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मैं आज बात करने जा रहा हूँ
विज्ञान और मानवीय मूल्यों के बीच के रिश्ते के बारे में |
अब, सामान्य तौर पर यह समझा जाता है कि
नैतिक प्रश्नों के विषय में
- अर्थात अच्छाई और बुराई या सही और गलत के मामलों में -
औपचारिक तौर पे विज्ञान की कोई राय नहीं है |
माना जाता है कि विज्ञान बस हमारी सहायता कर सकता है,
उन चीज़ों को हासिल करने में जो हमारे लिए मायने रखती हैं ,
मगर विज्ञान हमें कभी यह नहीं बता सकता कि कौनसी चीजें हमारे लिए मायने रखने योग्य हैं |
और इसका नतीजा यह है कि ज़्यादातर लोग - मेरे ख्याल में
यहाँ मौजूद ज्यादातर लोग भी- यह मानते हैं कि विज्ञान
मानवीय जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर कभी नहीं दे सकता;
ऐसे प्रश्नों का जैसे ; "ऐसा क्या है जिसके लिये हम जीना चाहें?"
"ऐसा क्या है जो जान देने लायक है?"
"एक अच्छा जीवन किन चीजों से बनता है?"
तो, मैं यह तर्क करना चाहता हूँ कि
यह एक भ्रम है - कि विज्ञान और मानवीय मूल्यों के बीच का अलगाव
एक भ्रम है -
और मानवीय इतिहास के इस दौर में
ये वाकई एक खतरनाक भ्रम है
अब, अक्सर कहा जाता है कि विज्ञान
हमें नैतिकता और मानवीय मूल्यों की आधारशिला नहीं प्रदान कर सकता,
क्योंकि विज्ञान की सिर्फ तथ्यों के बारे मे बताता हैं,
और ऐसा लगता है कि तथ्यों और मूल्यों के स्थान एकदम अलग मंडलों में हैं |
अक्सर माना जाता है कि
विश्व की वास्तविक अवस्था का ऐसा कोई वर्णन नहीं है
जो हमें बता सकता है कि विश्व की उचित व्यवस्था कैसी होनी चाहिए |
मगर मैं इस मान्यता को बिल्कुल झूट मानता हूँ |
मूल्य भी एक प्रकार का तथ्य हैं |
वे तथ्य हैं चेतनावान प्राणियों की सुखद सद्गति के बारे में |
क्या कारण है इस बात का कि पत्थरों के प्रति हमारे कोई नैतिक उत्तरदायित्व नहीं हैं ?
हम पत्थरों के प्रति संवेदना का अनुभव क्यों नहीं करते?
इसका कारण यह है कि हम नहीं मानते कि पत्थरों को कष्ट हो सकता है | और अगर हम कीड़ों से ज़्यादा
हमारे वनमानुष-समुदाय के प्रति अधिक संवेदनाशील हैं ,
और वाकई हम हैं भी,
यह इसलिए है क्योंकि हम सोचते हैं कि वे सुख और दुःख
के अनुभव की काफी अधिक संभावनाओं के पात्र हैं |
अब, यहाँ एक अहम मुद्दा यह है कि
यह एक दावा है एक हकीकत का ;
एक दावा जो सही या गलत निकल सकता है | अगर हमनें
शारीरिक जटिलता और
अनुभव की संभावनाओं के बीच के सम्बन्ध के विषय में अनुचित निष्कर्ष निकाला हो ,
तो संभवतः हम कीड़ों के आतंरिक जीवन के विषय में गलत भी हो सकते हैं |
मैं अब तक
मानवीय मूल्यों और नैतिकता के ऐसे किसी विचार
या आदर्श से परिचित नहीं हुआ,
जिसका चिंतन किसी तरह केन्द्रित नहीं है
सचेतन अनुभव
और उसके विभिन्न परिवर्तनों पर |
यदि आप आपके जीवन-मूल्य किसी मजहब से प्राप्त करते हों,
यदि आप यह भी मानते हों कि अच्छाई और बुराई अन्तत:
मृत्यु के बाद की परिस्थितियों
- या तो स्वर्ग में ईश्वर के साथ अनंत सुख या नरक में अनंत दुःख -
से सम्बन्धित है.
