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उन विकलांगो की स्मृति में जिन्होंने निराश होकर अपने जीवन को समाप्त कर दिया
जोनाथन कि साइकिल पर एक दुखद दुर्घटना हुई थी
भारत में .
यह चमत्कार ही है कि वह जिंदा है
जब मै ठीक थी ... जब मुझे चोट नहीं लगी थी
तब मेरा सपना था की मैं टीचर बनू .
टीचर ... और खिलाड़ी .
वह एक .बड़ा सपना
मै एक बड़ा खिलाड़ी , परन्तु
यह अभी तक नहीं हुआ हैं
दुर्घटना से पहले मैं जवान था और खेलता था
फ़ुट बाल ,बोक्सिंग ,दौड़ ,सब कुछ ,तैराकी
परन्तु मैंने काफी चीजों को खोज लिया था , मैंने ज़िन्दगी को खोज लिया था
मै चार महीनो तक बिस्तर पर पड़ा रहा . मै सोच रहा था
ठंडे पानी से नहाना कैसा लगता होगा.
मेरा नाम जोनथन है
पहले मैं यही बनना चाहता था .
लक्ष्य केवल चलना नहीं
हाई स्कूल में मै और मेरे कुछ मित्र अप्रवीण थे
एक पहिया साइक्लिंग में
परन्तु हमने कुछ ऐसे लक्ष्य बनाये थे जो असंभव थे
कई बार जो असंभव जान पड़ता है वह आपके साथ घट जाता है ,
मै अभी 19 साल का ही हुआ था
जब मैं भारत के उत्तर में पढाई करने गया
मसूरी हिलस्टेशन में
अब 4 महीने तक यही मेरा घर था,
हिमालय की पहाड़ी पग डंडी में
परन्तु एक सुबह ,क्योकि मुझे क्लास के लिए देरी हो रही थी
मैं साइकिल से गया
पैदल जाने के बजाय उस घुमावदार रस्ते पे
उधर मेरे मित्रो ने अभी बाइबल में से रोमियों 8 : 28 पढ़ा था
“ सब वस्तुए मिलकर भलाई को उत्पन्न करती
'जो परमात्मा से प्रेम करते है और उसके उदेश्य के अनुरूप बुलाये गए है उनके लिए’’
उनके पास हस्पताल से एक फोन आया
मै 70 फीट टीले से गिर पड़ा
एक मोड़ से गुज़रते हुए मेरे टायर फिसल कर नियंत्रण खो बैठे
मै सिर्फ इस लिए बच गया की मैं सर के बल गिरा
हस्पताल के नजदीक गिरा
कुछ लोगो ने देख लिया था
रात होते होते मेरी चिकित्सा दिल्ली में हो रही थी,
टेक्सी से 8 घंटे की दूरी पर है
मेरी रीड़ की हड्डी की 5-6 वर्टिब्रा टूट गयी थी,
जिसने मेरे शारीर को निष्क्रिय कर दिया
मेरी उंगलियों को मेरी बाँहों को
और मेरे हाथो के निचे ,
पॉँच हफ्ते बाद,
मै पीठ के घाव, सर्जरी ,दिमागी बुखार से ठीक हो ही रहा था
मैंने भारत के दोस्तों से अलविदा कह दिया ,
और मै अपने घर कनेक्टिकट वापस चला गया,
जहा मैंने गेलोर्ड हस्पताल के रिहैब मै ढाई महीने बिताये.
जहा मेरी मुलाकात एंड्र्यू से हुई ,वह भी कुद्रिप्लेजिक मेरी उम्र का
उसको भी मेरे सामान ही चोट लगी थी , तीन साल पहले
एंड्र्यू जनता था की मै किस स्थिति से गुज़र रहा हूँ.
क्योकि उसने पहले ही सिख लिया था की इस चोट के साथ कैसे जिए
वह मुझे और मेरे थेरेपिस्ट को समझा सका की
कैसे मैं स्वयं अपनी देख भाल कर सकता हूँ
जब मैं घर जाऊंगा
तीन वर्ष बाद भी ,मेरी निष्क्रिय दशा वैसी ही है,
परन्तु मै अब मज़बूत हो गया हूँ,
और मै अब बहुत सी चीजे अपने आप कर लेता हूँ.
