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Translator: Arpita Bhattacharjee Reviewer: vidya raju
"मैं जो करूँगी"
मैं तुम्हारे युद्ध के नगाड़े की थाप पर नहीं नाचूँगी.
तुम्हारे युद्ध के उस नगाड़े को न मैं अपनी आत्मा दूँगी, न अपनी अस्थियाँ.
उस ताल पर मैं नहीं थिरकूँगी.
मैं जानती हूँ उस ताल को.
उसमें जान नहीं है.
उस ख़ाल को बखू़बी पहचानती हूँ मैं जिसे तुम पीट रहे हो.
कभी वो ज़िन्दा थी,
शिकार की गई, चुराई गई,
खींची गई.
तुम्हारे मचाए युद्ध की ताल पर मैं नहीं नाचूँगी.
न उछलूँगी, न घूमूँगी, न हरक़त लूँगी, तुम्हारे लिए.
तुम्हारे लिए नफरत नहीं करूँगी.
और न तुमसे नफरत करूँगी.
मैं तुम्हारे लिए नहीं मारूँगी.
ख़ासकर, मैं नहीं मरूँगी तुम्हारे लिए.
मरे हुओं का श्राद्ध क़त्ल या ख़ुदकुशी से नहीं करूँगी.
सिर्फ इतनी वजह से तुम्हारा साथ नहीं दूँगी या बमों को लेकर भी नहीं नाचूँगी
कि बाकि सभी नाच रहे हैं.
सभी ग़लत हो सकते हैं.
ज़िन्दगी हक़ है, मातहत नहीं, इत्तेफ़ाक़ नहीं.
मैं नहीं भूलूँगी कि मैं कहाँ से आई हूँ.
मेरा नगाड़ा मैं ख़ुद बनाऊँगी.
अपने क़रीबियों को पास खींच लूँगी,
हमारे गीत हमारा नृत्य बनेंगे.
हमारा गुनगुनाना हमारी थाप होगी.
मैं खिलवाड़ नहीं बनूँगी.
अपना नाम या अपनी गत मैं तुम्हारे ताल को नहीं दूँगी.
मैं नाचूँगी और खिलाफत करूँगी और नाचूँगी और डटी रहूँगी और नाचूँगी.
दिल की ये धड़कन मौत से ज़्यादा शोर करती है.
तुम्हारे युद्ध के नगाड़ों की आवाज़
इस साँस से तेज़ नहीं. ' हा...'
क्या हुआ TED के लोगों? मुझे आपकी आवाज़ सुननी है.
(तालियाँ)
शांतिवादियों का झुण्ड.
कुछ असमंजस में, प्रतिष्ठा ढूँढते शाँतिवादि.
मैं समझती हूँ.
हाल के दौरान मैं काफी बार ग़लत रही.
काफी बार.
इसलिए मैं नहीं समझ पा रही थी कि
मैं आज क्या पढूँ.
मतलब, मैं कहती रही हूँ कि मैं तैयारी कर रही हूँ.
याने अपने कपड़ों की तैयारी,
(हँसी)
तैयारी की दिशा,
ये समझने की कोशिश कि मैं कहाँ पीछे रह जा रही हूँ
और किसका सामना कर रही हूँ.
ये काम कविता करती है.
ये आपको तैयार कर देती है. आपको लक्ष्य दे देती है.
तो अब मैं ऎसी कविता पढ़ने जा रही हूँ
जो अभी चुनी गई है.
पर मैं चाहती हूँ कि आप
बस 10 मिनट बैठें
और उस महिला को अपने क़रीब थाम लें जो अभी यहाँ नहीं है.
उसे यहाँ अब
अपने साथ ही थामे रखें.
उसका नाम बताने की ज़रूरत नहीं, बस उसे थामे रहिए.
क्या आप उसको थामे हैं?
ये है ' 'तोड़ दो (संकलन)'
सारा पवित्र इतिहास प्रतिबंधित है.
ना लिखी क़िताबों ने भविष्यवाणियाँ की, बीते कल को दिखाया.
पर मेरी सोच जाती है
सीमाहीन सी लगने वाले
इंसानी हिंसा की कलाकारी पर.
किसका बेटा जाएगा?
कौनसा पुरूष शावक अगले दिन नष्ट होगा?
हमारे लड़कों की मौत हमें प्रेरित करती हैं.
हम शवों को संजोते हैं.
हम औरतों का सोक मनाते हैं, अजीब है.
ये सब साली रोज़ पिटती हैं.
स्थापित पयगंबर, उपेक्षित पयगंबर.
जंग और एनामेल किए दाँत और नींबू में नमक छीड़के बचपन.
सारे रंग छूट जाते हैं, हम में से कोई ठोस नहीं.
मेरे पीछे परछाई मत ढूँढो. मैं उन्हें अन्तस् में लिए चलती हूँ
मैं उजाले और अंधेरे के चक्र जीती हूँ.
लय में आधी ख़ामोशी है.
मेंने अब जाना, कि ऎसा कभी नहीं था कि मैं एक थी और दूसरी नहीं.
बीमारी, स्वास्थ्य, नरमी, हिंसा.
अब लगता है कि मैं कभी पवित्र नहीं थी.
आकार लेने से पहले मैं झंझावत थी,
अंधी, अपढ़ -- आज भी हूँ.
इंसानियत ने खुद से क़रार कर रखा है अंधेपन, विद्वेष का.
मैं कभी पवित्र थी ही नहीं.
पकने से पहले नष्ट लड़की.
भाषा मेरा गणित नहीं समेट सकती.
मैं अनंत गहराईयों तक महसूस करती हूँ.
सबकुछ ही सबकुछ है.
एक औरत 15, या शायद 20 अपनों को खो देती है.
एक औरत 6.
एक औरत अपना आपा खो देती है.
एक औरत मलबा छानती है. एक औरत कचड़ा बीन कर खाती है.
एक औरत गोली से अपना चेहरा उड़ा देती है. एक औरत अपने पति को.
एक औरत खुद को बांध लेती है.
एक औरत बच्चे को जन्म देती है.
एक औरत सीमाओं को.
एक औरत को लगता है उसे कभी प्यार नहीं मिलेगा.
एक औरत को कभी नहीं मिलता.
ये पनाहगीरों के दिल कहाँ जाते हैं?
टूटे, अपमानित,
वहाँ आरोपित जहाँ उनकी जड़ें नहीं, थोड़ी परवाह तलाशते.
खालीपन से जूझते.
हम हर एक का सोक मनाते
वरना हम एक दूसरे के कुछ नहीं लगते.
मेरे रीढ़ की हड्डी किसी बेल की तरह मुड़ती है.
इंसानों की ओर और इंसानों से भागती हुई खाई.
छूटे हुए क्लस्टर बम.
असल लैण्ड माईन.
सुलगता मातम.
दूषित तंबाकू की फसल काट लो.
बम कि फसल काट लो.
दूध के दाँतों की फसल काट लो.
हथेलियों की फसल काट लो, धुँआ है.
गवाहों की फसल काट लो, धुँआ है.
समाधान, धुँआ है.
मुक्ति, धुँआ है.
मुआवज़ा, धुँआ है.
साँस लो.
उससे मत डरो
जो फट चुका है.
अगर डरना ही है,
डरो उससे जो अभी फटा नहीं.
धन्यवाद.
(तालियाँ)