तब भी आपकी चिंता सचेतन अनुभव और उसके परिवर्तनों पर ही है |
और यह कहना कि ऐसे अनुभव मृत्यु के पश्चात भी जारी हैं,
एक तथ्यात्मक दावा है,
जो हर दावे की तरह सही या गलत निकल सकता है |
अब जब बात उठती है इस जीवन में सुखद सद्गति की परिस्थितियों की,
मानव जाति की,
तो हम जानते हैं कि इस विषय में वास्तविकताओं की एक विस्तृत पंक्ति है |
हम जानते हैं कि एक भ्रष्ट और असमर्थ व्यवस्था में रहना सम्भव है,
जहां हर संभव दुर्गति प्रत्यक्ष है;
जहां माएँ अपने बच्चों को पोषित नहीं कर सकतीं,
जहां अपरिचित व्यक्तियों के बीच शांतिपूर्ण सहयोग की संभावना ही न हो
और जहां लोगों की अकारण हत्या हो |
और हम यह भी जानते हैं कि वास्तविकताओं की इस पंक्ति पर हम
ऐसे स्थानों पर भी पहुँच सकते हैं जो और शान्तिजनक हैं,
ऐसे स्थान जहां इस प्रकार के सम्मेलन की कल्पना तो की जा सके |
और हम जानते हैं -जानते ही हैं -
कि सही और गलत उत्तर हैं इस प्रश्न के
कि संभावनाओं के इस फैलाव में हमें किस प्रकार चलना चाहिए |
क्या पानी में कोलेरा के कीटाणुओं को डालना एक अच्छा सुझाव है ?
शायद नहीं |
क्या यह एक अच्छा सुझाव है कि सब लोग 'बुरी नज़र' पर विश्वास रखें,
ताकि वे किसी दुर्घटना के तुरंत बाद
अपने पड़ोसियों को दोषी ठहरा सकें ? शायद नहीं |
कुछ सत्य जानने योग्य हैं,
जिनसे मानवीय समाज पनपते हैं,
अगर हम इन सत्यों को समझते हों या ना |
और नैतिकता इन सच्चाईयों से सम्बंधित है |
तो, जब हम मूल्यों की बात करते हैं, तब हम तथ्यों की बात करते हैं |
अब जरूर विश्व की अवस्था कई स्तरों में समझी जा सकती है -
'जीनोम' के स्तर से लेकर
आर्थिक प्रणालियों और
राजनैतिक व्यवस्थाओं के स्तर तक|
मगर जब हम बात करते हैं मानव की सुखद सद्गति के बारे में,
तब हम मानव के दिमाग के बारे में बात करने विवश हैं |
क्योंकि हम जानते हैं कि विश्व का हमारा अनुभव और वहीं उपस्थित हमारा स्वानुभव
हमारे दिमाग में ही निर्मित है -
मृत्यु के पश्चात जो भी हो |
अगर एक आत्मघाती विस्फोटक को जन्नत में ७२ कन्याएं मिल भी जाएं,
तब भी उसकी यह जिंदगी, यह शक्सियत -
काफी बदकिस्मत शक्सियत -
उसके दिमाग की ही उपज़ है |
तो संस्कृति का योगदान -
अगर संस्कृति हमें परिवर्तित करती हो, जो कि वह वाकई करती है -
ऐसा हमारे दिमाग को परिवर्तित करने से ही होता है |
और इसलिए सांस्कृतिक तौर पर
मानवीय सम्पन्नता में जो विभिन्नता है,
वह कम से कम सैद्धान्तिक तौर पर तो समझी जा सकती है,
अब के प्रगतिशील मन-सम्बंधित विज्ञान के जरिये -
'न्यूरोसायंस', मनोविज्ञान इत्यादि |
तो मैं यह तर्क कर रहा हूँ कि
मूल्य भी असलियत मे एक तरह से तथ्य ही हैं -
- तथ्य जो कि सचेतन प्राणियों के
सचेतन अनुभवों के बारे में हैं|
और अब हम कल्पना कर सकते हैं
इन सचेतन प्राणियों के अनुभव में बदलाव की संभावनाओं की |
मैं इसे कल्पित कर रहा हूँ एक नैतिक क्षेत्र के रूप में
जिस क्षेत्र के शिखर और घाटियों प्रतिबिम्ब हैं
