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ये 'ईएसओ' प्रसारण है.
अग्रणी विज्ञान और 'ईएसओ' के नेपथ्य की झलकियाँ.
'ईएसओ' यानि द यूरोपीयन सदर्न आब्जर्वेटरी
ब्रह्माण्ड को टटोलते हुए हमारे सूत्रधार डा० जो लिस्क बनाम डा० जे के साथ.
हैलो, स्वागत है आपका 'ईएसओ' प्रसारण के इस विशेष अंक में.
ये आपको 'ईएसओ' की अक्टूबर में पचासवीं वर्षगाँठ तक ले जायेगा.
हम आपके लिए आठ विशेष अंक लेकर प्रस्तुत होंगे जिनमें आप ...
'ईएसओ' के दक्षिण के आकाश के अन्वेषण के विगत पचास गौरवशाली वर्षों की गाथा देखेंगे.
बदलता परिदृश्य.
संगीत मधुर है न?
पर सोचिये यदि आपको किसी प्रकार की श्रवण बाधा होती?
यदि आपमें लघु आवृत्ति को सुन पाने की क्षमता न होती.
या फिर आप ऊंची आवृत्तियों को न सुन पाते हों.
ऐसा ही कुछ खगोलशास्त्रियों के साथ भी होता था.
मनुष्य की आँख ब्रह्माण्ड से मिल रहे विकिरण के केवल एक छोटे से हिस्से के लिए संवेदी होती है.
हम बैंगनी प्रकाश से छोटी तरंगों
या लाल प्रकाश से लंबी तरंगों को नहीं देख सकते.
इस तरह हम ब्रह्मांड की महान संगीत रचना का पूरी तरह आनन्द नहीं उठा पाते.
अवरक्त प्रकाश, इन्फ्रारेड रेडिएशन या गर्मी के विकिरण के खोज प्रथम वर्ष 1800 में विलियम हर्शल द्वारा हुयी थी.
एक अँधेरे बंद कमरे में आप मुझे नहीं देख सकते.
पर यदि आप इन्फ्रारेड गॉगल्स पहन लें आप मेरे शरीर के गर्म हिस्से देख पायेंगे.
ठीक इसी प्रकार अवरक्त प्रकाश दूरबीनें उन ब्रह्मांडीय पिंडों को उजागर करती हैं जो इतने ठंडे होते हैं कि उनसे दृश्य प्रकाश का उत्सर्जन नहीं होता,
जैसे वे गैस-धूल के बने काले जिनमें तारों और ग्रहों का सृजन होता है.
कई दशकों से,
'ईएसओ' के खगोलशास्त्री इस ब्रह्माण्ड को इन्फ्रारेड प्रकाश में
खंगालने की चाहत रखते थे.
पर आरंभिक इन्फ्रारेड प्रकाश संसूचक बहुत छोटे थे और प्रभावशाली न थे.
उनसे हमें इन्फ्रारेड आकाश का एक धुंधला स्वरुप दिखाई दिया.
आधुनिक इन्फ्रारेड कैमरे आकार में बड़े तथा शक्तिशाली हैं.
उनकी सुग्राहिता को बधाने के लिए उन्हें बहुत ठंडा किया जाता है.
और 'ईएसओ' की वैरी लार्ज टेलीस्कोप की बनावट इनका भरपूर उपयोग करती है.
सच तो ये है कि हमारे कुछ जादुई तकनीकें, जैसे इंटरफैरोमैट्री, केवल इन्फ्रारेड में ही काम करती हैं.
हमने अपने आयाम का विस्तार किया है - इससे ब्रह्मांड का नया पक्ष उजागर हो रहा है.
यह काला धब्बा ब्रह्मांडीय धूल से बना है. इसने अपने पीछे के तारों को छिपा रखा है.
पर इन्फ्रारेड का उपयोग कर हम इस धूल को भेदकर देख सकते हैं.
ये है ओरायन नेबुला या मृग नीहारिका - तारों की एक पौधशाला.
अधिकांश नवजात तारे धूल के बादलों में छिपे रहते हैं.
एक बार फिर इन्फ्रारेड हमें राहत देती है - त्तारों के जन्म की प्रक्रिया दिखा कर.
मृत्युगामी तारे गैस के बुलबुलों की उच्छ्वास उत्सर्जित करते मिलते हैं.
दृश्य प्रकाश में ये देखते ही बनते हैं.
पर इन्फ्रारेड में ली गयी छवि और अधिक ब्यौरा देती है.
