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ये 'ईएसओ' प्रसारण है.
अग्रणी विज्ञान और 'ईएसओ' के नेपथ्य की झलकियाँ.
'ईएसओ' यानि द यूरोपीयन सदर्न आब्जर्वेटरी
ब्रह्माण्ड को टटोलते हुए हमारे सूत्रधार डा० जो लिस्क बनाम डा० जे के साथ.
हैलो, स्वागत है आपका 'ईएसओ' प्रसारण के इस विशेष अंक में.
ये आपको 'ईएसओ' की अक्टूबर में पचासवीं वर्षगाँठ तक ले जायेगा.
हम आपके लिए आठ विशेष अंक लेकर प्रस्तुत होंगे जिनमें आप ...
'ईएसओ' के दक्षिण के आकाश के अन्वेषण के विगत पचास गौरवशाली वर्षों की गाथा देखेंगे.
प्रकाश को लपकना.
आधी सदी से,
यूरोपीयन सदर्न आब्जर्वेटरी ब्रह्मांड के सौंदर्य को उजागर करती रही है.
पृथ्वी पर तारों के प्रकाश की वर्षा होती रहती है.
विशाल दूरबीनें ब्रह्मांड के प्रकाश कण यानि फोटोन का संग्रह कर
उन्हें अद्यतन कैमरों और वर्णक्रममापी उपकरणों को भेजती हैं.
आज की खगोलीय छवियाँ 1960 के चित्रों से पर्याप्त भिन्न हैं.
जब सन् 1962 में 'ईएसओ' की शुरुआत हुयी,
खगोलशास्त्री काँच की बनी बड़ी बड़ी फोटोग्राफिक प्लेट का इस्तेमाल करते थे.
वे कम सुग्राही और अशुद्ध होतीं और उनसे काम लेना भी कठिन होता था.
आज के इलेक्ट्रोनिक संसूचकों ने दुनिया कितनी बदल दी है.
वे लगभग प्रत्येक फोटोन को पकड़ लेते हैं.
छवि भी तत्काल मिल जाती है.
साथ ही महत्वपूर्ण बात ये भी है कि उसका
कम्पूटर द्वारा संसाधन और विश्लेषण किया जा सकता है.
खगोलशास्त्र पूरी तरह डिजिटल हो गया है.
'ईएसओ' की दूरबीनों में दुनिया के सबसे बड़े
और अति संवेदी संसूचक लगे हैं.
अकेले 'विस्टा' कैमरे में 16 संसूचक लगे हैं जो 6 करोड 70 लाख पिक्सेल के बराबर है.
यह विशाल उपकरण इन्फ्रारेड विकिरण को लपक लेता है जो ब्रह्माण्ड के धूल भरे बादलों से
नवजात तारों से
या दूरस्थ मंदाकिनियों से आ रहा हो.
द्रवीभूत हीलियम इन संसूचकों को ऋण 269 के तापमान पर बनाये रखती है.
इसप्रकार 'विस्टा' दक्षिण के आकाश की सूची तैयार करती है
मानो कोई अन्वेषक किसी अनजाने महाद्वीप का नक्शा बना रहा हो.
'वीएलटी' सर्वे दूरबीन एक और खोजी मशीन है
जो दृश्य प्रकाश के क्षेत्र में काम करती है.
इसका कैमरा जिसे 'ओमेगाकैम' कहा जाता है और भी बड़ा है.
इसमें 32 सीसीडी के 26 करोड 80 लाख विलक्षण संख्या वाले पिक्सेल मिलकर
अद्भुत चित्र बनाते हैं.
इसका दृश्य फलक एक वर्ग अंश का है
- यानि पूर्ण चन्द्र का चार गुना.
'ओमेगाकैम' प्रतिरात पचास गीगाबाईट आंकड़े जमा करता है.
ये तो हुए गीगाबाईट के उम्दा आंकड़े.
'विस्टा' और 'वीएसटी' जैसी सर्वेक्षण दूरबीनें
आकाश को खंगालती रहती हैं - दुर्लभ और रोचक पिंडों की तलाश में.
खगोलशास्त्री फिर 'वीएलटी' की अपार क्षमता का उपयोग
इन पिंडों के उत्कृष्ट अध्ययन के लिए करते हैं.
'वीएलटी' की चारों दूरबीनों में से
प्रत्येक का अपना विशिष्ट उपकरण है,
प्रत्येक की अपनी विशेषताएं है.
इन उपकरणों के बिना 'ईएसओ' के अंतरिक्ष पर लगी बड़ी आँख, बस, अंधी है.
इनके बड़े विलक्षण नाम हैं जैसे, आइजेक, फ्लेम्स, हॉकआई और सिनफोनी.
छोटी कार जितना आकार है इनमें से प्रत्येक विशाल अत्युन्नत मशीन का.
इनका उद्देश्य?
ब्रह्माण्ड के फोटॉनों को पकड़कर हर संभव सूचना बाहर निकलना.
सभी उपकरण विलक्षण हें पर कुछ दूसरों से अधिक विशिष्ट.
उदाहरण के लिए, ये नाको और ये सिनफोनी 'वीएलटी' की एडेप्टिव ऑप्टिक्स का उपयोग करते हैं.
लेज़र के द्वारा कृत्रिम तारे बनाये जाते हैं.
जो वायुमंडल के धुंधलापन लाने वाले प्रभाव को निष्क्रिय करने में खगोलविदों की मदद करते हैं.
नाको द्वारा लिए चित्र इतने स्पष्ट होते हैं मानों उन्हें बाह्य अंतरिक्ष से लिया गया हो.
