था जो प्रयोग के दौरान
इस्तेमाल किया गया था,
बस फर्क ये था कि प्रयोग का स्थान अलग था.. प्रयोग DOS के अंतर्गत सिग्नल बना रहे थे,
जब यह विंडोज के जरिये चल रहा था,
एक अतिरिक्त चीज परिणाम में जोड़ दी गयी थी.
और उस अतिरिक्त चीज जिसमें आंशिक पैटर्न जैसा कुछ था
गणित का अव्यवस्था(chaos)मॉडल मात्र ही इस अतिरिक्त
इनपुट(जोड़ी गयी चीज) को समझा सकता है, और जब इसे जोड़ा गया तो
इंगो फिर दूर दर्शन से चीजें नहीं देख पा रहे थे.
मतलब वे ना केवल
इंगो को दूर दर्शन की क्षमता द्वारा देखने दे रहे थे
और इसे बढा पा रहे थे,
बल्कि उन्होंने इसे रोक पाने का तरीका भी खोज लिया था!
और इससे एक प्रकार से इन सारे प्रयोगों पर
विश्वसनीयता का ठप्पा लग गया जो किसी और तरीके से नहीं प्राप्त हो सकता था.
किसी चीज को वैज्ञानिक तौर पर समझाने के लिए मात्र ये पर्याप्त नहीं
कि वो चीज घटित की जावे, यदि आप उस चीज को होने से रोक भी सकते हैं तो फिर यह बेहद मददगार साबित होता है.
तो यह इन प्रयोगों का पहले दौर का हिस्सा था
जिसमें केवल एक व्यक्ति पर प्रयोग हुआ पर फिर और भी प्रयोग हुए, इस तकनीक का इस्तेमाल करके
जिसमें
अन्य लोग भी शामिल थे -
जो भौतिकी से नहीं जुड़े थे और ये महत्वपूर्ण है.
अन्य लोग जिन पर यह प्रयोग किया गया, जिनके जिक्र मैं करूँगा,
उनमें से कोई भी भौतिकी में प्रशिक्षित नहीं था,
उनमें से कोई भी कोई अतिरिक्त कौशल युक्त नहीं था -
कोई संज्ञानात्मक या भावनात्मक कौशल प्रयोगशाला में भाग लेने के दौरान नहीं था.
हम सामान्य दिमाग वाले सामान्य लोगों के साथ काम कर रहे हैं
और जानना
चाह रहे हैं कि किस प्रकार
उनकी अतिन्द्रित क्षमताएं जाग्रत की जा सकती हैं या
बढाई जा सकती हैं.
इन प्रयोगों में से एक में
घनिष्ट लोगों के जोड़ों, जैसे भाई-बहन, मा-बेटी,
जुड़वाँ,
और विवाहित दंपत्ति, ने भाग लिया.
और
उनमें से एक,
जिसने ऑक्टोपस उद्दीपन प्राप्त नहीं किया था, मस्तिष्क के चारों ओर चुम्बकीय उद्दीपन,
एक कमरे में बैठा
उन्हें एक स्थानीय जगह पर खिंची गयी कुछ फोटो दिखाई गयी.
एक किसी स्थान की थी, दूसरी एक प्रसिद्द स्मारक की थी.
फिर, उनमें से दूसरा जो एक अँधेरे कमरे में था,
वैसा ही ध्वनिरुद्ध शांत कमरा पर उनके पास एक माइक था
फिर उन्मुक्त तरीके से उन्हें
किसी भी विचार,
अहसास, छवि जो भी उनके दिमाग में आती है, उसे बताने के लिए कहा गया
यह उस दौरान था जब उन्हें उद्दीपन दिए जा रहे थे.
और
उन्होंने पाया कि
कि वो जो तस्वीर/फोटो को देख रहा था और जिसे
दुसरे व्यक्ति के साथ उस फोटो में दिखाए गए स्थान से जुडी यादें बतलाने के लिए कहा गया
और दूसरा व्यक्ति उन्मुक्त भाव से बिना किसी नियंत्रण के अपने खयालात बता रहा था.
तब, इस व्यक्ति, जो किसी उद्दीपन के प्रभाव में नहीं था और जो फोटो को देख
रहा था,
उसके कथन उस वक्त के कथन के साथ तुलना किये गए जब
वे व्यक्ति
उद्दीपन के प्रभाव में थे.
इस बार भी वही 44 विद्यार्थी, जिन्होंने
अंदाजे से बताया कि वे कथन कितना मिल रहे थे,
पाया गया कि
मिलान के आंकड़े
2.85 गुना अधिक थे
सामान्य प्रायिकता के मुकाबले.
उनकी
टेलीपेथी की सटीकता
लगभग तीन गुना बढ़ गयी थी.
ये इतने बढ़िया आंकड़े तो नहीं कि इंगो स्वान जैसे विश्वस्तरीय अतीन्द्रिय क्षमता वाले व्यक्ति का मुकाबला कर सके,
पर इतने पर्याप्त हैं कि इनसे दिखाया जा सके कि
यह संभव है कि
विशेष परिश्तितियों में
मानव मस्तिष्क एक-दुसरे को सूचना भेज सकें और साझा कर सकें
और ये एक महत्वपूर्ण परिणाम है.
साथ ही,
उन्होंने पाया कि इंगो स्वान की ही तरह
जब व्यक्तियों को चहचहाने के सिग्नल से उद्दीप्त किया जा रहा था
उनके दिमाग के चारों ओर चक्कर काटते हुए सिग्नल से,
तो उनकी सटीकता बढ़ गयी थी.
और दिसचस्प बात ये है कि ये सिग्नल
जैविकीय सिग्नल नहीं है, ये दिमाग से नहीं उत्पन्न होते,
ये एक काफी सामान्य प्रकार का सिग्नल है जो
प्रयोगशाला में काम आने वाले एक उपकरण, 'फंक्शन जनरेटर'
जिसे टोन जनरेटर भी कहा जाता है
से उत्पन्न होता है.
तो एक बक्सा जो संगीत के सिग्नल उत्पन्न कर सकते है वो
440 हर्ट्ज़
अक्सर ऐसे सिग्नल पैदा कर सकता है. इस बात के कोई जीव वैज्ञानिक आधार नहीं हैं कि क्यों ये सिग्नल
इतने सफल हुए.
एक अन्य प्रयोग में,
यहाँ हम
कुंडलियों को चमकते देख सकते हैं
जिससे पता पड़ता है कि क्षेत्र किस प्रकार घूम रहे हैं.
यह एक अन्य प्रयोग था जिसमें केवल भाई-बहन, बहन-बहन, भाई-भाई
शामिल थे.
उनमें से एक
एक कमरे में होता, उसके सर पर ऑक्टोपस होता, उद्दीपन सर के चारों ओर
हो रहे होते,
दूसरा एक अन्य कमरे में होता और उसके मस्तिशक का निरिक्षण
ईईजी के माध्यम से किया जा रहा था.
पाया गया कि
जब अँधेरे कमरे में बैठे व्यक्ति
से कहा गया कि
वे मानसिक रूप से प्रयत्न करें
कि वे अपने भाई या बहन जो दुसरे कमरे में हैं उसे छु रहे हैं,
तो दुसरे कमरे में मौजूद भाई या बहन
के ईईजी में हलचल देखी गयी.
आपने अपने भाई को मानसिक रूप से छुआ ओर आपके भाई के दिमाग ने उसे मशीन पे दिखाया
आपने अपनी बहन को छूने का मानसिक प्रयास किया और आपकी बहन के दिमाग ने उसे महसूस किया और उसे दिखाया-
दो दिमागों के बीच सूचना का प्रसार
इस बार उन 44 छात्रों के समूह की
जरुरत नहीं पड़ी.
इस बार
ईईजी ने इसे प्रदर्शित कर दिया,
इस बार मिलान सटीक था
और बहुत ही कम संभावना है कि
संशयवादी या
शोध समालोचक
इस प्रयोग में कुच्छ गलती निकाल पायें. और जहाँ तक मुझे पता है,
कहीं कुछ ऐसा प्रकाशित नहीं हुआ जहाँ इन प्रयोगों की आलोचना की गयी हो.
और पारंपरिक सहमति-जन्य विज्ञान के दृष्टिकोण
से अगर देखें तो ये नतीजे विचित्र और जबरदस्त हैं, और ये सच में बहुत कुछ
कहते हैं.
कई बार वैज्ञानिक वर्ग अपने कथनों से हमें चमत्कृत और खुश कर देता हैं
इस परिस्थिति में मैं कहूँगा कि वैज्ञानिक वर्ग ने कुछ न कह कर मुझे चमत्कृत और खुश कर दिया.
इसी क्रम में कुछ और जोड़ते हुए,
ऐसे कई उदाहरण थे जिनमें
दिमाग की ओक्सीपीटल लोब (दिमाग का पिछला हिस्सा),
जिसमें सहोदरों को छूने वाला प्रयोग शामिल है, ने दिमाग के अन्य हिस्सों के मुकाबले ज्यादा प्रतिक्रिया दी.
और ये कुछ
असामान्य है, एक अप्रत्याशित परिणाम है क्योंकि
सूचनाओं को क्रिया-प्रक्रिया और संसाधित करना, जहाँ तक हम जानते हैं, ओक्सीपीटल लोब
(दिमाग के पिछले हिस्से) में नहीं होता -
ओक्सीपीटल लोब वस्तुतः प्राथमिक रूप से दृश्यों से सम्बंधित है.
तो किसी भी अन्य अच्छे शोध की तरह इस शोध ने भी हमें कई अनुत्तरित सवाल दिए जो आगे के शोध
का विषय बन सकते हैं.
अब, अगला परिणाम प्रकाशित नहीं हुआ था.
मुझे यह डॉ. परसिंगर से एक इ-मेल के जरिये मिला था
जिन्होंने
बतलाया था कि कैसे
एक व्यक्ति,
इस बार उन्होंने दो ऑक्टोपस इस्तेमाल किये थे, दोनों दिमागी उद्दीपन प्राप्त कर रहे थे
और
उन्होंने एक व्यक्ति को
कमरे में बैठाया
और
वो जलती-बुझती रौशनी की ओर देख रहा था.
दूसरा व्यक्ति एक दुसरे कमरे में ऑक्टोपस उद्दीपन यंत्र लगाये बैठा था
साथ ही ईईजी भी था.
और उन्होंने पाया कि
जब एक व्यक्ति जलती-बुझती रोशनी की ओर देख रहा था,
उसी वक्त दुसरे व्यक्ति का ईईजी प्रतिक्रिया दे रहा था.
और ये प्रयोग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि
इस क्षेत्र के पुराने सभी शोधों में
मानव मस्तिष्क के साथ/ ऊपर काम हुआ है-
एक मस्तिष्क से दुसरे मस्तिस्क को प्रसारण,
दिमाग का परिक्षण
व्यक्ति का परिक्षण जब वो दूर दर्शन का प्रयास कर रहा है
इस बार एक रौशनी
का प्रयोग हुआ,
एक ऐसी चीज
जिसका
कोई व्यक्तित्व नहीं होता,
कोई निजी आभा और तरंगे नहीं
ये एक सीधा प्रसारण था
एक दिमाग से दुसरे दिमाग को.
और अपनी ईमेल के अंत में
उन्होंने लिखा था कि
जब यह प्रयोग ख़तम हुआ,
तो उन्होंने डाइट-कोक पी कर जश्न
मनाया
और महसूस किया कि हम एक बड़े परिवर्तन के मुहाने पर हैं. अब उस उपकरण की बात करते हैं
जिसकी चर्चा मैं करता आ रहा हूँ, ऑक्टोपस-
मस्तिष्कीय
स्नायु उद्दीपन
यंत्र,
जिसे परसिंगर और कोरेन ने विकसित किया था.
यह शिव यंत्र है
और शिव यंत्र मेरी अपनी इजाद है, जिसे मैंने डॉ. परसिंगर की तकनीक के आधार पर विकसित किया
और इसमें
उनका पूर्ण सहयोग और सहायता रही.
शायद, मेरी उनसे
आधा दर्जन से अधिक बार फ़ोन पर बात हुई होगी
जिनमें उन्होंने मुझे विस्तार से सिग्नल के मापदंड समझाये -
किस तरह से वे घुमते हैं,
जब वे दिमाग के चारों ओर चक्कर लगाते हैं
वे मात्र एक कुंडली से दूसरी कुंडली में नहीं जाते -
वे एक कुंडली से दूसरी कुंडली में एक गति से जाते हैं, मान ले कि
१० की गति से,
फिर १२ की गति से
14.. 16..
18..20..
यानि कि प्रत्येक जगह पर समयांतराल बढ़ता जाता है
जैसे जैसे ये आगे बढ़ता है.
यानि कि सिग्नल बदलते हैं.. चुम्बकीय क्षेत्र बदलते हैं
वे हर मिली सेकंड में कमजोर और शक्तिशाली होते रहते हैं
और
इनकी एक कुंडली से दूसरी कुंडली में स्थानांतरित होने की दर भी
लगातार बदलती रहती है.
एक सवाल है.
हाँ, मुझे उत्तर देने में ख़ुशी होगी.
चुम्बकीय क्षेत्र एक क्षेत्र से सम्बंधित अवधारणा है
मैं इस हिस्से पर शीघ्रता से बात करूँगा
क्योंकि ये कुछ उबाऊ हो जाता है
पर ऊर्जा
विज्ञान की शब्दावली में
वो चीज है जो एक पिंड,
द्रव्यमान या निकाय में होती है और उसे
कार्य करवाती है
और कार्य वो है जो बल लगाने पर बदलता है
और बल वो है जो जड़त्व को बदलता है.
