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प्रक्रिया यह है ... वह भी भगवद गीता में बताया गया है।
तद विद्धी प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया (भ गी ४।३४)
तुम अगर उस दिव्य विज्ञान को समझना चाहते हैं, तो तुम इस सिद्धांत का पालन करो।
वह क्या है? तद विद्धी प्रणिपातेन।
तुमहे आत्मसमर्पण करना ही पडेगा। एक ही बात:
जैसे नमन्त एव। जब तक तुम विनम्र नहिं होते, तुम आत्मसमर्पित अात्मा नहिं बन सकते।
कहाँ? प्रनीपात।
एसा व्यक्ति कहाँ मिलेगा जो
यहाँ है वो व्यक्ति जिसके समक्ष मैं आत्मसमर्पण कर सकता हूँ?
इसका मतलब है कि हमें आत्मसमर्पण करने के लिए एक छोटा सा परीक्षण देना पडेगा।
इतना ज्ञान तो हुमहे होना ही चिहिए।
किसी भी निरर्थक को आत्मसमर्पण न करें।
तम्हें ......और वह बुद्धिमान या बकवास कैसे पता लगाया जा सकता है?
वह भी शास्त्रों में उल्लेख किया है।
यह कथा उपनिषद में उल्लेख किया गिया है।
तद विद्धी प्रणिपातेन परि ......(भ गी ४।३४)
कथा उपनिषद केहता है कि तद विज्ञानार्थम् स गुरुम् एवभीगच्छेत श्रोत्रियम् ब्रह्म-निष्ठम् (मु १।२।१२)
यह श्रोत्रियम् का मतलब जो गुरु शिष्य परम्परा में आ रहा हो।
और वह गुरु शिष्य परम्परा में अा रहा है इस्का सबूत क्या है?
ब्रह्म-निष्ठम्। ब्रह्म-निष्ठम् मतलब वह पूरी तरह से सर्वोच्च पूर्ण सत्य के बारे में आश्वस्त है
तो वहाँ वह आत्मसमर्पण कर सकता है।
प्रनीपात। प्रनीपात मतलब प्रकृश््ट रूपेन निपाटम्, कोइ संदेह नहि।
अगर एसा व्यक्ति को मिल जाए, तो वहाँ आत्मसमर्पण करो।प्रनीपात।
और उसकी सेवा करने का प्रयास करें, उसे खुश करने की कोशिश करते हैं, और उससे सवाल करें।
पूरी बात उजागर हो जिएगी।
तुम इस तरह के एक आधिकारिक व्यक्ति का पता लगाअो और उसके समक्ष आत्मसमर्पण करो।
उन्हें समर्पण करना अर्थात भगवान समर्पण करना क्योंकि वह भगवान के दूत हैं।
किन्तु आप प्रश्न कर सकते हैं, किन्तु समय अपव्यय करने के लिए नहीं अपितु जानने के लिए।
यही हैं परिप्रश्न।
यही पद्धति हैं।
अतः सब कुछ हैं।
केवल हमे उसे अपनाना होगा।
किन्तु यदि हम उस पद्धति को न अपनाये
और अर्थहीन विषयों में लगे रहो तो यह असंभव हैं।
आप कभी भी इश्वर को नहीं समझ पाएंगे।
क्योंकि इश्वर, देवताओं और ऋषियों द्वारा भी नहीं जाने जाते हैं।
तो हमारे सूक्ष्म प्रयत्नों की क्या बात ?