विश्वविधालय में मैंने दो वर्ष की शिक्षा पूरी करी
और मै चार बार भारत जा चूका हूँ.
मुझे नहीं लगता की मै भारत को भूल पाउँगा,
क्योकि यही पर मेरे इस नए जीवन की शुरुआत हुई थी…
वील चेयर पर
मिलेट्री द्वारा संचालित पुणे सबसे बड़ा
पेराप्लेजिक रिहेब सेण्टर- सिर्फ पुराने सैनिको के लिए है
इसकी तरह कोई और सेण्टर आम नागरिको के लिए नहीं है
जो घर से दूर घर जैसा माहोल दे सके.
सरकार को तो नहीं,
इन सैनिको की बेबसी इनके परिवारों को ज़रूर तोड़ देती.
हम दो भाई और दो बहन है .
जब मै 6 साल का था तो मेरी माताजी का देहांत हो गया .
16 साल कि उम्र मै नेवी मै भरती हो गया.
और दो साल के बाद ही मै इस दुर्घटना का शिकार हो गया .
जबकि हम चार लोगो में से केवल मै ही रोज़गार कर रहा था.
अभी मुझ पर सबकी निर्भरता शुरू ही हुई थी .
परन्तु ….
भगवान् की इच्छा ..... आप इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते.
मिलेट्री द्वारा यहाँ पर रह रहे कुद्रेप्लेजिक लोगो के लिए बहुत सी सुविधाए प्रदान की गई हैं
परन्तु उन्होंने आत्म निर्भर होना नहीं सिखाया
क्योकि किसी को तकनीक का ज्ञान ही नहीं है
उन्हें आवश्यकता है की कोई उन्हें सिखाए की क्या संभव है
यदि आपका शारीर पूरी तरह से निष्क्रय है
तोभी आप अपने आप बिस्तर से उठ सकते हैं.
पहली आवश्यकता है की आपका पलंग कुर्सी के लेवल का हो,
और इतना निचे हो की आपके पाँव ज़मीन को छु सके
मुझे यह सिखने में पूरा एक वर्ष लगा की
कैसे में अपने आप को बिना सहायता के वील चेअर पर शिफ्ट कर सकता हूँ
जब मैं हस्पताल में था
पहले मैंने अपने आप को स्लईडिंग बोर्ड द्वारा ट्रान्सफर कारन सिखा
जो की आपके पलंग और वील चिर के बिच एक पुल का काम करता है.
बिना अपने शारीर को उठाए,
आप खिसक कर बोर्ड के कोने तक जा सकते हैं.
मै पुणे आ गया क्योकि एंड्र्यू ने मुझे सही तकनीक सिखा दी थी,
और यहाँ पर कई भविष्य के सलाहकारों को में देख रहा था.
हम वास्तव में किस का प्रचार करने का प्रयास कर रहे है
अपनी अक्षमता को क्षमता में बदलने का
तो आप भी एक स्रोत बन सकें
कुँद्रप्लेजिक के लिए भारत के विभिन्न स्थानों में
पहली बार था की उन्होंने किसी कुँद्रप्लेजिक को तैरते हुए देखा था
मै इस दुर्घटना कि शिकार जब हुआ जब मैं स्विमिंग पूल मै कूद रहा था
मै ज़मीन से टकरा गयी और मेरी गर्दन टूट गयी
पुरानी यादे वापस आ रही थी
और .... मैंने सोचा मुझे करना है
बार और प्रयास करता हूँ .....
तैराकी के उन बुरे सपनो को दूर किया और फिर ...
पानी मै छलांग लगा दी
खेल आपको स्वस्थ रखता है--
खेल वील चेयर पर जो हैं उनके लिए उतना ही ज़रूरी है जितनी थेरेपी.