तो, चुम्बकीय क्षेत्र बल होते हैं.
विद्युत् चुम्बकीय विकिरण जैसी चीजें जो विद्युत् चुम्बकीय आवृत्तियों में घटित होती हैं,
ऊर्जा होती हैं.
और
यह एक महत्वपूर्ण अंतर है, इस तकनीक को समझने हेतू क्योंकि
विद्युत् चुम्बकीय
में माइक्रोवेव जैसी चीजें भी शामिल हैं
और आप अपने सर के चारों ओर एक माइक्रोवेव जैसी चीज नहीं चाहेंगे.
जबकि चुम्बकीय क्षेत्र
बिलकुल सुरक्षित होते हैं और जैसा कि मैं
जल्द ही वर्णन करूँगा
हम सब पूरे समय चुम्बकीय क्षेत्र में डूबे रहते हैं, खासकर पृथ्वी के चुम्बकीय
क्षेत्र में,
लगातार.
तो ये एक अच्छा बिंदु है.
तो यह डिजाईन
एक जटिल व्यवस्था का
जिसमें चुम्बकीय क्षेत्र बदलते रहते हैं
और अपना स्थान बदलते रहते हैं
ये डिजाईन
दिमाग में काम करने वाली एक बात, एक चीज, एक कारक से आता है
जिसे बंधन/सेतु का कारक (binding factor)कहते हैं.
और यह सेतु-करक दिमाग की सतह पर पहूँच जाता है
फेलेमस नाम की भीतरी संरचना से निकल कर
फेलेमस जो काम करता है वो है
सेतु बनाने का , जोड़ने का,
ये सारे संवेदी आगतों, जैसे आंखें, कान, नाक, जीभ
त्वचा,
यहाँ तक कि आतंरिक संवेदना को भी जोड़ता है - कैसे मालूम पड़ता है हमें शौचालय जाना है,
कैसे अहसास होता है कि आपने ऐसा कुछ खा लिया है जो नहीं खाना चाहिए था, कैसे महसूस होता है कि ये
आपका पेट है,
आपको पता चल जाता है कि ये आपकी बड़ी आंत है या छोटी आंत है. ये सब
एक ही सतह पर हैं
फेलेमस के लिए. ये सभी हमारे शरीर द्वारा प्रदत्त
आगत सूचना हैं, हमारे कान, आँख,
हमारे आन्त्रांग इत्यादि से भेजी गयी.
इसी क्रम में जोड़ते हुए,
दो अन्य चीजें जो हमारे ज्ञानेन्द्रियों के
अलावा हैं, हमारी सोच और विचार
और हमारी भावनाएं.
और फेलेमस इन सबको
एक अकेले बोधगम्य आसान तत्व में तब्दील कर देता है
जिसे हम स्वयं को प्राप्त आगत सूचना के रूप में
अनुभव कर सकते हैं.
और
सेतु-कारक,
दिमाग के अगले भाग से दिमाग के पिछले भाग तक
इस उदाहरण में दिखाए गए तरह से काम करता है, ये बहुत धीमे दिखाया जा रहा है
फ़र्ज़ कीजिये कि एक बड़ा बटन है
दिमाग के तहखाने में
जिसकी वजह से
ये क्रिया
हो रही है
ये एक तरह से नीचे से ऊपर और पीछे के ओर पूरे दिमाग में फैलता है,
बार-बार
इस तरह आप सेतु-कारक की छवि
अपने दिमाग में महसूस कर सकते हैं.
स्नायुविज्ञानियों के बीच अक्सर यह '40 हर्ट्ज़ घटक' कहलाता है
और ऐसा इसलिए क्योंकि
यह
इस तरह से दिमाग को
एक सेकंड में पच्चीस बार पार करता है.
इसकी गति अलग होती है.
वह कारण जिससे यह सेतु-करक कहलाता है वो है कि यह एक तरह से
हमें प्राप्त होने वाले सारे आगत सूचना को
जोड़ता है, सेतु बनता है.
एक प्रकार से
इससे हम इस सब के बारे में चैतन्य हो पाते हैं, आंशिक या फिर पूर्ण रूप से.
और इसलिए इसका नाम पड़ा ' चेतना हेतु सेतु-कारक'
मेरे अपने काम में इस बारें में सोचते हुए और ऐसी तकनीक जो इसके साथ काम कर सके उसे विक्सित करते हुए,
मैं इसमें कुछ जोड़ना चाहता हूँ और वो ये है कि ये हमें एक व्यक्ति के तौर पर
हमारी चेतना की सामान्य अवस्था के पटल से भी जोडता है.
आपमें चेतनावस्था की एक पूरी श्रेणी होती है.
इंगो स्वान की आँखों को आप ढक दें और तब भी वे देख सकते हैं कि
साइबेरिया के प्रक्षेपात्र रखने के स्थान पर क्या चल रहा है.
मैं ऐसा नहीं कर सकता.
क्या फर्क है?
चेतना की एक अवस्था में आप ऐसा कर सकते हैं, दूसरी में आप ऐसा नहीं कर सकते.
चेतना की वो अवस्था उनके ही भीतर है,
वो मेरे भीतर नहीं है.
वे उन गुरुओं जैसे नहीं हैं जो आपके माथे पर हाथ रख कर आपको ईश्वर का दर्शन करा दें
वो कौशल और अवस्था, जिसमें वो लोग उस समय होते हैं, जब वो ऐसा कर रहे होते हैं, वो उनके ही भीतर के खजाने में
होती है.
पर ये मेरे भीतर के खजाने में नहीं है. मैं ऐसा नहीं कर सकता.
मैं कुछेक लोगों के सरदर्द दूर कर पाया हूँ,
कुछ सर दर्द और छोटे मोटे दर्द मैं दूर कर पाया हूँ, जब मैं आध्यात्मिक उपचार सीखने की कोशिश
कर रहा था
पर मैं असली गुरुओं जो कर पाने में सक्षम थे, उनके नजदीक भी कभी नहीं पहुँच पाया.
तो ये
तकनीक कैसे काम करती है
सेतु-कारक के साथ?
चुम्बकीय क्षेत्र,
चुम्बकीय सिग्नल
सर के चारों ओर घुमाये जाते हैं.
यदि आप ऊपर सर को अपर से देखें तो ये घडी की चाल से विपरीत दिशा में चलते हैं.
सेतु-कारक आगे से पीछे दौड़ते हैं
और जब ये सिग्नल दिमाग के दायीं ओर होते हैं,
तो वे सेतु-कारक के विपरीत दौड़ रहे होते हैं
और जब वे बायीं ओर दौड़ रहे होते हैं तो,
वे सेतु-कारक के साथ उसी दिशा में चल रहे होते हैं.
मतलब, ये सिग्नल सेतु-कारक को,
बायीं ओर होने के समय, बाहर नहीं धकेल रहे होते
और जब दायीं ओर होते हैं तो ये सिग्नल, सेतु-कारक को बाहर धकेल रहे होते हैं.
और वो गति जिससे
ये सिग्नल
एक कुंडली से दूसरी कुंडली पर जाते हैं, वो भी
असल में
सेतु-कारक के गति के अनुसार ही निर्धारित की जाती है.
लगभग सामान गति होने पर, एकदम सामान नहीं पर लगभग सामान होने पर,
दिमाग कुछ भ्रमित हो जाता है
सेतु-कारक की अवस्था के बारे में.
और इस का जो अर्थ है वो है कि जब ये सब हो रहा होता है
तब आप अपने जीवन भर के आदतन
चेतनावस्था से मुक्त हो जाते हैं.
आप क्या नहीं कर सकते हैं
अपनी चेतना के साथ
जब आपको इस प्रकार का उद्दीपन प्राप्त हो रहा हो
इनपुट 552 00:26:34,950 --> 00:26:37,640 प्राप्त हो रहे हों
सेतु-कारक/बंधन कारक आपको आपके सामान्य व्यक्तित्व में बांधे रखता है
और जब आप इसे बदल देते हैं, छेड़ देते हैं, जब आप इसमें
कुछ तबदीली कर देते हैं
तो आप अस्थायी रूप से कुछ समय के लिए
एक प्रकार से एक अलग नया व्यक्ति बन जाते हैं, जिसमें संज्ञानात्मक शक्तियों का भण्डार छुपा होता है.
यहाँ एक दूसरा उदाहरण है
जो
सिग्नलों की चाल दिखाता है और यहं आप चुम्बकीय क्षेत्रों को
ऊपर-निचे छलांग मारते देख सकते हैं.
बड़ा अच्छा होता कि मैं आपको उदाहरण के द्वारा समझा पाता कि कैसे ये सिग्नल समय के साथ गति पकड़ते हैं
पर आप समझ सकते हैं कि कंप्यूटर पर ऐसा चल-चित्र बनाना कितना मुश्किल होता.
एक और बिंदु/बात इन प्रयोगों के बारे में, जिसका मैंने अभी तक जिक्र नहीं किया है
वो ये है कि इसके आगे भी एक प्रतिक्रिया थी, केवल
सिग्नल में नहीं
बल्कि पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में.
और
इन प्रयोगों के परिणामों पर दृष्टि डालने पर पाया गया कि
प्रयोग में शामिल लोग अधिक अच्छी प्रतिक्रिया दे पा रहे थे.
उनके वर्णन, उनका उन्मुक्त भाव से विचार बताना,
जब उन्हें उद्दीपन मिल रहे थे,
ज्यादा सटीकता से
दुसरे व्यक्ति से मिल रहे थे.
ज्यादा नजदीक और सटीक थे जब पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र शांत था.
अब, इस उदाहरण में आप देख सकते हैं कि बायीं ओर
बहुत छोटे हरे रंग के हिस्से हैं जो यह बतलाते हैं कि
पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र
लगभग शून्य
था, उस समय.
और यही वो समय होता है जब इस तरह के प्रयोग, वास्तव में किसी भी प्रकार के अतीन्द्रिय
अध्यात्मिक कार्य खासकर यदि इसमें आतंरिक छवि बनाना शामिल है,
ज्यादा असरदार होते हैं
जब पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र शांत होता है.
एक बार मैं स्फटिक की चीजों से खेल रहा था
कुछ ही समय पहले,
लेटे हुए, और हाथ में स्फटिक की चीजें थीं
और इसकी ऊर्जा को आप सहज रूप से जो भी ये करना चाहे करने दते हैं.
मैंने एक बार बड़ी मात्रा में दृश्यों का आना अनुभव किया. काफी समय बाद मैंने इन स्फटिक का
प्रयोग किया था.
और
मैंने भू-चुम्बकीय संकेतक देखा
तो पाया कि
क्षेत्र सपाट था.
जब मैंने इस बारे में डॉ. परसिंगर से बात की तो उन्होंने कहा ' हाँ, ऐसा ही
होता है'.
और इसके बाद हमेशा मैंने उम्मीद की कि यह फिर होगा और फिर कभी दुबारा यह इतना तीव्र नहीं हुआ.
तो एक और महत्वपूर्ण बात ये है कि
आभासी मौजूदगी का अनुभव जिसका जिक्र मैंने पिछले हफ्ते किया था
जहाँ आपको लगता है कि कोई आस पास है.. आपको लगता है कि आपके पीछे कोई है और जब आप पलटते हैं
तो वहां कोई नहीं होता.
ऐसा ज्यादातर तब होता है
जब
संकेतकों के आंकड़े उच्च होते हैं
शरीर के बाहर होने के अनुभव तब ज्यादा होते हैं
जब भू-चुम्बकीय गतिविधियाँ बढ़ी हुई होती हैं,
अधिक गतिविधि मतलब अधिक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र.
अतीन्द्रिय अनुभव काफी भिन्न होते हैं -
वे शांत समय के दौरान ज्यादा संभावित होते हैं और इसका कारण बड़ा
दिलचस्प है. कारण है कि
शरीर के बाहर होने का अनुभव और
मौजूदगी का अहसास जैसी चीजों में
दिमाग के दोनों तरफ के हिस्से शामिल होते हैं,
जबकि प्रतीत होता है कि अतीन्द्रिय अनुभव में केवल दिमाग का दाहिना भाग शामिल होता है.
मतलब - पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अनुसार हमारी प्रतिक्रिया अलग-अलग होती है और साथ ही
दिमाग के अलग हिस्से काम कर रहे होते हैं
जब हम आध्यात्मिक या धार्मिक अनुभव में उतारे होते हैं
और जब हम
अतीन्द्रिय अनुभव में उतरे होते हैं.
और ये एक
शानदार जानकारी है
खासकर मेरे कार्य-क्षेत्र के लोगों के लिए.
एक और खास बात - मुश्किल वक्त पे अतीन्द्रिय
अनुभव की -
मां को दुसरे स्थान पर रहने वाली अपनी बेटी, जो मुश्किल में है, का पता पड जाना-
ये तब ज्यादा होते हैं जब शांति होती है.
दिमाग अतीन्द्रिय संकेतों के प्रति तब ज्यादा
संवेदी होते हैं जब
एक अशांत दौर के बाद शांत समय आता है.
मतलब - जब पहले पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र उफान पर होता है,
और बहुत सी अशांति होती है, भू-चुम्बकीय तूफ़ान चल रहे होते हैं,
और कुछ घंटों बाद जब चीजें शांत हो रही होती हैं और बहुत सहज हो जाती हैं. वो वक्त होता है
ज्यादा प्रभावी अतीन्द्रिय कार्य के लिए.
और इसके बारे में एक रुचिकर बात ये है कि हमारा दिमाग इसके अनुकूल चलता है,
मतलब कि हमारे दिमाग में कुछ ऐसा प्रक्रम है जो
हमारी चेतना को पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के अनुक्रम में बदल देता है.
