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ईशा क्रिया
हर रोज करने के लिए एक शक्तिशाली आध्यात्मिक प्रक्रिया
ईशा क्रिया
इस पृथ्वी पर हर व्यक्ति को
आध्यात्मिकता की एक बूंद देने की कोशिश का एक अंश है।
एक बूंद को कोई छोटी चीज न माने
एक बूंद अपने आप में एक पूरा समुद्र है
यह सशक्तिकरण का एक शक्तिशाली उपकरण है।
हमें उम्मीद है कि आप इसे अपने जीवन को छूने और
और रूपांतिरत करने का एक मौका देगें
और इसे बहुत से लोगों के साथ साँझा करेंगे।
ईशा का अर्थ है
वह जो सृष्टि का स्रोत है।
क्रिया का अर्थ है ‘उस स्रोत की ओर किया जाने वाला आन्तरिक काम’।
कर्म का अर्थ है बाहरी काम। अगर आप अपने शरीर,
या अपने मन
या अपनी भावनाओं या अपनी शारीरिक ऊर्जाओं का उपयोग करके कोई काम करते हैं, हम इसे कर्म कहते हैं।
अगर आप इनमें से किसी को भी जोड़े बिना, कोई आंतरिक कार्य करते हैं,
तब हम इसे क्रिया कहते हैं।
तो, ईशा क्रिया
एक बहुत ही साधारण प्रक्रिया है
पर शक्तिशाली
विधि है
जो हमें असत्य से सत्य
की ओर ले जाती है।
ऐसी भी प्रक्रियाएं हैं जो इससे कठिन और प्रभावशाली होती हैं,
पर उसके लिए तैयारी की जरूरत पड़ती है,
एक खास तरह की शिक्षा की जरूरत होती है,
उसे सिखाने के लिये
लोगों को काफ़ी सारा प्रशिक्षण देना पड़़ता है।
पर यह एक ऐसी प्रक्रिया है...
आम तौर पर,
वे सभी आध्यात्मिक प्रक्रियाएं
जो हमें इस दिशा में मोड़ती हैं,
उनको करने से शारीरिक बदलाव भी आते हैं।
जहाँ भी शारीरिक बदलाव आता है, वहां यह बहुत ज्यादा जरूरी है
कि सिखाने वाला बहुत अधिक ट्रेन्ड हो,
नहीं तो
आप लोग योग को एक तमाशा बना देंगें।
इस तरह के योग आजकल हर जगह किए जा रहें हैं;
ये कुशलता लाने की बजाय
ज्यादा नुकसान ही पहुंचाते हैं।
पर कुछ ऐसे आयाम और प्रक्रियाएं,
हैं जिनमें कोई शारीरिक बदलाव नहीं आता
पर ये आध्यात्मिक रूपांतरण लाती हैं।
ऐसी चीजें जिन्हें बड़े समूह
को सिखाया जा सके बहुत कम ही हैं,
और हम तकरीबन हर उस व्यक्ति को कबिल बना सकते हैं
जिसके मन और भावनाओं में इसे सिखाने के लिये थोड़ा सा भी नेक इरादा है।
अगर उनमें सिर्फ इतना है
तो वो इसे सिखा सकते हैं।
हम यह प्रक्रिया अभी करेंगे
आपको इसे थोड़ा सा समझना होगा कि यह क्या है।
क्या यहाँ हर व्यक्ति इस समय साँस ले रहा है? हां?
कृपया जाँच लें।
इसका कोई भरोसा नहीं है।
यह हमेशा नहीं चलता रहेगा, किसी दिन यह रूक जाएगा, आप यह जान लें।
क्या आप अभी साँस ले रहे हैं? हां या नहीं?
कृपया जाँच लें। इसका कोई भरोसा नहीं है।क्या आप वाकई में साँस ले रहे हैं?
चल रहा है? ठीक है?
ये साँस लेना,
छोड़ना,
लेना,
छोड़ना
लेना,
छोड़ना
अगली साँस नहीं आई,
पूफ़्फ़। फिर तो आप गए।
जरा देखिए, आप कितने नाजुक हैं।
अगर बस ये एक साँस अंदर नहीं जाती, फ़ू
हम आपको चाहे कहीं भी खोजें आप नहीं मिलेंगे
यह मानव जीवन कितना नाजुक है
और साथ ही उतना ही मजबूत भी है;
एक मनुष्य इस दुनिया में कितना कुछ कर सकता है।
एक स्तर पर यह इतना नाजुक लगता है,
जरा गौर किजिए और देखिये;
अगर ये वापस नहीं आता है, पूफ़्फ़।
बहुत नाजुक है, है न?
आपने यह मान रखा है कि यह सदा के लिए है, आप इसके प्रति जागरूक नहीं हैं।
अगर आप जागरूक हो कर इसे देखते हैं,
ये जीवन बहुत ही नाजुक है।
साथ ही साथ ये बहुत मजबूत भी है;
ये बहुत सारी चीजें कर सकता है।
सृष्टि की खूबसूरती यही है -
हर चीज नाजुक से संतुलन में है।
इतना नाजुक कि आप इसे छेड़ नहीं सकते;
कम से कम आसानी से तो नहीं।
पूरी सृष्टि इसी तरह से है। यह बस ऐसी ही है।
यह दिखाता है
कि रचयिता बहुत माहिर है
इसका संतुलन बहुत ही नाजुक है,
इसका मतलब...