पेराप्लेजिक बास्केटबाल आसानी से खेल सकते हैं,
क्योकि उनका कमर से ऊपर का हिस्सा पूरी तरह से काम करता है
जबकि कुँद्रेप्लेजिक के हाथ भी पूरी तरह से काम नहीं करते,
उनके लिए खेल खलना आसान नहीं हैं
अंकल ने मुझे धक्का लगाओ
सुस्त अपने को धक्का मारो
हम रोजाना अपनी वील चेयर पर एक या दो किलोमीटर जाते है .
और हमारी केवल यही एक कसरत हुआ करती है
साल में एक बार हम खेल के लिए बहार जाया करते हैं - वह
वील चेयर दौड़ ...हो सकता है डेस्कुस थ्रो ...
भाला फेकना , बस यही सब .
हम कुछ ऐसा नहीं खेलते थे ...जो कि हमे थका दे .
वह काफी उर्जा वर्धक है
मैं वील चेयर रग्बी को इस उद्देश्य से बढ़ावा दे रहा हूँ
की एक दिन भारत अपनी टीम का गठन कर सके.
उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा
रग्बी खेलते . मैं सोचती हूँ की इससे
वास्तव में इससे उनके ह्रदय कि वाहिनिओं को लाभ होगा .
मुझे अभी अपने रोगी से पता चला
जिसका में इलाज कर रही थी .उसने कहा , मुझे बहुत भूख लग रही है , कुछ खाना चाहिए
क्योकि उसे पता था कि उसे कल भी खेलना है
तो उसे खाना खाना ज़रूरी है
ने यह कभी भी नहीं सोचा था कि हम इतना सब कर सकते है
हम उसे खेलना चाहते है
और अपना संपूर्ण योगदान भी देना चाहते है
कृष्णन की तरह अन्य परिवारों को भी ,मिलट्री ने सुविधाए प्रदान
की वह एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सके.
पर जो उन्हें वास्तव में थामे रहता है,
की जब वह रोज़ सुबह उठकर बहार नुक्कड़ पर जाते है,
और उन्हें इस तरह का जीवन जीने से कोई डर नहीं लगता.
एक दिन जब सुबह मुझे कृष्णन से मिलना था.
मोर्निंग , कृष्णन ,
ठीक है , मोर्निंग.
हम लेट हो गए माफ़ कीजिये
कोई बात नहीं . ठीक है . चलो चले .
जब पहली बार मैं बहार गया
मै अक्सर देखता था कि कुछ लड़के घुमने जाते है
उनके बच्चो कि भी शादी हो चुकी है ...
तो मैं उनका भी अंकल हूँ और उनके बच्चो का भी अंकल
और उनके नाती पोते , का अंकल.
अब हम तीन पिडिओं से अंकल ही है
हम मील के पत्थर के सामान है ...
वह पर स्थाई है .
मै तैराकी प्रतियोगिता मैं थी
मैं अपने दोस्तों के साथ एक नए स्कूल में थी
परन्तु जब तैराकी शिक्षक ने अन्दर कुदने के लिए कहा ,
यह पूल के अंत में एक गन्दला हिस्सा था
और मेरी गर्दन टूट गयी
मेरी गर्दन में c 5 फ्रेक्चर है
अब तुम्हारे मित्र ...स्कुल के ...
क्या तुमने उन्हें देखा है ?
नहीं .
नहीं ...मै उनसे नहीं मिलता .
उनके माता पिता उनसे कहते है ,
तुम सिर्फ अपनी पढाई समाप्त करो ...
अपने दिमाग को इधर उधर मत लगाओ
तो ...
मैं इसके बारे में नहीं जानता .
वील चेयर रग्बी को बढ़ावा देने का विचार मुझे राहुल से मिलने के बाद आया,
जब मै दोबारा ISIC आया
मेरी दुर्घटना के एक साल बाद .