और समय-समय पर जब ये अतिरिक्त
सूचना खंड, अतिरिक्त अतीन्द्रिय अनुभव, मस्तिष्क को उपलब्ध होते रहते हैं,
तब तब हमारा दिमाग पूर्ती करता रहता है,
भू-चुम्बकीय शोर की नहीं
जो आप सोचते हैं कि दिमाग के सामान्य कार्य में बाधक हो सकती है,
अपितु भू-चुम्बकीय प्रशांति के प्रति.
मतलब हमारे दिमाग
जो सामान्यतया 'चालू' रहते हैं
दिमाग के सभी हिस्से, सभी केंद्र, चालू रहते हैं जब तक कि उन हिस्सों को 'बंद' करने के लिए न कहा जाये,
सबकुछ कार्यशील रहता है जब तक कि कुछ इसे अवरुद्ध न करे,
ये हमें भू-चुम्बकीय क्षेत्र में आने वाले शांत समय के प्रति अधिक
संवेदी बना देता है.
एक और चीज हमारे दिमाग के बारे में -
ये
मेग्नेटाइट से भरा होता है.
असल में हमारा दिमाग इसलिए पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति प्रतिक्रिया देता है क्योंकि
हम इसी प्रकार
बनाये गए हैं
और हममें भारी मात्रा में
असल मेग्नेटाईट (लौह) क्रिस्टल होते हैं.
पांच लाख
मेग्नेटाईट क्रिस्टल प्रति ग्राम
होते हैं हमारे दिमाग के केंद्र में - सामान्य दिमागी ऊतक में -
पांच लाख प्रति ग्राम
और औसत मानव दिमाग चौदह सौ ग्राम का होता है.
दिमाग का बाहरी
भाग -
झिल्ली जो इसे घेरे रहती है
उसमें प्रति ग्राम १० करोड़ मेग्नेटाईट क्रिस्टल होते हैं.
और
इन मेग्नेटाईट क्रिस्टलों की आकृति
प्रकृति में नहीं पाई जाती.
ये केवल जैविक ऊतकों में मिलती है.
ये खोज कर ली गयी थी तो ये प्रकाशित हुई सन 1992 में
जिसका शीर्षक था
मानव मस्तिष्क में 'बायोमेग्नेटाईट मिनारालाईजेशन' (जैवमेग्नेटाईट धातुकरण)
ये जोसेफ किर्शविंक और अन्य शोधार्थियों द्वारा प्रकाशित की गुई थी.
मैंने उनसे फोन पे बात की थी
क्योंकि मैं इस क्षेत्र में विकास के प्रति काफी रूचि रखता था.
उन्होंने मुझे वो बातें बताई जो प्रकाशित नहीं हुई थी
जैसे कि
अन्य आदिमानव दिमागों में भी वही धातु पदार्थ पाए गए हैं -
चिमपांजी, गिब्बन,
प्रयोगशाला बन्दर.
मुझे नही पता कि आदिमानव क्या थे पर उन्होंने बताया कि
हम ही वो अकेली प्रजाति नहीं हैं जिनमें ये मिनरल होते हैं.
और न ही दिमाग में बनने वाले
क्रिस्टल केवल हमारी प्रजाति में होते हैं, और इसे समझाना कठिन है कि क्यों
हममें ही वो क्रिस्टल की अद्वितीय आकृति आकर लेती है.
वे व्यवस्थित भी होते हैं
और वे साफ़ सुथरी श्रंखला के रूप में प्रकट होते हैं
और ये सब चुम्बकीय क्षेत्र नाम की चीज को बढा देता है
ये एक प्रकार से संवेग का चुम्बकीय प्रकार है.
ये असल में उन्हें ज्यादा बल झेलने में सक्षम बनाता है और यही चुम्बकीय क्षेत्र होते हैं - वे बल होते हैं
ऊर्जा नहीं.
ये उन्हें और अधिक चुम्बकीय बल झेलने में सक्षम बनाता है.
शायद इसी कारण से
दिमाग भू-चुम्बकीय हलचल के मुकाबले शांत समय को अधिक
तरजीह देता है
क्योंकि वो इस तरह व्यवस्थित होते हैं कि
वे ज्यादा अच्छी तरह
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से आने वाली सूचनाओं को संभाल पायें,
बड़े परिवर्तनों को संभल पायें,
बड़े चुम्बकीय क्षेत्रों को संभल पायें. और जब चीजें अचानक से नीचे उतर आती है
और शांत हो जाती हैं, तो इन मेग्नेटाईट क्रिस्टल की लम्बी श्रंखलाओं को
अपना काम भी बदलना होता है. और ये एकदम से नहीं हो सकता;
इसमें घंटों लगते हैं.
और इस प्रकार के सह-सम्बन्ध के कारण,
कुछ अन्य तरह के प्रभाव भी पड़ते हैं. यह 'ऑक्टोपस' अध्ययन से भी पहले आया था,
कुछ उदाहरणों में शायद १०-१५ साल पहले.
डॉ. परसिंगर ने एक चीज की, उन्होंने बड़ी संख्या में पीएसआई प्रयोग उठाये
और सभी को पढ़ा
और देखा कि प्रभाव कितने तीव्र थे,
कितने विलक्षण थे
वे अतीन्द्रिय
तथ्य, उन शोधकर्मियों के लिए जिन्होंने ये अध्ययन किया था. उस अध्ययन में
दूर-दर्शन,
पारेंद्रिय अनुभव आदि शामिल थे -
और उन्होंने उन अध्ययनों में प्रभावों का आकार
साल दर साल इकठ्ठा किया और इन आंकड़ों की तुलना
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की सालाना गतिविधि से की.
उन्होंने पाया कि
पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र उन वर्षों में
अपेक्षाकृत शांत था जब
अधिकाँश प्रभावी अध्ययन किये गए थे.
तो स्वाभाविक रूप से, ये परिणाम पी एस आई शोध के क्षेत्र में
सर्व प्रभावशाली बन पड़े थे
क्योंकि ये कहता है कि वे प्रयोग जो निष्फल प्रतीत हो रहे थे, क्योंकि उनका प्रभाव आकार
बहुत छोटा था,
असल में सफल थे क्योंकि प्रभाव का छोटा आकार सक्रीय
भू-चुम्बकीय वर्षों के कारण था.
एक और अध्ययन में, और मुझे ये सबसे दिलचस्प
लगती है,
डॉ. परसिंगर ने फेट नाम की एक पत्रिका में कुछ आंकड़े देखे -
फेट मेगजीन की ज्यादा
प्रतिष्ठा नहीं है वैज्ञानिक समुदाय में -
पर उन्होंने अपने प्रकाशन के कई वर्षों में
एक चीज की,
उन्होंने अपने अतीन्द्रिय अनुभव बताने और छपवाने वाले लोगों
के आंकड़े इकट्ठे किये
मतलब - जब उन्होंने अतीन्द्रिय आधार पर भविष्यवाणी की
और वो समय जब भविष्यवाणी वाली घटना असल में घटी.
ये जानकारी उनके पास घंटों जितनी सूक्ष्म तो नहीं थी पर दिन उनके पास था.
और उन्होंने जो पाया
वो ये था कि
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के स्तर,
चाहे कम या ज्यादा,
समान थे
उस दिन जब अतीन्द्रिय ज्ञान वाले व्यक्ति ने भविष्यवाणी की थी
और जिस दिन भविष्यवाणी सच हुई.
तो अवश्य एक रिश्ता है
भविष्यवाणी और घटना में, पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के जरिये.
और एक बात जो मैं आपसे पहले ही साझा कर चूका हूँ वो है कि शरीर से बाहर होने के अनुभव
भू-चुम्बकीय तूफानों के समय अधिक संभाव्य होते हैं.
और
उस पत्र को प्रकाशित करवाते समय एक बात उन्होंने कही कि
इस बात की बहुत सम्भावना है कि
वास्तविक क्षेत्र बल कार्यशील चीज नहीं थी
ये केवल क्षेत्र के शक्तिशाली या कमजोर होने की बात नहीं थी
बल्कि भू-चुम्बकीय तूफानों के समय
या जब ये अशांत होता है या फिर बहुत शांत होता है,
तो सूचना या तो मौजूद होती है या नहीं होती
और ये इसमें भूमिका निभाता है. इसका क्षेत्र की शक्ति से कोई लेना-देना नहीं,
बल्कि
किस प्रकार की सूचना इसमें गुंथी है, उससे है.
और सूचना अलग-अलग होगी
जब भू-चुम्बकीय तूफ़ान होंगे
और जब भू-चुम्बकीय शांति होगी.
उस प्रकाशित लेख में एक और बात जो उन्होंने कही और जिसे मैं भी इस श्रंखला में कई मर्तबा कह चूका हूँ
वो ये है कि इस अवधारणा पर
विचार करना चाहिए कि
क्या यह संभव है कि
हमारी चेतना का कुछ हिस्सा
वास्तव में
परस्पर बातचीत करता है,
सूचना लेता है,
ठीक यांत्रिक गियरों की तरह एक-दुसरे से जुड़े हुए होकर,
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र से.
यदि कल को भू-चुम्बकीय क्षेत्र बंद हो जाये
तो मात्र ये नहीं होगा कि
हमारे चारों ओर चुम्बकत्व कम हो जायेगा -
बल्कि धरती का हरेक व्यक्ति
अपनी चेतना में अंतर महसूस करेगा.
और ये विचार करने योग्य है जब आप इस बात पर सोचें कि
कितने ही अतीन्द्रिय ज्ञान वाले लोगों ने भविष्यवाणी की है कि ध्रुव बदल जायेंगे और कितने ही भू-वैज्ञानिकों ने कहा है
कि उत्तर ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव आपस में स्थान बदल लेंगे.
और
बहुत दिलकश तस्वीर है - पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की,
इसे देखकर लगता नहीं कि कितना ज्यादा
गहनता से धरती का चुम्बकत्व प्रभावित हो सकता है यदि
सूर्य के तूफानों में बड़े परिवर्तन हों जाएँ.
ये सब एक बड़े तंत्र का हिस्सा हैं.
और इसलिए मुझे ये कहना अच्छा लगता है कि
हमारे दिमाग धरती के चुम्बकीय क्षेत्र में डूबे हुए हैं,
हम सब चाहे एक न हों,
पर हम सब जुड़े हुए हैं.
तो दिमाग का एक हिस्सा जिसके बारे में यहाँ सबसे ज्यादा बात हो रही है
वो है हिप्पोकेम्पस.
और दोनों हिप्पोकेम्पस नहीं, दाहिने ओर वाला,
जहाँ भाषा के केंद्र नहीं होते.
और अभी तक कोई ठीक ठीक ये नहीं बता पाया है कि दिमाग के दाहिने अर्ध में
क्या चल रहा है
भाषा बायीं ओर घटित होती हैं
पर
महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि अतीन्द्रिय सूचना अशाब्दिक सूचना होती है.
हिप्पोकेम्पुस एक बेहद संज्ञानात्मक संरचना है.
इसे दिमाग का 'सन्दर्भ उत्पन्न करने का इंजन' कहा जाता है. ये चीजें लेता है,
उनका सन्दर्भ ढूंढता है, इनके बीच सम्बन्ध बनाता है
और अगर इसके पास कोई सन्दर्भ नहीं है,
तो ये स्वमेव एक सन्दर्भ उत्पन्न कर लेता है.
यह त्रिविम/स्थानिक स्मृति, स्थानिक
अनुभव में गहरे रूप से शामिल होता है.
ये हमारे आतंरिक नक्शों को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है- कैसे आप बिस्तर से उठकर, दरवाजे से होते हुए
नजदीक की दुकान तक जाते है और फिर लौटते हैं
बिना रास्ते के बारे में सोचे.
ऐसी चीजों में हिप्पोकेम्पस
खासा शामिल होता है.
ये स्मृति की रचना करता है,
हमारे आज के पलों का अनुभव लेता है और
उन्हें स्मृति में तब्दील कर देता है जिसे हम बाद में काम में ले सकते हैं.
ये हमारे सपनों के तत्वों में भी शामिल होता है
ये अन्य दिमागी संरचनाओं के
तारतम्य से
चीजें उठता है और सपनों में डालता है.
ये हमारे सपनों की बारीक संरचना गढ़ता है.
ये थीटा तरंगों का भी स्त्रोत होता है जो
दिमाग से ही बनती हैं.
ये कम आवृत्ति वाली 5-8 हर्ट्ज़ तरंगें होती हैं
जो हमारा दिमाग उत्पन्न करता है जब हम ध्यान,
तन्द्रा,
सम्मोहन
या फिर अर्ध-निद्रा आदि में होते हैं
एक और बात जो मैं बताना चाहता हूँ -
वो सेतु-करक से सम्बंधित है.
जहाँ तक नींद की बात है
इस समय सेतु-कारक हमेशा दिमाग में मौजूद नहीं होता.
ये हमारे जागते वक्त, जब हम चेतना की अवस्था में होते हैं तब मौजूद होता है.
ये तब होता है जब
हम स्वप्न में होते हैं
ऐसा इसलिए क्योंकि स्वप्न में जब हम कोई काम कर रहे होते हैं तब भी वही दिमागी
हिस्से उद्दीप्त होते हैं
जो उसी काम को सच में करते वक्त होते हैं.
और ये एक चौंकाने वाली जानकारी है.
इसने कुछ शोध-कर्मियों को सोचने पर बाध्य कर दिया है कि
सेतु-कारक हमेशा गहन रूप से हमारे स्व के भान से जुड़ा नहीं रहता.