यह रचयिता
की माहारत
साबित करता है। वे इतने कुशल रचयिता हैं कि
वे इसे इतनी नाजुक स्थिति में रख सकते हैं।
तो रचयिता इतना हिम्मती है
कि अगर आपने एक साँस नहीं ली, आप गये
पर...
सृष्टा को अपनी डिजाइन
पर बहुत भरोसा है।
तो ये साँसें केवल
आक्सीजन और कार्बन डायआक्साइड का आना-जाना नहीं है,
योग में
हम इसे कूर्म नाड़ी कहते हैं।
साँसों को कूर्म नाड़ी बोला जाता है।
अगर
मैं आपसे अपनी साँस देखने के लिये कहूँ,
आजकल यह एक बहुत आम बात है, सभी लोग कर रहे हैं।
आप साँस नहीं देखते हैं, आप सोचते हैं कि आप साँस को देख रहे हैं,
पर आप साँस को नहीं देख रहे हैं,
आप केवल हवा अंदर जाने के
कारण हुई संवेदना पर ध्यान दे रहे हैं।
अगर आपके बगल में बैठे व्यक्ति ने आपका हाथ छुआ,
आप सोचते हैं कि आप दूसरे व्यक्ति के स्पर्श को जानते हैं पर आप नहीं जानते,
आप केवल अपने शरीर में पैदा हुई संवेदना को जानते हैं।
आप यह नहीं जानते हैं कि दूसरा कैसा महसूस करता है।
आप केवल अपने शरीर में पैदा हुई संवेदना को जानते हैं।
आप समझ रहे हैं मैं क्या कह रहा हूँ?
अभी
आप साँस को नहीं जानते हैं।
आप साँस से पैदा हुई संवेदना को जानते हैं।
जब हम कूर्म नाड़ी कहते हैं हम संवेदना की बात नहीं कर रहे हैं।
हम साँस की ही बात कर रहे हैं।
कूर्म नाड़ी को डोर कहा जाता है।
यह एक डोरी की तरह है,
एक अखंड डोर।
यह चलती जा रही है
और इस डोर ने ही
आपको इस शरीर
से बांध रखा है।
अगर मैं आपकी साँसें ले लूं
तो आप और आपका शरीर अलग-अलग हो जाएंगे।
जिसे आप एक समझते हैं, वे दो हो जाएंगे। यह पहला भ्रम है।
वाकई में दो हैं,
पर एक जैसा वर्ताव करते हैं
– यह भ्रम जारी है।
तो अगर मैं साँसों को खींच लूं,
आप और आपका शरीर अलग हो जाएंगे।
हम नहीं चाहते कि ये अलग हो
जाएं लेकिन अगर आप सचेतन रहते हैं
अगर आप साँस के चलने के साथ-साथ
जागरूकता बनाए रखते है,
तब आप देखेंगे,
यह साफ़-साफ़ देखेंगे,
कि ये दोनों एक नहीं हैं।
आप अपने शरीर से अलग खड़े होंगे।
आप अपने मन से अलग खड़े होंगे।
अगर आपके और आपके शरीर व मन
के बीच एक दूरी पैदा हो जाती है,
तब अचानक आप पाएंगे कि
अपने शरीर और मन के उपयोग करने की
आपकी क्षमता अजीबोगरीब ढंग से बढ़ जाती है।
अभी अगर
आपको एक से दस तक गिनती करते हैं,
ठीक है... इसमें दस सबसे ज्यादा है।
अगर आप शरीर से उलझे हुए हैं
या इस शरीर में ही मगन हैं
तो आप एक से भी कम हैं।
अगर ये दो चीजें अलग हो जाएं, अचानक आप इसे
दस तक बढ़ा सकते हैं,अपने दिमाग और शरीर के उपयोग करने की
आपकी क्षमता इतनी बढ़ जाती है
कि किसी दूसरे व्यक्ति के लिये आप सूपरह्यूमन हो जाते हैं।
पर मैं आपको यह बता दूं कि यह मानवीय क्षमता है।
यह सूपरह्यूमन होने के लिये नहीं है।
यही तो जान लेना है कि मानव होना ही सूपर है, महान है!
हाँ,
मनुष्य होना कोई साधारण बात नहीं है।
अब ईशा क्रिया में ये सब बातें शामिल हैं;
अभी आपके जीवन में आपके विचार बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
इसलिए हम इनका इस्तेमाल करते हैं।
और आपकी सांस महत्वपूर्ण हैं,
तो हम इसका इस्तेभमाल करते हैं। 174 00:09:16,008 --> 00:09:21,000 और साथ ही साथ अपनी जागरूकता के बिना, आपको यह भी नहीं पता चलेगा कि आप यहाँ हैं या नहीं।
है कि नहीं?
अगर आप जागरूक नहीं हैं, आप इतना भी नहीं जानते कि आप जीवित हैं या मृत या
आपका अस्तित्व है भी या नहीं।
तो ये तीन घटक
आपकी साँसें,
आपके विचार और आपकी जागरूकता, सही अनुपात में अगर आप काम में लाएं,
आप देखेंगे कि धीरे-धीरे आपके शरीर और
आप के बीच थोड़ी सी दूरी पैदा होने लगती है।
अब
आप बिलकुल स्पष्ट रूप से असत्य से सत्य की ओर बढ़ने लगे हैं।
ईशा क्रिया
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