फिर मिडी और एम्बर नामक दो व्यतिकरणमापी हैं.
इनमें दो या दो से अधिक दूरबीनों की प्रकाश तरंगें एक स्थान पर लाई जाती हैं
मानो उन्हें किसी एक विशाल दर्पण द्वारा एकत्र किया गया हो.
परिणाम:
कल्पनातीत प्रखर चित्र.
पर खगोलशास्त्र में केवल चित्र ही लिए जाते हों ऐसा नहीं है.
अगर आप विस्तृत सूचना चाहते हैं,
तो आप तारे के प्रकाश के साथ चीरफाड़ कर उसकी संरचना ज्ञात कर सकते है.
वर्णक्रममिति खगोलशास्त्र का एक सशक्त औज़ार है.
आश्चर्य नहीं कि 'ईएसओ' को अपने दुनिया के सबसे अत्याधुनिक वर्णक्रममापियों पर गर्व है.
जैसे ये शक्तिशाली 'एक्स-शूटर'.
जहाँ चित्र हमें सौंदर्य के दर्शन करते हैं वहीँ वर्णक्रम अधिक जानकारी उजागर करता है.
सर्जन
गति
आयु
दूरवर्ती तारों के गिर्द घूमते बाह्य ग्रहों के वायुमंडल.
या दृश्य ब्रह्मांड के छोर पर स्थित नवजात मंदाकिनियाँ.
बिना वर्णक्रममिति के हम ऐसे अन्वेषक साबित होते जो बस एक विशाल भूदृश्य मात्र ताक रहे होते.
वर्णक्रममिति के द्वारा
हम उस भूदृश्य की स्थलाकृति, भूविज्ञान, विकास एवं संरचना को जान सकते हैं.
एक बात और है.
अपने शांत और स्थिर सौंदर्य के बावजूद ब्रह्माण्ड एक अत्यंत हिंसापूर्ण स्थली है.
रात में कई जगह ऊपर धमाके होते हैं,
और खगोलविद प्रत्येक घटना को लपक लेना चाहते हैं.
भारी तारे अपने जीवन के अंत में सुपरनोवा के रूप में विस्फोटित होते हैं.
कुछ ब्रह्मांडीय धमाके तो इतने प्रचंड होते हैं कि
वो अपनी पितृ मंदाकिनी को कुछ समय के लिए चमक में पीछे छोड़ देते हैं.
अन्तःतारकीय अंतरिक्ष उच्च शक्ति वाली अदृश्य गामा किरणों से ओतप्रोत हो जाता है.
छोटी-छोटी स्वचालित दूरबीनें उपग्रहों द्वारा इसका संकेत मिलते ही सक्रिय हो जाती हैं.
कुछ ही सेकिंडों में वे सही दिशा में समायोजित हो जाती हैं ताकि विस्फोट के परिणाम का अध्ययन कर सकें.
दूसरी स्वचालित दूरबीनें अपना ध्यान कम नाटकीय घटनाओं पर केंद्रित करती हैं.
जैसे दूरवर्ती ग्रहों का अपने मातृ तारे के सामने से गुज़रना.
ब्रह्माण्ड में हरदम हलचल मची रहती है.
'ईएसओ' की चेष्टा यही है कि इस हलचल के एक भी स्पंदन से चूक न जाय.
ब्रह्माण्डिकी ऐसा विज्ञान है जिसमें ब्रह्माण्ड का उसकी पूर्णता में अध्ययन किया जाता है.
इसकी संरचना, विकास और उद्भव.
इसलिए ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम अधिक से अधिक प्रकाश का संग्रह कर सकें.
ये मंदाकिनियाँ इतनी दूर हैं कि इनसे केवल गिने चुने फोटॉन ही पृथ्वी तक पँहुचते हैं.
पर ये गिने चुने फोटॉन अपने में ब्रह्माण्ड के अतीत के सुराग संजोये होते हैं.
उन्होंने अरबों वर्षों की यात्रा की होती है.
वे हमें आदि ब्रह्मांड का स्वरूप दिखाते हैं.
इसीलिये सुग्राही उपकरणों से सुसज्जित बड़ी दूरबीनें ज़रूरी हो गयी हैं.
पिछले पचास वर्षों में,
'ईएसओ' की दूरबीनों ने बहुत दूर की मंदाकिनियों और क्वेजार्स के दर्शन कराये
जैसे हमने पहले कभी नहीं किये थे.
यहाँ तक कि उन्होंने हमारी मदद अदृश्य काले पदार्थ के प्रसार को अनावृत करने में की
जिसकी प्रकृति अबतक अनजानी है.
कौन जानता है कि अगले पचास वर्षों में क्या गुल खिलेंगे?
इसी के साथ मैं डा० जे 'ईएसओ' प्रसारण के इस विशेष अंक से आपसे विदा ले रहा हूँ.
फिर मिलेंगे ब्रह्मांड की खोज के एक और दिलचस्प अभियान के साथ.
'ईएसओ' प्रसारण 'ईएसओ' द्वारा प्रस्तुत किया गया,
'ईएसओ' यानि यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला.
'ईएसओ', यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला,
खगोलशास्त्र की अग्रणी अंतर्शासकीय विज्ञान और तकनीकी संस्था है,
जो सन्नद्ध है विश्व की भूतल स्थित सबसे अत्याधुनिक दूरबीनें बनाने में.
प्रतिलेखन 'ईएसओ', अनुवाद - Piyush Pandey पीयूष पाण्डेय, JNMF, इलाहाबाद