हम पांच थे जिन्हें एक समान चोट लगी थी--
दीजू,राजेश ,राहुल मैं और समीर
पर वहां कोई नहीं था जो उन्हें सिखाए
की वह अभी भी लिख सकते है ,ऊँगली के जोड़ में पेन फंसा कर,
वे स्लईडिंग बोर्ड द्वारा अपने शारीर को स्थान्तरित कर सकते है
तो जो मैंने सिखा था उन्हें भी दो हफ्तों तक सिखाया
जिसके द्वारा में भी स्वयं अपना कार्य कर सका
फिर मै स्कूल वापस चला गया,
जहाँ मै वील चेयर रग्बी हर हफ्ते खेलता था,
एंड्र्यू ने मुझे इस खेल के बारे में बताया
जब मै हस्पताल में था,
उसके बाद हम इस खेल को खेला करते है
यह आपकी शक्ति परखता है
यह वील चेयर पर होने के पुरे दृष्टिकोण को ही बदल दिया .
दिसंबर 2007 में
क्रिस्टोफर रिवे फाउंडेशन से दान स्वरुप
जिससे मेरे मित्रो ने दान में मिली रग्बी वील चेयर को लाने में सहायता कि
isic में जहा उन्हें ठीक ठाक किया गया
और रोगीओं को इस्तेमाल के लिए दिया
पहली बार भारत में वील चेयर रग्बी का मैच हो सका .
इसके बाद यह खेल मनपसन्द
हो गया ISIC के नए खेल थेरेपी विभाग के लिए.
बास्किट बाल के मैदान में खेलना
side.
जब दो पहिये गोल कि सीमा रेखा पार करते है तो आपकी टीम को अंक मिल जाते है.
जितनी ऊँची आपकी गर्दन में चोट है उतना ही कम आपकी कीर्या होगी
खिलाडियो को उनकी किर्या शीलता और शक्ति के आधार पर ही अंक दिए जाते है .
हर एक टीम में केवल 4 खिलाडी ही हो सकते है
एक समय में मैदान में 8 अंको के लिए प्रतिनिधित्व करते है
दस सेकेंड के अन्दर ही आपको गेंद को दुसरे खिलाडी को पास करना होता है.
मज़बूत खिलाडी गेंद को आगे ले जाता है,
जब कि कमज़ोर खिलाडी सुरक्षा प्रदान करता है.
8 मिनिट के 4 अन्तराल के बाद खेल ख़त्म होता है.
इस खेल कि यह प्रमुख कहावत है कि
जिस व्यक्ति के पास गेंद है उसे मार दो "
आज बस इतना ही ,
हम जित गए .
राहुल के रग्बी अभ्यास में शामिल होने के बाद,
मै और मेरी माँ राहुल के घर दिल्ली में गए
की वह घर में रह कर क्या कर रहा है .
राहुल और उसके छोटे भाई के पास नौकरी थी,
परन्तु अब राहुल कि सहायता के लिए रोहित को घर पर ही रहना पड़ता है
अब दोनों में से कोई भी छ सदस्यों के परिवार को चलाने में पिताजी कि मदद नहीं कर पा रहा है .
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उसके परिवार ने
सारे उपकरणों का इन्तेजाम किया हम जित गए
जो कि , मेरे विचार से , एक अद्भुत बात है .
ज्यादातर रोगी , जब घर वापस चले जाते है ,
वह कुछ नहीं करते . इसका मुख्य कारण है परिवार कि तरफ से सहयता न मिलना
साधनों कि कमी . तो वह इन्तेजाम नहीं कर पाते आप जानते है ...
उदाहरण के लिए , खड़े होने का फ्रेम . तो .....
उसका परिवार एक अच्छा परिवार है .
आर्थिक रूप में , उसके पिताजी सरकारी कर्मचारी है,
काम साधनों पर भी , उन्होंने बहुत अच्छी तरह
देख भाल कि . फलतः
वह एक साल के भीतर आत्म निर्भर हो जयेगा , मेरा विश्वास है
एक जवान आदमी था जो बहुत शराब पीए हुए था l.
