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तो हमें यह सीखना होगा, कि कैसे हम आध्यात्मिक जीवन की सुंदरता को देखें ।
तो, स्वाभाविक रूप से, हम भौतिक गतिविधियों से परहेज करेंगे ।
एक बच्चे की तरह, एक लड़का ।
वह सारा दिन शरारत करता है और खेलता है, लेकिन अगर उसे कुछ अच्छा कार्य करने को दिया जाय ...
इतने सारे उपकरण अब हैं शिक्षा विभाग द्वारा, बाल विहार प्रणाली या यह प्रणाली या वह प्रणाली ।
लेकिन अगर वह सीखता है "ओह, 'ए' फार्म 'बी' फार्म "
तो वह एक ही समय एबीसी सीखता है, और एक ही समय में अपने शरारती गतिविधियों से देर रहता है ।
इसी तरह, कुछ बातें, बाल विहार प्रणाली आध्यात्मिक जीवन की ।
अगर हम अपने अाप को इन आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न करें, तो हि यह संभव है इन भौतिक गतिविधियों से बचना ।
क्रियाएँ रोकी नहीं जा सकती हैं । क्रियाएँ रोकी नहीं जा सकती हैं । वही उदाहरण, अर्जुन ...
बल्कि, भगवद गीता सुनने से पहले, वह निष्क्रिय हो गया , न लड़ने के लिए ।
लेकिन भगवद गीता सुनने के बाद, वह और अधिक सक्रिय हो गया, लेकिन दिव्य सक्रिय ।
तो आध्यात्मिक जीवन, या दिव्य जीवन, इसका मतलब यह नहीं है कि हम गतिविधियों से मुक्त हैं ।
हम कृत्रिम रूप से बैठ जाऍ, "ओह, अब मैं कुछ भी भौतिक नहीं करूँगा ।
मैं बस ध्यान करूँगा "ओह, तुम क्या ध्यान करोगे ?
तुम्हारा ध्यान एक पल में ही टूट जाएगा जैसे विश्वामित्र मुनि, वह अपना ध्यान जारी नहीं रख सके ।
हमें हमेशा शत प्रतिशत, आध्यात्मिक गतिविधियों में लिप्त होना चाहिए ।
यही हमारे जीवन का कार्यक्रम होना चाहिए ।
बल्कि, आध्यात्मिक जीवन में तुम्हे समय नहीं मिलेगा इससे बाहर निकलने के लिए ।
तुम्हे इतने कार्य मिले हैं । रस-वर्जम ।
अिर यह कार्य तभी संभव हो सकता है जब गुम इसे में कुछ दिव्य खुशी पाअोगे ।
तो यह होगा। यह होगा ।
अादौ श्रद्धा तत: साधु-संग: (चै च मध्य २३।१४-१५) ।
आध्यात्मिक जीवन शुरू होता है, सब से पहले, श्रद्धा, कुछ विश्वास ।
जैसे तुम मुझे सुनने के लिए कृपा करके यहां आ रहे हो । तुम्हे थोड़ा विश्वास है । यह शुरुआत है ।
विश्वास के बिना तुम यहाँ के लिए अपना समय नहीं निकाल सकते हो क्योंकि यहाँ कोई सिनेमा नहीं चल रहा है,
कोई राजनीतिक वार्ता नहीं, एसी कोई बात नहीं ...
यह हो सकता है, कुछ के लिए यह बहुत शुष्क विषय है । बहुत शुष्क विषय । (हंसते हुए)
लेकिन फिर भी तुम आते हो । क्यों?