उन फ़र्कों का जो सचेतन प्राणियों की सुखद अवस्था में हैं,
व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर |
और गौर की एक चीज़ है कि
मानवीय सद्गति के कुछ मुकाम हैं
जहां हम कदाचित ही पहुँचते हैं, और जहां बहुत कम लोग पहुँचते हैं |
और ऐसी अवस्थाएं हमारे खोज की प्रतीक्षा कर रही हैं |
शायद ऐसी कुछ अवस्थाओं को
पारमार्थिक या आध्यात्मिक कहना उचित होगा|
शायद कुछ अवस्थाएं ऐसी हैं
जो हमारे मन की रचना के कारण प्राप्त नहीं हो सकतीं,
और शायद कुछ और मन ऐसे हैं जो संभवत: इन अवस्थाओं को प्राप्त करने में समर्थ हैं |
अब, मुझे स्पष्ट करने दीजिए मैं क्या नहीं कह रहा हूँ | मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि
आश्वस्त रूप से विज्ञान द्वारा हमें इस नैतिक क्षेत्र का नक्शा प्राप्त होगा,
या वैज्ञानिक तौर पर हम नैतिक प्रश्न का उत्तर पा सकेंगे
जिसकी हम कल्पना कर सकते हैं |
मैं यह नहीं सोचता, मिसाल के तौर पर, कि आप एक दिन किसी परम-संगणक से परामर्श लेंगे
आपके परिवार में एक और बच्चे को जोड़ने के विषय में,
या इरान के परमाणु व्यवस्थाओं पर बम गिराने के विषय में ,
या इस प्रश्न का कि क्या आप इस TED सम्मेलन के खर्च को व्यावसायिक खर्च कहकर प्रतिपूर्ति मांग सकते हैं |
(हंसी)
मगर प्रश्न जब मानव कल्याण सम्बंधित हो,
तो उनके उत्तर जरूर हैं, चाहे हमें यह उत्तर प्राप्त हों या ना|
और बस यह कबूल करना -
यह कबूल करना कि सही और गलत जवाब हैं
उन सवालों के बारे में जो लोगों की सद्गति से सम्बंधित हैं -
एक बदलाव लाएगा नैतिकता पर हमारी चर्चा की शैली में,
और बदलाव लाएगा भविष्य में
मानवीय सहयोग की अपेक्षाओं में |
उदाहरण के लिए, २१ प्रांत हैं हमारे राष्ट्र में
जहां कक्षा में शारीरिक दंड कानूनी हैं,
जहां कानूनी है एक अध्यापक को एक बच्चे को मारना एक लकड़ी की पट्टी से, जोर से,
ताकी चोट लगे और छाले पड़े और त्वचा भी चीर जाए |
और, वैसे, लाखों बच्चे
हर साल इसे झेलते हैं.
इन प्रबुद्ध जिलों के ठिकाने मेरी राय में आपको आश्चर्यचकित नहीं करेंगे |
हम कनेटिकट की बात नहीं कर रहे हैं |
और ऐसे व्यवहार का कारण स्पष्ट रूप से धार्मिक है |
ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता ने हमें स्वयं कहा है कि
हम डंडे के उपयोग से न हिचकें,
ताकि बच्चे बिगड़ न जाएं,
- यह है नीतिवचन १३ और २०, और मैं मानता हूँ २३ में |
मगर हम एक सीधा सवाल कर सकते हैं -
क्या यह एक अच्छा सुझाव है, आम तौर पर,
कि बच्चों को पात्र बनाया जाए वेदना,
हिंसा और सार्वजनिक अपमान का,
उनमें उत्तम मानसिक प्रगति और सदाचार
को प्रेरित करने के नाम पर ?
(हंसी)
क्या कोइ शक है कि
इस सवाल का जवाब है,
और वह अहम है ?
अब, आपमें से काफी लोगों को चिंता होगी कि
मानव कल्याण के इस विचार कि सही परिभाषा देना असंभव है,
और पुनर्विचार के लिए यह सदा खुला है|
तो फिर,
मानव कल्याण की एक प्रमाणिक संकल्पना कैसे हो सकती है ?
