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शिक्षा के व्यापक मानचित्र के माध्यम से बैलेंस्ड व्यू ने संकलित किया है
बैलेंस्ड व्यू समूह द्वारा संकलित किया गया,
खुद को हम देख सकते हैं जैसे हम वास्तव में हैं
बजाये हमें जो बताया गया है हमारे बारे में.
सुनने में अच्छा लगा, है ना ?
और अब, आप जानते है, इसमें बहुत समय लगा इन सब चीजों को याद करनें में,
इसमें बहुत समय लगा इन सब चीजों को याद करनें में, और एक जगह पकडे रहने में.
कैसे भी, इसमें बहुत कम समय लगता है वैसे का वैसा रहने देने में.
क्यों ? क्योंकि वह तो संयुक्त है वास्तविकता से और दूसरा नहीं है. 11 00:00:59,000 --> 00:01:03,176 तो, वह जो पूरे भ्रम के साथ सम्मलित है
दूसरे शब्दों में, विचार कि हम क्षतिग्रस्त सामान हैं
और दूसरा वह जो वास्तविकता के साथ सम्मलित है, वास्तविकता जो वास्तव में है.
क्यूंकि हमने कुछ ज्यादा शिक्षा वास्तविकता में नहीं पाई, वास्तविकता जो वास्तव में है. 16 00:01:23,967 --> 00:01:27,232 हम केवल खुद के भीतर ही इसकी जाँच कर सकते हैं.
यह बिलकुल वैसे ही जैसे खुली जानने की शक्ति के परिचय के बाद,
इसको परखो, देखो कि यह असरदार है. 19 00:01:37,667 --> 00:01:43,899 शुरुआत में ही खुली जानने की शक्ति के परिचय के समय से, 20 00:01:43,900 --> 00:01:50,332 एक बदलाव होता है, और यह एक खुशनुमा बदलाव है.
यह तत्काल लाभ का एक परिवर्तन है जो किसी भी दर्शन शास्त्र का उद्देश्य होना चाहिए.
That's my bias: यह मेरा पूर्वाग्रह है:
किसी भी दर्शन शास्त्र का उद्देश्य तत्काल लाभ पहुँचाना होना चाहिए.
तो, हम तत्काल लाभ से प्रफुल्ल हो जातें हैं
यह मौजूद है, हम अब और दुखित नहीं होते वास्तविकता में शिक्षा की कमी से.
फिर हम देखतें हैं कि जब भी किसी परेशानी या समस्याग्रस्त स्थिति में होतें हैं,
अगर हम खुली जानने की शक्ति पर निर्भर करें जिसका हमको परिचय मिला है,
अगर हम केवल प्रकिर्तिक रूप से आराम करें, आराम्मय शरीर और मन पूरी तरह,
हम देखतें हैं कि और ज्यादा तत्काल लाभ होता है,
और तत्काल लाभ स्वयं होता है. 31 00:02:46,633 --> 00:02:54,032 हमें इसको ज्यादा मात्रा इकठ्ठा करने का और हमेशा पकडे रहने का प्रयत्न नहीं करना पड़ता, 32 00:02:54,033 --> 00:02:59,432 यह स्वयं अपने आप है, यह साधारणतः बात वास्तविकता की पहचान की है.
हम वास्तविकता की पहचान कर रहे हैं; वास्तविकता पहले से ही वैसे की वैसी है,
यह पहले से ही है, यह पहले से ही अपने आप है;
यह केवल बात हमें इसकी पहचान की है और बोध की है. यह बहुत साधारण है. 36 00:03:15,233 --> 00:03:22,566 यह हम में से हर एक पर काम करनी चाहिए और हमें इससे होता लाभ देखना है.
हमें इससे होता हुआ लाभ बहुत गहनता से और पूरी तरह से अपनी जिंदगी के बदलावों में देखना है
मैं कुछ समाये पहले बोल रही थी हमारी बोली में जानने की शक्ति की महत्ता के बारे में.