जब में वहां गया , उसको उसको संभाला नहीं जा सकता था
और वह मेरे अंकल को ज़मीन पर लिटाकर बहुत मार रहा था ..
जब मैंने उसे छुड़ाया , वह शराबी फिर वापस आ गया .
मैंने उसे कंट्रोल करने कि बहुत कोशिश कि , परन्तु हम लड़खडाए और वह मेरे ऊपर गिर गया
और उसका कन्धा मेरी गर्दन से टकरा गया .
और इस तरह से मेंरी रीड़ कि हड्डी में चोट आयी .
मुझे पता नहीं
कब और कहाँ
मैंने अपने अक्स को छोड़ दिया , और मेरे मित्र पार्टी से चले गए थे
और अब
मै यहाँ पर रह गया
असहाय और अकेला ...
ठीक है ,यह चोट ... ठीक है , कोई बात नहीं
परन्तु नहीं . मेरा भाई किरकेट खेल रहा है ...
और मै हमेशा टोक देता : "रोहित, रोहित!"
यह आदमी - एक अपराधी
पुलिस ने इसे ग्रिफ्तार नहीं किया .
मै इसकी शिकायत पुलिस स्टेशन में करता ...
पुलिस स्टेशन कोर्ट में शकायत करता ...
कोर्ट ? कोर्ट क्या कर सकता है ?
पर मेरा नुकसान तो हो गया . मेरा ...
मेरा भाई बहुत बुरी अवस्था में हैं .
मेरे पिता बहुत बुरी स्थिति में हैं
मेरी बहने बुरी स्थिति में है
एक व्यक्ति कि गलती के कारण 6 लोगो को भुगतना पड़ा .
अक्सर हमे परेशानी तभी झेलनी होती है जब हम अच्छा करते है .
परन्तु ...
परमात्मा ...उस बुरी बात का इस्तेमाल
अच्छे के लिए कर लेता है .
सनातन गुरु यीशु ने मरने से पहले कहा था,
“इससे कोई बात बड़ी नहीं है कि अपने मित्रो के लिए अपना प्राण दे”
राहुल ने भी कुछ ऐसा ही किया .
यह मेरे लिए यीशु भक्त होने के नाते एक याद रखन वाली बात है,
की प्रेम कभी फ़ैल नही होता ,
और यदि मैं परमात्मा के लिए जीने और दूसरो से प्रेम करने का फैसला करूँ,
तो परमात्मा हमारी गलतिओं को अच्छाइओं के लिए इस्तेमाल कर लेगा.
चाहें हमारी आस्था किसी में भी हो हम में एक समानता है
की हमे निस्सहाय अवस्था से गुज़ारना ही पड़ता है…
और उस अंधकार समय हम कुछ मिस कर रहे होते हैं…
हम इस दर्द को कैसे एक उद्देश्य में बदल दें.
देखो . जब मैं गिरा था तो जो मैं देख सकता था वह था
एक नया बादल जो तैर रहा था.
तो मैंने सोचा कि , हो सकता है मै अभी से स्वर्ग मै हूँ .
परन्तु डाक्टर भागता हुआ कमरे मै आया ,और मैंने
अनुभव किया कि मै अभी भी यही पर हूँ
मैं अपने सर के निचे भाग मै कुछ भी महसूस नहीं कर पा रहा था .
वह मुश्किल था क्योकि ..
जब मुझे चोट लगी , जागरूकता और जानकारी
रीड़ कि हड्डी कि चोट के बारे मै कम थी .
मुझे अपने लिए कई तरीको का अविष्कार करना पड़ा
और यह ब्रेक है ...
है जिस से रेस दी जाती है ...
यह क्लच है .
मेरी नवीन से दिल्ली में मुलाकात हुई जब हमने रग्बी शुरू की थी और हम अभ्यास कर रहे थे .