ठीक है ,अनुरूपता के तौर पर विचार कीजिये आरोग्य की संकल्पना की |
आरोग्य की संकल्पना अपरिभाषित है |
जैसे हमने अभी माइकल स्पेक्टर से सुना, यह सालों से बदलती आ रही है |
जब इस मूर्ति को तराशा गया था,
तब औसत जीवनकाल शायद 30 साल था|
अब विकसित विश्व में यह 80 के आस-पास है |
एक समय आ सकता है जब हम हमारे जीनोम में इस प्रकार के अदल-बदल करेंगे कि ,
200 की उम्र में मैराथन न भाग पाना
एक गंभीर विकलांगता मानी जाएगी |
जब आप उस अवस्था में हैं, तो लोग आपकी सहायता के लिए दान भेजेंगे |
(हंसी )
इस बात पर गौर कीजिए कि ये सच है कि आरोग्य
की संकल्पना खुली है, सचमुच खुली है संशोधन के लिए,
मगर इससे यह अर्थहीन नहीं हो जाती |
एक आरोग्यवान व्यक्ति
और मृत व्यक्ति के बीच का अंतर
लगभग उतना ही साफ़ और निर्णायक है जैसे कि विज्ञान मे होता है |
गौर करने की एक और चीज़ यह है कि नैतिक क्षेत्र में अनेक शिखर हो सकते हैं -
अनेक विकल्प हो सकते हैं सम्पन्नता पाने के तरीकों में ;
अनेक विकल्प हो सकते हैं मानवीय समाज को संगठित करने में,
ताकि सर्वाधिक मानवीय समृद्धि प्राप्त हो |
अब, इससे एक
वस्तुगत और नियमबद्ध नैतिकता को क्यों कोई ठेस नहीं पहुँचती?
जरा सोचिए हम भोजन के विषय में कैसी चर्चा करते हैं ;
मैं यह कभी आशा नहीं करूंगा आपके सामने यह तर्क रखने,
कि एक ही पदार्थ खाने योग्य है |
यह साफ है कि एक श्रेणी है जिसमें अनेक पदार्थ हैं
जो आरोग्यवान भोजन हैं |
मगर निस्संदेह एक साफ फर्क है
भोजन और विष में |
यह बात कि "भोजन क्या है ?"
इस प्रश्न के अनेक उत्तर हैं,
हमें यह कहने के लिए नहीं उकसाता
कि मानवीय पोषण के विषय में जानने के लिए कोई सत्य नहीं हैं |
बहुत लोगों को यह चिंता है
कि एक सार्वलौकिक नैतिकता को आवश्यकता होगी
ऐसे निर्देशों की जिनके अपवाद ही न हों |
तो, उदाहरण के लिए, अगर झूट बोलना सचमुच गलत है,
तो झूट बोलना हमेशा गलत होना चाहिए,
अगर अप इसका एक भी अपवाद प्रस्तुत कर सकते हैं,
तो फ़िर नैतिक सत्य नाम की कोई चीज़ है ही नहीं |
हम ऐसा क्यों सोचते हैं ?
विचार कीजिए , उदाहरण के तौर पर, शतरंज के खेल के बारे में |
अब अगर आप अच्छा शतरंज खेलना चाहेंगे,
तो एक आदर्श, जैसा कि "अपना वज़ीर मत खोना",
मानने लायक है |
मगर साफ है कि इसके कई अपवाद हैं |
कुछ क्षण ऐसे हैं जब वज़ीर को खोना बड़ी चतुर चाल होगी |
कुछ क्षण ऐसे हैं जब वही एक भली चाल है जो आप चल सकते हैं |
फिर भी , शतरंज एक संपूर्णतः नियमबद्ध क्षेत्र है |
यह हकीकत कि यहाँ कई अपवाद हैं,
इस नियमबद्धता में कोई बदलाव नहीं लाती |
अब यह हमें उस तरह की चालों की ओर ले जाता है
जो कि लोग नैतिक मंडल में चलने मे निपुण हैं|
विचार कीजिए इस गंभीर समस्या की, महिलाओं के शरीरों की -
हम क्या करें इनके बारे में ?
एक चीज़ तो हम कर सकते हैं -
उन्हें पूरी तरह ढँक सकते हैं |
अब, यह मत है, आम तौर पर, हमारे बुद्धिजीवी समुदाय का,
कि भले ही हमें यह पसंद न हो,
और हम बोस्टन और पालो अल्टो में
इसे अनुचित समझते हों,
हम कौन होते हैं
एक प्राचीन सभ्यता के निवासियों से कहनेवाले
कि उनकी बीवियों और बेटियों को
कपडे की बोरियों में रहने पे मजबूर करना गलत है ?
और हम होते कौन हैं यह कहने भी वाले कि वे गलत हैं
उनपर लोहे की रस्सियो से वार करने में,
या उनके चेहरों पर बैटरी अम्ल फेकने में,
जब वे (महिलाएं) इस तरह की दम घोंटने वाली सुविधा को अस्वीकार करती हैं ?
सचमुच, हम कौन होते यह नहीं कहने वाले ?
हम कौन होते हैं ऐसे ढोंग करनेवाले
कि हम मानव कल्याण के विषय में इतने अज्ञानी हैं
कि हम ऐसी प्रथा के बारे मैं अनिश्चित हों ?