क्योंकि तुम्हे थोड़ा भरोसा है , "ओह, यहाँ भगवद गीता है । हमें यह सुनते है ।"
तो विश्वास शुरुआत है । विश्वासघाती का आध्यात्मिक जीवन नहीं हो सकता ।
आस्था शुरुआत है ।अादौ श्रद्धा । श्रद्धा ।
और यह आस्था, विश्वास, जितना तेज होगा, तुम अपनी प्रगति करोगे ।
तो इस विश्वास को तीव्र करना होगा । शुरुआत विश्वास है ।
और अब जैसे तुम अपने विश्वास को तीव्र करोगे, तो तुम आध्यात्मिक पथ में प्रगतिशील बनोगे ।
अादौ श्रद्धा तत: साधु-संग: (चै च मध्य २३।१४-१५) ।
अगर तुम्हे कुछ विश्वास है, तो तुम किसी साधु का पता लगाअोगे ।
साधु या कोई संत, कोई ऋषि, जो तुम को कुछ आध्यात्मिक ज्ञान दे सकते हैं । उसे साधु-सांगा कहा जाता है (चै च मध्य २२।८३) ।
अादौ श्रद्धा । बुनियादी सिद्धांत श्रद्धा है, और अगला कदम साधु-संग, आत्म बोध व्यक्तियों का संग ।
यही साधु कहलाता है.....अादौ श्रद्धा तत: साधु-संग: अथ भजन क्रिया ।
और अगर वास्तव में आध्यात्मिक अात्म बोध व्यक्तियों का संग है ,
तब वह तुम्हे आध्यात्मिक गतिविधियों की कुछ प्रक्रिया देंगे । यह भजन क्रिया कहा जाता है ।
अादौ श्रद्धा तत: साधु-संग: अथ भजन क्रिया तत: अनर्थ निव्रति: स्यात ।
और जब तुम अधिक से अधिक आध्यात्मिक गतिविधियों में लग जाअो,
तो, उसी अनुपात में, तुम्हारी भौतिक गतिविधियॉ और भौतिक गतिविधियों के लिए स्नेह कम होगा ।
प्रतिरोध । जब तुम आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न रहोगे, तुम्हारे भौतिक गतिविधियॉ कम होगीं ।
लेकिन ध्यान रहे । भौतिक गतिविधियों और आध्यात्मिक गतिविधियों, फर्क यह है कि ...
मान लीजिए तुम एक चिकित्सा आदमी के रूप में काम करते हो,
तुम यह मत सोचो कि "मैं आध्यात्मिक कार्यों में लगा हूँ, तो मुझे अपना पेशे छोडना होगा ।" नहीं, नहीं ।
यही नहीं है। तुम्हे अपने पेशे को अाध्यात्मिक बनाना होगा ।
अर्जुन की तरह, वह एक सैन्य आदमी था । वह एक अध्यात्मवादी बन गया ।
मतलब है कि उन्होंने अपनी सैन्य गतिविधि को अाध्यात्म से जोडा ।
तो यह तकनीक हैं ।
अादौ श्रद्धा तत: साधु-संग: अथ भजन क्रिया तत: अनर्थ निव्रति: स्यात (चै च २३।१४-१५)
अनर्थ मतलब.....अनर्थ का मतलब है जो पीडा पैदा करे ।
भोतिक गतिविधियॉ मेरे दुख को बढ़ाने के लिए जारी रहेंगी।
और तुम आध्यात्मिक जीवन अपनाअो, तो तुम्हारी भौतिक दुख धीरे - धीरे कम हो जाएँगे, और व्यावहारिक रूप से यह नहीं के बराबर हो जाएँगे ।
और अगर हम वास्तव में भौतिक आत्मीयता से मुक्त हैं, तो तुम्हारा वास्तविक आध्यात्मिक जीवन शुरू होता है ।
अथासक्ति । तुम अासक्त हो जाते हो । तुम फिर छोद नहीं सकते हो ।
जब तुम्हारा अनर्थ निव्रति, जब तुम्हारी भौतिक गतिविधियॉ पूरी तरह से रुक जाती हैं, तो तुम छोड नहीं सकते हो ।
अथासक्ति । अादौ श्रद्धा तत: साधु-संग: अथ भजन क्रिया तत: अनर्थ निव्रति: स्यात ततो निश्ठा (चै च २३।१४-१५)
निस्था का मतलब है तुम्हारा विश्वास और अधिक दृढ, तय, स्थिर हो जाता है ।
ततो निश्ठा ततो रुचि: । रुचि का मतलब है तुम अाध्यात्मिक चीजों की लालसा करोगे ।
तुम्हे आध्यात्मिक संदेश को छोड़कर कुछ भी सुनना पसंद नहीं होगा ।
तुम्हे आध्यात्मिक गतिविधियों के अलावा कुछ भी करना पसंद नहीं होगा ।
तुम्हे कुछ भी खाना पसंद नहीं होगा जो प्रसाद नहीं हो । तो तुम्हारा जीवन बदल जाएगा ।
ततो निश्ठा अथासक्ति: । फिर लगाव, फिर भाव ।
फिर तुम दिव्य बनोगे, मेरे कहने का मतलब होगा , परमानंद पाअोगे ।
कुछ परमानंद होगा ।और वह है ...
यह आध्यात्मिक जीवन के सर्वोच्च मंच के लिए विभिन्न कदम हैं ।
तोतो भाव: । तोतो भाव: । भाव:, भाव की स्तिथि,
सही मंच है जहॉ से तुम परम भगवान के साथ सीधे बात कर सकते हो ।