जब आप स्वप्न में होते हैं तो
आप वहां होते हैं,
जब आप सामान्य चेतना में होते हैं तब भी आप वहां होते हैं,
पर जब आप स्वप्न रहित निद्रा में होते हैं,
तब आप कहाँ होते हैं?
ये दिमाग को थोडा झकझोर देने वाला तथ्य है -
पहले आप वहां है, फिर आप वहां नहीं हैं, फिर आप वहां है, फिर आप वहां नहीं हैं,
और आप इसे ईईजी पर देख सकते हैं - स्वप्न निद्रा: उपस्थित
स्वप्नरहित निद्रा:
अनुपस्थित.
इसके पांच चरण होते हैं. मैं सब पर बात नहीं करूँगा
पर आप होते हैं, नहीं होते, होते हैं, नहीं होते.
ये हर रात को सबके साथ होता हैं
और तब भी हम
अपने व्यक्तिगत अस्तित्व के बारे में न जाने कितने अनुमान और भ्रम पाले रहते हैं.
तो, ये एक वास्तविक
उदाहरण है उस तकनीक का जिसकी चर्चा आज मैंने की.
ये
कुछ इस कारण से कि शिव ध्यान करने वालों के आराध्य हैं
और अतिन्द्रित शक्तियां, आध्यात्मिक अभ्यास करने वाले लोगों के बीच आम होती हैं.
तो, आपमें से वे जो
इसे देखना चाह रहे थे -
ये है वो.
आप चाहें तो इसे नजदीक से देख सकते हैं
ये है वो.
अब, आज की चर्चा के दुसरे हिस्से पर जाने से पहले
मैं जानना चाहूँगा कि क्या कोई सवाल है? तकनीक के बारे में?
शारीरिक सनसनाहट के तौर पे ज्यादा कुछ नहीं
जब
सबसे असरदार सत्र रचना प्रयोग की जाती है.
ये एक हलकी परिवर्तित की गयी अवस्था है जो सत्र के शुरुआत में आती है और
लगभग 45 मिनट तक रहती है
सत्र के अंत के करीब व्यक्ति वास्तव में खुदको
थोडा थका हुआ या विश्राम में, बहुत विश्राम में पाते हैं,
उनका दिमाग चाहता है कि वो कुछ बंद या मंद हो जाये क्योंकि
उद्दीपन का लक्ष्य दिमाग का दाहिना हिस्सा होता है
दाहिने अर्ध के
अनुभव और घटनाएँ व्यक्ति की जाग्रति और जागरूकता पर हावी होते हैं.
और सबसे आसानी से
जान सकने वाला
दाहिने अर्ध का तथ्य / घटना है - थकान या विश्राम. किसी और को कुछ
पूछना है? हां.
कोई बात नहीं.
हाँ, यदि आपको अपने लिए ये चाहिए तो www.spiritualbrain.com पर जाएँ
फिर
मेल के जरिये हम आपको जानकारी भेजेंगे
थोड़ी व्यवस्था आपको बैठानी होगी.
एक सॉफ्टवेयर है जिसमें सारी जानकारी और निर्देश निहित हैं.
ये जरुरी है क्योंकि हम नहीं चाहते कि किसी के भी पास उस समय सिग्नल हो
जब
उनके पास सूचना न हो. यानि सूचना और सिग्नल साथ साथ आपके पास होने चाहिए, ये हमारी मंशा है. जैसे ही आप तकनीक को
सूचना से अलग कर देते हैं, नियम-पुस्तिका गायब हो जाती है
सामग्री भुला दी जाती है,
और इस समय ये संभव है कि लोग गलती करें.
ऐसा नहीं है कि उन गलतियों से आपको कोई नुक्सान पहुँच सकता है, लेकिन हम चाहते हैं कि तकनीक प्रभावशाली रहे
और सूचना आपके एक इशारे पर उपलब्ध हो
ये सबसे बेहतर तरीका है, ऐसा करने का.
क्या सिग्नल सहसा ही
कोई से भी चुन लिए गए थे ?
या उन्होंने कैसे सिग्नल का चुनाव किया?
नहीं. जहाँ तक
प्रयोग में इस्तेमाल किये गए सिग्नल के चुनाव की बात है
तो वे अँधेरे में तीर नहीं चला रहे थे.
शुरुआत के प्रयोगों के लिए उन्होंने दो सिग्नल इस्तेमाल किये
और कुछ सिग्नल अब भी इस्तेमाल किये जा रहे हैं पर प्रकाशित नहीं हुए हैं.
एक ही सिग्नल इस्तेमाल किया जाता है
हालाँकि जिस गति से ये एक कुंडली से दूसरी कुंडली पर जाता है
वह
बदलती रहती है, हर चरण के हिसाब से. यानि एक चरण में ये तीव्र गति से चलता है
और दुसरे चरण में कुछ धीमे, फिर और धीमे, और धीमे.
इन दो सिग्नल का इतिहास था-
इनमें से एक अमिगडेला से प्राप्त किया गया था, जिसे पुस्तकीय भाषा में
बर्स्ट x कहते हैं क्योंकि ये अमिगडेला में होने वाले विस्फोट के पैटर्न
जैसा होता है.
इसका उपयोग आध्यात्मिक अनुभव उत्पन्न करने के लिए भी किया गया था. असल में, यह वही सिग्नल हैं जिन्हें
ईश हेलमेट अध्ययनों में इस्तेमाल किया गया था जिनमें
लगभग 1% लोगों ने प्रयोगशाला में भगवान के दर्शन का नुभव किया था.
दूसरा वाला
बनाया गया था ...
ये चहचहाने के पैटर्न से प्रेरित था, ये पैटर्न फंक्शन जनरेटर नमक उपकरण से निकलते हैं
इसका
इतिहास है कि इसके उपयोग से
शक्तिशाली परिवर्तित अवस्थाएं उत्पन्न होती हैं, जब इन्हें दाहिने अर्ध पर इस्तेमाल किया जाता है.
और क्योंकि अतीन्द्रिय प्रभाव वस्तुतः धार्मिक अनुभव नहीं होते,
तो पहले वाला सिग्नल चुनाव से बाहर हो गया.
और दाहिने अर्ध से शक्तिशाली प्रतिक्रिया प्राप्त होने के कारण
दुसरे के चुनाव की प्रत्याशा बढ़ गयी. इस तरह से सिग्नल का चुनाव हुआ.
चलिए
दुसरी सामग्री पर
चलते हैं
और मैं आपको पहले ही चेतावनी दे देना चाहता हूँ कि ये भाग
जिस पर मैं अब बात करूँगा - चमत्कार
ये हमारे प्रथम भाग के मुकाबले कही ज्यादा कल्पना से जुड़ा हुआ है
इस विषय पर हमें मार्गदर्शन देने हेतु काफी कम सबूत हैं
और तब भी इस बारे में बात करना मूल्यवान है.
आंशिक रूप से इसलिए
कि दुनिया के सभी धर्मों में इनकी खासी भूमिका रही है -
यीशु ने चमत्कार किये, बुद्ध ने किये
और
उनके बारे में जानना मूल्यवान है.
जनता इनकी बारे में जिज्ञासु है, और अंततः जनता ही पैसा खर्च करती है
विज्ञान पर
और तब भी मैं एक प्रकार से सबूतों की श्रंखला का अनुगमन कर सकता हूँ, बन सकता हूँ
उनमें से एक मेरा स्वयं का इतिहास है जिसमें मैं कुछ साल पहले तक शामिल था
और ठीक डॉ. परसिंगर और इंगो स्वान वाले प्रयोग की तरह
मात्र एक प्रयोगार्थी ,
यदि उनका चयन ठीक से किया जावे
और उन को दिए जाने वाला उद्दीपन यदि सही जगह पर
लक्षित हो
तो मात्र एक प्रयोग पात्र पे किये जाने के बावजूद भी ये मूल्यवान हो सकता है, हालाँकि ये निर्णायक नहीं होगा, ये
अंतिम भी नहीं होगा,
ज्यादा से ज्यादा आप इस पर और शोध करवा सकते हैं
और फिर भी यह किसी तरह कमतर नहीं है और महत्वपूर्ण है.
ठीक ...
हाँ, एक सवाल है.
क्या आप चमत्कार की कोई परिभाषा दे सकते हैं
हाँ
चमत्कार हैं ...
मुझे एक दूसरा शब्द इस्तेमाल करना होगा और उसकी भी परिभाषा देनी होगी -
'असामान्य'- चमत्कार सामान्य अनुभवों, जिन्हें चिकित्सीय स्नायुविज्ञान या सामान्य भौतिकी के नियमों
से समझाया जा सकता है, की परिधि
से परे
असामान्य घटनाएँ हैं.
मैं सब प्रकार के अतीन्द्रिय घटनाओं की बात नहीं कर रहा था,
चाय की पत्तियों से भविष्य पढ़ देना
जैसी चीज, हमारी चर्चा में ठीक नहीं बैठती.
हम प्राथमिक रूप से
ऐसे चमत्कारों की बात कर रहे हैं, जिनका स्त्रोत
मानव चेतना में है.
तो, उदाहरण के लिए,
मेरी रसोई में पके केक में
उभर आये 'मदर मैरी' के अक्स की गहन व्याख्या मैं नहीं करूँगा.
ईश्वर का चमत्कार
और केक में दिखने वाले मदर मेरी का अक्स ऐसे लिया जायेगा कि -
ये ईश्वर का कोई संकेत है, उनका दिया आशीर्वाद है,
ये दिमाग के चमत्कार से
अलग है, भिन्न है.
और आप में से जो केक के बारें में जिज्ञासा रखते हैं तो मैं आपको बतलाता हूँ कि
ये मैक्सिको का एक पकवान है. ये मकई से बना था,
(हंसी).
ठीक है, तो अब कुछ और गंभीरता से चमत्कार पर बात करते हैं,
बुद्ध परंपरा में
एक प्राचीन धार्मिक वर्णन है,
जिसमें चमत्कार कैसे कर सकते हैं, इस पर निर्देशों का विस्तार से वर्णन है.
इसे विशुद्धमगा कहा जाता है
जिसका अर्थ है विशुद्धि का मार्ग या रास्ता
या
या पगडण्डी
इसे बुद्धघोष आचार्य ने लिखा था, बारहवीं शताब्दी में (मेरा मानना है)
और अभी
हम्म
बुद्द्ध के समय के 1500 वर्ष बाद.
विशाल मात्र में सूचना का भण्डार इकठ्ठा है, दुनिया भर में फैले
बौद्ध मठों में.
पर केंद्रीकृत सूचना भंडार की कोई परंपरा वहां नहीं थी, वहां कोई पत्र पत्रिका नहीं थे,
कोई वेबसाईट नहीं थीं,
दुसरे मंदिर से सूचना प्राप्त करने का कोई तंत्र नहीं था.
इस व्यक्ति ने विभिन्न स्त्रोतों से सूचना इकट्ठी की और उसे
एक किताब में संक्षेप में उतर दिया और हालाँकि मैं संक्षेप कह रहा हूँ
पर किताब में हजारों पन्ने हैं.
इस किताब में एक अध्याय है, शायद अध्याय 12
'एकाग्रता का वर्णन'
अगर आप ज्यादा पढ़ सकते हैं और वाक्यों में छुपे भाव समझ सकते हैं
और
शब्दकोष खंगाल सकते हैं, तो आप पाएंगे कि किस प्रकार चमत्कार किये
जाते हैं. इसमें से कुछ जानकारी मैं आज आपके साथ साझा करूँगा.
बुद्धघोष आचार्य के अनुसार,
चेतना की एक अवस्था होती है
जिसे "अनंत दिक् का साम्राज्य" कहते हैं और ये आकार रहित
तन्मयता वाली अवस्था होती है
ये चेतना की वो अवस्था होती है जो ध्यान की वस्तु में तन्मय हो जाने पर प्रकट होती है.
इसमें
अनंत आकाश का अनुभव
भी होता है.
अब, ये तस्वीर जो अब तक के सभी लेक्चर में आई है
ये इस अवस्था का एक आम प्रकार है जिसे आम लोग समझ पायें
इसको 'शून्य' कहा जाता है.
निकट मृत्यु अनुभवों में ये कई बार प्रकट होता है, जहाँ मध्य में एक रोशन बिंदु होता है.
पियोटी(नशे) सेवन के बाद भी ऐसे दृश्य लोगों ने देखे हैं.
ऐसे लोग भी हैं जिन्हें सर पर चोट लगी और उन्हें ऐसा अनुभव हुआ.
और.. प्रकाश के बिंदु के बिना
ये केवल
एक अनंत अँधेरा आकाश है.
पर इसमें स्थान के भाव के अलावा और भी बहुत कुछ है
इसकी एक बनावट होती है, इसका एक कम्पन होता है, इसकी एक आवाज़ होती है जिसे सुना नहीं जा सकता, बनावट जिसे
छुआ नहीं जा सकता
इसके पास
देने के लिए एक सूचना/ जानकारी होती है
पर शब्द प्रकट नहीं होते
जिससे सूचना को प्राप्त किया जा सके.
मेरे विचार में इस अवस्था में जो हो रहा होता है वो ये है कि
जब व्यक्ति
अनंत के साथ आमने-सामने होता है
अपने ज़हन में,
वो ये है कि त्रिविम/आकाशीय अनुभव
जो
हिप्पोकेम्पस का क्षेत्र है
अबाधित हो जाता है.
सामान्यतः, मुझे जगह के अनुभव के लिए
मुझे
वो स्थान जिसमें मैं हूँ, लेना होगा और
उसे सिकोड़ कर उतना छोटा बना देना होगा जितना मेरा दिमाग संभाल सके.
