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कृष्ण कहते हैं कैसे तुम भौतिक के बारे में सोच रहे हो ।
भौतिक वैज्ञानिक, वे पृथ्वी का अध्ययन कर रहे हैं । क्या कहा जाता है? मृदा विशेषज्ञ ।
वे मिट्टी का अध्ययन कर रहे हैं: " सोना कहां है ? कोयला कहां है ? यह कहां है, वह ?
तो कई बात, वे अध्ययन कर रहे हैं । लेकिन उन्हे पता नहीं है कि यह चीजे कहाँ से अाई ।
यहाँ है ... कृष्ण बताते हैं कि भिन्ना मे प्रकृति : "यह मेरी ऊर्जा है, मेरी ऊर्जा है ।"
कैसे यह विभिन्न रसायन और भौतिक चीजें प्रकट हुई,
हर कोई जिज्ञासु है, कोई भी विचारशील व्यक्ति। यहाँ जवाब है ।
यहाँ जवाब है कि भूमिर अपो अनलो वायु: खम् मनो बुद्धिर एव च अहंकार इतीयम् मे भिन्ना प्रकृतिर अश्टधा ( भ गी ७।४)
भिन्ना प्रकृतिर अश्टधा । जैसे कि मैं बात कर रहा हूँ, यह रिकॉर्ड किया जा रहा है, रिकॉर्ड ।
लेकिन अगर मेरी अनुपस्थिति में यह रिकॉर्ड चलाया जाता है , यह एकदम वही आवाज़ दोहराएगा ।
तो यह मेरी ऊर्जा है यह किसी की ऊर्जा है, लेकिन भिन्ना है, मुझसे अलग ।
तुम्हे इस तरह से समझना होगा । सब कुछ भगवान की ऊर्जा है, श्री कृष्ण,
लेकिन इस भौतिक संसार का मतलब है हम कृष्ण को भूल रहे हैं ।
कहाँ से यह ऊर्जा आ रही है? यह मुद्दा हम भूल रहे हैं । भिन्ना ।
जो जानता है ... वही उदाहरण की तरह ।
रिकॉर्ड बज रहा है, लेकिन जिसको पता नहीं है कि यह भाषण किसने रिकॉर्ड किया है , वह पता नही कर सकता है ।
लेकिन जो अावाज़ पहचानता है, वह समझ सकता है, ""यह प्रभुपाद, या स्वामीजी से आ रही है ।"
इसी तरह, ऊर्जा है, लेकिन क्योंकि हम ऊर्जा के स्रोत को भूल गए हैं
या हमें ऊर्जा के स्रोत का पता नहीं है इसलिए हम भौतिक चीजों को अंत मान लेते हैं ।
यह हमारा अज्ञान है ।
यह प्रकृति, यह भौतिक दुनिया, इन चीजों से बनी है:
भूमिर अपो अनलो वायु: खम् मनो बुद्धिर एव च अहंकार इतीयम् मे भिन्ना प्रकृतिर अश्टधा ( भ गी ७।४) ।
तो कहाँ से यह आया? यह श्री कृष्ण बताते हैं कि "वे मेरी ऊर्जा हैं ।"
क्योंकि हमें पता होना चाहिए, तो ...
कृष्ण को समझना मतलब हमें पता होना चाहिए कि यह पृथ्वी क्या है, यह पानी क्या है,
यह आग क्या है, यह हवा क्या है, यह आकाश क्या है , यह मन क्या है, यह अहंकार क्या है ।
ये भौतिक पदार्थ, उन्हे यह पता होना चाहिए कि यह पदार्थ कहाँ से अाए ।
उनका केवल सिद्धांत है कि पानी संयोजन है कुछ रसायन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन का ।
लेकिन कहाँ से यह रासायन हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, आए? वे जवाब नहीं दे सकते हैं ।
तो इसलिए इसे अचिन्त्य-शक्ति कहा जाता है । अचिन्त्य-शक्ति ।
अगर तुम लागू नहीं करते हो, अगर तुम मना करते हो, अचिन्त्य-शक्ति,
भगवान में, अचिन्त्य-शक्ति, समझ के परे ऊर्जा, तो तब कोई भगवान नहीं है ।
अचिन्त्य-शक्ति-सम्पन्न: । अब तुम समझ सकते हो कि अचिन्त्य-शक्ति है क्या ।
अचिन्त्य-शक्ति तुम्हारे पास भी है, अचिन्त्य-शक्ति, सब के पास, क्योंकि हम भगवान का अभिन्न अंग हैं ।
इसलिए निम्न ... लेकिन हम हैं ... अनुपात क्या है?
अनुपात है, यह शास्त्र में कहा जाता है ... वह क्या है?
केशाग्र-शत-भागस्य शटधा कल्पितस्य च जीव-भाग: स विज्ञेय: स चानन्त्याय कल्पने (चै च मध्य १९।१४०) ।
केशाग्र-शत-भागस्य । सिर्फ एक विचार दे रहे हैं । वह क्या है?
बाल की नोक, बस एक छोटा सा पूर्ण विराम, तुम इस बिंदु को विभाजित करो एक सौ भागों में ।
और वह एक हिस्सा फिर से एक सौ भागों में विभाजित करो ।
वह है, मतलब है, एक दस हज़ारवां हिस्सा बाल की नोक का। यह एक पूर्ण बंद की तरह है ।
यह जीव का आकार है, अात्मा, आध्यात्मिक चिंगारी, आणविक भाग, परमाणु भाग ।
तो केशाग्र-शत-भागस्य शटधा कल्पितस्य च जीव-भाग: स विज्ञेय: स चानन्त्याय कल्पने (चै च मध्य १९।१४०) ।
तो अाकार है, लेकिन भौतिक आँखों में हम केवल स्थूल बात देख सकते हैं,
सूक्ष्म चीजों को हम नहीं समझ सकते हैं ।
लेकिन शास्त्र से तुम्हे समझना होगा, श्रुति से । तो तुम समझ पाअोगे ।
भगवद गीता में श्लोक है,
इन्द्रियानि परानि अहुर इन्द्रियेभ्य: परम् मन: मनसस् तु परा बुद्धि: ( भ गी ३।४२)
जैसे यहाँ कहा गया है, मनो बुद्धि: । मनसस् च परा बुद्धि: ।
मन से महीन या बेहतर बुद्धि है ।
यह है .. एक अन्य जगह पर यह समझाया है कि स्थूल बात का मतलब है यह इंद्रियॉ ।
इन्द्रियानि परानि अहुर । यह स्थूल दृष्टि है ।
मैं एक आदमी को देखता हूँ, मतलब मैं उसके शरीर, उसकी आँखें, उसके कान, उसके हाथ और पैर और सब कुछ देखता हूँ ।
यह स्थूल दृष्टि है ।
लेकिन इन स्थूल इन्द्रियों से महीम , इंद्रियों को नियंत्रित कर रहा है मन ।
वह तुम नहीं देखते हो । इन्द्रियानि परानि अहुर इन्द्रियेभ्य: परम् मन: ( भ गी ३।४२)
फिर मन, बुद्धि के द्वारा नियंत्रित किया जाता है ।
मनसस् तु परा बुद्धि: । तो तुम्हे एसे अध्ययन करना होगा ।
केवल आम आदमी की तरह तुम खारिज करो कि "कोई भगवान नहीं है, कोई आत्मा नहीं है। " यह बस धूर्तता है, बस धूर्तता ।
दुष्ट मत रहो । यहाँ है भगवद गीता ।
बहुत विशेष रूप से, बहुत बारीकी से सब कुछ जानो । और यह सभी के लिए खुला है ।