उसने सड़क के गरीब बच्चो के सुधार के लिए एक संस्था का गठन किया था,
इस में एक और चीज़ जोड़ दी जाये तो वह है कुँद्रेप्लेजिक खेल का पथ प्रदर्शक
हर एक अक्षम है पर जो वील चेयर पर है प्रत्यक्ष है
यह काफी स्पष्ट है
अपना सम्बन्ध तुम अच्छा
बना सके गरीब बच्चो के साथ , तुम्हारी दुर्घटन के कारण ,
क्योकि तुम जानते हो कि इस असहाय स्थति में कैसा लगता है .
यह , मै बच्चो के लिए सोचता हूँ .और कुछ ..
बात यह है कि ......
यदि मेरी दुर्घटना न होई होती , तो मै सिर्फ एक सैनिक होता
हो सकता है कि मुझे कुछ करने का अवसर मिलता
कुछ काम इधर उधर
परन्तु ...
अब मेरा पूरा समय इसके लिए अर्पित है
तो मै अब और बहुत कुछ कर सकता हूँ .
मेरी दुर्घटना के बाद मैंने कई प्रकार के जॉब किये
परन्तु ...
बात का मुझे पूरा विश्वास था कि मैं सेटल नहीं हो पाउँगा
एक काम करके . तो ....क्योकि मै ज़िन्दगी को जीना चाहता था
और .. उन जॉब को करते समय
मैंने एक के साथ कम किया
जो संस्था समाज सेवा से जुडी हुई थी
तो मेरे पास काफी संपर्क थे , मदद , और सब कुछ
इसके बाद , मुझे लगा कि मुझे इसके साथ आगे बढ़ना चाहिए
ऐसा करने का हमेशा से मेरा एक सपना था
एक दिन वह शुरू हो गया
मैंने एक नन्ही सी बच्ची को देखा
केवल वह एक शर्ट को पहने थी , रात के समय मे सड़क पर खड़ी रो रही थी
और लोग उसके आस पास से गुज़र रहे थे
मैंने सोचा यह बच्ची यहाँ क्या कर रही है ?
यह अपने आप के लिए भीख नहीं मांग रहे हैं ,
यह परिवार के बड़े लोगो के लिए भीख मांग रही है ,
परिवार गरीब है ... हो सकता है वह मजदूर हो
वह मजदूरी या ऐसा ही कोई काम करते होंगे .
परन्तु बात यह है ...
अगर बच्चा 100 या 200 रूपय रोज़ कमा ले
जो व्यक्ति उसे वहां भेज रहे है
वह और भी बच्चो को वहां भेजेगा
00:21:20:22, 00:21:21:21, Hello
उन बच्चो कि समस्या को समझ गया
क्योकि वह असुरक्षित थे .
वह बहुत बुरी स्थिति में रहते थे .
शोषण हुआ है ..
हम जब बच्चे कि सहायता करते है
वास्तव में हम पूरी एक ज़िन्दगी कि सहयता कर रहे है .
मुझे लगा की मैं अभी स्वर्ग में ही हूँ
हमे अपने आप से ज़रूर पूछना चाहिए,
की मैं किस अच्छे उद्देश्य क लिए अभी भी जीवित हूँ?
भारत और अन्य देशो मे,
समस्या यह है की जो विकलांग है
नहीं जानते की उनमे क्या करने की क्षमता है
और समाज में हम क्या योगदान दे सकते हैं.
हमे अपने समाज में प्रत्यक्ष होना होगा
हमे अपने योग्यता और आवश्यकता के प्रति जागरूकता पैदा करनी होगी
अपनी सीमितता के साथ लोगो के बीच सक्रीय रह कर
हम सहायता कर रहे है की समाधान खोजे और बांटे
बहुत सा काम करना हैं. अगर जो हम कर सकते है वह करे
मैं सोचता हूँ की की हमारा यह बुरा सपना हमारे लिए वरदान साबित हो सकता है .
हो सकता है हम में सब अब कभी चल नहीं पाएंगे,
परन्तु कोई बात नहीं…
हमारा लक्ष्य चलने से बढ़कर है.
वह है जीना…
क्षमा करना…
और प्रेम करना ....उतनी गहराई से जो न किया हो
इस से पहले.