वही ... अगर ये मेरे लिए सही है तो सबके लिए सही है.
तो ये सच में संभव है. कुछ लोग इसे समझ नहीं पाते
पर ये सच में संभव है कि आप एक कमरे में हों
और आप अपना ध्यान
'कमरे में क्या है' इस पर नहीं
अपितु 'कमरे में कितना स्थान और आयाम भरा है' इस पर केन्द्रित करें
ताकि आप जगह का भाव न प्राप्त करें
बल्कि
इसने कितनी जगह समाहित है इस पर ध्यान लगा पायें.
और अगर आप इसे अबाधित कर दें, तो दिमाग ...ऐसा कहा जाता है कि दिमाग
फलन बना कर काम करता है
फिर ये फलन को रोक देता है, बाधित कर देता है
और फिर बाधा/रोक को बाधित कर देता है
और फिर फलन की बाधा/रोक की बाधा को बाधित कर देता है
मतलब विकासात्मक इतिहास में दिमाग की जटिलता बढती जाती है
बाधायें बनाने से,
जटिल स्तरों पर बाधाएं बनाते जाने से,
जब तक कि बाधा के पांच या छ पायेदान से
एक अकेला पायेदान ना बन जाये. एक को चालू कर दो
दुसरे को बंद कर दो
तीन हों तो
ताकि एक अकेली मस्तिष्कीय संरचना जो
एक या दो मुख्य कार्य करती है
असल में, विस्तार करने पर
सैंकड़ो-हजारों तरीके से काम कर सकती है, और ये एक तरीका है जिससे
दिमाग एक साधारण चीज
जो सिर्फ एक कीड़े को यह बता सकता है कि
क्या भोजन है और क्या नहीं
उससे इस तरह का दिमाग जो हमारे पास है, में विकसित हुआ
जहाँ हम बता सकते हैं कि भोजन क्या है और क्या नहीं लेकिन, अगर हम चाहें तो कलन भी
सीख सकते हैं.
और मैं उम्मीद करता हूँ कि ये अंतिम बार है जब मैंने कलन शब्द का इस्तेमाल किया है.
तो लौटते हैं, ये दाहिने ओर हिप्पोकेम्पस है
और अधिकतम सम्भावना है कि यही शून्य का अनुभव देने वाला स्त्रोत है क्योंकि ये दाहिने ओर स्थित है
और ये ऐसी सूचना को संसाधित करता है जो शब्दों में प्राप्त नहीं होती.
ये सबसे महत्वपूर्ण है,
जहाँ तक दिमाग के भीतरी हिस्सों /संरचनाओं की बात है,
हमारी आयाम और स्थान को समझने की
क्षमता के लिए,
त्रिविम सम्भंधों को समझाने के लिए,
और हमारे मानसिक नक्शों के साथ काम करने के लिए.
ये शरीर के बाहर होने के अनुभव में भी निहित है,
जिसमें आप
अनुभव करते हैं कि
आपका शरीर और आप आकाश में अलग अलग स्थान पर हैं.
वो एक तरीका/कारण जिससे आप ये अनुभव करते हैं कि आप शरीर के बाहर हैं
वो है कि
आप एक अलग स्थान पर हैं
और आपका शरीर अलग स्थान पर है.
और ये छोटा सा,
हल्का, शायद महत्त्वहीन जानकारी
असल में हमें एक मजबूत और महत्वपूर्ण इशारा देती है ये समजहने के लिए कि कौनसे दिमागी हिस्से
इसमें शामिल होते हैं.
एक और बात, हिप्पोकेम्पस के बारे में और मुझे लगता है कि ये मैं पहले बता चूका हूँ पर दुबारा बताने में
कोई नुक्सान नहीं
ये मस्तिष्क की थीटा तरंगों का मुख्य और शायद अकेला स्त्रोत है
और इसमें अर्धनिद्रा, सम्मोहन, ध्यान, तन्द्रा आदि चीजें आती हैं.
आपको
ये समझाने हेतु कि हिप्पोकेम्पस
क्या कर सकता है
और
क्यों दाहिने ओर वाला, बायीं ओर वाले से बहुत अलग है,
मैं आपसे थोड़े समय के लिए एक कल्पना में उतरने के लिए कहूँगा;
एक निर्देशित मानसिक दर्शन
और आप ऐसा कुछ नहीं
देखेंगे (मानसिक रूप से)
जो आप सामान्यतः देखते होंगे.
इस क्रिया के पहले हिस्से में
आप ये करेंगे कि
आप कल्पना करें ...
आप सब कृपया अपनी आँखें बंद कर लें,
इस तस्वीर को देखने के बाद.
सब लोग कुछ गहरी साँसें लें,
कृपया
सांस भीतर लें.
और
कल्पना करें कि आपके पीछे का
स्थान
और आपके बायीं ओर की जगह
बढ़ गयी है
अनंत हो गयी है
आकाश तक बढ़ गयी है. और, आपके दाहिने ओर की जगह आपके ठीक पीछे ख़त्म हो गयी है.
अपना ध्यान और एकाग्रता बनाये रखें, अपनी आँखें बंद रखें,
अपनी बैठने की मुद्रा बनाये रखें
अब आप
स्थानों की अदला बदली कर दें
यानि कि वो अनंत
अँधेरी विशाल रिक्त जगह
आपके पीछे
और आपके दाहिने ओर होगी.
और आपके बायीं ओर को पीछे वाली जगह बंद है, जैसे की दिवार हो.
अब आप लौट आयें,
अपनी आँखें खोल लें,
वापस मेरे साथ आ जाएँ.
मैं पूछना चाहता हूँ कि कितने लोगों ने संवेदना में अंतर महसूस किया
जब
आप दोनों तरफ रिक्त स्थान की कल्पना कर रहे थे ?
ये तो काफी बड़ी संख्या हुई. हमारे पास
बहुत पवित्र
लोग हैं, आज.
अपने जो अनुभव किया वो
हिप्पोकेम्पस द्वारा दिया गया इनपुट संकेत था.
सामान्यत
दायाँ दिमाग बायाँ शरीर संभालता है
पर कल्पना के स्तर पर,
यह उलट होता है.
यदि कभी भी आपको लगे कि
जो कल्पना जो अपने अभी-अभी की,
वो आपको एक जबरदस्त भ्रम जैसी प्रतीत हुई,
आप पाएंगे के ये भाग/सिरे अदल-बदल हो गए थे.
और यदि आप अधिकांश लोगों के जैसे हैं तो आप जो दाहिने ओर महसूस करते हैं वो
कहीं ज्यादा आकर्षक था,
सच में दिलचस्प - आप दुसरे चरण वाली रिक्त जगह में जाना चाहते थे.
और वो जगह,
वो संवेदना/सनसनाहट जो आपने अपने बाएं ओर खुली जगह की कल्पना करके उत्पन्न की थी
वो उबाऊ, सपाट, बासी, नीरस होने की सम्भावना है.
और ऐसा इसलिए क्योंकि दाहिने ओर का हिप्पोकेम्पस
कहीं ज्यादा दूर-दर्शी, धनात्मक और आशावादी होता है.
ये एक सोचने वाला, संज्ञानात्मक हिस्सा और संरचना है
और इसका संज्ञान का, समझने का तरीका
दाहिने ओर बाएं ओर अलग अलग होता है.
दायाँ हिस्सा काफी अधिक आध्यात्मिक होता है,
वहीँ बायां हिस्सा कही ज्यादा दुनियावी होता है, अगर मैं अवैज्ञानिक और आम भाषा में कहूँ.
तो,
कहना चाहिए - आपके हिप्पोकेम्पस में आपका स्वागत है
आपमें से वो लोग जो आज की चर्चा से कोई चीज अपनाना चाहेंगे,
उनको मेरी सलाह है कि वे इसी चीज को अपनाएं.
अपने दाई ओर के पीछे वाले खुले स्थान की कल्पना करना
अपने भीतरी तंत्र को
ध्यान, प्रार्थना, योग आदि के लिए साफ़ और तैयार करने का बेहतरीन तरीका हो सकता है.
आपको २० मिनट तक
गहरे ध्यान और सधी हुई मुद्रा मैं बैठकर
पूर्ण एकाग्रता प्राप्त करने की जरुरत नहीं.
आप बस शुरू करें,
खुली जगह का ध्यान करें
और फिर अन्य अभ्यास शुरू करें. ये एक अकेला, अपने आप में पूर्ण आध्यात्मिक अभ्यास नहीं है,
ये तो
एक बहुत अच्छा तरीका है जिससे
आप अन्य अभ्यास के लिए तैयार हो सकते हैं.
और अब, जब मैं आपको हिप्पोकेम्पस के बारे में थोडा बहुत बता चूका हूँ,
तो मैं आपको चमत्कारों के बारे में भी कुछ और बता सकता हूँ.
तो, बुद्धघोष आचार्य ने
अपनी पुस्तक 'विशुद्धमग्गा',
विशुद्धि का मार्ग, में जो कहा है
वो ये है कि चमत्कार करने के लिए
अपनी आँखें बंद करें
और चेतना की उस अवस्था में उतरें जहाँ आपको अपनी आँखों के पीछे
अनंत आकाश दिखायी दे.
उन्होंने ध्यान के कई तरीके बताये हैं
जिनसे चेतना की ये अवस्था कुछ आसानी से प्राप्त की जा सकती है.
इस कार्यक्रम के विज्ञापन में कहा गया था कि
मैं चमत्कार करना समझाऊंगा.
शायद पर्चे पर इतनी जगह नहीं थी कि मैं ये लिख पाता कि
आप ज्यादा विचलित न हो जाएँ यदि आज की इस चर्चा के बाद
आप पानी को शराब में ना बदल पायें.
मैं नापा घाटियों के अंगूरों के बगीचे में घूमा हूँ, और इस कौशल को इसके असली मोल से ज्यादा भाव दिया जाता है.
तो, उन्होंने कहा है कि पहले चेतना की उस विशिष्ठ अवस्था को प्राप्त करो. और वो
केंद्र में प्रकाश बिंदु के साथ शुन्य की बात नहीं कर रहे .
वे बात कर रहे हैं कि आप
आँखें बंद करके, बजाय पलकों के पीछे के धुंधले अँधेरे को देखने के,
अपने आप को
अनंत में उतार दें.
इसमें खुले विशाल स्थान का भाव होना चाहिए.
फिर आगे का भाग
वो जगह होती है जहाँ
दृश्य प्रकट हो सकते हैं.
अगर आप उस चेतनावस्था में हैं और आप किसी चीज की कल्पना करते हैं,
तो आप सच में उस चीज का मानसिक चित्र अपने समक्ष प्राप्त कर सकते हैं.
एक और चीज
ये है कि जब आप उस चेतनावस्था में होते हैं तो
आप
किसी भावेच्छा को प्रक्षेपित कर सकते हैं
और सबसे आम तकनीक, जिसके बारे में मैं जानता हूँ
और बड़ा अजीब हैं कि मैंने इसे कहीं भी लिखा हुआ नहीं पाया,
किसी और के दिमाग में
कोई विचार डाल देने की, ये है कि
आप उसकी आवाज़ की कल्पना करें,
और कल्पना करें की वो वही बात कह रहा है जो
जो विचार आप उसके दिमाग में डालना चाहते हैं.
और तब, जब तक कि कोई कारण न हो जो बाधा उत्पन्न करे,
वे शब्द, जो भी शब्द हों,
उनकी चेतना में चले जायेंगे.
मैं एक साधारण सी चीज किया करता था, इसे प्रदर्शित करने के लिए. मैं एक शब्द चुन लिया करता था
एक उदाहरण में मैंने 'अफगानिस्तान' शब्द चुना था
- यह तब की बात थी जब अफगानिस्तान में लड़ाई समाचारों में थी.
और मैं एक मित्र के साथ बैठा था, मैंने कहा कि मैं उसके मुहं से एक शब्द कहलवा सकता हूँ. उसने कहा 'ठीक है,
करो.'
इस पर मैंने कागज के एक टुकड़े पर 'अफगानिस्तान' लिखा, कागज मोड़ा और
उसकी जेब में डाल दिया
सामने खाने की टेबल के पास गया
और इस दौरान
कोशिश (मानसिक) की कि उसकी आवाज़ में अफगानिस्तान सुन लूं .
तब एक जगह बातचीत एक दोस्त के बारे में चल पड़ी जिसकी कोई परेशानी चल रही थी
एक दूकानदार के साथ.
और उसने कहा "हाँ .. वो अफगानिस्तान है.
नहीं, वो .. नहीं वो
वो अफगानिस्तान से है.
वो .."
और मैंने कहा
'अफगानी'. उसने कहा :हाँ, ये कहना चाहता था. वो अफगानी है"
मैंने कहा "ठीक है, अब कागज खोलो और देखो.
वो पगला गया था !
मैं उसके दिमाग
शब्द डाल पाने में सफल हो चूका था. एक कारण जिसकी वजह से मैंने वो शब्द चुना, वो ये था कि
ये एक सामान्य आम शब्द नहीं था.
ये सामान्य बातचीत में निकल के आ सकता था और ये ऐसा शब्द नहीं था जो धार्मिक,
यौन, वैज्ञानिक,
गणितीय प्रकार का
भाव निहित करता था.
यानि उसके पास कोई कारण नहीं था जिससे वो इसे रोके.
यदि मैं बहुभुज शब्द चुनता और यदि वो ऐसा व्यक्ति होता जो गणित से दूर ही रहना चाहता होता
तो
यह प्रयोग असफल हो जाता.
ये भगवान दास हैं.