अब, हम देख सकतें हैं कि हमारी जानने के शक्ति में बदलाव हुआ है.
हमारे मन में, जैसे ये हमारे लिए ज्यादा लाभकारी होती होती है, 41 00:03:46,233 --> 00:03:50,632 और फिर हम देख सकतें हैं इसका प्रभाव हमारी बोली पर,
कि कुछ बातें हम कहतें हैं जो हमने पहले कभी नहीं कहीं,
जिस तरह से हम बोलते हैं वैसे हमने पहले कभी नहीं बोले. 44 00:04:02,467 --> 00:04:08,532 जोभी हम बोलते थे, हम वैसे बिलकुल नहीं बोलते. 45 00:04:08,533 --> 00:04:17,732 और अब, यह बहुत ही शक्तिशाली प्रमाण है हमारा एक बहुत महत्वपूर्ण प्राणी होने का,
या जोभी तुम हमें कहना चाहो. 47 00:04:20,867 --> 00:04:29,832 और, हमारा शरीर, हम देखतें हैं कि हमारा शरीर एक नए तरह से जीवन में व्यस्त होता है.
इसका क्या मतलब हुआ? इसका मतलब सबकुछ.
हम कहीं अधिक चेतन हैं जोभी हमारे शरीर के साथ हो रहा है,
और हम बोध इस तरह से करतें हैं कि पूरी जिंदगी हमारे पास दुःख और दर्द था. 51 00:04:49,733 --> 00:04:54,932 और वो जब हम काम पर से घर जातें हैं और हम कहतें हैं:
" आह, मुझे पीठ में दर्द पूरे दिन था," वो. वह तो पूरी तरह से असंभव है 53 00:05:01,967 --> 00:05:05,532. पीठ में दर्द पूरे दिन होना.
अगर हम बैठ जाएँ पूरे दिन के लिए, हर पल बोलते रहें:
" मुझे पीठ में दर्द है," हम कहीं नैपा में जा पहुंचेंगे.
ऐसा एक स्थान है कैलिफ़ोर्निया में
लेकिन ऐसा ही स्थान कोलोराडो में भी है, मुझे विशवास है.
तो, तुम देखो, यह भूमिका है जो हम पातें हैं अपने भीतर,
कि हमारे पास है पहुँच गुणों की और गतिविधियों की
जो हमारे विचार में भी कभी नहीं आया था.
हमने उनका विचार ही नहीं किया कभी कि क्यूंकि हम बस जो हमें बताया गया है उसी के साथ चलते गए.
हमने यह मान लिए कि हम ठीक नहीं हैं
और यह कि हमें पूरी जिंदगी गुजारनी पड़ेगी अपने को सुधारने(ठीक) करने में.
कि अगर हमारे पास बुरा ख्याल है तो बहतर है कि हम उसको न सोचें.
बहतर है कि हम उसे टाल दें या बदल दें किसी दुसरे ख्याल के साथ.
वैसा ही है भावनओं, समवेदनाओं और दुसरे अनुभवों के साथ भी,
कभी नहीं या कभी भी नहीं हमें किसी नए बताया कि जो जैसा है उसको वैसा ही रहने दो,
केवल जो जैसा है उसको वैसे का वैसा ही रहने दो,
यह ही वास्तव में ईंधन है हमारी अपनी लाभकारी प्रबलता का,
फर्क नहीं पड़ता कि पूर्व में इसका कैसे व्याख्यान किया है
ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी द्वारा या मिरियम वेबस्टर, या जो कोई भी हो, 72 00:06:33,600 --> 00:06:40,332 यह एक बहुत सीमित दायरा है दृष्टि के बिन्दुओं की परिभाषा का.
दृष्टी के बिंदु लाभकारी प्रबलता हैं; यह खुली जानने की शक्ति की शक्ति हैं.