मैं स्वेच्छा से पर्दा धारण करने की बात नहीं कर रहा हूँ -
महिलाएं को जो वे चाहें पहन सकना चाहिए, जहां तक मेरा इससे कोइ लेना-देना है |
मगर स्वेच्छा क्या मतलब रखती है
ऐसे समाज में, जहां
जब किसी लडकी के साथ बलात्कार होता है,
तब उसके बाप की प्रथम उत्तेजना,
काफी अक्सर, लज्जावश उसकी हत्या करने की है ?
इस हकीकत का पलभर के लिए अपने मन में विस्फोट होने दीजिए -
आपकी बेटी के साथ बलात्कार होता है,
और आपका रवैय्या है कि आप उसका खून कर दें |
कितनी संभावना है
कि यह मानवीय समृद्धि के एक शिखर को चित्रित करता है ?
अब, यह कहने का मतलब यह तो नहीं हुआ कि
इस समस्या का परिपूर्ण समाधान हमारे समाज में मौजूद है |
उदाहरण के लिए,
किसी पत्रिकाओं के दुकान में जाने का अनुभव कुछ इस प्रकार है,
सभ्य जगत में आप भले कहीं भी हों |
अब माना कि बहुतांश आदमियों को
दर्शनशास्त्र के अध्ययन और उपाधि की जरूरत पड़ेगी इन चित्रों में कुछ गलत महसूस करने के लिए |
(हंसी)
मगर जब हम चिंतन की मनोदशा में हैं,
तब हम पूछ सकते हैं,
" क्या यही है उत्तम अभिव्यक्ति
मनोवैज्ञानिक संतुलन की,
यौवन और सुन्दरता और महिलाओं के शरीर जैसे परिमाणों के मद्देनज़र ?"
मेरा मतलब यह है कि क्या यही सर्वोत्तम पर्यावरण है
हमारे बच्चों को पालने का ?
शायद नहीं | खैर, शायद कोई स्थान हैं
इस पंक्ति में
इन दो अधिकतम स्थानों के बीच,
जिस मुकाम पर बेहतर संतुलन है |
(तालियाँ)
शायद ऐसे कई स्थान हैं --
फिर भी, मानवीय सांस्कृतिक परिवर्तनों के मद्देनज़र,
नैतिक क्षेत्र में बहुत सारे शिखर हो सकते हैं |
मगर गौर करने की चीज़ यह है कि और भी बहुत स्थान हैं
जो किसी शिखर पर नहीं हैं |
अब, मेरी दृष्टि में, एक विडम्बना यह है कि,
आम तौर पर मेरी यह बात माननेवाले,
यह माननेवाले कि नैतिक प्रश्नों के सही और गलत उत्तर हैं,
वही लोग हैं जो किसी प्रकार के मजहबी जनोत्तेजक नेता भी हैं |
और, साफ है की वे सोचते हैं कि उनके पास नैतिक प्रश्नों के सही उत्तर इसलिए हैं
क्योंकि उन्हें ये उत्तर किसी आकाशवाणी द्वारा प्राप्त हुए हैं ,
नाकि उन्होंने कोइ बुद्धिपूर्वक अन्वय किया है
मानव तथा प्राणियों के कल्याण के कारण और अवस्थाओं के विषय में |
सचमुच, लम्बे समय तक ज़्यादातर लोगों की,
मज़हब नामक चश्मे के ज़रिये नैतिक प्रश्नों को देखने की वृत्ति ने
ज़्यादातर नैतिक चर्चाओं को मानव और प्राणियों की पीड़ा से सम्बंधित असली सवालों से
पूरी तरह अलग कर दिया है|
इसलिए हम वक्त बिताते हैं
समलैंगिक विवाह जैसे विषयों की चर्चा में,
नाकि नरसंहार अथवा परमाणु संक्रमण
अथवा गरीबी अथवा कोइ और महत्त्वपूर्ण परिणामी विषय की चर्चा में |
मगर यह जनोत्तेजक नेता एक बात पर तो सही हैं - हमें आवश्यकता है
मानवीय मूल्यों की एक सार्वभौमिक संकल्पना की |
अब इस सब के मार्ग में क्या अवरोध है ?