सामान्य रूप से मैं अपने प्रयोग में शामिल लोगों के नाम उजागर नहीं करता,
पर जब मैंने भगवान दास से कहा जो कि
'इट इस हियर नाऊ, आर यु?'
के लेखक हैं
ये उनके गुरु के साथ उनके जीवन के अनुभवों के बारे में है,
तो उन्होंने कहा "नहीं, तुम मेरे नाम का इस्तेमाल कर सकते हो.
कहीं भी इस्तेमाल करो. मैं प्रसिद्द होना चाहता हूँ.
मेरा नाम छुपा कर मत रखो,". और मैंने कहा "ठीक है, मैं जहाँ तक हो सकेगा, तुम्हारे नाम का उतना अधिक
इस्तेमाल करूँगा".
तो इसलिए, भगवान दास, भगवान दास, भगवान दास.
मैं उम्मीद करता हूँ कि वे ये विडियो देखें और वो इससे खुश हो जाएँ.
तो, भगवान दास
मेरी एक चर्चा हुई जिसमें मैंने उन्हें 'शून्य' के अनुभव के बारे में बताया
और उन्होंने कहा "हाँ.. मैं जानता हूँ उस चेतनावस्था के बारे में. वो माँ काली की कोख है".
माँ काली की कोख? मैंने कहा. उसने कहा "हाँ, मैं काली उपासक हूँ, मैं काली के भजन गाता हूँ और
काली पूजा करता हूँ.
मैं रोज सवेरे वेदी के सम्मुख काली की पूजा करता हूँ
तम्बूरे बजाता हूँ और भजन गाता हूँ
और जब वो ऐसा करता था, वो चेतना की एक अवस्था में चला जाता था.
ये और देवी-देवता की उपासना के वक्त नहीं होता था, ये काली उपासना पर ही होता था.
मैं इसका कोई मजबूत तर्क या व्याख्या नहीं दे सकता, और मैं कोशिश भी नहीं कर रहा.
पर, वो ऐसा व्यक्ति था, जो उस
अनुभव को जानता था जिसके बारे में मैं बात कर रहा था.
हमने कुछ विवरणों की तुलना की,
कम्पन का अहसास और शुन्य की अवस्था में जीवन्तता का अहसास.
और.. हाँ, हम ..
हम एक ही चीज के बारे में बात कर रहे थे -
अनंत का साम्राज्य,
शून्य, काली की कोख - जो चाहे नाम दो.
ये कोई बहुत विरला अनुभव नहीं है
तो, बुद्धघोष आचार्य ने कहा था
कि आपको चेतना की उस अवस्था में उतरना पड़ेगा यदि आप चमत्कार करना चाहते हैं
और जब आप उस अवस्था में होते हैं तो, आप जिस चीज की कल्पना करते हैं
वो आपके समक्ष आ जाएगी,
अगर आप भली प्रकार से उस अवस्था में स्थिर हैं.
यदि आप उस अवस्था में हैं और आप आसानी से विचलित हो जाते हैं, तो अन्य चीज प्रकट होती है, आप तैयार नहीं हैं.
भगवान दास के एक अन्य गुरु भी थे
नीम करोली बाबा.
रीती का निर्वाह होना चाहिए - मैं ऐसे कहूँगा जय श्री श्री नीम करोली बाबा.
वे एक अद्भुत गुरु थे, एक प्रभावशाली गुरु
उनके पास जबरदस्त अतिन्द्र्य शक्तियां थीं.
वे चमत्कार भी करते थे.
पर जीसस के विपरीत वे आधुनिक ज़माने में चमत्कार करते थे,
कैमरा लगे होते थे,
बड़ी संख्या में लोग होते थे
हिन्दू तिथियों के हिसाब से कुछ पवित्र दिनों सैंकड़ो लोग उनके आश्रम में आते थे
कोई उन्हें एक सेब देता
वो उसे कम्बल के नीचे डाल देते
और फिर एक के बाद एक सेब भीड़ की तरफ उछालते रहते.
मछली और रोटी वाली बात इसके सामने
फीकी दिखती है. पर दोनों की दिव्यता की कोई तुलना नहीं.
वो वस्तुतः हवा में से
चीजें प्रकट कर देते थे. एक कर उनका एक शिष्य इनके पास आ कर बोला
"मुझे रूपये-पैसे की भयानक समस्या है.
मैं क्या करूँ?".
वो एक भारतीय व्यापारी था.
उन्होंने कहा "ठीक .. अपना सब से बढ़िया सूट पहनना,
दिल्ली की ट्रेन पकड़ो,
और इस समय इस जगह पर उपस्थित रहना
और तुम्हारी समस्या का समाधान हो जाएगा."
उस आदमी ने कहा
आप स्वामी हो.
मैं ठीक वैसा ही करूँगा जो आपने कहा है."
वो आदमी दिल्ली में अपने सबसे बढ़िया सूट में
कहे गए समय और जगह पर खड़ा था
तभी उसका एक दोस्त वहां आया जिसने अभी अभी
एक बडा व्यापारिक सौदा किया था
और उसे कार्यकारी भागिदार की जरुरत थी.
और हाँ
अगर आप उससे जुड़ते हैं भागिदार के र्रोप में और कागजात पर दस्तखत कर देते हैं तो
आपको पेशगी कुछ दसियों लाख रूपये भी मिलेंगे.
वे नजदीक की
एक कॉफ़ी शॉप पर गए, कागजात पर दस्तखत किये
चेक मिला
बैंक गया, पैसा जेब में डाला,
और आश्रम में वापस गया -
-समस्या ख़तम-
ये एक बढ़िया चीज थी. सच में, काश कोई मेरे साथ भी
ऐसी कोई चीज करे.
पर बात ये है कि वे हवा में से चीजें प्रकट कर सकने में सक्षम थे
और जीसस की तरह, वो केवल चीजें प्रकट ही नहीं
कर सकते थे.
वो किसी चीज की
प्रतियाँ भी बना सकते थे.
जैसा कि आप जानते हैं (हमारी बातचीत से) कि कमरा दिमाग, क्योंकि
विद्युतीय गतिविधयों
लगातार मिलान वाली चुम्बकीय गतिविधियाँ
पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र के माध्यम से
प्रसारित करता रहता है,
आस पास के सभी दिमागों को.
चुम्बकीय क्षेत्र कभी भी बल में शून्य नहीं होते,
पर
कमजोर होते रहते हैं,
एक निश्चित दूरी पर ये अपनी शुरूआती मात्रा का आधा हो जाते हैं,
फिर एक निश्चित दूरी पर उसका आधा-
जिसे
प्रतिलोम वर्ग का नियम कहते हैं.
पर वे कभी भी शून्य तक नहीं पहुँचते.
तो, जब भी नीम करोली बाबा
चमत्कार कर रहे होते थे
वे उस अवस्था में होते थे जिसमें होने पर ही चमत्कार संभव थे.
भगवान दास
उनके पास थे
जब वे इन चेत्नावास्थाओं में थे.
तो क्या भगवान दास का दिमाग
करोली बाबा के दिमाग से सूचना पकड़ सकता था
जिससे उसके खुद के चमत्कार दिखा पाने की सम्भावना बढ़ सकती थी? एक चीज
जो मैं विशेष रूप से बताना चाहता हूँ, अन्वेषण के बारें में, जिसकी चर्चा मैं अब करूँगा
वो ये हैं कि
इसमें एक पूर्वधारणा शामिल है
और वो धारणा ये है कि
चमत्कार करना एक वास्तविक मानव व्यवहार है. ये एक मानव व्यवहार है जो
सच में किसी वास्तविक घटना को घटित करता है
और ये पूर्वधारणा
औचित्यपूर्ण है क्योंकि चमत्कारों में विश्वास अविश्वसनीय रूप से फैला हुआ है
और आप उनकी पड़ताल नहीं कर सकते, बस उन्हें मानने से इनकार कर सकते हैं
बिना उन्हें किये.
देर सबेर वैज्ञानिक समुदाय में से किसी को
निर्णय लेना होगा कि 'ठीक है .. चमत्कार होते हैं.
चलिए इसकी पड़ताल करते हैं.'
बजाय ये कहने के कि
"ऐसा कुछ नहीं होता."
चमत्कारिक
घटनायें, जो पूरे मानव इतिहास के दौरान
कुछ विशिष्ठ लोगों के इर्द गिर्द घटती आ रही हैं, की कहानियां और समाचारों के जखीरे के जवाब में
ये कहना
कि - ये सब बकवास है
ये आज के हमारे सुविकसित वैज्ञानिक समुदाय के लिए सच में
शोभा देने वाली बात नहीं है
एक और चीज जो मैं विशेष कर बताना चाहता हूँ
वो है कि ये संस्कृतिक प्रसार नहीं है.
संस्कृत में एक शब्द है
'विद्या'
जिसका अर्थ है ज्ञान.
थाई भाषा में
शब्द है 'विचा'
सम्बंधित
और आधुनिक अंग्रेजी भाषा का शब्द है 'विडियो'
और ये सभी शब्द
भारतीय-यूरोपीय भाषा मूल
से आते है.
मतलब असल में ये संस्कृतिक रूप से एक जगह से दूसरी जगह प्रसारित हुए.
चमत्कारों
की ख़बरें स्थानीय ऑस्ट्रेलियाई लोगों से
नई दुनिया के मूल अमेरिकी लोगों से, और जहाँ-तहां से आती हैं
और ये संस्कृतिक प्रसार नहीं है.
चमत्कार में विश्वास
इसलिए नहीं होता क्योंकि
आपके पिता इसमें भरोसा करते थे, और उन्हें उनके पिता से ये मिला था
उनको उनके पिता से, आदि आदि
चमत्कारों में भरोसा
ऐसा भरोसा है जो पृथक रूप से
दुनिया के अलग-अलग स्थानों पर पनपा.
मेरे लिए ये बात एक महत्पूर्ण आपत्ति को ख़ारिज करती है, वो आपत्ति जो कई संशयवादी वैज्ञानिक को
इनकी सच्चाई स्वीकार करने से रोकती है,
क्योंकि वे इसे एक संस्कृतिक प्रसार मानते हैं
उनका मानना है की लोग ऐसी चीजों में यूँ ही भरोसा कर लेते हैं. अगर आप इसलिए किसी चीज पे भरोसा ना करते क्योंकि वो
पारंपरिक हैं तो
फिर कोई भी चीजों पर भरोसा नहीं करेगा. पर इससे यह स्पष्ट नहीं होता की आखिर कैसे एक ही विश्वास भिन्न संस्कृतियों में
पनपा जिन्हें आपस में संवाद का कभी कोई अवसर ही नहीं मिला.
तो भगवान दास शायद हाँ या ना भी
अपने गुरु के मस्तिष्क से प्रसारित सूचना को पकड़ पाया हो
जिससे वो चेतना की उस अवस्था को प्राप्त कर सकता था
जिसमे चमत्कार घटित हो सकते थे.
चमत्कारों में,
बुद्धघोष आचार्य के अनुसार, चूँकि
दिमाग में अनंत विस्तार का अनुभव शामिल होता है,
और स्नायुविज्ञान के अनुसार ये मस्तिष्क में दाहिने ओर स्थित
हिप्पोकेम्पस का मामला है.
जिसक अर्थ निकलता है कि, ह्में दाहिने हिप्पोकेम्पस से
व्युत्पन्न सिग्नल का प्रयोग करना चाहिए
और मोटा-मोटा ऐसी ही व्यवस्था का प्रयोग हमने भगवान दास पर किया.
वे तीन सत्रों से गुजरे
शिव उपकरण, ये ऑक्टोपस उपकरण
16
चुम्बकीय कुंडलियों युक्त होती है,
इसमें केवल दो थीं.
हमने इसे उनके दिमाग के दाहिने ओर रखा - एक धनात्मक और एक ऋणात्मक क्षेत्र
कुंडलियों से गुजरता है
हमने इसमें हिप्पोकेम्पस से प्राप्त सिग्नल का प्रयोग किया.
ये सिग्नल जिसमें ये बीच की रेखा है
और फिर नीचे उतर रहा है
बतलाता है कि सिग्नल पूर्ण रूप से धनात्मक है.
अधिकतर स्नायु सिग्नल धनात्मक और ऋणात्मक होते है.
ये केवल धनात्मक है
इसका
तकनीकी नाम
दीर्घ-अवधि प्रबलीकरण (long-term potentiation)है
मतलब अनुभव के पलों का
लम्बी अवधि के प्रभाव में बदलना.
मतलब ये वो चीज है जिसे हम लम्बे समय तक याद रख सकते हैं.
इस तरह का सिग्नल तब पैदा होता है
जब हिप्पोकेम्पस वर्तमान क्षण के अनुभव को
स्मृति में तब्दील कर रहा होता है.
और
आप देख सकते हैं कि सिग्नल की आकृति बतलाती है कि कैसे क्षेत्र बढ़ता है, चुम्बकीय क्षेत्र बढ़ता है
और गिरता है, समय के साथ.
तो ये वो सिग्नल है जिसे हमने भगवान दास के सर के दाहिने तरफ इस्तेमाल किया.
पहले तीन सत्रों में उन्होंने पाया कि वे काली के शुन्य में थे, मैंने उन्हें कहा कि
"काली के बारे में मत सोचो.
अगर सोचना ही है ...
तो
कन्फ्यूशियस, लाओ त्से,
जेन गुरुओं के बारे में सोचो, पर काली के बारे में मत सोचो क्योंकि ये वो नहीं है जहाँ हम जा रहे हैं..".
इस पर उन्होंने कहा "ओह .. कोई बात नहीं . मुझे लाओ त्सू पसंद है.".
