Tip:
Highlight text to annotate it
X
हमारी नज़र है अब ऊपर.
1,67,000 वर्ष पहले, हमारी आकाशगंगा की परिक्रामारत एक छोटी मंदाकिनी में एक तारे में विस्फोट हुआ.
जब यह विस्फोट हुआ,
उस समय हमारे आदि पूर्वज 'होमो सेपिएन्स' अफ़्रीका के सावन्ना के वनों में विचरण कर रहे थे.
तब किसी ने भी आकाश में यह आतिशबाजी नहीं देखी होगी.
कारण तब उसका प्रकाश वहाँ से चला भर था.
जब प्रकाश ने हम तक की यात्रा का 98% मार्ग तय कर लिया था
तब पृथ्वी पर यूनानी दार्शनिकों ने ब्रह्मांड के बारे में चिन्तन बस आरम्भ ही किया था.
उस प्रकाश के पृथ्वी पर पहुँचने से ठीक पहले
गैलिलीओ गैलिली ने अपनी पहली साधारण सी दूरबीन से आकाश का संधान किया.
और जब 24 फरवरी 1987 को,
उन प्रकाश कणों की पहली बार पृथ्वी पर वृष्टि हुयी,
तब यहाँ खगोलशास्त्री उस सुपरनोवा विस्फोट का विषद अध्ययन करने के लिए पूरी तरह लैस थे.
सुपरनोवा 1987अ
दक्षिण के आकाश में धधकने लगा -
पर यूरोप और अमेरिका से यह नहीं दिखाई दे रहा था.
पर तब तक 'ईएसओ' ने चिली में अपनी पहली बड़ी दूरबीन बना ली थी
जिससे खगोलशास्त्रियों को इस ब्रह्मांडीय नाटक को प्रेक्षागृह में प्रथम पंक्ति में बैठकर देखने का अवसर मिला.
दूरबीन वह मूल संयंत्र है
जिससे हम ब्रह्माण्ड के रहस्यों से पर्दा उठाते हैं.
दूरबीन का प्रकाश ग्राही क्षेत्र आँख की तुलना में बहुत अधिक होता है
इसलिए उससे हम बहुत धुंधले तारे देख पाते हैं और अंतरिक्ष में गहरी पैठ बना लेते हैं
एक आतशी शीशे की तरह सूक्ष्म रचना भी दूरबीन दिखाती है.
और जब उनपर सुग्राही कैमरे तथा वर्णक्रममापी लगे हों तो
हमें उनसे ग्रहों, तारों और मंदाकिनियों के बारे में अपर सूचना मिलती है.
'ईएसओ' की ला सिल्ला पर स्थापित दूरबीनें मिली जुली थीं.
छोटी दूरबीनों से लेकर
बड़े एस्ट्रोग्राफ और चौड़े दृष्य्फ्ल वाले कैमरे इनमें समाविष्ट थे.
वहाँ की 2.2 मीटर व्यास वाली जो दूरबीन अब 30 वर्ष पुरानी हो चली है
अब भी हमारे लिए ब्रह्माण्ड के अत्यंत रोचक दृश्य प्रस्तुत कर रही है.
सेरो ला सिल्ला की सर्वोच्च चोटी पर स्थित
'ईएसओ' की शुरुवाती 35 साल पुरानी 3.6 मीटर व्यास की दूरबीन
को अब ग्रह खोजी दूरबीन के रूप में जीवनदान मिला है.
इसके अलावा स्वीडन के खगोलशास्त्रियों ने 15 मीटर व्यास की एक चमकीली 'डिश' लगाई है
ब्रह्माण्ड के ठन्डे बादलों से आने वाले माइक्रोवेव विकिरण के अध्ययन के लिए.
इन दूरबीनों के मिले जुले प्रयास से ही हम अपने ब्रह्माण्ड के अवगुंठन खोल पाए हैं.
हमारी पृथ्वी मात्र एक ग्रह है सौरमंडल के आठ ग्रहों में से.
छोटे से बुध से लेकर दैत्याकार बृहस्पति तक,
ये चट्टानों के गोले और गैस के गुब्बारे सौर मंडल के जन्म के अवशेष हैं.
सूर्य स्वयं आकाशगंगा मंदाकिनी का एक अधेड़ तारा है
अपने जैसे खरबों अन्य तारों के बीच खोया मानो एक प्रकाशबिंदु -
वहाँ साथ में हैं विशाल लाल दानव तारे, अन्तःस्फोट हुए श्वेत वामन तारे,
और तेज़ी से घूमते न्यूट्रॉन तारे.
आकाशगंगा की सर्पिलाकार भुजाओं में चमचमाती नीहारिकाएँ छिटकी पड़ी हैं.
जिनमें नवजात तारों के गुच्छ विद्यमान हैं,
जबकि तारों के वृद्ध अंगूरी गुच्छे मंदाकिनी के बाहरी क्षेत्र में धीरे-धीरे तिरते हैं.
और आकाशगंगा ब्रह्माण्ड की अनगिनत मंदाकिनियों में से मात्र एक है
और लगभग 14 अरब वर्ष पहले अपने जन्म के समय से ब्रह्मांड का निरंतर प्रसार हो रहा है.
पिछले पचास वर्षों में 'ईएसओ' ने ब्रह्मांड में हमारे स्थान की पहचान करने में बड़ी मदद की है.
ऊपर ब्रह्मांड पर दृष्टि डालकर हमने स्वयं अपनी उत्पत्ति के रहस्य पर पर्दा उठाया है.
हम विराट ब्रह्मांड की महाकथा का एक छोटा सा हिस्सा हैं. बिना तारों के हमारा कोई अस्तित्व न होता.
ब्रह्मांड के आरम्भ में मात्र दो तत्व थे - हाइड्रोजन और हीलियम - सबसे हलके तत्व.
पर तारों के अंदर की नाभिकीय भट्टी में हलके तत्व भारी नाभिकों में परिववर्तित होते रहते हैं.
और 1987अ जैसे सुपरनोवा
अपने विस्फोट द्वारा ब्रह्माण्ड में इन भरी तत्वों को बिखेरते रहते हैं.
आज से 4.6 अरब वर्ष पहले जब सौरमण्डल का जन्म हुआ था
तब ये भारी तत्व क्षीण मात्र में उपस्थित थे.
धातुएं, सिलिकेट, कार्बन और ऑक्सीजन भी थे.
हमारी मांस पेशियों का कार्बन, रक्त का लोहा और हड्डियों का कैल्शियम,
इनका सृजन किन्हीं पहले के तारों में हुआ था.
हमारा निमार्ण वस्तुतः ऊपर आकाश में हुआ.
पर उत्तर हमेशा नए प्रश्नों को जन्म देते हैं.
हम जितना अधिक जान पाते हैं रहस्य उतने ही गहरा जाते हैं.
मंदाकिनियों का उद्भव कैसे हुआ और क्या है उनकी अंतिम परिणति?
क्या बाहर दूसरे सौरमण्डल भी हैं, और क्या वहाँ जीवन हो सकता है?
बताइए तो हमारी आकाशगंगा के काले केन्द्रीय भाग में क्या छुपा है?
जाहिर है खगोलशात्रियों को शक्तिशाली दूरबीनों के आवश्यकता थी.
और 'ईएसओ' ने उन्हें नए क्रांतिकारी औज़ार दिए.