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तो प्रहलाद महाराज ...
पिता के साथ कुछ मतभेद था, लेकिन वे साधारण व्यक्ति नहीं थे ।
उनके पिता हो सकते हैं ... वह एक बहुत, बहुत बड़े आदमी हैं, आप देखते हो ।
उन्होंने पूरे ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त की । तो वे एक गरीब आदमी के बेटे नहीं थे ।
वे बहुत अमीर आदमी के बेटे थे, प्रहलाद महाराज ।
और वह पर्याप्त रूप से अपने पिता द्वारा शिक्षित किए गए थे । बेशक, पांच साल के भीतर ।
तो जन्मैश्वर्य -श्रुत-श्री । सब कुछ था,
लेकिन प्रहलाद महाराज भौतिक परिस्थितियों पर निर्भर नहीं कर रहे थे ।
वे निर्भर कर रहे थे अपनी उन्मादपूर्ण दिव्य आनंद से भरी भक्ति सेवा पर ।
यही चाहिए । तो उस अवस्था पर तुरंत हम नहीं पहुँच सकते हैं ।
वह नित्य-सिद्ध हैं ।
जैसे मैं समझा जा रहा था, जब भी कृष्ण अवतरित होते हैं,
उनके नित्य-सिद्ध भक्त, सहयोगि, वे भी आते हैं ।
तो गौरंगे संगी-जने नित्य-सिद्ध बोली माने, तार हया व्रजभूमी वास, ऐसे, नरोत्तम दास ठाकुर ...
जैसे, श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत गदाधार श्रीवासादि गौरा भक्त वृन्दा ।
तो चैतन्य महाप्रभु के यह सहयोगि वे नित्य-सिद्ध हैं ।
तुम उन्की अवहेलना नहीं कर सकते हो अौर अपनी कल्पना से, कि : "मैं बस पूजा करूँगा ..."
कृष्ण प्रकट हुए - पंच-तत्व ।
कृष्ण ईश हैं, और नित्यानंद प्रभु, वे प्रकाश हैं, भगवान के पहले विस्तार ।
भगवान के कई विस्तार हैं । अद्वैत अच्युत अनादि अनंत-रूपम अाद्यम पुराण-पुरुषम ( ब्र स ५।३३)
उनके हजारों और हजारों हैं । तो पहला विस्तार बलदेव-तत्त्व, नित्यानंद हैं;
और उनके अवतार, अद्वैत;
और उनकी आध्यात्मिक शक्ति, गदाधार, और उनकी सीमांत शक्ति, श्रीवास ।
तो चैतन्य महाप्रभु अवतरित हुए हैं पंच के साथ ..., पंच-तत्वात्मकम ।
तुम कुछ भी उपेक्षा नहीं कर सकते हो । अगर तुम सोचते हो कि "मैं बस पूजा करेगा ...," ओह, वह एक महान अपराध ह,
"... चैतन्य महाप्रभु या केवल चैतन्य-नित्यानंद" नहीं ।
तुम्हे पूजा करनी चाहिए पंच-तत्व, पंच-तत्वात्मकम कृष्णम, पूर्णता से ।
इसी तरह, हरे कृष्ण महा मंत्र, सोलह नाम,
हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे, (श्रद्धालु जपते हैं) हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे ।
तो तुम मिश्रण नहीं कर सकते हो। तुम्हे शास्त्र के अनुसार करना चाहिए ।
महाजन येन गत: स पंथा: (चै च मध्य १७।१८६)
अगर तुम शास्त्र से विचलित होते हो, तो तुम कभी सफल नहीं होगे ।
य: शास्त्र विधिम उत्स्रज्य वर्तते काम-कारत: न सिद्धिम अवापनोति न सुखम न पराम गतिम ( भ गी १६।२३)
तो अगर तुम प्रहलाद महाराज के स्तर पर पहुँचना चाहते हो,
हमें तुरंत उनकी नकल नहीं करनी चाहिए ।
हम पालन करना चाहिए साधना-भक्ति, साधना-भक्ति, सामान्य तरीके से;
और कृपा-सिद्ध, वह विशेष है । यह अनगिनत है ।
अगर कृष्ण चाहते हैं, तो वे तुरंत किसी को बहुत महत्वपूर्ण बना सकते हैं ।
यही कृपा-सिद्ध है । तो भक्तों की तीन श्रेणियां हैं:
नित्य-सिद्ध और साधना-सिद्ध और कृपा-सिद्ध ।
प्रहलाद महाराज नित्य-सिद्ध हैं । वे साधारण साधना-सिद्ध नहीं हैं या ..
बेशक, अंत में कोई अंतर नहीं है, या साधना-सिद्ध या कृपा-सिद्ध या नित्य-सिद्ध,
लेकिन हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रहलाद महाराज साधारण भक्त नहीं हैं , वह नित्य-सिद्ध हैं ।
इसलिए तत्काल उनमे दिव्य लक्षण का विकास हुअा, अष्ट-सिद्धि ।
अष्ट-सिद्धि, तुमने नैक्टर अौफ डिवोशन में पढ़ा होगा ।
तो परमानंद, एकाग्र-मनसा ।
एकाग्र- मनसा, "पूरे ध्यान के साथ ।"
हमें पूरा ध्यान लगाने के लिए सैकड़ों और हजारों वर्ष लग सकेते हैं, पूरा ध्यान ।
लेकिन प्रहलाद महाराज - तुरंत । तत्काल, पांच साल का लड़का, क्योंकि वे नित्य-सिद्ध हैं ।
हमेशा हमें याद रखना चाहिए कि हम नकल नहीं कर सकते हैं ।
"अब, प्रहलाद महाराजा तुरंत एकाग्र-मनासा, और मैं भी बन जाऊँगा।" नहीं ।
यह संभव नहीं है । संभव हो सकता है, लेकिन उस तरह से नहीं हो सकता है ।