बहुत खूब. तो, वो बैठे
और उन्होंने कहा कि वास्तव में उनका दिमाग कुछ समय के लिए ताओवादी और चीनी तत्वों पर था.
ये एक-दो मिनट के समय में ही हो गया था .
अब, जब उन्होंने काली को प्रार्थना कही, उन्हें आमतौर पर लगभग 5 मिनट लगते थे
अपने साज को बजने के लिए तैयार करने
और अपनी रौ में आने में, और फिर
काली के उदर में उतर जाने में.
इस बार वो एक, या शायद दो मिनट में ही
वहां उतर गए थे.
उनके दुसरे सत्र के दो दिन बाद
वे एक कार्यक्रम में थे जहाँ वे कुछ हिन्दू पुजारियों का नेतृत्व कर रहे थे
उन्होने महसूस किया कि वे शक्तिपात कर सकते थे. लोग आये और उनसे आशीर्वाद देने के लिए कहा
वे अपने हाथ उनके सर पर रख देते
वे ऐसा एक रिवाज के तौर पे करते थे
जैसा कि कैथोलिक पुजारी 'पुष्टि' के लिए करते हैं. वे पुष्टि समारोह में
अपना हाथ आपके सर पर
रखकर ईश्वर की शक्ति
आपमें प्रवाहित नहीं कर रहे होते हैं. पुष्टि समारोह कैथोलिकों में वयस्कता की पुष्टि का समारोह है.
वे बस सर पर हाथ धर रहे होते हैं
और ईश्वर उनके जरिये काम कर रहा होता है.
ये चमत्कारों के लिए
आम सन्दर्भ नहीं है
पर भगवान् दास इसे अपने सन्दर्भ में कर रहे थे और उन्होंने पाया कि
जब वो ऐसा कर रहा था तो प्रचुर मात्रा में ताप और विद्युतीय झनझनाहट उसके हाथों में
उत्पन्न हो रही थी
जिन लोगों को उसने
छुआ था
वे आनंद से सराबोर हो गए थे.
वे उनके सामने लगभग गिर पड़ते थे, लोगों बी बाहें फ़ैल जाती, उनके सर पीछे को झुक जाते.
भगवान दास ने पूछा
मैं पकड़ भी बना कर नहीं रख पाता,
क्योंकि लोग ... पीछे को झुक जाते हैं. मैं इसे कैसे संभालू?
मैंने कहा "मैं केवल स्नायु विज्ञान जानता हूँ.
रीती-रिवाज आपका कार्यक्षेत्र है, दोस्त.".
हम अच्छे दोस्त थे, हम एक दुसरे के साथ काफी अनौपचारिक थे, एक दुसरे का साथ हमें बड़ा अच्छा
लगता था.
और फिर उन्होंने तीसरा सत्र किया
दो दिन बाद,
वो एक हिन्दू मंदिर में
पूजा कर रहे थे, माँ काली की पूजा.
और उन्होंने पाया कि
जब पूजा ख़त्म हुई, जब अंतिम दौर था जिसमें
वेदी पर पुष्प चढाने
होते हैं,
उन्होंने इच्छा की कि जैसे ..
वे लाल, गुलाबी , सफ़ेद गुलनार के फूल माँ को अर्पित कर रहे हैं,
भावपूर्ण, सनातनी हिन्दू विचार.
पृष्ठ भूमि में दिखाई गयी काली की प्रभावोत्पादक तस्वीर में
जिसमें वो अपने पति शिव के शरीर पर खड़ी हैं, उनका रंग
रक्तिम
या सिन्दूरी है.
तो उन्होंने सोचा कि कितना बढ़िया हो अगर मैं
मुझे रक्तिम रंग के पुष्प मिल जाएँ
ताकि मैं माँ को वे फूल
अर्पित कर सकूँ.
और उस क्षण यह विचार बेहद प्रसन्नता दायक बन गया था
रक्तिम लाल गुलनार.
और जैसे ही वे माँ को प्रणाम करने के लिए झुके और फिर उठे
तो उनके हाथों में एक फूल था .. लाल गुलनार.
उन्होंने उसे उत्पन्न कर लिया था.
तो ये उनकी कहानी थी.
एक बार मैंने ये कहानी
एक स्नायुविज्ञानी को सुनाई
जो असल में एक स्नातक का विद्यार्थी है और स्नायुविज्ञानी के तौर पर काम करना शुरू करना चाहता है
उसने
जवाब में कहा "इसका एक सीधा सा जवाब है - स्नायुविज्ञान में हम हमेशा जटिल प्रश्नों का
सीधा-सादा स्पष्टीकरण पसंद करते हैं", जिससे मैं सहमत भी हूँ -
"कि भगवान् दास भ्रम का शिकार था."
ये सही भी हो सकता है;
ये एक
साधारण बगीचे के प्रकार का
भ्रम हो सकता है , अंतर बस इतना कि
उन्हें स्पर्श और दृश्य सम्बन्धी दोनों भ्रम एक साथ हों
पर इस तरह हम इस घटना को जांचने और समझने का कारण और औचित्य नजरंदाज कर देंगे.
हम एक ख़ास चीज का परीक्षण कर रहे थे - चमत्कारी गुरु से उनके शिष्य की ओर ऊर्जा
का प्रवाह -
कि शिष्य गुरु से 'शून्य' अनुभव कराने वाला हिप्पोकेम्पस प्राप्त कर सके
वो इसे ज्यादा तेजी से कर पाए जिससे
ये सिर्फ काली ना रह कर एक गतिक चीज,
एक उपकरण,
एक वाहन बन जाये जिसे बाहर ले कर जाया जा सके,
और कोई विशेष निर्दिष्ट चीज की जा सके.
अब यदि ये सब इस औचित्य और कारण से नहीं था, यदि इसे
चमत्कार कर पाने के लिए नहीं रचा गया था (इस खास उदाहरण में)
तब आसान व्याख्या को तरजीह दी जाती.
अब ये भी सकता है कि ये सब बस एक भ्रम था और यदि ऐसा है तो
हमारे पास कोई दस्तावेज /इतिहास नहीं है
जो चमत्कारों के घटने का वर्णन करता है.
हमारे पास इतिहास से उदाहरण हैं जो
बतलाते हैं - चमत्कारों की घटनाओं को रिपोर्ट करने की
प्रत्याशा.
और ये भी एक गंभीर कदम है, चमत्कारों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
समझने की दिशा में.
मेरे पास बताने के लिए एक कहानी है जो
एक अन्य तरह के चमत्कारिक घटना के बारे में है.
और जैसा कि हमने ऑक्टोपस और दिमाग के चारों के उद्दीपन
के बारें में चर्चा से समझा है,
यह संभव है कि एक दिमाग से दूसरे को सूचना प्रसारित की जा सकती है.
मेरी एक महिला-मित्र थी
और वो मुझसे सम्बन्ध तोडना चाहती थी. क्यों?, ये मुझे समझ नही आता, पर (हंसी)
तोडना चाहती थी..
तो वो मेरे घर आई और बोली .. मैं अब और साथ रहना नहीं चाहती. मैं नहीं चाहती कि ..
मैं तुम्हें नहीं देखना चाहती. मैं किसी और को ढून्ढ लूंगी.".
बाद में पता पड़ा कि उसकी जिंदगी में पहले से कोई था.
पर,
मैं इस बात से नाराज और विचलित था
और मेरी हालत सच में बुरी हो गयी थी. जहन में हताशा ही हताशा थी.
ये
चलता रहा , चलता रहा , काफी दिनों.
और वो भी इससे विचलित थी
कुछ इस वजह से कि वो पूरी तरह आश्वस्त नहीं थी कि ये रिश्ता तोडना सही था कि नहीं.
और अगर मैं कुछ इस तरह बर्ताव करता कि "ठीक है, कोई नहीं. ख़तम करते हैं, अलविदा"
और इसे दिल पर नहीं लेता
तो ये शायद उसके लिए भी आसान हो जाता. पर,
ऐसा नहीं हुआ.
और वो विचलित थी. फिर कुछ हुआ.
हम दोनों की बुरे मिजाज़ में रह पाने की क्षमता एक साथ
ख़त्म हो गयी.
और अचानक,
मैंने उसके सर के चारों ओर एक नीली आभा देखी.
मैंने उससे कहा "सुंदर!, मैंने अपने जीवन में जितनी भी चीजें देखी हैं, ये उनमें सबसे सुंदर है.".
उसने कहा "मैं यही चीज तुम्हारे सर के चारों ओर देख रही हूँ ."
उसने कहा था "हाँ , ये बेहद सुंदर है. ये तुम नहीं हो."
मैं कहा "हम्म, तुम भी तुम नहीं हो.
मुझे तुम्हारे चारों ओर ओज दिख रहा है".
देखिये, कई बार हम एक दुसरे पर चीजें फेंक देते थे.
हमारा रिश्ता कोई बहुत अच्छा नहीं था,
पर ये पल एक विरल अनोखा पल था.
कुछ ऐसा हुआ, हमारे दिमाग सूचना साझा कर रहे थे.
ये एक घटना थी जिसमें शक्ति की भूमिका थी,
ये एक तकनीक है
जो शिव उपकरण के जैसी ही है, पर उसकी तुलना में काफी साधारण सरल है.
और
वो महिला जिसने
उस सत्र, जिसमें उस पर अमिगडेला से प्राप्त बर्स्ट एक्स
सिग्नल का प्रयोग किया गया था
उसने असल में
छ घंटे सत्र में बिताये थे जिसमे उस महिला ने
हर व्यक्ति के चारों ओर ओज देखा.
उस दिन उस महिला के घर लोग आये थे पर उसने कहा "मैं नहीं कर पाऊँगी"-
ये लोग आध्यात्मिक चर्चा करने वाला एक समूह थे
-मैं आज समूह चर्चा में भाग नहीं ले पाऊँगी. मैं एक अवस्था में हूँ".
उन लोगों ने कहा "ठीक, हम भी इसे इस्तेमाल करके देखते हैं.:.
उन्होंने वैसा ही किया और हरेक व्यक्ति
२० मिनट के लिए कमरे में गया, हर एक ने
सर पर वो उपकरण उसी सिग्नल का प्रयोग करते हुए
इस्तेमाल किया
और वे सब उसी चेतनावस्था में चले गए.
पर, अनजान अनजुड़े लोगों के साथ , ये बेहद असम्भाव्य है.
इस प्रकार की तकनीक में लोगों को काफी अलग-अलग अनुभव होते हैं - आपको जो मिला
मिला, किसी और को कुछ और मिला तो मिला.
आपको भगवान दिख जाये, उन्हें कुछ भी न दिखे.
और ये अलग-अलग अनुभव होना, साधारण बात है, ऐसा होने की ही आशा की जाती है.
और यहाँ एक समूह था जिसमे सबको एक ही अनुभव एक के बाद एक हो रहे थे.
आध्यात्मिक अनुभवों के इतिहास में
मैंने कभी ऐसा नहीं नहीं सुना था .
और मैंने इस क्षेत्र की बहुत सारी पुस्तकें पढ़ी हैं.
आपके और मेरे दोनों के एक समान अवस्था में उतरना
क्योंकि हम दोनों को एक ही गुरु का आशीष प्राप्त है, उदाहरण के लिये कह रहा हूँ,
ये सामान्य है, पर आपको कुछ और मिलेगा और मुझे कुछ और.
हम सब का बारी-बारी, एक के बाद एक,
एक ही जैसी अवस्था में प्रवेश
अनसुना है.
क्या हो रहा था ?
इसका उत्तर, मुझे लगता है, ये है कि उस पहली महिला
का अमिगडेला बेहद सक्रीय था और इस अनुभव के दौरान
उस महिला के दिमाग में काफी कम यादृच्छ
गतिविधियाँ हो रही थी,
जिससे उसका दिमाग एक संकड़े मार्ग पर था और बाकी सब एक वृहद् मार्ग पर थे.
और उद्दीपन के द्वारा, और उस महिला के संपर्क के जरिये
ये संकरा होता गया
जब तक कि वे सब उस महिला के दिमाग द्वारा छोड़े गए सिग्नल/संकेत न पकड़ लें.
इस तरह वे सब एक समान अनुभव में उतरे.
ये अमिगडेला है,
दिमाग का एक हिस्सा जो
उस सत्र में प्रयोग में लाया गया था
माफ़ कीजिये. ये स्पष्ट नहीं दिख रहा है
पर आप नीची की तरफ तीन काले बिंदु देख सकते हैं
सबसे आगे वाला अमिगडेला है.
पता नही ये चमक क्यों नहीं रहा
और ये वो सिग्नल है जिसका इस्तेमाल किया गया था. याद है?, हिप्पोकेम्पस से प्राप्त सिग्नल जो
मध्य रेखा पर काम करता था. ये वही सिग्नल है जिसका
जिसका इस्तेमाल
डॉ. परसिंगर ने अपने ईश-हेलमेट प्रयोगों में किया था.
इस दूसरा सन्दर्भ
इस समूह का जिसमें सूचना का आदान-प्रदान हो रहा है, जहाँ सिर्फ दिमाग से दिमाग को नहीं
बल्कि दिमाग से कई दिमागों को, या कहें दिमागों से दिमागों को सूचना प्रेषित हो रही है
वो है - वर्जिन मेरी (माँ मेरी) का दिखना
जो कि जब कभी भी होता रहता है
ये एक तस्वीर है
जीटन, मिस्त्र के एक गिरजाघर की
जहाँ 1968
से 1971 के बीच
वर्जिन मेरी का दिखना सूचित किया गया था.
कुछ लोगों ने वर्जिन मेरी को देखा, ये एक महत्वपूर्ण हिस्सा है,
अन्य लोगों ने सिर्फ रौशनी देखी.