खैर, गौर करने की एक चीज़ यह है कि हम
नैतिकता की चर्चाओं के समय एक अलग प्रकार का व्यवहार करते हैं --
विशेषतः धर्मनिर्पेक्ष, शैक्षिक और वैज्ञानिक किस्म के लोग |
जब हम नैतिकता की चर्चा करते हैं, तब हम मतभेदों को इतना अहमियत देते हैं,
जितना हम जीवन के किसी और क्षेत्र में नहीं देते |
तो, उदाहरण के लिए, दलाई लामा हर सुबह जागते हैं
करुणा का ध्यान करते हुए,
और वे सोचते हैं कि अन्य लोगों की सहायता एक अविभाज्य अंग है
मानवीय सुख का |
दूसरी ओर पर है टेड बंडी जैसा कोई ;
टेड बंडी को बड़ा शौक था युवा महिलाओं का अपहरण कर
उन्हें यातनाएं देकर बलात्कार करके हत्या करने का |
तो, ऐसा लगता है कि सचमुच एक मतभेद है इस विषय पर कि
अपने समय को लाभदायक रूप में कैसे व्यतीत किया जाए |
(हंसी)
कई पाश्चात्य बुद्धिजीवी
इस अवस्था को देखकर कहेंगे,
"खैर, ऐसी कोइ बात नहीं जिसके बारे में दलाई लामा
सचमुच सही हो सकते हैं --सचमुच सही हो सकते हैं --
या टेड बंडी सचमुच गलत हो सकता है,
जिसके विषय में एक असल तर्क प्रस्तुत किया जा सकता है
जो संभवतः विज्ञान की परिधि मे आता हो |
एक को चाकलेट पसंद है , दुसरे को वनिला |
ऐसी कोइ बात नहीं है जो एक दूसरे को कहकर
उसे मना सकता है |"
गौर कीजिए कि हम विज्ञान में ऐसा नहीं करते |
बाएँ ओर पर हैं एडवर्ड विटन |
यह 'स्ट्रिंग थियरी' के विशेषज्ञ हैं |
अगर आस-पास के सबसे बुद्धिमान भौतिशास्त्रियों से पूछेंगे
कि विश्व का सबसे बुद्धिमान भौतिकशास्त्री कौन है,
तो मेरे अनुभव में उन में से आधे लोगों का उत्तर एड विटन होगा |
शेष आधे कहेंगे कि उन्हें यह सवाल पसंद नहीं है |
(हंसी)
तो क्या होगा अगर मैं किसी भौतिकशास्त्र सम्मेलन में पहुंचूं
और कहूं, "'स्ट्रिंग थियरी' एक पाखण्ड है |
मेरा इससे ताल-मेल नहीं जमता | यह तरीका नहीं है जिससे
मैं विश्व को लघु स्तर पर परखना चाहता हूँ |
मैं इसका प्रशंसक नहीं हूँ |"
(हंसी)
खैर, कुछ नहीं होगा क्योंकि मैं एक भौतिकशास्त्री नहीं हूँ,
और मैं 'स्ट्रिंग थियरी' नहीं समझता |
मैं टेड बंडी हूँ 'स्ट्रिंग थियरी' का |
(हंसी)
मैं कोई लेना-देना नहीं रखना चाहूंगा 'स्ट्रिंग थियरी' के किसी भी संघ में जो मुझे सदस्य बना सकते हैं |
पर अहम मुद्दा तो यही है |
जब हम तथ्यों के बात कर रहे हैं
तो कुछ मतों का निषेध करना आवश्यक है |
यही मतलब है किसी क्षेत्र में निपुणता का |
यही मतलब है ज्ञान को महत्त्व देने का |
हमने अपने आप को कैसे मना लिया कि
नैतिक क्षेत्र में नैतिक निपुणता,
नैतिक कुशलता या नैतिक प्रतिभा नाम की भी कोई चीज़ें नहीं हैं ?
हमने अपने आप को कैसे मना लिया कि
प्रत्येक मत माननीय है ?
हमने अपने आप को कैसे मना लिया कि
इन विषयों पर हर एक संस्कृति के दृष्टिकोण
विचार करने योग्य हैं ?
क्या तालिबान का
भौतिकशास्त्र पर कोई दृष्टिकोण है
जो चर्चा के योग्य है ? नहीं |
(हंसी)
क्या मानव कल्याण के विषय में उनका अज्ञान
कुछ कम ज़ाहिर है ?
