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पैनी नज़र.
जितनी बड़ी - उतनी बेहतर - कम से कम दूरबीन के दर्पण के बारे में यह कहा जा सकता है.
पर बड़े दर्पण मोटे भी होने चाहिए अन्यथा वे अपने ही वज़न से विकृत हो जायेंगे.
पर बहुत बड़े दर्पण विकृत हो ही जाते हैं चाहे हम उन्हें कितना ही मोटा और भारी क्यों न बना लें.
समाधान? पतले हलके दर्पण और एक्टिव ऑप्टिक्स की जादुई तकनीक.
'ईएसओ' ने 1980 के दशक में इस तकनीक को प्रशस्त किया,
इससे अपनी 'न्यू टेक्नोलोजी टेलेस्कोप' को सुसज्जित किया.
ये थी अद्यतन तकनीक.
'वेरी लार्ज टेलेस्कोप' या 'वीएलटी' के बड़े दर्पणों का व्यास 8.2 मीटर है ...
पर उनकी मोटाई मात्र 20 सेमी० है.
यह जादू संभव हुआ है
कम्पयूटर नियंत्रित सहारों या टेकों के द्वारा जो ये
सुनिश्चित करते हैं कि दर्पण नैनोमीटर की परिशुद्धता से अपना सही आकार बनाये रखे.
'वीएलटी' 'ईएसओ' की प्रमुख सेवा है.
इसमें चार एक जैसी दूरबीने एकजुट होकर उत्तरी चिली के सेर्रो पारनाल शिखर पर कार्य करती हैं.
1990 के दशक में निर्मित,
ये खगोलशास्त्रियों को अत्याधुनिक टेक्नोलोजी प्रदान करती हैं.
आटाकामा के मरुस्थल बीच 'ईएसओ' ने मानों खगोलशास्त्रियों के लिए स्वर्ग का निर्माण कर दिया हो.
वैज्ञानिक 'ला रेसिदेंसिया' नामक भवन में रहते हैं
- एक अतिथि गृह जो - हमारे ग्रह के सबसे सूखे स्थान पर
- आंशिक रूप से धूल-मिट्टी के नीचे दबा है
पर यहाँ अंदर छिपे हैं ताड़ के हरे वृक्ष, तरण-ताल, ... और चिली की स्वादिष्ट मिठाइयां
पर
'वीएलटी' की प्रमुख विशिष्टता इसका तरण-ताल नहीं है,
वो है इसके द्वारा संभव हुआ ब्रह्मांड का अद्वितीय परिदृश्य.
बिना पतले दर्पणों और एक्टिव ऑप्टिक्स के 'वीएलटी' संभव न थी.
पर इसकी और भी विशिष्टतायें हैं.
किसी भी दूरबीन से, चाहे वो सबसे बड़ी क्यों न हो तारे धुंधले दिखाई देते हैं.
कारण? हमारा वायुमंडल बिम्ब को विकृत कर देता है.
यहाँ प्रवेश लेता है हमारा दूसरा जादू - एडैप्टिव ऑप्टिक्स.
पारनाल वेधशाला से लेज़र प्रकाश किरणें ऊपर आकाश पर जाकर कृत्रिम तारों का निर्माण करती हैं.
नीचे पृथ्वी पर लगे संसूचक इन तारों की मदद से ये ज्ञात कर लेते हैं कि वातावरण कितनी विकृति पैदा कर रहा है.
यह मापन एक सेकिंड में सैकड़ों बार किया जाता है.
और हर बार कम्पयूटर विकृतिशील दर्पणों को नियंत्रित कर बिम्ब में सुधार करता है.
और परिणाम? ऐसा लगता है मानों वायुमंडल की हलचल पूरी तरह समाप्त हो गयी हो.
आप स्वयं इस अन्तर को देखिये.
आकाशगंगा एक विशाल सर्पिलाकार मन्दाकिनी है.
और 27,000 प्रकाशवर्ष दूर इसके केन्द्रीय भाग के
रहस्य को 'ईएसओ' की 'वीएलटी' ने सुलझाया.
विशालकाय धूल के बादलों के कारण यह भाग अदृश्य रहता है.
पर सुग्राही अवरक्त प्रकाश कैमरे उस धूल को भेदकर
उस पार क्या है उसे देख सकते हैं.
