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" हे मेरे रभु , सब जीवन के निर्वाहक, आपका असली चेहरा आपकी चमकदार प्रभा द्वारा छिप जाता है ।
कृपया यह आवरण को हटाऍ और अपने शुद्ध भक्त को अपना दर्शन दीजिए ।
यहां वैदिक सबूत है। यह इशोपनिषद् वेद है, यजुर्वेद का हिस्सा है ।
तो यहॉ यह कहा गया है, हिरण्मयेन पात्रेन सत्यस्य अपिहितम् मुखम् ।
जैसे सूरज की तरह ।
वहाँ है, सूर्य ग्रह में, एक प्रबल देवता हैं जिनका नाम विवस्वान् है ।
यह जानकारी हमें मिलती है भगवद गीता से विवस्वान मनवे प्राह ।
तो हर ग्रह में एक प्रबल देवता है ।
अपने इस ग्रह की तरह, देवता नहीं, राष्ट्रपति की तरह ।
पूर्व में, इस ग्रह पर केवल एक राजा थे, महाराजा परीक्शित तक ।
एक राजा था ... इस पूरे ग्रह पर केवल एक ही झंडे का शासन था ।
इसी तरह, हर ग्रह में एक प्रबल देवता है ।
तो यहाँ कहा जाता है कि यह सर्वोच्च प्रबल देवता कृष्ण हैं,
आध्यात्मिक जगत में, सर्वोच्च ग्रह आध्यात्मिक अंतरिक्ष में ।
इस भौतिक अंतरिक्ष है । भौतिक अंतरिक्ष में यह सारे ब्रह्माण्डो में से एक है ।
लाखों अरबों ब्रह्मांड हैं ।
और इस ब्रह्मांड में लाखों अरबों ग्रह हैं ।
यस्य प्रभा प्रभवतो जगद-अंड-कोटि (ब्र स ५।४०) । जगद-अंड । जगद-अंड का मतलब है ब्रह्मांड ।
अंडा: बस एक अंडे की तरह, यह पूरा ब्रह्मांड ।
तो कोटि । कोटि का मतलब है सैकड़ों हज़ारों ।
तो ब्रह्मज्योति में सैकड़ों हजारों एसे ब्रह्मांड हैं
और इस ब्रह्मांड के भीतर सैकड़ों हजारों ग्रह हैं ।
इसी तरह, आध्यात्मिक अंतरिक्ष में भी सैकड़ों हजारों असीमित संख्या वैकुण्ठ हैं, ग्रह ।
प्रत्येक वैकुण्ठ ग्रह में प्रबल देवत्व के परम व्यक्तित्व हैं ।
कृष्ण ग्रह को छोड़कर अन्य सभी वैकुण्ठ ग्रहों में नारायण प्रबल हैं ।
और प्रत्येक नारायण के अलग अलग नाम हैं । जिनमें से कुछ हम जानते हैं ।
जैसे अभी हमने बोला प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, संकर्षन...
हमारे पास केवल चौबीस नाम हैं, लेकिन कई अन्य हैं ।
अद्वैतम् अच्युतम् अनादिम् अनन्त-रुपम् ( ब्र स ५।३३)
तो यह सारे ग्रह ब्रह्मज्योति प्रभा द्वारा छिपे हैं ।
तो यहाँ यह प्रार्थना की जा रही है कि हिरण्मयेन पात्रेन सत्यस्य अपिहितम् ।
अपिहितम् का मतलब है छिपा हुअा ।
वैसे ही जैसे तुम इस चमकदार धूप के कारण सूरज की दुनिया को नहीं देख सकते हो,
इसी तरह, कृष्ण ग्रह, यहाँ तस्वीर है ।
कृष्ण ग्रह से प्रभा आ रही है ।
एक तो इस प्रभा में घुसना पड़ेगा । यही यहां प्रार्थना की जा रही है । हिरण्मयेन पात्रेन सत्यस्य ।
वास्तविक निरपेक्ष सत्य, कृष्ण, उनका ग्रह ब्रह्म प्रभा द्वारा छिप जाता है ।
तो भक्त प्रार्थना कर रहा है "कृपया इसे हटाऍ । "
मैं वास्तव में आप को देख सकूँ तो इसे हटा दीजिए ।
तो ब्रह्मज्योति, मायावाद दार्शनिक, उन्हे पता नहीं है कि ब्रह्मज्योति के परे कुछ है ।
यहां वैदिक सबूत है, कि ब्रह्मज्योति सिर्फ स्वर्ण प्रभा है ।
हिरण्मयेन पात्रेन । यह अावरण परम भगवान का असली चेहरा है ।
तत् त्वम् पूशन्न अपावृनु ।
तो, "आप निर्वाहक हैं, आप अनुरक्षक हैं ।
तो कृपया इसे अनावरण करिए ताकि मैं वास्तव में अापका चेहर देख सकूँ ।"