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अवधूत का गीत
अज्ञान का बंधन
नाम-रूप का ये संसार
मुझे बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर सकता.
मैं हूँ अमृत रूपी ज्ञान, अपरिवर्तनीय आनंद;
मैं सर्वव्यापी हूँ, आकाश की तरह.
कुछ कहते हैं, "ये वास्तविक दुनिया सत्य है";
बाकी कहते हैं, "यह संसार असत्य है."
इस तरह के तर्क मेरे लिए कोई अर्थ नहीं रखते;
मुक्ति मेरा स्वभाव है;
मेरे लिए कोई माया नहीं है.
मैं ज्ञाता नहीं हूँ,
ना ही कुछ ऐसा जिसे जाना जा सके;
और ना ही मैं ज्ञान का कारक हूँ.
मैं भाषा के दायरे से बाहर हूँ,
मन व बुद्धि से भी परे हूँ;
कैसे परम सत्य का कभी भी शब्दों द्वारा वर्णन किया जा सकता है?
मैं हूँ अमृत रूपी ज्ञान,
अपरिवर्तनीय आनंद;
मैं सर्वव्यापी हूँ,
आकाश की तरह.
सांसारिक वासना के भयानक ज़हर के खिलाफ,
जो मानव जाति को भ्रम में डाल देता हैै,
सिर्फ एक ही इलाज है:
अमृत रूपी ज्ञान,
अपनी मुक्त आत्मा का!
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