एडैप्टिव ऑप्टिक्स के सहारे वहां दर्जनों लाल दानव तारे खोजे गए हैं.
और समय के बीतने के साथ ये भी पाया गया कि ये तारे गतिमान हैं.
वे आकाशगंगा के केन्द्र में स्थित किसी अदृश्य पिंड की परिक्रमा कर रहे हैं.
केन्द्र के परिक्रमारत तारों की गतियाँ संकेत देती हैं कि वह पिंड बहुत भारी होगा.
एक दैत्याकार श्याम विवर या 'ब्लैक होल' - संहति सूर्य की 43 लाख गुना.
खगोलशास्त्रियों ने वहां श्याम विवर में गिरते गैस के बादलों में
शक्तिशाली कौंध का प्रेक्षण किया है
यह सब संभव हुआ है एडैप्टिव ऑप्टिक्स कि शक्ति से.
तो पतले दर्पण और एक्टिव ऑप्टिक्स ने बड़ी दूरबीनों का निर्माण संभव कर दिया -
एडैप्टिव ऑप्टिक्स ने वातावरण की झिलमिलाहट खत्म की
और इस प्रकार हमें मिले एकदम प्रखर एवं सुस्पष्ट चित्र.
पर अभी हमारा जादू का पिटारा खाली नहीं हुआ है.
एक और तीसरा जादू है व्यतिकरणमापन या 'इंटरफैरोमैट्री'.
'वीएलटी' में चार दूरबीनें हैं.
ये साथ में मिलकर 130 मीटर आभासी व्यास की बड़ी दूरबीन बन जाती हैं.
प्रत्येक दूरबीन का प्रकाश निर्वात की हुयी सुरंग से
धरती के नीचे प्रयोगशाला में लाया जाता है
यहाँ प्रकाश तरंगों को लेज़र मापन एवं विशेष 'डिले लाइन' की तकनीक से जोड़ा जाता है.
इस प्रकार 8.2 मीटर व्यास की चार दूरबीनों की प्रकाशग्राही क्षमता जुड़कर
एक पचास टेनिस कोर्ट के तुल्य काल्पनिक दूरबीन सी हो जाती है.
साथ की चार अन्य छोटी सहायक दूरबीनें इस समायोजन को और भी लचीला बना देती हैं.
यूँ तो चार विशाल दूरबीनों के समक्ष ये बौनी नजर आती हैं
प्रत्येक में मात्र 1.8 मीटर व्यास का दर्पण लगा है.
फिर भी ये सौ साल पहले की सबसे बड़ी दूरबीन से भी बड़ा है!
व्यतिकरणमापन या ऑप्टिकल इंटरफैरोमैट्री एक जादू जैसा है.
तारों के प्रकाश का जादू जो यहाँ मरुस्थल में मुखर हो रहा है.
परिणाम बहुत ही कारगर साबित हुए हैं.
'वैरी लार्ज टेलेस्कोप' का व्यतिकरणमापी हबल अंतरिक्ष दूरबीन से
पचास गुना अधिक सुस्पष्टता देता है.
उदाहरण के लिए इस युगल तारे में इस भक्षी को देखिये.
ये अपने साथी तारे से पदार्थ चुराकर उसका भक्षण कर रहा है.
बीटलजूस या काक्षी तारे से यदा कदा धुंए और धूल के छल्ले निकलते देखे गए हैं.
ये एक दैत्य तारा है जिसका कभी भी सुपरनोवा के रूप में विस्फोट हो सकता है.
और, नवजात तारों के गिर्द खगोलशास्त्रियों को धूल भरी चकतियाँ...
जो भविष्य के पृथ्वी जैसे संसारों का उपादान या कच्चा माल है.
'वैरी लार्ज टेलेस्कोप' मानव अंतरिक्ष में गड़ी सबसे पैनी आँख है.
पर खगोलशास्त्रियों के पास ऐसी दूसरी विधाएं भी हैं जिनसे वे अपने आयाम को बढ़ा लेते हैं...
और विचारों को भी.
यूरोपीयन सदर्न आब्जर्वेटरी में
उन्होंने ब्रह्मांड को एक एकदम नए नजरिये से देखना सीखा है.