ठीक ऐसा ही चीज, जो बेहद प्रसिद्द है,
फातमा में हुई
और,
मुझे लगता है, यहाँ जो रहा ही वो ये है कि
ऐसे लोग जो परिवर्तित अवस्था के अनुभव हेतु सर्वाधिक संवेदी थे,
जो इन घटनाओं के दौरान इन जगहों में से किसी एक जगह उपस्थित थे,
यदि वे बेहद संवेदनशील थे
और अगर वे उम्मीद कर रहे थे कि उन्हें वरजिन मेरी दिखेगी
और यही उन्हें
रोशनी के
पुंज और गोलों में दिखा.
ये
रोशनी के गोले, प्रतीत होता है कि इनका उद्भव स्त्रोत भू-चुम्बकीय गतिविधि है
और ये दबाव से उत्पन्न होते हैं
जो भीतरी चट्टानों के मध्य पनपता है
जो भूकंप के रूप में प्रकट होता है.
गौरतलब है कि जीटन, मिस्त्र में वेर्गिन मेरी के दिखने की घटना के कुछ ही समय बाद
एक भूकंप आया था, सिनाई प्रायद्वीप के दक्षिणी हिस्से में
सन 1971 में, और उस भूकंप के बाद, जीटन में वर्जिन मेरी दिखने की घटना थम गयी थी.
उन बातों पर जिसका सम्बन्ध, आपमें से वे जो अतीन्द्रिय शक्ति जागृत करना चाहते हैं, उनको कुछ ,
व्यवाहरिक निर्देशों और सुझावों से है
आप यहाँ दो मस्तिष्कीय संरचनाएं देख सकते हैं, दोनों के बारें में आज की इस चर्चा में पहले बात
की जा चुकी है.
इनमें से एक अमिगडेला है,
दूसरा हिप्पोकेम्पस है.
अमिगडेला एक बेहद भावनात्मक संरचना है- बायीं तरफ वाला धनात्मक भावनाओं
और दायीं ओर वाला ऋणात्मक भावों, खास कर भय से, से
सम्बन्ध रखता है.
आपको ये चित्र दिखाने का उद्देश्य ये है कि
ये दोनों, नसों और तंतुओं से मात्र जुड़े नहीं हैं, बल्कि
असल में ये एक दुसरे से गुंथे हैं,
इन दोनों का एक दुसरे से गहन सम्बन्ध है.
सोच का भावनात्मक प्रभाव होता है,
भावनाएं सोच को
प्रेरित करती हैं.
तो, जब एक सक्रीय होता है तो दूसरा शांत और मौन होता है. वे एक प्रकार से सी-सॉ झूले जैसा सम्बन्ध
रक्कते हैं - प्रत्येक एक दुसरे को लगातार शीर्ष स्थान पे आने के लिए आमंत्रित करता रहता है.
वे हमेशा आमंत्रण स्वीकार नहीं करते
पर वे इसमें सक्षम होते हैं. आप सोचने की मुद्रा में जा सकते हैं
जब आप कैलकुलस/कलन कर रहे हों. ओह !
माफ़ कीजियेगा. मैंने कहा था कि मैं इस शब्द का इस्तेमाल दुबारा नहीं करूँगा. (हंसी)
या भावना की मुद्रा में
जब आप आनंद ले रहे हों या भय में हों.
तो,
एक पारंपरिक शिक्षा जो अतीन्द्रिय प्रशिक्षक से प्राप्त होती है
वो है कि
भावनाएं अतीन्द्रिय अनुभव से उलझती हैं.
शिव उपकरण का उपयोग कर
मेरे लिए ये जानना आसान है कि
जब फ़ोन की घंटी बजे तो फ़ोन कौन कर रहा होगा -
मेरा भाई है, मेरी माँ है, मेरा बेटा फ़ोन कर रहा है, ऐसा ही
कुछ.
ये कोई भारी-भरकम चीज नहीं.
पर अगर कोई कॉल हो जिसमें कोई बुरी खबर हो
या कोई बेहद अच्छी खबर वाला कॉल हो
तो मैं सामान्यतः इसके बारे में में नहीं जान पाउँगा. अगर फ़ोन के दूसरी तरफ वो व्यक्ति हो, जिसको मैं सच में सुनना चाहता हूँ तो
मेरा कयास गलत बैठेगा
भावनाएं
अतीन्द्रिय समझ पर भार्फी पड़ती हैं.
ठीक उसी तरह से जैसे कि भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में बुद्धिमत्ता पर
भारी पड़ती हैं.
तो ये सब आपको बताने के बाद,
आप कैसी अतीन्द्रिय क्षमता प्राप्त कर सकते हैं?
और उत्तर शायद ये है कि
जब कोई ऐसी घटना घटती है जिसके बारे में आप अतीन्द्रिय अनुभव चाहते हैं, और ये एक असंगत नाम है
क्योंकि जैसे ही आप एक अतीन्द्रिय अनुभव प्राप्त करना चाहते हैं
आप इसका होना मुश्किल बना देते हैं.
जब एक घटना होती है
आपका जहन, आपका दिमाग, इसके प्रति बड़ी संख्या में अनुक्रिया उत्पन्न कर देगा,
जिनमें से अधिकाँश आपकी जानकारी के स्तर से नीचे ही रह जाती हैं.
पर जब कुछ घटता है
शुरू की कुछ अनुक्रिया में से एक होगा
आपके दिमाग के अन्दर से एक छोटी सी सूचना -
एक तस्वीर, एक छवि
एक विचार,
वो एक दम शुरूआती; वो तत्क्षण
प्रतिक्रिया, जो भी हो,
वहां अतीन्द्रिय बोध को ढूँढा जाना चाहिए.
एक अतिन्द्रॉय ज्ञान वाले और बिना ज्ञान वाले
व्यक्ति में
यही अंतर होता है कि एक अतीन्द्रिय ज्ञान वाला व्यक्ति उस प्रथम प्रतिक्रिया पर ध्यान दे पाता है
और जानता है कि वही
अतीन्द्रिय अनुभव है.
अतीन्द्रिय क्षमता वाला व्यक्ति इस बात में सक्षम होता है कि
वो उस पल, उस क्षण को
विलीन और गम हो जाने से
कुछ समय के लिए रोक लेता है. तो वे पल बजाय 5 मिली सेकंड में गम होने के, 500 मिली सेकंड तक
रुके रहते हैं.
गौरतलब है कि स्नायुविज्ञान के नजरिये से
आधा सेकंड एक युग सरीखा होता है.
तो, वो कारण जिससे ये तस्वीर यहाँ मेरे पास है, वो है कि ये प्रदर्शित करती है कि
ये सब कैसे काम करता है और ये मेरे से जुडी एक निजी कहानी भी बतलाती है जहाँ मैंने
सीखा कि अतीन्द्रिय बोध क्या होते हैं.
समुराई कला में एक
कहावत है कि
यदि आप एक उम्दा तलवार बाज़ बनना चाहते हैं तो
आपकी तलवार इस्पात पर चकमक टकराने से उत्पन्न चिंगारी की तरह चलनी चाहिए'.
जब चकमक इस्पात से टकराता है तो चिंगारी पैदा होती है
इसमें कोई समयांतराल नहीं होता, जैसी ही चकमक इस्पात पर टकराता है, है
चिंगारी उत्पन्न हो जाती. यह तत्काल, तत्क्षण होता है और इसमें किसी भी प्रकार का कोई अंतराल नहीं
होता.
तो किसी घटना के प्रति, आपका पहला
विचार, आपकी पहली आतंरिक प्रतिक्रिया, बिना किसी अंतराल के,
ये वो क्षण और स्थान है जहाँ अतीन्द्रिय अनुभव/आगत को ढूँढना चाहिए.
और
जो घटना
मैं सोच रहा हूँ
वो है कि एक बार मैं किसी के साथ उनके नए घर पर गया.
उनको अपना घर बेहद पसंद था. ये घर उनके लिए एकदम अच्छा था.
उसने कहा "मालूम है, एक चीज की कमी खलती है यहाँ मुझे."
जैसे ही उसने कहा "एक चीज की कमी खलती है यहाँ मुझे".
मेरे जहन में आतिशबाजी की एक छवि उभरी
और पिछली रात ही मैंने ल्युलेन श्रृखला में अतीन्द्रिय शक्ति के विकास के बारें में
पढा था, तो
मैंने कहा
आतिशबाजी"
उसने कहा :हाँ, सही कहा. पर तुम्हें कैसे पता?".
उसने बताया के उसके पिछले घर में
एक छोटा सा तन्द्दूर था
जमीन पर इंटों से बना हुआ.
वहां वो एक निजी आध्यात्मिक अभ्यास के तौर पर उसमे रंगीन नमक
आग में फेंका करती थी
तब रंग और नमक जल कर रंगीन चिंगारी पैदा करते थे.
ये एक प्रकार का निजी, धार्मिक अभ्यास था जो उसने स्वयं के लिए विकसित किया था.
और वो मेरे जवाब से एकदम स्तब्ध थी.
"तुम्हे कैसे मालूम पड़ा?"
मैंने बताया कि "देखो, तुमने कहा कि मैं कुछ कमी महसूस करती हूँ यहाँ और मुझे उस क्षण एक आतिशबाजी की छवि जहन में दिखाई दी, तो मैंने बोल दिया
आतिशबाजी."
और उस क्षण मैं समझ गया कि
अतीन्द्रिय क्षमता कैसे विकसित कर सकते हैं.
दायाँ हिप्पोकेम्पस
संज्ञानात्मक प्रतिक्रियाएं
उत्पन्न करता है, अशब्दिक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न करता है, ये भाषाई केंद्र से दूर होता है और
बड़ी गति
से घटनाओं के प्रति संज्ञानात्मक जवाब तैयार करता है.
अमिगडेला अपने भावनात्मक क्रिया-कलापों के साथ कुछ सेकंड बाद आता है और हर चीज
में रंग देता है - क्या ये फायदेमंद है कि शाप है? क्या ये खतरा है या ये किसी प्रकार से मेरी
मदद कर सकता है? इस तरह हम घटनाओं को, अपने प्रति उनके प्रभाव, के दृष्टिकोण से
देखते हैं. इसका मेरे लिए क्या अर्थ है?
और अतीन्द्रिय समझ जिस सवाल का उत्तर देती है वो है- ये क्या है , न कि
इसका मेरे लिए क्या मायना है.
जितना जल्दी आप इसे निजी तौर पर लेते हैं
उतनी तेजी से आप इसकी हवा निकाल देते हैं. इसे फुस्स कर देते हैं.
एक अन्य सवाल है कि क्या कोई भी अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त कर सकता है?
और इसका जवाब है "हाँ".
पर इन शक्तियों को विकसित करने के मार्ग पर आने वाली कठिनाइयाँ, सबके लिए अलग-अलग होंगी.
अगर आप एक बेहद भावनात्मक व्यक्ति हैं, यदि आपकी भावनाएं सबसे पहले प्रतिक्रियाएं देती हैं, हमेशा,
यदि आप महसूस करते हैं कि आप का अर्थ है आपकी भावनाएं,
भीतरी, कलात्मक, काव्यात्मक स्तर पर
तो इन शक्तियों को विकसित करना आपके लिए
पत्थर से पानी निकालने जैसा है.
यदि आपको लगता है कि
आप अपनी सोच में निहित हैं तो ये आपके लिए कुछ आसान होगा.
पर अगर आप ऐसे विचारों से साम्य में हैं जो शब्दों, आकृति, रूप, स्वाद,
में व्यक्त नहीं किये जा सकते
स्वाद, यदि आप रसोइया हैं,
धुन, यदि आप संगीतकार हैं.
यदि आप को भीतर से लगता है
कि आप को शब्दों में
नहीं समझा जा सकता
तो आपके लिये ये और आसान होगा.
यद्यपि, तो भी आपको
ये
मजेदार टोपी शायद न दी जाये. (हंसी)
मुझे बुरा नहीं लगेगा अगर मेरे पास इस तरह की विचित्र टोपी हो. हालाँकि मुझे नहीं लगता की मैं उसे पहनूंगा पर
पारंपरिक अतीन्द्रियकों में इस तरह के परिधान काफी चलते हैं.
मेरे एक अध्यात्मिक गुरु, करमु, ने एक बार कहा था
शमान
जरुर एक मंच कलाकार रहा होगा".
तो, क्योंकि हम चीजों के प्रति अपनी प्रतिक्रियाओं को बड़ी शीघ्रता से निजी रंग दे देते हैं
इसलिए ये हमारे अतीन्द्रिय बोध में दखल डालता है,
इस बात से हम अतीन्द्रिय गुरुओं की एक और पुरानी
शिक्षा की सच्चाई परख सकते हैं, वो है स्व (ईगो).
व्यक्तिगत अस्तित्व का भाव नहीं अपितु व्यक्तिगत महत्त्व का भाव
कि ये अतीन्द्रिय बोध महत्त्व का है क्योंकि यह मुझे प्राप्त हुआ है
ये भाव तिरोहित हो जाना चाहिए.
ये 'आपको क्या मिला' नहीं है
यहाँ अतीन्द्रिय जानकारी उपस्थित है. अब, इसका आपके लिए क्या अर्थ है? ये, जैसा कि
एक प्राचीन बौद्ध गुरु ने कहा है,
तत्थत का विषय है
'ऐसा होने' का विषय है.
ये जो है वो है
और आप
जेहोवा और पोपेय के तरह,
"मैं जो हूँ वो हूँ".
तो, आज के लिए इतना ही.
धैर्य से मुझे सुनने के लिए आपका धन्यवाद.
समाप्त.