इन्फ्रारेड तकनीक द्वारा लिए गए तारों और गैस के बादलों के दृश्यों को न भूल जायिएगा
जिनका भक्षण आकाशगंगा के केन्द्र का भस्मासुर श्याम विवर या ब्लैक होल कर रहा है.
इन्फ्रारेड कैमरे के बिना हम इन दृश्यों से वंचित रह जाते.
इन्फ्रारेड तकनीक से हमने दूसरी मंदाकिनियों का अध्ययन कर
उनमें अपने सूर्य जैसे तारों का वितरण खोजा है.
सुदूर स्थित मंदाकिनियों का अध्ययन केवल इन्फ्रारेड प्रकाश से ही संभव है.
क्योंकि ब्रह्माण्ड के निरंतर प्रसार के कारण
उनका सामान्य दृश्य प्रकाश इन्फ्रारेड क्षेत्र में खिसक आया है.
पारनाल के समीप के एक पर्वत शिखर पर एक इकलौती इमारत है.
इसके अंदर 4.1 मीटर व्यास की 'विस्टा' दूरबीन लगी है.
इसका निर्माण यूनाइटेड किन्ग्डम में हुआ जो 'ईएसओ' का दसवां सदस्य है.
अभी विस्टा दूरबीन इन्फ्रारेड में ही कार्य करती है.
यहाँ एक विशाल कैमरा लगा हुआ है जिसका वज़न एक ट्रक जितना होगा.
सच में, विस्टा दूरबीन ने इन्फ्रारेड में ब्रह्माण्ड की खोज के नए द्वार खोल दिए हैं.
पचास साल पहले अपने जन्म के समय से 'ईएसओ' में दृश्य प्रकाश में खगोलशास्त्र पर काम चल रहा है.
और इन्फ्रारेड में विगत लगभग तीस वर्ष से.
पर ब्रह्माण्ड का नाद पूरी तरह सुनने के लिए ये काफी नहीं.
चिली की एंडीज़ पर्वतमाला में समुद्र तल से पांच हज़ार मीटर ऊपर है
चायनन्तोर का पठार.
खगोलशास्त्र इससे अधिक ऊंचाई पर कहीं नहीं किया जाता.
चायनन्तोर है घर 'एल्मा' का.
एल्मा' यानि एटाकामा लार्ज मिलीमीटर/सबमिलीमीटर एरे.
'एल्मा' अभी निर्माणाधीन है.
यहाँ की परिस्थितियाँ अत्यंत प्रतिकूल हैं - साँस लेना भी दूभर होता है.
अभी यहाँ 66 में से केवल दस एंटेना ही लग पाये हैं,
पर 'एल्मा' ने 2011 की शरद में अपना पहला प्रेक्षण लिया.
अंतरिक्ष से आती मिलीमीटर तरंगें. इनका प्रेक्षण स्थल ऊंचा और शुष्क होना चाहिए.
चायनन्तोर इस मामले में दुनिया के सर्वोत्कृष्ट स्थानों में से एक है.
इन दो मंदाकिनियों की टकराहट से उत्पन्न ये ठंडी गैस एवं काली धूल दिखाई दे रही है.
ये तारों के जन्म नहीं बल्कि उनके संषेचन की स्थली है.
और इस मृत्युप्राप्त तारे से निकलता सर्पिलाकार प्रवाह -
कहीं ये किसी परिक्रमारत तारे के कारण तो नहीं हो रहा?
ब्रह्माण्ड को देखने की नयी तकनीकें विकसित कर
हम ग्रहों, तारों और मंदाकिनियों के उद्भव के रहस्य के और भी निकट आ गए हैं.
- ब्रह्माण्ड के नाद को पूरी तरह सुनने का प्रयास.
इसी के साथ मैं डा० जे 'ईएसओ' प्रसारण के इस विशेष अंक से आपसे विदा ले रहा हूँ.
फिर मिलेंगे ब्रह्मांड की खोज के एक और दिलचस्प अभियान के साथ.
'ईएसओ' प्रसारण 'ईएसओ' द्वारा प्रस्तुत किया गया,
'ईएसओ' यानि यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला.
'ईएसओ', यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला,
खगोलशास्त्र की अग्रणी अंतर्शासकीय विज्ञान और तकनीकी संस्था है,
जो सन्नद्ध है विश्व की भूतल स्थित सबसे अत्याधुनिक दूरबीनें बनाने में.
प्रतिलेखन 'ईएसओ', अनुवाद - Piyush Pandey पीयूष पाण्डेय, JNMF, इलाहाबाद