(तालियाँ )
तो यही, मैं सोचता हूँ, जो कि दुनिया को जानना चाहिए |
इसके लिये हम जैसे लोगों को ये स्वीकार करने की आवश्यकता है,
कि मानवीय समृद्धि से जुड़े प्रश्नों के
सही और गलत उत्तर हैं,
और नैतिकता
तथ्यों के उस क्षेत्र से जुडी है |
संभव है कि
कुछ व्यक्ति, या पूरी सभ्यताएं
अनुचित विषयों पर चिंतित होने लगें,
जिसका मतलब यह हुआ कि संभवतः
उनकी ऐसी मान्यताएं और कामनाएं हों जो निश्चित रूप से
उन्हें अकारण पीड़ा तक पहुंचाती हों |
बस यह स्वीकार करने से ही नैतिकता की हमारी चर्चा पूरी तरह परिवर्तित हो जाएगी |
हम एक ऐसे विश्व में जी रहे हैं
जिसमें देशों के बीच की सीमाओं का अर्थ क्षीण होते जा रहा है,
और एक दिन वे पूरी तरह अर्थहीन हो जाएँगी |
हम जी रहे हैं एक ऐसे विश्व में जो विनाशक यन्त्र-सामग्री से भरा है,
और इन यंत्रों के आविष्कार को मिटाया तो नहीं जा सकता ;
चीजों को तोडना
उन्हें जोडने से हमेशा ज्यादा आसान रहेगा|
मुझे इसलिए लगता है कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि
हम मानव कल्याण की संकल्पना में
विशाल मतभेदों का आदर और उन्हे सहन
नहीं कर सकते,
ठीक वैसे जैसे हम रोग के संक्रमण
या इमारतों तथा विमानों की सुरक्षा के स्तर-मान
के विषय में विशाल मतभेदों को ना तो सहन कर सकते है और ना उनका आदर कर सकते है|
हमें बस उन उत्तरों पर एक होना है
जो हम देना चाहेंगे मानव-जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का |
और यह करने के लिए हमें स्वीकार करना होगा कि इन प्रश्नों के उत्तर हैं |
आपका बहुत धन्यवाद |
(तालियाँ)
क्रिस एन्डरसन : तो, कुछ भड़कानेवाली चीज़ें थीं वहां |
या इन दर्शकों में या विश्व में अन्य कहीं के लोगों में,
कुछ तो लोग होंगे जो ये सब सुनकर आक्रोश से
चीख रहे होंगे, आखिर, खैर कुछ लोग तो |
यहाँ भाषा का काफी महत्त्व है |
जब आप परदे की बात करते हैं,
तब अब महिलाओं के बोरियों में आवृत होने की बात करते हैं |
मैं मुस्लिम जगत में रहा हूं , और मैंने बहुत सारी मुस्लिम महिलाओं से बातचीत की है|
और उनमें से कई कुछ और ही कहती हैं | वे कहेंगी
"अब, आप जान लें, यह आदर व्यक्त करने की एक शैली है
नारी की विशेषता की,
और यह इस हकीकत का नतीजा है -
और तर्क प्रस्तुत किया जा सकता है कि यह एक विकसित मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण है -
इस हकीकत का कि पुरुष की कामुकता पर विश्वास नहीं किया जा सकता |"
मेरा मतलब यह है कि क्या आप उस किस्म की महिला के साथ
बिना किसी तरह के सांस्कृतिक साम्राज्यवादी जैसा नज़र आते हुए इस किस्म का संवाद कर सकते हैं?
सैम हैरिस : हाँ, खैर मैं मानता हूँ कि मैंने इस बात को छेड़ने की कोशिश की,
घड़ी को धड़कते देखते हुए -
लेकिन सवाल ये है कि स्वेच्छा का क्या अर्थ है
ऐसे सन्दर्भ में जहां
पुरुषों की कुछ अपेक्षाएं हैं,
और यह तय है कि आप के साथ एक निश्चित प्रकार का व्यवहार होगा
अगर आप पर्दा धारण करने से इनकार करती हैं ?
और फिर, अगर इस सभा में किसी को
पर्दा पहनने की
या कोई बडी विचित्र टोपी पहनने की, या अपने चहरे को गोदने की चाह है --
तो मेरे खयाल से हमें स्वेच्छा से जो जी चाहे करने के लिए स्वतन्त्र होना चाहिए,
मगर हमें ईमानदारी से गौर करना है
उन सख्त पाबन्दियों पर जो इन महिलाओं पर लागू हैं |
और इसलिए मेरी राय है हम इतना उत्सुक न हों,
एकदम इनकी बातों में आने में,
खासकर तब, जब बाहर का तापमान 48 डिग्री हो
और आप पूरी बुर्का पहने हों |
क्रिस एन्डरसन : काफी लोग मानना चाहेंगे
नैतिक प्रगति की इस संकल्पना को |
पर क्या आप एक समझौते पर पहुँच सकते हैं ?