हम केवल यह पातें हैं कि यह शक्ति हैं खुली जन्नाने की शक्ति की,
दुसरे शब्दों में हमारी ही अपनी शक्ति है, ज्यूँ का त्यूं रहने देने में. 76 00:06:58,033 --> 00:07:03,९९९ नहींतो, हम हमेशा सीमित रहेंगे डिक्शनरी की छोटी सी परिभाषा में
अगर हम सभी कुछ को ज्यों का त्यूं रहने देतें हैं, इससे खुलासा होता है
एक शक्ति में जो हम नहीं जानते थे कि हमारे पास है. 79 00:07:15,367 --> 00:07:25,199 हमने देखा है कि सभी लोग इच्छुक नहीं हैं कि मानव प्राणी वास्तव में क्या है
लेकिन, वो लोग जो इच्छुक हैं मानव प्राणी की वास्तविकता में
वह बहुत महत्वपूर्ण लोग हैं
क्योंकि उनके पास शक्ति है जाती को बिलकुल ख़तम होने से बचाने की.
कैसे ?
अनुकरणीय आदर्श भूमिका द्वारा मानव प्रकृति की वैसे ही जैसे कि वो वास्तविकता में है.
एक ही रास्ते से हम बने हैं जैसे हम सोचतें हैं हम हैं
इन ख्यालों के साथ कि हम शतिग्रस्त सामान हैं, मोलिक पाप, कर्म और दूसरी सभी चीजें हैं
केवल एक रास्ता जो हमने स्वीकार किया है या उसको सीखा है,
सवीकार किया है अपने आप में अनुकरणीय आदर्श भूमिका द्वारा, 89 00:08:23,267 --> 00:08:29,066 और यह एक सी हैं जैसे कि हम वास्तविकता में जैसें हैं.
इसी तरह से इस समय के बिंदु पर यह बहुत जरुरी है बनस्पत कि किसी ओइ और समय के बिंदु से.
हमारे लिए इसकी पहचान है, समूह में.
हमें आवश्यक कि इसको पहचानें समूह में, हम सब में.
यह अति आवश्यक है हमारे भविष्य के लिए एक विकास के मूल पहलू से.
साथ ही एक शिक्षा का पहलू; यह तो बहुत महत्वपूर्ण है हमारे भविष्य के लिए,
वो तो ऐसा होगा ही, चाहे हम ऐसा चाहें या नहीं.
तो वह ओ यहाँ हैं और वह जो इन्टरनेट पर साक्षात् देख रहें हैं,
जो वास्तविकता को पहचान रहें हैं वही अच्छे समय का आनंद ले रहे हैं, बहुत अच्छा है.
लकिन कुछ भी हो उनको बहार जाकर बैलेंस्ड व्यू के लिए ढोल पीटने की जरुरत नहीं,
क्यूंकि यह एक मूलिक विकास की प्रक्रिया है.
पहली बार ऐसा मानव जाती के इतिहास में ऐसा हुआ है,
कि मानव प्राणियों ने अपने मूलिक विकास में हिस्सा लिया है
तो हम जो बात कर रहें हैं यहाँ निःसंदेह ही बहुत शक्तिशाली है, 103 00:09:58,400 --> 00:10:11,032 यह कोई दुसरे किस्म के नए युग का प्रस्ताव या दार्शनिक कल्पना नहीं है.
वाह क्या बात है ! हमारे पास वो सब था कितने सालों से,
कितने समय पहले से शायद ही कोई पसंद करे इसको याद करने का या इसके बारे में लिखने का.
बनस्पत हमारे पास सच्चाई है अपनेआप का सामना करने की हम जैसें हैं वैसे ही और एक दुसरे के समने की जैसे हम हैं वैसे ही रहते हुए.
क्यूंकि जब हम अपना सामना करतें हैं जैसे हम हैं वैसे ही, हम बाध्य होतें हैं उन दूसरों का भी सामना करने में जो जैसें हैं 108 00:10:41,000 --> 00:10:47,266 जब हम अपने आप को हम जैसे हैं वैसा जानतें है,
हम यह जानतें हैं कि सबपर क्या काम करता है,
यहाँ अब कोई रहस्य की बात नहीं है . �