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भगवद गीता में सब कुछ वर्णित है.
भगवद् गीता नही कहता की "तुम सांस ले कर जी रहे हो" नही.
भगवद् गीता कहता है. आनाड भवंती भुतनि (गीता 3.14)
अन्ना. अन्ना का मतलब है, अनाज. अनाज का आवश्यकता है.
अन्नाद भवंती भूटानी.
भगवद् गीता कभी नही कहता की "तुम्हे खाने की ज़रूरत है.
तुम बस सांस लो और योगा का अभ्यास करो". नही
लेकिन हमें ज़्यादा या कम नही खाना चाहिए.
ऐसा करना चाहिए. युक्तहरा विहारस्या. हमें ना ज़्यादा न कम खाना चाहिए.
और निराशीह. निराशि उसको कहते है, जिसे फिजूलखर्ची का कोई इच्छा नही होता.
अब हम बस भौतिक संतुष्टि को बस ज़्यादा और ज़्यादा चाहते है.
हम यह नही चाहते है. अगर तुम्हे जीवन का पूर्णता चाहिए, तो उसे तपस्या कहलाते है.
अगर किसी के पास इच्छा है. परंतु उसको बिना वजह इच्छा नही करना चाहिए
सब के पास खाने का अधिकार है, जानवकेरों पास भी. सब के पास अधिकार है
लेकिन हम आनंद लेने के इच्छुक है, और इसीलिए
हम जानवरों को जीने का भी मौका नही देते
बल्कि हम जानवरों को खाने की कोशिश करते है.
इसका ज़रूरत नही है. इसको निराशीह कहते है
तुम्हे जानवरों को क्यों खाना चाहिए?
यहयही असभ्य जीवन है.
जब कोई भोजन होता, जब कोई आदिवासी जातियों का होता है, वह जानवरों को खा सकते हा
उनको भोजन उघना भी नही आता
लेकिन जब मानव समाज सभ्या हो जाएगा
वह बहुत अच्छे खाद्या उघा पाएगा
गायों को खाने के बजाह उनको पाला सकता है.
उसे काफ़ी दूध मिल सकता है.
हम दूध और अन्ना से इतने सारे चीज़ बना सकते है.
तो हमें बिना मतलब का ज़्यादा का इच्छा नही बढ़ाना चाहिए
यहाँ कहा गया है, कुर्वान नप्नोति किल्बिशाँ.
किल्बिशाम मतलब पापी जीवन का कारवाई. किल्बिशम.
अगर हम ज़रूरत से ज़्यादा इच्छा नही करते, तो हमे फेसे हुए नही है.
पाप में शामिल, कुर्वान अपि, हालाकी वह काम कर है.
जब तुम काम करते हो, जांबूचकर या अंजान में?
तुम्हाई किसी चीज़ को प्रतिबध करना पढ़ेगा जो पापी या अपवित्र है.
अगर तुम अच्छी तरह से जीना चाहते हो.
तब कुर्वान नप्नोति किल्बिशाम.
हमारा जीवन बिना पाप का कोई होना चाहिए.
नही तो हमें तो हमे भुगंता पढ़ेगा.
वह इतने गंदे जीवन देखे है, और फिर भी विश्वास नही करते.
यह 8,400,000 जीिव कहाँ से आते है?
बहुत सारे जीव घृणित हालत मैं रहते है.
बेशक, जानवर या प्राणी यह नही जानता है,
लेकिन हमें इंसान होने के नाते जानना चाहिए की यह जीवन ध्रिनित क्यों है
यह माया है. जैसे देखें तो
एक सुअर बहुत गंदा हालत में रह रहा है
मल ख़ाता है, और फिर भी खुश हो के मोटा हो जाता है
जब कोई खुश महसूस होता है, और सोचता है "मैं बहुत खुश हूँ", वह मोटा हो जाता है.
तो तुम्हे ये सुअर मिलेंगे, और वह बहुत मोटे है, और वह क्या खाते है?
वी मल खाते है और गंदे जगह मे रहते है.
लेकिन वे सोचते है "हम बहुत खुश है". यही माया है.
जो भी जीवन का बहू ही घ्रिनित हालत मे रहता है,
माया से वह सोचता है की सब कुछ ठीक है, और कह अच्छी तरह से रह रहा है.
लेकिन जो कोई उँचा स्तल पे है
उसको दिखाई देता है की वह घृणित हालत मे रह रहा है.
तो यह माया वहाँ है, लेकिन ज्ञान और अच्छा सहयोग से
शस्त्र, गुरु, और साधुओं से सिक्षा लेकर
हमें जीवन का मूल्य समझना चाहिए, और ऐसा जीना चाहिए
कृष्ण ने यह आदेश दिया है, की निराशि आदमी को अनावश्यक इच्छाक होना चाहिए
अपने जीवन की आवश्यकता से ज़्यादा - इसी को निराशि कहते है
निराशि. एक दूसरा अर्थ है की किसी को भौतिक आनंद का ज़्यादा शौक नही है.
और यह तभी संभव है जब उसे पूरी तरह से ज्ञान हो की "में यह शरीर नही हूँ"
मैं आत्मा हूँ. मुझे आध्यात्मिक ज्ञान में आगे बढ़ने ज़रूरीई हा.
तभी वह नारीषी बन सकता है.
ये सब तपस्या के सामग्री है.
लोग अब भूल गए हैं. वे तपस्या का अर्थ भी नही जानते.
मानव जीवन इसी उद्देश्य के लिए है.
तपो दिव्यां पुत्रका येन शुद्डयत सातवां येन ब्रह्मा सौख्यम अनन्तम (भागवाटम 5.5.1)
ये शास्त्र के निर्देश हैं.
मानव जीवन तपस्या के लिए है. और तपस्या ...
इसलिए जीवन के वैदिक तरीके से जीवन की शुरुआत तपस्या, ब्रह्मचारी.
एक छात्र को ब्रह्मचर्या का अभ्यास के लिए गुरुकुल भेजा जाता है.
यह तपस्या, आरामदायक जीवन नहीं है.
फर्श पर लेटे
गुरु के लिए भीख माँगने के लिए घर से घर जाते है. लेकिन वह थकते नही है
बच्चे होने के नाते, अगर इनको प्रशिक्षित कारेनो, त वह अभ्यास करते ही जाए
वह हरील महिला को माँ बोलते है. "माँ, मुझे बीक्षा दीजिए"
और फिर वह गुरु के पास वापिस जाते है. सब कुछ गुरु का होता है.
यही ब्रह्मचारी जीवन है. यह तपस्या है
तपो दिव्यम (भगवातम 5.5.1) वही वैदिक सभ्यता है.
कि बच्चों के जीवन के शुरुआत से
तपस्या और ब्रह्मचर्या से प्रशिक्षित
ब्रह्मचर्य. ब्रह्मचारी किसी युवला माही को नही देख सकता
गुरु का धरम पत्नी भी युवा है. वह गुरु का पत्नी के पास भी नही जा सकता
ये प्रतिबंध हैं. अब यह ब्रह्मचर्या कहाँ गया है?
कोई ब्रह्मचारी नही है. यह काली यूगा है. कोई तपस्या नही है.