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प्रभुपाद: ", "हर एक बदमाश को लो।" फिर उन्हें प्रशिक्षण दो । यह ज़रूरी है ।
हर किसी को बदमाश समझो ।
कोई सवाल नहीं है कि "यहाँ बुद्धिमान आदमी है, यहाँ बदमाश है, यहाँ है ..."
सबसे पहले उन सब को दुष्ट समझो, और फिर उनको प्रशिक्षण दो । यह ज़रूरी है ।
यह अब ज़रूरी है । वर्तमान समय में पूरी दुनिया दुष्टों से भरी है ।
अगर वे कृष्ण भावनामृत को अपनाते हैं, उन लोगों में से चयन करो ।
वैसे ही जैसे मैं प्रशिक्षण दे रहा हूँ । तुम प्रशिक्षण द्वारा ब्राह्मण हो ।
तो जो कोई प्रशिक्षिण द्वारा ब्राह्मण बनने के लिए तैयार है, उसे ब्राह्मण वर्गीकृत करो ।
जो कोई क्षत्रिय के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है, उसे वर्गीकृत करो ।
इस तरह, चातुर-वर्न्यम मया ...
हरिकेश: और क्षत्रिय मूल रूप से हर किसी को शूद्र के रूप में काम देते हैं और फिर उनमें से चयन करते हैं ।
प्रभुपाद: हमम? हरिकेश: वह शुरू में चयन ... प्रभुपाद: नहीं, नहीं, नहीं । तुम चयन करो ...
तुम पूरे समूह को शूद्र के रूप में लो । तो ...
हरिकेश; चयन करुँ ।प्रभुपाद: चयन करो । और जो बाकी हैं, न ब्राह्मण न ही क्षत्रीय न ही वैश्य, तो वह शूद्र हैं ।
बस, यह बहुत आसान बात है ।
अगर वह इंजीनियर के रूप में प्रशिक्षित नहीं किया जा सकता है, तो वह एक आम आदमी के रूप में बना रहेगा ।
कोई ज़बरदस्ती नहीं है । यह समाज के आयोजन का तरीका है ।
कोई जबरदस्ती नहीं है । शूद्र भी आवश्यक हैं ।
पुष्ट कृष्ण: अब आधुनिक समाज में प्रोत्साहन शिक्षित होने के लिए या इंजीनियर बनने के लिए, पैसा है ।
वैदिक संस्कृति में प्रोत्साहन क्या है?
प्रभुपाद: पैसे की कोई जरूरत नहीं है । ब्राह्मण नि: शुल्क सब कुछ सिखाते हैं ।
पैसे का कोई सवाल ही नहीं है । कोई भी शिक्षा ले सकता है एक ब्राह्मण या एक क्षत्रीय या वैश्य के रूप में
वहाँ कोई नहीं है ... वैश्य को किसी शिक्षा की आवश्यकता नहीं है ।
क्षत्रीय को थोड़ी आवश्यकता होती है । ब्राह्मण को आवश्यकता होती है । लेकिन वह नि:शुल्क है ।
बस एक ब्राह्मण गुरु का पता लगाअो और वह तुम्हे नि:शुल्क शिक्षा देंगा । बस । यह समाज है ।
अब, जैसे ही ... वर्तमान समय में, जैसे ही कोई शिक्षित होना चाहता है, उसे पैसे की आवश्यकता है ।
लेकिन वैदिक समाज में पैसे का कोई सवाल ही नहीं है । नि:शुल्क शिक्षा ।
हरिकेश; तो प्रोत्साहन समाज में खुशी है?
प्रभुपाद: हाँ, यह है ... हर कोई उत्कंठा में है: "खुशी कहाँ है?"
यह खुशी होगी ।
जब लोग शांतिपूर्ण हो जाऍगे, अपने रहन सहन में खुश, तब यह खुशी लाएगा,
न कि कल्पना करके कि " अगर मुझे एक गगनचुंबी इमारत मिले, तो मैं खुश हो जाऊँगा ।" और फिर उस पर से कूदो और आत्महत्या करो ।
यही हो रहा है ।
वह सोच रहा है कि "अगर मेरे पास एक गगनचुंबी इमारत हो, तो मुझे खुशी होगी,"
और जब वह निराश होता है, तब वह नीचे कूदता है । यही हो रहा है ।
यह खुशी है ।
इसका मतलब है सब दुष्ट हैं । उन्हे पता नहीं है कि खुशी क्या है ।
इसलिए हर किसी को कृष्ण से मार्गदर्शन की आवश्यकता है । यही कृष्ण भावनामृत है ।
अभी तुम कह रहे थे कि यहॉ आत्महत्या की उच्च दर है ? पुष्ट कृष्ण: हाँ । प्रभुपाद: क्यों?
यह एसा देश है जिसके पास सोने की खान है, और क्यों वे कर रहे हैं ...?
और तुमने कहा कि यहॉ गरीब बनना मुशकिल है । पुष्ट कृष्ण: हाँ । तुम्हे यहाँ गरीब आदमी बनने के लिए कड़ी कोशिश करनी होगी ।
प्रभुपाद: हाँ । और फिर भी आत्महत्या है । क्यों? हर आदमी अमीर आदमी है, और वह आत्महत्या क्यों कर रहा है?
हम्म? तुम जवाब दे सकते हो?
भक्त: वे केंद्रीय खुशी की कमी महसूस करते हैं? प्रभुपाद: हाँ । कोई खुशी नहीं है ।