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इस्से शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति आयेगी. ऐसा शायद ही कोई और पूर्वानुमान हो जो इतनी बार किया गया हो और गलत साबित हुआ हो।
1922 में थॉमस एडीसन ने कहा था की, मोशन पिक्चरस का उपयोग
हमारी शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा, और कुछ ही सालों में ये (मोशन पिक्चरस)
किताबों की जगह ले लेगी। आगे क्या हुआ, हम सभी जानते हैं।
सोचा गया था की रेडियो द्वारा विशेषज्ञों को सीधे कक्षाओ में प्रसारित करा जा सकेगा
जिससे ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों को अच्छी शिक्षा काम खर्च में प्राप्त करवाई जा सकेगी। जिसका मतलब था
कम कुशल शिक्षकों की आवश्यकता. और यही आईडिया और सभी प्रस्तावित शिक्षा क्रांति योजनाओं में सामान था।
जैसे की 1950 और 1960 के दशक के शैक्षिक टेलीविजन कार्यक्रम। विशेषज्ञों नै अध्यन करके जानना चाहा कि
क्या छात्र कक्षा में बैठ के पढ़ना ज़्यादा पसंद करेंगे या
एक पास के ही एक कमरे में बैठ कर वही टीवी पे देखना पसंद करेंगे। आप क्या पसंद करेंगे?
80 के दशक में इस बात में कोई दो राय नहीं थी की कम्प्यूटर्स ही हमारी सारी शैक्षिक समस्याओ का समाधान थे।
वे, इंटरैक्टिव, ऑडियोविज़ुअल से लैस थे और उन्हें आपकी इच्छा के अनुसार प्रोग्राम किआ जा सकता था।
उस समय कम्प्यूटर्स ऑरेगोन ट्रेल चला सकते थे और उनकी क्षमता जाहिर थी।
विशेषज्ञों को लगा की अगर वो बच्चो को प्रोग्राम करना सिखा दें जैसे की एक कछुए को स्क्रीन पर इधर उधर चलना
तो उनका कार्यविधिक तर्क कौशल बढ़ेगा। तो इस बार ये कैसा रहा?
इससे बच्चे कछुए को प्रोग्राम करना तो सीख गए मगर उनका तर्किक कौशल अछूता रहा।
यहाँ तक की हम 1990 तक भी अपने पूर्वानुमानों की गलतियों से नहीं सीखे थे।
1994 में सामराऊ और बोएर ने ये कहा कि "कक्षाओं में विडेओडिस्क्स का इस्तेमाल हर साल भड़ता जा रहा है और ये कल की कक्षाओं में क्रांति ले आएगा। "
विडेओडिस्क्स वो बड़ी सीडी जैसी दिखने वाली चीज़,
क्या आपको याद जब शिक्षा में क्रांति लायी थी? मुझे भी नही.
आजकल स्मार्टफोन्स, स्मार्टबोर्डस और एम.ओ.ओ.सी (मासिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज) जैसे बहुत से प्रोडक्ट्स
शिक्षा के क्षेत्र में हम एक क्रांति लेन का वादा करते है। और कुछ लोग ये विश्वास रखते है की यूनिवर्सल शिक्षण मशीन
की ओर भड़ रहे है जो की एक ऐसा कंप्यूटर जो इतना शक्तिशाली और तेज होगा की एक व्यक्तिगत शिक्षक की तरह काम करेगा।
छात्र एक अच्छी तरह से संरचित कोर्स को अपनी गति से सीख सकेंगे
और हाथो-हाथ एक व्यक्तिगत रूप से तैयार किया गया फीडबैक प् सकेंगे।
और ये सब बिना किसी महंगे व्यक्तिगत शिक्षक के। क्या ये सब आपको जाना पहचाना नहीं लग रहा?
पिछले 100 सालो में ज़िन्दगी के बहुत से क्षेत्रो में क्रांति आई है पर शिखा उनमे से एक नहीं है।
आज भी छात्र बड़े समूह में एक साथ एक ही शिक्षक द्वारा पढ़ाये जाते है।
और इस क्रांति नहीं कहा जा सकता। कुछ लोग शायद इस दशा का ज़िम्मेदार
शैक्षिक संस्थानों की निष्क्रियता को दे। एक बड़ी दफ्तरशाही प्रणाली को बदलना आसान नहीं है।
पर मुझे लगता है की आजतक टेक्नोलॉजी के शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ना ला पाने की वजह कुछ और है
कुछ ऐसा जो शिक्षा के मूल सिद्धांतो में से है।
चलिए सीखने की प्रक्रिया पे विचार करते है। सोचिये आप किसी को मानव हृदय
कैसे खून पंप करता है। आपके अनुसार कौनसा तरीका ज़्यादा कारगर होगा, ये एनीमेशन कथित विवरण के साथ
या स्थिर पिक्चर्स का सेट लिखित टेक्स्ट के साथ? जाहिर है की एनीमेशन बेहतर है।
ये एनीमेशन आपको बताता है की वास्तव में प्रक्रिया कैसे होती है।
दशकों से शैक्षिक विशेषज्ञ ऐसे ही सवालो के जवाब ढूंढ़ते आये है। क्या एक वीडियो किताबो से ज़्यादा बेहतर है?
क्या लाइव लेक्चर्स टीवी पे दिखाए लेक्चर्स से ज़्यादा बेहतर है? क्या एनीमेशन, स्थिर पिक्चर्स से ज़्यादा बेहतर है?