मुझे लगता है कि मैंने आपको यह कहते हुए समझा कि एक समझौता मुमकिन है
एक विश्व के साथ जो पूरी तरह ,
विविधताहीन नहीं है , जहां सब एक समान नहीं सोचते |
ज़रा चित्रित कीजिए,
घड़ी को ज़रा आगे घुमाकर, कि 50 साल बाद,
100 साल बाद, आप कैसी कल्पना करना चाहेंगे
विश्व की जहां नैतिक प्रगति और
विविधता का संतुलन हो |
सैम हैरिस : देखिये, मैं समझता हूँ कि जब आप मानते हैं
कि हम अपने मनों को हमारे दिमाग के स्तर पर
सविस्तार समझ पाने के मार्ग पर हैं,
तब आपको यह भी मानना होगा कि
हम अपने आप के सभी सद्गुणों
और दुर्गुणों को भी
अधिक विस्तार में समझेंगे |
तो, हम समझेंगे सहानुभूति और संवेदना जैसी
सकारात्मक सामजिक भावनाओं को,
हम समझेंगे इनके क्या कारक हैं
जो इन्हें बढ़ावा देते हैं - क्या ये जन्मसिद्ध हैं,
क्या ये लोगों के परस्पर संवाद की शैली पर निर्भर हैं;
या आर्थिक व्यवस्थाओं पर;
और जितना हम इसपर प्रकाश डालेंगे,
उतने ही निश्चित तौर पर हम एकमत होंगे
उस तथ्यों के क्षेत्र में |
तो, सब कुछ बहस का मामला नहीं होगा |
ऐसा कभी नहीं होगा कि
जन्म से ही मेरी बेटी को परदे में रखने में
उतनी ही अच्छाई है जितनी है
उसे स्वाभिमानी और सुशिक्षित होना सिखाने में,
उन पुरुषों के सन्दर्भ में जो महिलाओं के प्रति कामनाएँ रखते हैं |
मेरा मतलब यह है, कि मैं यह नहीं मानता कि हमें एक NSF अनुदान की आवश्यकता होगी
यह जानने के लिए मजबूरन पर्दा एक बुरा सुझाव है --
पर किसी मुकाम पर
हम इससे समन्धित हर किसी के दिमाग की छान-बीन कर सकेंगे
और इस तरह सचमुच पूछताछ कर सकेंगे |
क्या इन व्यवस्थाओं में लोग अपनी बेटियों से
इतना ही प्यार करते हैं ?
और मैं सोचता हूँ कि इसके साफ सही जवाब हैं |
क्रिस एन्डरसन : और अगर नतीजा निकला कि वे सचमुच करते हैं,
तो क्या आप तैयार हैं इन समस्याओं से जुड़े आपके
स्वाभाविक वर्तमान निर्णय को बदलने में?
सैम हैरिस : खैर हाँ, बस एक ज़ाहिर हकीकत के मद्देनज़र,
कि आप किसी से प्यार कर सकते हैं
एक भ्रम-मय मान्यताओं की व्यवस्था के सन्दर्भ में भी |
तो, आप ऐसा कुछ कह सकते हैं, "क्योंकि मुझे पता था कि मेरा समलैंगिक बेटा
प्रेमी के तौर पर किसी लड़के को ढूँढता, तो जहन्नुम जाता,
मैंने उसका सिर काट डाला | और यही सब से हमदर्द चीज़ थी जो मैं कर सकता था |"
अगर आप इन सब भागों को एक रूपरेखा में जोड़ेंगे,
तो हाँ हो सकता है कि आप प्रेम की भावना महसूस कर रहें हों |
मगर फिर से, हमें बात करनी चाहिए
कल्याण की, एक अधिक विशाल सन्दर्भ में |
इसमें हम सब मिले-झुले हैं एकत्रित रूप में,
यह बात बस उस एक आदमी की नहीं है जिसे किसी बस में
आत्मघाती विस्फोट करके मरने में परमानंद का अनुभव होता हो |
क्रिस एन्डरसन : सैम, यह एक संवाद है जो में सचमुच
घंटों तक जारी रखना चाहूंगा |
अब तो हमारे पास समय है नहीं, मगर शायद फिर कभी | TED में आने के लिए धन्यवाद|
सैम हैरिस : सचमुच यह एक सम्मान है | धन्यवाद |
(तालियाँ)