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तो प्रहलाद महाराज सलाह दे रहे हैं कि "तुम यह सब बकवास धारणाअों का त्याग करो"
वनम गतो यद धरिम अाश्रयेत ( श्री भ ७।५।५) । सिर्फ वनम गत: ।
इसका मतलब है कि जीवन के इस अवधारण से मुक्त हो जाअो, गृहम अंध-कूपम
कृष्ण भावनामृत की उदारता हो लो । तो फिर तुम खुश हो जाअोगे ।
हित्वात्म-पातम गृहम अंध-कूपम वनम गतो यद धरिम अाश्रयेत ( श्री भ ७।५।५)
हरीम अाश्रयेत । वास्तविक व्यापार है हरीम अाश्रयेत ।
वनम गत: । वनम गत: का मतलब है जंगल को जाना ।
पूर्व में, गृहस्त जीवन के बाद, , वानप्रस्थ जीवन, सन्यास जीवन, वे जंगल में रहते थे ।
लेकिन जंगल जाना जीवन का मुख्य उद्देश्य नहीं है ।
क्योंकि जंगल में कई जानवर हैं । क्या इसका मतलब यह है कि वे आध्यात्मिक जीवन में उन्नत है?
यही मर्कट वैराग्य कहा जाता है मर्कट वैराग्य का मतलब है बंदर वैराग्य ।"
बंदर नग्न है । नाग-बाबा । नंगे ।
और फल खाता है, बंदर, और जीवन व्यतीत करता है एक पेड़ के नीचे या पेड़ पर ।
लेकिन उसकी कम से कम तीन दर्जन पत्नियॉ है ।
तो यह मर्कट वैराग्य, त्याग इस तरह का, इसका कोई मूल्य नहीं है । असली त्याग
असली त्याग मतलब है तुम्हे इस अंध-कूप जीवन का त्याग करना होगा ।
और कृष्ण की शरण लेना हगाो, हरिम अाश्रयेत ।
अगर तुम श्री कृष्ण की शरण लेते हो, तो तुम्हे यह सब 'वाद' को छोडना होगा ।
अन्यथा, यह संभव नहीं है, तुम इस 'वाद' जीवन में फँस जाअोगे ।
तो हित्वात्म-पातम गृहम अंध-कूपम वनम गतो यद धरिम अाश्रयेत ( श्री भ ७।५।५)
छोडना नहीं ...अगर तुम कुछ त्याग करते हो, तो तुम्हे कुछ अपनाना भी होगा ।
अन्यथा, परेशानी होगी । अपनाअो ।
यह सिफारिश है: परम दृष्टवा निवर्तन्ते (भ गी ९।५९)
तुम अपने परिवार का जीवन, सामाजिक जीवन, राजनीतिक जीवन, यह जीवन, वे जीवन, छोड सकते हो
जब तुम कृष्ण सचेत जीवन जीते हो । अन्यथा, यह संभव नहीं है ।
अन्यथा, तुम्हे इसी जीवन को जीना होगा । तुम्हारी आजादी का कोई सवाल ही नहीं है ।
चिंताओं से मुक्ति का कोई सवाल ही नहीं है । यही तरीका है
तो यहाँ वही बात, कि तत्त्व-दर्शभि:
जो वास्तव में निरपेक्ष सत्य को जानते हैं...
अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, यह वेदांत सूत्र में कहा जाता है ...
जैसे कल, एक लड़का मुझसे पूछ रहा था:
"वेदांत क्या है? वेदांत, वेदांत का अर्थ क्या है?"
यह बहुत अच्छा है, यह बहुत आसान है । वेद का मतलब है ज्ञान, और अंत का मतलब है परम ।
तो वेदांत का मतलब है परम ज्ञान । तो परम ज्ञान कृष्ण हैं ।
कृष्ण कहते हैं वेदैश च सर्वैर अहम् एव वेद्यो वेदान्त-कृद वेद-विद च अहम ।
वे वेदांत के निर्माता हैं और वे वेदांत के ज्ञाता हैं ।
अगर वे वेदांत के ज्ञाता नही होते, तो वे कैसे वेदांत लिख सकते हैं?
दरअसल, वेदांत तत्वज्ञान व्यासदेव द्वारा लिखा गया है, श्री कृष्ण के अवतार ।
तो वे वेदांत-कृत हैं । और वे वेदांत-वित भी हैं ।
तो सवाल था कि वेदांत का मतलब अद्वैत-वाद है या द्वैत-वाद ।
तो यह समझना बहुत आसान है ।
वेदांत का पहला सूत्र: अथातो ब्रह्म जिज्ञासा,
ब्रह्मण, निरपेक्ष सत्य के बारे में पूछताछ करना ।
अब, कहां पूछताछ करें?
अगर तुम पूछताछ करना चाहते हो, तो तुम्हे उस व्यक्ति के पास जाना चाहिए जो जानता है ।
इसलिए, तुरंत, वेदांत सूत्र के बहुत शुरुआत में, द्वंद्व है,
कि हमें पूछताछ करनी चाहिए, और दूसरे को जवाब देना होगा । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।
तो वेदांत सूत्र में, कैसे तुम कह सकते हो कि यह अद्वैत-वाद है?
यह द्वैत-वाद है, शुरू से ही । अथातो ब्रह्म जिज्ञासा ।
ब्रह्म क्या है यह पूछताछ करनी चाहिए, और जवाब भी देना चाहिए,
या आध्यात्मिक गुरु या शिष्य, यह द्वंद्व है ।
तुम कैसे कह सकते हैं कि यह अद्वैत-वाद है? तो हमें इस तरह से अध्ययन करना चाहिए ।
यहाँ यह कहा जाता है, तत्त्व-दर्शिभि:
तत्त्व-दर्शिभि: का मतलब वेदांत वित, वेदांत जो जानता है ।
जन्मादि अस्य यत: (श्री भ १।१।१) निरपेक्ष सत्य को जानने वाला ।
जहां से सब कुछ शुरू होता है । जन्मादि अस्य यत:
यही श्रीमद-भागवतम की शुरुआत है ।