सभी नियंत्रित स्टडीज़ में ये पाया गया की परिणाम में कोई महत्वपुर्ण फरक नहीं था।
जब तक की दोनों माध्यमो में सामग्री बराबर थी, परिणाम भी हर माध्यम में
सामान ही रहे। ये कैसे संभव है? कैसे एनीमेशन (जो ज़्यादा प्रभावी लगता है)
और स्थिर पिक्चर्स के परिणामो में समानता है?
वैसे अनिमाशंस क्षणिक होते है तो जैसे जैसे वो आगे भड़ता है शायद आप कुछ चीज़ो पे ध्यान ना दे पाये।
और शयद किउंकि एनीमेशन दौरान आपको अंग कैसे काम करते है इसकी कल्पना करने का अवसर प्राप्त नहीं होता,
जिससे आप इतना मानसिक प्रयास नहीं करते जो आपको याद करने में मदद करती है।
दरअसल कई बार स्थिर पिक्चर्स अनिमाशंस से ज़्यादा बेहतर साबित होती है।
और मुझे लगता है की ये शिक्षा के एक बहुत मूल पहलु की ओर इशारा करता है
की ये मायने नहीं रखता की सीखने वाले के आस पास क्या हो रहा है। हम छात्रों को सीखने के तरीको और माध्यमो से सिमित नहीं है,
पर सिमित इस बात से है की छात्रों के मस्तिष्क के अंदर क्या होता है।
और यह सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसमें कोई भी टेक्नोलॉजी दूसरे से भड़कर नहीं है।
विशेषज्ञों ने ये जाने में इतना समय व्यतीत किआ की
कौनसा माध्यम या टेक्नोलॉजी कहाँ ज़्यादा प्रभावी है की
वे ये शोध करना भूल गए की टेक्नोलॉजी को इस्तेमाल करके आप छात्र की विचार प्रक्रिया कैसे भडाई जा सकती है। तो अब सवाल ये पैदा होता है की
तो अब सवाल ये पैदा होता है की किस प्रकार के अनुभव ऐसी मानसिकता बनाते है जो सीखने में मदद करे| हाल ही में ऐसी ही रीसर्च
की जा रही है और उसमे से कुछ बहुत महत्वपूर्ण परिणाम बहार आये है।
ऐसा सामने आया है की पिक्चर्स और शब्द दोनों के साथ सीखना, चाहे वो एनीमेशन और कथित विवरण हो
या स्थिर पिक्चर्स और लिखित विवरण हो, दोनों ही अकेले शब्दों से ज़्यादा सीखने में मदद करते है।
और जो भी चीज़े बाहरी है निकल देने की आवश्यकता है। जैसे की स्क्रीन पे लिखे शब्द,
विसुअल या वीडियो के साथ हस्तक्षेप करते है। तो छात्र ज़्यादा अच्छे से सीख पाते है जब ये शब्द स्क्रीन पे नहीं होते।
अब जब हमे पता है की बेहतर शैक्षिक वीडियोस कैसे बनाने है,
Youtube ही एक ऐसा माध्यम है जो शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला सकता है।
Youtube पे शैक्षिक वीडियोस की संख्या हर रोज़ भड़ रही है। तो आखिरकार हमे शिक्षको की
क्या आवश्यकता है? अगर आपको लगता है की शिक्षको का मूल काम सिर्फ
छात्रों के मस्तिष्क तक जानकारी पहुँचाना है, तो हाँ, अब शायद हमें शिक्षको की आवश्यकता न रहे।
आप एक कक्षा की कल्पना करे जहाँ एक शिक्षक एक के बाद एक तथ्य पढ़े जा रहा है,
जो शायद एक छात्र के लिए सही गति हो, कुछ के लिए बहुत ज़्यादा तेज़ और कुछ के लिए बहुत धीरे।
सौभाग्य से, एक शिक्षक की भूमिका इससे कई भड़कर है। एक शिक्षक का मूल कार्य,
छात्रों का सीखने की प्रक्रिया में मार्गदर्शन करना है। एक शिक्षक का कार्य है छात्रों को प्रेरित करना,
पढ़ने के लिए चुनौती देना, जोश भरना। हाँ, एक शिक्षक का काम समझाना और अवधारणाओं को प्रदर्शित करना भी है
पर सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो एक शिक्षक कर सकता है, वो हर एक छात्र को आत्मविश्वास दे,
वो हर छात्र को सीखने के काम के लिए जवाबदेह बनाये.
मैं ये नहीं कह रहा की टेक्नोलॉजी का शिक्षा पे कोई प्रभाव नहीं रहा है, शिक्षक और छात्र
कम्प्यूटर्स के माध्यम से ही काम करते है और संपर्क में रहते है, वीडियोस, कक्षा के भीतर और बहार दोनों जगह इस्तेमाल होते है।
इस सब को विकास तो कहा जा सकता है पर क्रांति नही।
शिक्षा की नींव आज भी शिक्षकों और छात्रों के बीच सामाजिक संपर्क पर आधारित है।
हाँ, नयी टेक्नोलॉजीज जैसे मोशन पिक्चर्स, कम्प्यूटर्स, स्मार्ट बोर्ड्स परिवर्तनकारी लगती है
पर अब भी सबसे ज़रूरी ये है की एक छात्र के मस्तिष्क में क्या चल रहा है।
और एक छात्र तभी सीखने के लिए प्रेरित हो सकता है जब उसे एक सामाजिक वातावरण मिले जिसमे वो अपने सहपाठियों के साथ एक ज़िम्मेदार
शिक्षक मिले।