अतः यही पद्धति हैं।
और यदि आप इन नियमों पालन करे।
धीरे धीरे किन्तु रूप से, asammūḍhaḥ, बिना किसी आशंका के। . यही हैं Pratyakṣāvagamaṁ dharmyam
यदि आप पालन करेंगे तो आप पाएंगे, "हाँ, मुझे कुछ प्राप्त हो रहा हैं।"
ऐसा नहीं की आप अंधे के सदृश पालन कर रहे हैं।
जैसे ही आप नियमों का पालन करने लगेंगे आपको सब कुछ समझ आ जायेगा।
जैसे की आप यदि पौष्टिक भोजन करेंगे तो आप के भीतर उर्जा का संचार होगा और आपको संतुष्टि मिलेगी।
आपको किसी से पूछने की आवश्यकता नहीं हैं।
आपको स्वयं समझ आ जायेगा।
अतः यदि आप उचित पथ पर आगे बढ़ेंगे और नियमों का पालन करेंगे तो आपको समझ आ जायेगा की आप उन्नति कर रहे हैं।
अध्याय नौ में उन्होंने कहा हैं pratyakṣāvagamaṁ dharmyaṁ susukham
और यह अत्यंत सरल हैं।
और यह बढे शांति के साथ किया जा सकता हैं।
और पद्धति क्या हैं ?
हम महामंत्र का जाप करते हैं और कृष्ण प्रसादम ग्रहण करते हैं
और भगवद्गीता पढ़ते हैं और मोहक ध्वनियाँ सुनते हैं।
क्या यह अत्यंत कठिन हैं?
क्या यह अत्यंत कठिन हैं?
नहीं।
अतः इस पद्धति से आप asammūḍhaḥ हो जायेंगे।
कोई आपको मूर्ख नहीं बना सकता।
किन्तु आप ठगना चाहते हैं तो आपको बहुत ठगी मिल जायेंगे।
अतः ठगी समाज का निर्माण न करे।
परंपरा का पालन करे, जैसा शास्त्रों में लिखा गया हैं और जैसा श्रीकृष्ण ने उपदेश दिया हैं।
उपयुक्त स्त्रोतों से समझने का प्रयत्न करे और अपने जीवन में उसका पालन करे।
उसके बाद asammūḍhaḥ sa martyeṣu.
Martyeṣu का अर्थ हैं जो मरने के लिए उचित हो।
कौन हैं वे ? ब्रह्मा से लेकर चीटी तक सब मर्त्य हैं।
मर्त्य का अर्थ हैं एक समय जब वह सभी मारे जायेंगे।
अतः Martyeṣu
मनुष्यों में वह सबसे बुद्धिमान हो जाता हैं।
Asammūḍhaḥ sa martyeṣu
Sarva-pāpaiḥ pramucyate
क्योंकि वह सब प्रकार के दुष्कर्मो के फलो से मुक्त हैं।
इस जगत में जाने अनजाने में अनेक कुकृत्य करते हैं।
अतः हमें दुष्कर्मो के फलो से मुक्त होना होगा।
और इससे कैसे बाहर निकला जा सकता हैं?
यह भी गीता में लिखा हुआ हैं।
Yajñārthāt karmaṇo 'nyatra loko 'yaṁ karma-bandhanaḥ (गीता ३.९ )
यदि आप केवल श्रीकृष्ण के लिए कार्य करते हैं, यज्ञ का अर्थ हैं विष्णु अथवा कृष्ण।
यदि आप केवल श्रीकृष्ण के लिए कार्य करते हैं तो आप सभी प्रकार के फलों से मुक्त हो जाते हैं।
Śubhāśubha-phalaiḥ हम सर्वदा कुछ मंगल अथवा अमंगल करते रहते हैं।
किन्तु जो कृष्ण भवनाभावित हैं और उसी प्रकार कार्य करते हैं,
उन्हें कार्यों के मंगल अमंगल होने की चिंता नहीं करनी चाहिए।
क्योंकि वह सर्वाधिक मंगल श्रीकृष्ण के संपर्क में हैं।
अतः sarva-pāpaiḥ pramucyate.
वह सभी दुश्फलो से मुक्त हो जाता हैं।
अतः यही पद्धति हैं।
अतः यदि हम पद्धति का पालन करे तो श्रीकृष्ण के संपर्क में आ सकते हैं।
अतः हमारा जीवन सफल हो सकता हैं।
यह पद्धति अत्यंत सरल हैं और सभी इसे अपना सकते हैं। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद।