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हमारी दृष्टि क्षमता को हमारे पूर्वजों की कल्पना से कहीं परे ले जाकर चमत्कारी दूरबीनों
ने प्रकृति की गहराई और पूर्णता से समझने
का मार्ग प्रशस्त किया है - रेने डिकार्टीज़, 1637।
लाखों वर्षों से मानव तारक खचित आकाश देख मुग्ध होता रहा
- इस बात से अनजान कि ये तारे सूर्य जैसे हैं और आकाश गंगा मन्दाकिनी के सदस्य हैं
- खरबों दूसरी मन्दाकिनियाँ ब्रह्माण्ड में बिखरी पड़ी हैं
- जिसमें हमारा आस्तित्व 13.7 खरब वर्ष के काल
में मात्र विराम चिह्न से अधिक नहीं।
केवल कोरी आँखों से देखकर अन्य तारों के गिर्द दूसरे सौरमण्डल या
अन्य तारों के गिर्द दूसरे सौरमण्डल या
धरातीत जीवन की खोज नहीं की जा सकती।
आज हम एक विलक्षण युग में जी रहे हैं
जिसमें ब्रह्माण्ड के नित नये रहस्यों पर
से पर्दा उठना शुरु हुआ है।
मैं हूँ डा॰ "जे" और मैं आपको
दूरबीन के बारे में बताऊँगा जो मानव के लिये
ब्रह्माण्ड का प्रवेशद्वार सिद्ध हुई।
"आकाश पर गढ़ी नजरें" दूरबीन के आविष्कार के 400 साल।
1. एक नव आकाश।
चार शताब्दि पहले एक व्यक्ति अपने घर के
निकट मैदान में आया।
उसने स्वनिर्मित दूरबीन ऊपर चन्द्रमा, ग्रहों और तारों पर तानी।
उसका नाम था गैलीलियो गैलिली।
तब से फिर खगोलशास्त्र ने पीछे मुड़कर न देखा।
उस घटना के चार सौ साल बाद आज
खगोलशास्त्री शिखरों पर स्थित वेधशालाओं की दूरबीनों से जिनमें विशाल दर्पण लगे होते हैं आकाश निहारते हैं।
उनकी रेडियो दूरबीनें बाह्य अन्तरिक्ष में जरा सी भी आहट सुनने के लिये सजग रहती हैं।
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की कक्षा में, वायुमण्डल की
बाधाओं से परे दूरबीनें स्थापित की हैं।
जो देखा उसने मन्त्रमुग्ध किया!
सच ये है गैलीलियो ने दूरबीन का अविष्कार नहीं किया।
इसका श्रेय जाता है हालैण्ड के और जर्मन मूल के
चश्मा बनाने वाले अचर्चित हैन्स लिपरशे को।
पर हैन्स लिपरशे ने कभी अपनी दूरबीन का उपयोग तारों को देखने के लिये नहीं किया
बल्कि उनका ख्याल था कि यह आविष्कार नाविकों और सिपाहियों के काम आयेगा।
नाविकों और सिपाहियों के काम आयेगा।
लिपरशे थे नवोदित डच गणराज्य के मिडेलबर्ग
नामक वाणिज्यिक शहर से।
सन् 1608 में लिपरशे ने देखा कि एक
उन्नत व अवनत ताल (लैन्स) के द्वारा कोई दूर स्थित वस्तु बड़ी
दिखाई देती है बशर्ते इन तालों को परस्पर सही दूरी पर रखा जाय।
यही था दूरबीन का जन्म।
सितंबर 1608 में उन्होने अपने आविष्कार की बात
हाँलैन्ड के राजकुमार मॉरिट्स को बताई।
समय बड़ा उपयुक्त था
क्योंकि तब हालैण्ड,
स्पेन के साथ 80 वर्ष लम्बे युद्ध में उलझा था।
इस खोज जिसे जासूसी शीशा (स्पाईग्लास) कहा जाता था से
बहुत दूर से शत्रु की सेना जहाज़
आदि दिखाई दे जाते थे।
खोज पर सफलता की मुहर लग गयी।
पर डच सरकार लिपरशे को पेटेण्ट प्रदान न कर सकी -
क्योंकि कुछ अन्य लोग इसका श्रेय ले रहे थे,
विशेषकर लिपरशे का प्रतिद्वन्द्वी - सचारियास जैन्सन।
विवाद कभी सुलझ न पाया।
और आज तक दूरबीन के जन्म की सही कहानी से हम अनजान हैं।
इतालवी खगोलशास्त्री गैलीलियो ने, जिन्हें आधुनिक भौतिकी का जन्मदाता कहा जाता है,
दूरबीन के बारे में सुना और स्वयं अपनी दूरबीन बनाने की ठानी।
करीब दस महीने पहले यह सुनने में आया कि अमुक
फ्लैमिंग ने ऐसा जासूसी चश्मा बना लिया है जिससे
दूर की वस्तुएँ एकदम पास नजर आती हैं।
गैलीलियो अपने समय के महानतम वैज्ञानिक थे।
वो पोलैण्ड के निकोलस कोपरनिकस के प्रबल समर्थक थे
जिसने यह सिद्धांत दिया था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है
न कि सूर्य पृ्थ्वी की।
डच दूरबीन के बारे में जो सुना था उससे
गैलीलियो ने खुद एक दूरबीन बना ली
जो अधिक बेहतर थी।
"अंतत: श्रम और धन की परवाह किये बिना मैंने ऐसी
सुग्राही दूरबीन बना ली है जो कोरी आँखों की तुलना में
वस्तुओं की हजार गुना आवर्धित कर देती है।
यह सही समय था दूरबीन को आकाश पर तानने का।
मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि चाँद की सतह
किसी चिकने गोले जैसी नहीं है जैसा बहुत से दार्शनिक
मानते आ रहे हैं -
बल्कि ऊबड़-खाबड़ है और उसमें
पृथ्वी से बहुत साम्य है।
चाँद पर हैं गड्ढे, पर्वत और घाटियाँ -
हमारे जैसा एक संसार।
कुछ सप्ताह बाद जनवरी 1610 में गैलीलियो ने गुरु को दूरबीन से देखा।
ग्रह से सटे उन्हें चार प्रकाश बिन्दु दिखाई दिये
जो रात-प्रतिरात गुरु के पास ही दिखाई देते और अपना स्थान बदलते रहते।
ऐसा लगा वे प्रकाश बिन्दु हमें ब्रह्माण्ड का कोई नृत्य दिखा रहे हों।
बाद में वे गुरु के चार गैलीलियन उपग्रह कहलाये।
और क्या खोजा गैलीलियो ने?
शुक्र की कलायें।
ठीक हमारे चन्द्रमा की तरह
शुक्र भी कलायें दिखाता है।
शनि ग्रह के दोनों तरफ उन्हें कान जैसी रचना दिखाई दी।
सूर्य के चेहरे पर काले दाग।
और हाँ तारे - वो भी ढेर सारे -
लाखों की संख्या में
जो कोरी आँखों के परे थे।
ऐसा लगा मानो मानव ने अपनी आँखों पर लगी पट्टी एक झटके में निकाल फेंकी हो।
सामने विराट ब्रह्माण्ड पुकार रहा था - आओ मुझे खोजो, जानो।
दूरबीन की खबर पूरे यूरोप में आग की तरह फैल गयी।
प्राग में रुडोल्फ द्वितीय के दरबार में जोहान्स कैप्लर
ने दूरबीन में और सुधार किये।
एण्टवर्प में नक्शा निर्माता माइकेल फॉन लैन्ग्रेन ने
पहली बार चाँद के नक्शे बनाये
और उनमें महाद्वीप और महासागर दरशाये।
और पोलैण्ड में - पेशे से शराब निर्माता - धनी - जोहान्स हैवेलियस ने
डैन्जिग स्थित अपनी वेधशाला में विशाल दूरबीनें लगाईं।
वेधशाला इतनी बड़ी थी कि यह तीन मकानों की छतों पर फैली थी।
पर शायद उस समय के सबसे अच्छे उपकरण
नीदरलैण्डस् में क्रिश्चियन हाइगेन्स ने बनाये थे।
सन 1655 में हाइगेन्स ने शनि के सबसे बड़े उपग्रह टाइटन को खोजा।
कुछ वर्ष बाद उन्होने शनि के वलय पहचान लिये
जिसमें गैलीलियो धोका खा चुके थे।
यही नहीं, हाइगेन्स ने मंगल ग्रह पर
काली रेखाओं और उसकी ध्रुवीय टोपियों को भी पहचाना था।
क्या मंगल के इस संसार में जीवन हो सकता है?
आज भी यह एक प्रश्न ही है।
आरम्भ मे दूरबीनों में प्रकाश इकट्ठा करने का काम ताल (या लैन्स)
द्वारा किया जाता था - ये अपवर्तक थे।
बाद में यह काम दर्पणों द्वारा किया जाने लगा।
प्रथम परावर्तक दूरबीन निकोलो जुच्ची ने बनाई
और बाद में न्यूटन ने उसमें सुधार किये।
फिर 18वीं सदी के अन्त में विलियम हर्शल ने विशाल परावर्तक बनाने आरम्भ किये।
हर्शल वाद्य यंत्र वादक से खगोलशास्त्री बने थे
और अपनी बहिन कैरोलाइन के साथ काम करते थे।
इंगलैण्ड के बाथ नाम शहर के आवास में भाई बहिन गर्म पिंघले शीशे
को साँचो में ढालते, ठण्डा करते,
सतह को चमकाते ताकि वो तारों को परावर्तित कर सके।
इस प्रकार अपने जीवनकाल में उन्होंने 400 से अधिक दूरबीनें बना डाली।
इनमें से जो सबसे विशाल थी उसे घुमाने के लिये उसकी रस्सियाँ, पहिये
और चक्के घुमाने के लिये चार सहायक लगते थे।
पृथ्वी के घूमने के कारण तारे घूम जाते हैं
इसलिये दूरबीन भी घुमानी पड़ती है।
हर्शल एक सर्वेक्षक बन चुके थे, उन्होने आकाश
को खंगाला और सैकड़ों नयी नीहारिकाओं, तारक युग्मों को देखा और दर्ज किया।
उन्होंने ये भी खोज लिया कि आकाशगंगा एक चपटी चकती जैसी होनी चाहिये।
उन्होंने यह भी गणना की कि सौरमण्डल उस चकती में किस गति से घूम रहा है
- तारों और ग्रहों की सापेक्ष गति का अध्ययन कर।
और फिर आई 13 मार्च 1781 की तारीख। उन्होने एक नया ग्रह - यूरेनस खोजा।
इस घटना के 200 साल बाद जाकर नासा के वोयेजर-2 अभियान द्वारा
पहली बार इस ग्रह के समीप से दर्शन हुए।
आयरलैण्ड की हरी-भरी उर्वर भूमि पर 13वीं शताब्दि की सबसे बड़ी दूरबीन बनी - निर्माता - विलियम पार्सन्स
तीसरे "अर्ल आँफ रौस"। दर्पण विशाल था
- 1.8 मीटर व्यास का -
लोग इसे "पार्सन्सटाउन का दैत्य" कहने लगे।
कभी कभार चन्द्रमा विहीन निर्मल रात्रि में अर्ल महाशय
दृष्टि फलक (आयपीस) पर आँख गढ़ा कर चल निकलते महविश्व की यात्रा पर।
वे ओरायन नैब्युला (मृग नीहारिका) पहुँच जाते जिसे आज हम तारों की पौधशाला मानते हैं।
तो कभी कर्क नीहारिका जा पहुँचते जो सुपरनोवा विस्फोट का अवशेष है।
तो कभी भँवररुपी मन्दाकिनी (व्हर्लपूल नैब्युला) देखते।
लॉर्ड रौस वे पहले व्यक्ति थे जिसने इसकी वलयाकार भुजायें पहचानीं।
हमारी आकाशगंगा जैसी ही अन्य मन्दाकिनी,
चमकती गैस, उसमें धूल की काली रेखायें, खरबों तारे -
और शायद कौन जाने पृथ्वियाँ भी हों।
दूरबीन सचमुच ऐसा जहाज़ बन गयी है जिसके सहारे हम ब्रह्माण्ड की यात्रा पर निकल पड़े हैं।